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रूस-यूक्रेन युद्ध का एक वर्ष पूर्ण | विशेष लेख

             रूस-यूक्रेन युद्ध एक वर्ष हो चुका है। रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध जारी है। यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए मुसीबत बना हुआ है। कोरोना से उभरने के बाद कुछ गति जो विकास कार्यों की ओर अपेक्षित थी रूस-यूक्रेन युद्ध ने उस गाड़ी का टायर पंचर कर दिया। बात साफ है, वैश्वीकरण के युग में आप दुनिया के किसी राष्ट्र में हो रही हलचल से बिना प्रभावित हुए बचकर नहीं निकल सकते। हमारे देश में जो मांगे पैदा होती हैं, उनकी आपूर्ति के लिए विदेशों से आयात होता है, और विदेशों की आवश्यकता की आपूर्ति के लिए भारत उन्हें वस्तुएं निर्यात करता है। अतः हम संपूर्ण विश्व से परस्पर जुड़े हैं। इस वर्ष भारत को जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता के संदर्भ में प्रधानमंत्री जी ने इसीलिए ही कहा, कि कोई तीसरी दुनिया नहीं है हम सब एक नाव पर सवार है। यह कहने का तात्पर्य ही था कि हम सब की संपूर्ण दुनिया में तमाम राष्ट्रों की समस्याएं एक समान ही हैं। इसका प्रमाण दिया है, कोरोना महामारी ने और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के समय दुनिया का हर राष्ट्र आज महंगाई, खाद्य संकट, ऊर्जा संकट आदि समस्याओं का स...

दुनिया के कदम शांति की ओर | रूस यूक्रेन युद्ध

शांति केवल तब कायम हो सकती है, जब दुनिया में कोई ना हो, यह सब शून्य हो और कोई हलचल ना हो, शांति का इसके अतिरिक्त कोई स्थाई पता नहीं दिखता, भले वे कोई, सभ्यता और शिक्षा की महान स्थिति में क्यों ना हों, किंतु शांति वहां भी स्थाई नहीं। शांति का स्थाई पता शायद हम में से कोई जीते जी जान पाया हो। मैं दुनिया में शांति के विषय पर कह रहा हूं, व्यक्तिगत शांति नहीं। इसका एक कारण यह हो सकता है, कि संसार क्योंकि किसी एक राह पर नहीं चल सकता है। संसार एक जैसा नहीं सोच सकता है। संसार में असमानता ओं की विशाल सूची है। इन सब कारणों के चलते हम कहीं ना कहीं तो जरूर टकराते हैं, और हम टकराव में स्वयं को ही स्वाभाविक तौर से ठीक साबित करना चाहते हैं, हम विजेता होंगे, क्योंकि हम सही हैं, और हम अपनी संपूर्ण शक्ति को झोंकने से पीछे नहीं हटेंगे। यदि यह कहा जाए कि दुनिया में प्रकृति से उपलब्ध हर वस्तु का उपयोग होना है, तो उनसे इजाद हुए हर आधुनिक साधन का प्रयोग होना भी तय है। चाहे वह परमाणु हथियार क्यों ना हों, और सबसे महत्वपूर्ण की उनके प्रयोग होने को तब बल मिलता है, जब उन्हें शांति के लिए इजाद किया गया हो...

world pharmacist day in hindi | फार्मेसी क्या है फार्मेसी के जनक

  विश्व   फार्मासिस्ट डे प्रत्येक वर्ष 25 सितंबर को मनाया जाना सुनिश्चित है। यह फार्मासिस्टों द्वारा अनेकों लोगों को उनके स्वास्थ्य में सुधार के लिए किए प्रयत्नों को उजागर करने और उनके योगदान को बढ़ावा देने का दिवस है। मनाने की शुरुआत- 2009 में तुर्की ( इंस्ताबुल ) से एक अंतरराष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल फेडरेशन (IFP) परिषद ने सर्वप्रथम इस दिन को यह महत्व देने की शुरुआत की थी। वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे की शुरुआत करने वाला तुर्की से अंतरराष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल फेडरेशन (IFP) का स्थापना वर्ष 1912 दिवस 25 सितंबर है। क्योंकि 25 सितंबर ही IFP का स्थापना दिनांक है, इसलिए भी तुर्की के IFP सदस्यों ने इस दिवस को ही आने वाले वर्षों में वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे के तौर पर मनाए जाने की मांग की। इस वर्ष की थीम- वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे मेहता उन फर्म स्टॉकिंग तमाम योगदान को देखते हुए हर साल एक नई थीम को इस दिवस पर निर्धारित किया जाता है 2020 में इस दिवस पर वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे की थीम “Transforming global health” रखी गई थी। इस वर्ष 2021 में इस दिवस पर वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे की थीम “Pharmacy: always trust...

