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महाकाव्य काल उल्लेख | Ramayan and mahabharat period in hindi

 प्राचीन काल में हमारे देश में दो बड़े महाकाव्य की रचना हुई, और रचना जिस काल में हुई वह महाकाव्य काल हुआ। महाकाव्य कब लिखे गए, जिन घटनाओं पर यह लिखे गए हैं, वह कब हुई?
   यह प्रश्न भी अनेक विद्वानों के विभिन्न मतों में उलझे हैं। कुछ विद्वानों के मतानुसार महाभारत का युद्ध 1800 से 1400 ईसा पूर्व काल में हुआ था। और महाकाव्य काल 1400 से 1000 ईसा पूर्व होने का मत है। हालांकि यह स्पष्ट तथ्य नहीं है।
   जिन महाकाव्यों का लेखन इस काल में हुआ वह रामायण और महाभारत है। रामायण में श्री रामचंद्र की जीवन लीला का वर्णन है। और महाभारत कौरव और पांडवों के युद्ध का वर्णन है। इनकी एक महत्वपूर्ण उपयोगिता यह भी है, कि इनका गहनता से अध्ययन करने पर तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक दशा का ज्ञान होता है।
  रामायण की कथा में राजा दशरथ कौशल राज्य के राजा हैं। इनकी तीन रानियां हैं। और इन तीन रानियों से चार पुत्र हैं, कौशल्या के पुत्र राम, सुमित्रा के दो पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न तथा कैकई का एक पुत्र भरत। इनमें राम सबसे बड़े थे।
सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या उनकी राजधानी थी। वह इक्ष्वाकु वंश के राजा थे। भरत के राजतिलक को लेकर मंथरा का कैकई को दिया कुटिल परामर्श राम को 14 वर्ष के वनवास परिणाम देता है, राजा दशरथ के स्वर्गवास का कारण बनता है, और यह बनवास रावण के अंत पर समाप्त होता है। किंतु रामायण की कहानी जारी है क्योंकि यह श्री राम की जीवन लीला है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा रामायण महाकाव्य आज भी श्रेष्ठ है।
   ठीक इसी प्रकार महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखा महाकाव्य महाभारत पाण्डू के पुत्र पांडवों और धृतराष्ट्र के पुत्र कौरवों के संघर्ष की कहानी है। वह धर्मयुद्ध जो कुरुक्षेत्र की भूमि में लड़ा गया वह गीता का ज्ञान देकर हस्तिनापुर पर पांडवों का अधिकार होने पर समाप्त हुआ।
   उस समय के राजाओं के पास चतुरंगणी सेना हुआ करती थी। जिसमें हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिक होते थे। चक्रव्यूह की रचना की जाती थी, और जीत प्राप्त करने के लिए छल कपट और कूटनीति का प्रयोग किया जाता था। वैदिक काल की भांति इस युग में भी यज्ञ का प्रचलन था। राजा राजसूया और अश्वमेध यज्ञ किया करते थे। राजा दशरथ ने लक्ष्मण और श्री राम को महर्षि विश्वामित्र के आश्रम भेजा था, क्योंकि वहां राक्षस यज्ञ में अवरोध उत्पन्न कर रहे थे।
   किंतु यह भी सूचित हो, कि उस वक्त तक जातीय व्यवसाय का परित्याग होने लगा था, प्रमाण में अध्ययन कुछ इस प्रकार से है कि विश्वामित्र क्षत्रिय थे और उन्होंने ब्राह्मण वृत्ति को स्वीकार किया, और ठीक इसी प्रकार द्रोणाचार्य ब्राह्मण थे, किंतु उन्होंने क्षत्रिय वृत्ति को स्वीकार किया।
   इन सब में उस वक्त तक क्षत्रियों ने अपने वर्चस्व समाज में स्थापित करना प्रारंभ कर दिया था। ऐसा प्रतीत होता है, कि ब्राह्मणों का महत्व समाज में कम होने लगा, राजनीति में उनका प्रभाव बहुत कम हो गया था, और साथ ही वैश्य समुदाय ने स्वयं को श्रेणियों में एकत्रित करना प्रारंभ कर दिया था। और वह समाज में धीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे।
   उस वक्त के समाज में स्त्रियों का आदर्श बड़ा ऊंचा था। किंतु सती प्रथा का प्रचलन हो गया था। क्योंकि अध्ययन में आया है, कि पांडू की दो पत्नियों में एक सती हो गई थी। और इसके अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तथ्य स्वयंवर में शादी करने का प्रचलन था, क्योंकि सीता और द्रोपदी का वर  स्वयंवर में ही तय हुआ।
   उस काल में दास प्रथा के प्रचलन में होने के संकेत मिलते हैं। उस काल तक भक्ति और कर्म पर बल दिया जाने लगा, मोक्ष की प्राप्ति के लिए साधन इन्हें माने जाने लगा। गीता में श्रीकृष्ण इसी का उपदेश देते हैं। इसके अतिरिक्त पुनर्जन्म पर विश्वास इस जन्म के कर्मों का फल अगले जन्म में भोगना पड़ता है। भगवान की भक्ति से मुक्ति प्राप्त हो सकती है। यह विश्वास पैदा होने लगा।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, दुर्गा, पार्वती आदि देवी- देवताओं की पूजा आरंभ होने लगी अवतारवाद में विश्वास लोगों को होने लगा था, क्योंकि श्री कृष्ण और श्री राम के विष्णु भगवान का अवतार होने का ज्ञान है।
 महाकाव्य काल में महाकाव्यों द्वारा जिन आदर्शों को हम तक पहुंचाया गया। आज तक पथ प्रदर्शक बने हैं।

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