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बुधवार, 15 नवंबर 2023

अमोल पालेकर | फिल्म अपने पराये से

अमोल पालेकर


सादगी और केवल सादगी असल में अमोल पालेकर ने यही तो पेश किया है। अपनी लगभग हर फिल्म एक आदर्श गुणी पुरुष की भांति ही दिखे हैं। इन्हें नेक्स्ट डुअर पर्सन कहा गया। क्योंकि इनकी आवाज और अभिनय ने हर दूसरे व्यक्ति को अपने आप से मिलाया।


एक मृदंग को बजाते हुए अमोल जाने कब बड़े हो गए, यह वे खुद भी नहीं जान पाए। लेकिन वे इन सब बातों की सुध नहीं लेते। आज से 30 साल पहले एक अच्छे मध्यम वर्गीय परिवार में दो भाइयों के बाद उनका जन्म हुआ था, बहुत सुंदर मृदंग बजाते हैं अमोल। प्रातः होने के साथ उनकी ताल छिड़ जाती है। घर के सभी बच्चे दौड़कर चाचा की ओर बढ़ते हैं, और अमोल एक सुंदर भजन गाते हैं। उनकी भाभी पूजा करती हुई और साथ ही अमोल के भजन।

यूं तो अमोल का विवाह भी हो गया है, और वह एक खुशमिजाज और बेफिक्र व्यक्ति हैं। लेकिन यहां बेफिक्री उसकी पत्नी के लिए असहज है। हालांकि वह बहुत समझदार और शील स्त्री है, घर की लगभग सभी जिम्मेदारियां उसी के हाथों में हैं। लेकिन साथ ही वह एक स्वाभिमानी स्त्री है, और केवल इस बात से चिंतित है, कि उसका पति अमोल किसी काम को गंभीरता से नहीं लेता। यही है कि वह कुछ भी कमा कर घर नहीं लाता। इससे घर का खर्चा बड़े दो भाइयों की ही कमाई पर है। अमोल की पत्नी घर के खर्चे में योगदान न होने के चलते जिठानियों के साथ कई बार असहज महसूस करती है। कई बातें उसे चुभती हैं, और वह जो बेहद स्वाभिमानी है, यह भाव उसे चिंतित करता है।

लेकिन वह अमोल को कुछ बोल भी नहीं पाती। हां बार-बार समझाने का प्रयास करती है, अपना दुख व्यक्त करती है। लेकिन कभी क्रोध नहीं जताती, इसलिए क्योंकि अमोल एक कोमल हृदय व्यक्ति है। काम नहीं करता यह सबसे बड़ा दोस है अन्य तो उसमें कई ऐसे गुण हैं जो बेहद दुर्लभ हैं। उसका सादा व्यक्तित्व और उसी से सधी आवाज सीधे मन में प्रवेश कर जाती है। वह एक सरल पुरुष है, बस वह किसी काम को कमाई का जरिया बना ले तो उसकी पत्नी हर प्रकार से अपने आप को सहज महसूस करे।।

शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

बिग बॉस विनर एलविश यादव के खिलाफ FIR

एलविश यादव पर कुछ आरोप लगाए गए हैं। FIR दर्ज हुई है। सांपों की तस्करी से जुड़ा मामला है, और लगभग छः के खिलाफ यह एफआईआर दर्ज की गई है। उनमें एक एलविश यादव हैं। अब यह हममें से तो कई लोगों के लिए बिल्कुल नया है कि सांपों के जहर को पार्टियों में प्रयोग किया जाता है।

बताया गया है, कि यह गैर कानूनी कार्य के लिए इस आरोप के चलते वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 9, 39, 48ए, 49, 50 और 51 के अंतर्गत केस दर्ज किया गया है। एलविश यादव इस आरोप में बड़ा चेहरा है। कई नौजवान उन्हें बेहद उत्साह से अनुसरण करते हैं। बिग बॉस के विजेता बनने के बाद तो वह खूब चर्चित रहे। देश भर में उन्हें देखा गया और लोगों ने खूब पसंद भी किया। जाहिर सी बात है कि इससे उनकी प्रसिद्धि में इजाफा हुआ है।

आप उन्हें जानते ही होंगे फोन पर आपने कभी तो उन्हें देखा ही होगा। मुझे एक बात उनकी याद आती है, बिग बॉस के शो पर उस दरमियां उन्होंने वहां आए किन्हीं पंडित जी जो हाथ की लकीरें पढ़ सकते थे, उनसे बहुत सी बातें जानने के बाद एलविश यादव ने कहा पंडित जी आप देखकर बताइए मैं नेता कब बनूंगा। मैं पॉलिटिक्स में कब आऊंगा।

हालांकि इस मामले पर एलविश यादव की प्रतिक्रिया भी देखने को मिली है, किसी न्यूज़ चैनल को उन्होंने बताया कि यह सब आरोप फेक हैं। वह एक आत्मविश्वासी व्यक्ति हैं। और इस बात का परिचय एलविश यादव ने बिग बॉस विजित कर दिया। लेकिन इस प्रकार के आरोपों में उनका नाम आश्चर्यजनक है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें युवा एक बड़ी संख्या में चाहते हैं। आपको बड़ी संख्या में अनुसरणकर्ता प्राप्त होने के बाद आपकी जिम्मेदारियां बेहद बढ़ जाती हैं। क्योंकि आपका हर कदम केवल आपका व्यक्तिगत नहीं रह जाता, बल्कि वह कई लोगों को प्रभावित कर रहा होता है।।