अफगान समाचार | अफगान के सार्क संगठन में सम्मिलित होने के लिए कोशिश | Afganistan news

सार्क दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन में तालिबान के प्रवेश होकर सदस्य बनने के लिए पाकिस्तान की पुरजोर कोशिश नाकाम हो गई है। पाकिस्तान सार्क की बैठक में उपस्थित सदस्य राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों के समूह से इस विषय को लिए अगुवाई कर रहा था, कि तालिबान सार्क संगठन का सदस्य होना चाहिए। न्यूयॉर्क में हुई इस बैठक में सार्क संगठन के सदस्यों ने पाकिस्तान की कोशिश जो कि तालिबान की अगुवाई करते हुए सार्क में शामिल करने की थी, नकार दी और इस मसले पर आम सहमति न बन पाने से उस दिवस की बैठक ही रद्द कर दी गई। संगठन के सात राष्ट्र सदस्यों में से पाकिस्तान के अलावा तालिबान को मान्यता देने वाला कोई राष्ट्र नहीं है। यूएन में तालिबान की भाषण के लिए कोशिश- अफगान कि तालिबान सरकार को अब तक मान्यता यूएन से प्राप्त न होने के चलते भी तालिबान अपने प्रतिनिधि का नाम संयुक्त राष्ट्र को प्रेषित कर चुका है। जिसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में तालिबान का प्रतिनिधित्व के लिए सुहैल साहीन का नाम संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस को भेज, 76वें सत्र में अपनी बात रखने के लिए इजाजत की मांग की है। तालिबान सरकार के विद...

23 september अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस | वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ

अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस- 23 सितंबर को संपूर्ण विश्व में अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस के रुप में मनाया जाता है। यह दिवस विश्व में भाषा के उस प्रकार के महत्व को प्रकाश में लाता है, जो हम आज भी भाषा के इतने विकास हो जाने के पश्चात प्रयोग कर ही देते हैं। उदाहरण के लिए हम संकेत कर अपने दोस्त को दर्शाते हैं, कि गाड़ी उस और गई है,  तुम्हारी पेन उस डेस्क में है, तुम्हारी सीट वह है आदि। भाषा हमारे आचार विचारों को व्यक्त करने का माध्यम है, और सांकेतिक भाषा संकेतों की भाषा है, जहां हम अपने भावों विचारों को संकेतों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। यह दिवस विश्व भर में सांकेतिक भाषा के उत्थान की ओर कदम है। इस वर्ष 2021 सांकेतिक दिवस की थीम “वी साइन फॉर ह्यूमन राइट्स” रखा गया है। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ ( world federation of the deaf ) – अंतरराष्ट्रीय संकेतिक भाषा दिवस की अवधारणा सर्वप्रथम वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ ( WFD ) द्वारा की गई। WFD स्थापना वर्ष 1957 दिवस 23 सितंबर है, जो कि विश्व भर में 135 राष्ट्रों के बधिर लोगों के हितों के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी गणना है, कि दुनिया भर में लगभग ...

अफगान घटनाक्रम | अफगान में महिलाएं | तालिबान को लेकर दुनिया

  तालिबान में महिलाएं- तालिबानी महिलाओं को लेकर कैसी मनः स्थिति में है, और समय के साथ कितना परिवर्तन स्वयं में ला पाने में वह सफल हो सका है, यह सब तालिबान से आने वाली खबरों में साफ हो रहा है, महिलाओं का सड़कों पर प्रदर्शन अपनी आजादी और खुली सांस की लड़ाई। तालिबान मानसिकता में जीवन के समस्त अधिकारों को वे खो नहीं देना चाहती। वे उन जंजीरों में बंध कर खुद को कैदी महसूस कर रही हैं। वह दुनिया में खुद को उन महिलाओं में गिनना चाहती हैं, जो हर विषय पर कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति की राह में सेवा दे सकती हैं। ऐसे में तालिबानी बुर्खा, हिजाब उन्हें तो जरूर ढक लेगा, किंतु उनके आक्रोश की ज्वाला, हक को लड़ने की मानसिकता को नहीं ढक सकता है, तालिबान से महिलाओं को लेकर सर्वाधिक पिछड़े फैसलों की अपडेट मिल रही हैं, किंतु अफगानी महिलाओं ने अपने अपने स्तर से इस मानसिकता के खिलाफ जंग को जारी रखने की मुहिम छोड़ी नहीं है। सोशल मीडिया पर रंग बिरंगे वस्त्रों में अपनी तस्वीरों को वह पोस्ट कर रही हैं। वे लिखती हैं, कि वह रंग बिरंगी पोशाक हमारी संस्कृति हैं, तालिबान हमारी पहचान तय नहीं करेगा। इस प्रकार से विरोध ...