एक तरफ कांग्रेस अपनी साख बचाने को देश भर में भारत जोड़ो जात्रा से मिशन राहुल को साधने पर लगी है। साथ ही भारत जोड़ो यात्रा आम जनमानस से संवाद स्थापित करने में भी अहम है। और यह राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को जरूर लाभ पहुंचाएगी। किंतु फिर भी 24 का चुनाव ऐसा तो नहीं संभव की कॉन्ग्रेस इकलौती चलकर विजय हासिल कर ले। उसे भाजपा के विपक्षी दलों को एकत्रित करना होगा। लेकिन समस्या यह है, कि विपक्ष क्या वे सभी कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे। इसके संबंध में कई बिखराव युक्त टिप्पणियां आना आरंभ हो गया है। इसके चलते ऐसे समीकरण बनते नजर नहीं आ रहे हैं।
देखिए यह तो साफ है, कि विपक्षी दलों का एकजुट होना आवश्यक है। अन्यथा भाजपा को अलग-अलग चलकर पराजय तक ले जाएं, यह तो उतना सरल नहीं। कांग्रेस पिछले कई चुनावों के परिणामों में अपने नेतृत्व की अहम स्थिति को भाजपा के विपक्ष के कई बड़े दलों की दृष्टि में खोई हुई प्रतीत होती है। हां भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी ने कुछ छलांग जरूर लगाई है। किंतु सूचना यह भी आती रही की इस यात्रा में ही कई कांग्रेस के समर्थक दलों ने सीधी भूमिका के स्थान पर शुभकामना भेजना ही ठीक समझा।
ऐसे में सवाल यह है, कि क्या वे राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते अथवा वे कांग्रेस को ही विपक्षी दलों के गठबंधन का नेतृत्व नहीं देना चाहते। यदि विपक्षी दलों का यह मानना है, तो कांग्रेस के लिए यह बड़ा संकट है। किंतु कांग्रेस ऐसा क्यों मानेगी, वह देश की सबसे पुरानी पार्टी है, और आज भी भाजपा के सामने विपक्ष का अहम चेहरा कांग्रेस ही दे रही है।
इन सब सवालों में प्रमाण सामने हैं, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने यह कह दिया, कि कांग्रेस को इस बार लोकसभा चुनाव में 200 ही के लगभग सीटों पर लड़ना चाहिए, बाकी उसे क्षेत्रीय दलों पर और अन्य पार्टियों पर विश्वास करना चाहिए। यह सलाह शायद भाजपा को हराने के लिए परिस्थिति अनुरूप ठीक लग रहा हो। लेकिन यह कांग्रेस के लिए अपनी बड़ी विरासत छोड़ना है। कांग्रेस का सीमित होना है। उन सबमें जो एक सवाल हमेशा वही बना रहता है, विपक्ष का नेता कौन?
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी के नाते विपक्ष के गठबंधन में अहम भूमिका निभाने वाली है। किंतु यह किन शर्तों पर हो सकेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यदि वह हो जाता है, ऐसे में विपक्षी गठबंधन नेतृत्व के सर्वसम्मत चेहरे के बिना यह पूर्व की भांति ही गठबंधन होगा। ऐसे में जहां सामने मोदी जी हैं जिनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता ही विपक्षी दलों के लिए भारी पड़ जायेगी।।