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शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2021

सिंधु घाटी सभ्यता | मिश्र, मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी सभ्यता की तुलना | Indus valley civilization

सिंधु घाटी सभ्यता / मिस्त्र, मोसोपोटामियां और सिंधु घाटी सभ्यता एक तुलनात्मक अध्ययन-

मिश्र, मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी सभ्यता की तुलना

   सिंधु घाटी सभ्यता के विषय में यह दूसरा लेख है। वे लोग उस काल में भी व्यापार करते थे। विद्वानों का मत है, कि वह वैदिक सभ्यता के मुकाबले अधिक नगरीय तथा व्यापार प्रधान थे। उनका प्रमुख व्यवसाय कृषि आधारित ही नहीं था, बल्कि व्यापार भी था। खुदाई में ऐसे बीज मिले हैं, जो उनकी भूमि की उपज नहीं हैं।  साथ ही वहां किसी राज प्रासाद का साक्ष्य नहीं मिला है। हां कई सभा भवन के खंडहर जरूर मिलें हैं। इससे उनके लोकतांत्रिक शासन के होने का अनुमान होता है।

   भारत में सिंधु घाटी की सभ्यता के उदय के दौर में ही विश्व के अन्य भागों में भी मानव उत्कृष्ट सभ्यता का जन्म हो रहा था। जो ज्ञात हैं वह, मिस्र की सभ्यता और मेसोपोटामिया की सभ्यता हैं। तीनों में उभयनिष्ठ है, कि वे नदी घाटी में उदित हुई। सिंधु नदी घाटी सभ्यता सिंधु नदी की घाटी में, मिस्र की सभ्यता नील नदी की घाटी में, और मेसोपोटामिया की सभ्यता दजला और फरात नदी की घाटी में  प्राप्त हुई हैं।

   तीनों से सभ्यताएं उत्तर पाषाण काल के बाद की हैं। वह धातु काल की सभ्यताएं हैं। वह कांश्य तथा तांबे का प्रयोग करते थे। इन सभ्यताओं के लोग सुंदर भवन बनाकर रहते थे। कुशल शिल्पकार हुआ करते थे। और सुंदर चीजों को बनाया करते थे। उनका व्यापार भी अच्छी स्थिति में था।

   हालांकि परलोक को प्राप्त होने पर वहां सुख भोगने के लिए जिस प्रकार से मिस्र के लोगों ने पिरामिडो का निर्माण किया था। वह ना तो  मेसोपोटामिया और ना ही सिंधु घाटी के लोगों ने किया।

   मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता के लोग अनेक देवी-देवताओं पर विश्वास करते थे। ठीक इसी प्रकार सिंधु घाटी के लोग भी देवी देवताओं पर विश्वास करते थे। खुदाई में कई मूर्तियां मिली हैं, जो मूर्तियां देवी-देवताओं की  हैं, उन मूर्तियों को लेकर यह विद्वानों का मत है। किन्तु सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने उन की भांति कभी देवी देवताओं के लिए देवालय का निर्माण नहीं किया था।

    सिंधु घाटी की खुदाई में अधिक लेख तो प्राप्त नहीं हुए, अपेक्षाकृत मेसोपोटामिया और मिस्र की खुदाई में अधिक लेख प्राप्त हुए हैं। किंतु विद्वानों का मत है, कि सिंधू घाटी सभ्यता के लोगों की लिपि सर्वोत्तम थी। और वह भवन निर्माण कला में भी मिश्र तथा मेसोपोटामिया सभ्यता के लोगों से उन्नत थे।

   सिंधु सभ्यता के लोगों का विस्तार मिश्र तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता से अधिक विस्तारित था। विद्वानों का मत है, कि यहां सिंधु सभ्यता के लोगों का अधिक रण-प्रिय होने का संकेत देता है।

   अब सवाल यह है, कि सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता कौन थे। क्या वे आर्य थे। बहुत से विद्वानों का मत यही है। किंतु वैदिक सभ्यता और सिंधु घाटी सभ्यता में बहुत बड़ा अंतर है। जिससे यह स्पष्ट होता है, कि जिन लोगों ने वैदिक सभ्यता का निर्माण किया वे लोग सिंधु घाटी सभ्यता का निर्माण करने वाले नहीं हो सकते हैं।

   कुछ विद्धानों का मत यह भी है, कि यह द्रविड़ लोगों की सभ्यता थी, क्योंकि दक्षिण भारत में द्रविड़ो के मिट्टी के बरतन तथा आभूषण सिंधु घाटी के लोगों के बर्तन आभूषणों से काफी मिलते-जुलते हैं।  यह धारणा कुछ ठीक भी लगती है। किंतु खुदाई में जो हड्डियां मिली हैं,  वह किसी एक जाति की नहीं है। अतः इस सभ्यता के निर्माता किसी एक जाति का न होकर वरन विभिन्न जाति के लोग थे।

   सिंधु घाटी सभ्यता के ज्ञात होने से विद्वानों की यह धारणा की वैदिक कालीन सभ्यता ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता है। गलत साबित होती है। विद्वानों के अनुसार वैदिक कालीन सभ्यता ईसा से लगभग 2000 वर्ष पूर्व की है। जबकि सिंधु घाटी सभ्यता ईसा से लगभग 3 से 4 हजार वर्ष पूर्व की  होने का अनुमान है।

