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प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा और अब सवाल महेंद्र भट्ट से



श्री प्रेमचंद अग्रवाल को एक अदूरदृष्ट नेता के तौर पर याद किया जाएगा। जिन्होंने अपनी कही बात पर इस्तीफा दिया मंत्री पद को त्याग और इससे यह साबित होता है, कि आपने गलती की है। अन्यथा आप अपनी बात से, अपनी सत्यता से जनमानस को विश्वास में लेते, पार्टी को विश्वास में लेते और चुनाव लड़ते। आपके इस्तीफे ने आपकी गलती को साबित कर दिया।

उन्होंने राज्य आंदोलन के दौरान अपनी भूमिका को स्पष्ट किया, अपना योगदान बताया और आखिरी तौर से वे भावनाओं से भरे हुए थे, उनके आंसू भी देखे गए। इसी पर उन्होंने अपने इस्तीफा की बात रख दी वह प्रेस वार्ता हम सबके सामने हैं। 


यहां से बहुत कुछ बातें समझने को मिलती है, राजनीति में बैक फुट नहीं होता है, राजनीति में सिर्फ फॉरवर्ड होता है। यह बात उस समय सोचने की आवश्यकता थी, जब इस तरह का बयान दिया गया था, जिसने इतना बड़ा विवाद पैदा किया। यह नेताओं की दूर दृष्टि का सवाल है, उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि उनके द्वारा कही बात का प्रभाव कितना व्यापक हो सकता है। राजनीति में आपके द्वारा कही बात पर आप आगे माफी लेकर वापसी कर पाएंगे ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि उसका प्रभाव कभी-कभी इतना व्यापक होता है, की स्थितियां संभाले नहीं संभालती।

इस प्रेस वार्ता में उनके आंसू भी देखे गए। लेकिन राजनीति को जानने समझने वाले लोग इससे प्रभावित नहीं होते। राजनीति में नेताओं का हर कदम और सांस लेना भी जनमानस को लुभाने के लिए है। वह सब जो आपको मालूम चलता है, वह जनमानस पर अपने प्रभाव को मजबूती से रखने के लिए कोई नेता करता है। सारा खेल सत्ता में बने रहने का है, यह सत्ता हासिल करने का। राजनीति कोई कमजोर लोगों का खेल नहीं यह मजबूत लोगों का खेल है। 


राजनीति में पहले जमीन पर मेहनत होती है, एक कार्यकर्ता के तौर पर जमीन पर पैर मारे जाते हैं। वही बात जो वे कह रहे थे कि मैं उत्तराखंड राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका में था, और मेरा योगदान रहा है। राजनीति में जमीनी मेहनत के बाद शक्ति और सत्ता आती है, उसके पश्चात घमंड आता है, और फिर इंसान का राजनीतिक पतन होता है। राजनीति की उस शीर्षस्ता को हर कोई पाचन नहीं कर पाता इसलिए अक्सर इस तरह का पतन देखने को मिलता है।


दरअसल बीजेपी के नेता पहले से यह तो जरूर है, कि मान रहे थे, की गलती तो हुई है कुछ, लेकिन मंत्री जी का संरक्षण भी कर रहे थे। अब सवाल महेंद्र भट्ट जी पर पैदा होता है। प्रेमचंद अग्रवाल जी ने तो इस्तीफा सौंप दिया है। अब महेंद्र भट्ट जी जवाब देंगे कि आपने इस्तीफा स्वीकार क्यों किया यदि उनकी बात को तोड़ मरोड़ कर सामने रखा गया था तो आप अपनी बात पर अडिग रहते और जनमानस का विश्वास जीतते और इसी पर चुनाव लड़ते।

सवाल बड़े हैं, जिसका जवाब बीजेपी के कुछ नेताओं को देना अभी बाकी है।।

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