  यह कहानी मानव के उन्नत अतीत की है।

बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

सिंधु घाटी सभ्यता | सभ्यता क्या है | Indus valley civilization in hindi

सभ्यता क्या है? सिंधु घाटी सभ्यता वर्णन-

सभ्यता क्या है? सिंधु घाटी सभ्यता वर्णन

    सभ्यता से तात्पर्य लोगों का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक जीवन कैसा रहा होगा, इससे है। सिंधु घाटी की सभ्यता प्राचीनतम भारतीय सभ्यता के रूप में पुरातत्व की सबसे महत्वपूर्ण खोज है, जो अतीत के लिए विश्व को एक विशेष नजरिया देती है। यह विशाल भूमि पर फैला था। सिंधु नदी की घाटी में इसका विस्तार प्राप्त हुआ है, अतः इसे सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानते हैं। घाटी वह भूमि है, जो उस नदी से पोषित होती है। सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, पूर्वी बलूचिस्तान, कठियावाड़ और अन्य स्थानों पर ज्ञात हुआ है। विद्वानों का मत है, कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जो क्रम से वर्तमान में पंजाब के जिला माउंटगोमरी (पाकिस्तान) और सिंध के लरकाना जिले (पाकिस्तान) में है, इनका सात बार विनाश और सात बार निर्माण हुआ था। क्योंकि खुदाई में सात परतें मिली हैं।

◆   विद्वानों के मतानुसार सिंधु घाटी सभ्यता में भवन निर्माण एक निश्चित योजना से होते थे। नगर के निर्माण एक योजना का परिणाम रहा होगा। सड़कें आपस में जहां काटती वहां समकोण अंतरित करती। वे बहुत चौड़ी होती थी। मुख्य सड़कों को जोड़ने वाली गलियां तीन से चार फीट चौड़ी होती थी। और मुख्य सड़कें तो तेंतीस फीट चौड़ी पाई गई। हां वे कच्ची हुआ करती थी। किंतु वह नगर को कई आयताकार और वर्गाकार भागों में बांट रही होती थी।

◆   सड़कों के दोनों और पक्की ईंटों के मकान थे। और हर मकान में जैसे स्नानागार होना आवश्यक रहा होगा। और एक और मुख्य बिंदु मकानों के द्वार बेहद चौड़े होते थे, कुछ तो इतने चौड़े की बैलगाड़ी भीतर जा सके। मकानों में खिड़कियां और अलमारियां भी होती थी।

◆   नगरों के जल का निस्तारण के लिए नालियों का प्रबंध था। वह ईंटों तथा पत्थरों से ढकी होती थी। खुदाई में एक विशाल जलाशय भी मिला है। जो सार्वजनिक रहा होगा। इसके दक्षिण पश्चिम में आठ स्नानागार थे। जलाशय के पास एक कुआं प्रप्त हुआ है। संभवतः जलाशय को इस कुएं के जल से भरा जाता रहा होगा।

◆   इसके अतिरिक्त खुदाई में अस्त्र-शस्त्र गदा, फरसे, भाले, बर्छे, धनुष, बाण, कटार, मिले हैं। बीज तथा पशुओं की हड्डियों प्राप्त हुई हैं। नापतोल से संबंधित बड़े छोटे आयताकार बाट, तराजू, गज मिले हैं।

◆  खुदाई में एक मूर्ति मिली है। जिसमें एक व्यक्ति एक सौल ओढे है, जो उसके बाएं कांधे से दाएं कांघ से होकर नीचे जाती है। शायद यही उनकी वेशभूषा  रही होगी।

◆   खुदाई में अन्य मूर्तियां भी मिली है। उनमें कुछ देवी देवताओं की होंगी। वह उनके धार्मिक जीवन को दर्शाती है। इनमें पशुओं की मूर्तियां हैं। हड़प्पा में मिली एक मूर्ति को लेकर सर जॉन मार्शल का विचार है, कि वह शिव की मूर्ति है। इसके अतिरिक्त मूर्तियों में नारी की मूर्ति भी प्राप्त हुई है।

◆   खुदाई में सर्वाधिक संख्या में मुहरें मिली हैं। जिन पर कुछ लिखा है। जिनसे उनके लेखन के ज्ञान का अनुमान लगाया जाता है। इन मोहरों में एक ओर पशुओं का चित्र भी अंतरित है। मुख्यतः मोहरें हाथी दांत, पत्थर, धातुओं से निर्मित हैं।

   यह लेख सिंधु घाटी सभ्यता की अतीत में मानवीय उत्थान के श्रेष्ठ मिसाल शायद बयां कर पा रहा हो। किंतु यह सभ्यता और अधिक विस्तृत थी। और विद्वान इस पर विभिन्न मत देते हैं। किंतु जो भी हो यह दुनिया को भारत के अतीत का सर्वश्रेष्ठ चेहरा दिखाता है। और सोने की चिड़िया वास्तव में थी, इस विचार को मजबूती देता है।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