रविवार, 7 मई 2023

रिश्ता | Amitabh bachchan an Akashy kumar

        रिश्ता

चार लोगों के चक्रव्यूह में फंस कर हजारों लोग काम करते हैं। 

जब विजय कपूर शहर के नामी बिजनेसमैन अपने पुत्र अजय को समझाता है। वह चाहता है, कि उसका पुत्र एक बड़ा बिजनेसमैन केवल अपने पिता के बदौलत ना बन जाए बल्कि जमीन से लगातार अपने प्रयासों से एक सफल व्यक्ति बनकर पिता की कुर्सी हासिल करे। अजय अपने ही पिता की कंपनी में मजदूरों के काम से आरंभ करता है। मजदूरों का एक यूनियन लीडर जो काम तो करता नहीं अपने दो-तीन करीबियों के साथ बैठकर जुआ खेलता अन्य मजदूरों को अपनी सेवा पर रखता। यह बात अजय को जमी नहीं। वह उससे भिड़ गया, यह कहते कि वह विजय कपूर का बेटा है, और तुम उसकी मिल में काम की बजाय जुआ खेलते हो।

यूनियन लीडर उसे अपने अंडर एक मजदूर कहकर पुकारता है और उसकी बात नहीं सुनता।  अजय उस पर हाथ उठाता है, यूनियन लीडर मजदूरों की हड़ताल करवा देता है। विजय कपूर को यह बात मालूम हुई तो वह अजय को यूनियन लीडर से सबके सामने माफी मांगने को कहता है। अजय बेहद संवेदनशील, स्वाभिमानी और सैद्धांतिक व्यक्ति झुकना कभी नहीं चाहेगा क्योंकि वह सही था।

अपने पिता की आज्ञा पर यूनियन लीडर से माफी मांग लेता है उसकी आत्मा में ग्लानी का एक भाव यूं भर जाता है, कि रह-रहकर उमड़ता है। उसके पिता ने इस मामले का कारण अजय के अनुभव की कमी बताया। उसे बताया कि मिल मजदूरों, मैनेजमेंट और मालिक के आपसी तालमेल से चल रही है। रही बात मजदूरों की यदि तुम्हें मालूम है कैसे भेड़ों के बड़े समूह को नियंत्रण में रखने के लिए चार कुत्तों को रखा जाता है।

“यहां चार लोगों के चक्रव्यू में हजारों मजदूर काम करते हैं”

फिल्म “रिश्ता” से प्रेरित

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

उपन्यास देवदास पर्दे पर | शहंशाह कुंदन लाल सहगल

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के बंगाली उपन्यास देवदास को आज के समय में उतना ही जीवंत और लोकप्रिय रखने में जितना कि वह 1920s  के दशक में रहा होगा, पर्दे पर अभिनय का योगदान रहा है। उन पृष्ठों के किरदारों देवदास, पार्वती, चंद्रमुखी, को क्रमश: शाहरुख, ऐश्वर्या और माधुरी के चेहरों ने हरकतें दी, यूं जैसे जीवित कर दिया हो।

   विमल रॉय के निर्देशन में यह उपन्यास पूर्व में भी फिल्म का रूप ले चुका था। जहां दिलीप साहब देवदास की भूमिका में थे, और सुचित्रा सेन और विजयंतीमाला मुख्य अदाकारा थी। यह फिल्म 1955 में प्रकाशित की गई थी।

  किंतु देवदास पर बनी पहली फिल्म 1936 में प्रकाशित हुई थी। जिसमें के० एल० सहगल साहब, देवदास की मुख्य भूमिका में थे। साथी मुख्य अदाकारा जमुना और राजकुमारी जी थे। यूं कहें कि देवदास का पर्दे पर होने का पथ इन्होंने ही प्रशस्त किया था।

   कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा जगत के पहले सुपरस्टार कहे जाते हैं। अभिनय के साथ में गायकी में बचपन से ही अपनी जन्मभूमि जम्मू में मशहूर थे। उनके पिता जम्मू में तहसीलदार थे वहां महाराजा प्रताप शासक थे। बचपन में सहगल ने एक बार जब राजा के दरबार में हो रहे सभा में मीरा का एक भजन गया, तो उन्हें बड़ी प्रशंसा मिली। वहां से सारे जम्मू में उनकी लोकप्रियता हो गई। रामलीला में मां सीता का अभिनय के लिए आमंत्रण मिलने लगे। जब वे मां सीता का अभिनय करते अपने गीतों और अभिनय से मां सीता का इतना जीवंत रूप सामने ले आते कि दर्शक रो ही पड़ते।
उनका गायन के प्रति लगाव और समर्पण का भाव उन्हें अभिनय के संसार में अनेक बाधाओं के बावजूद ले आया।

   "पूरणभगत" नाम की फिल्म में उनके गाए भजनों ने पूरे देश के हर घर को उनकी आवाज से वाकिफ कर दिया। बहुत से जानकार मानते हैं, कि बीसवीं सदी में मिर्जा गालिब के इतने लोकप्रिय होने का कारण सुर सम्राट सहगल थे। क्योंकि सहगल ने मिर्जा गालिब के बनाए गजलों को अपनी आवाज में अमर कर दिया।
"यहूदी की लड़की" फिल्म में सहगल साहब ने गालिब की ग़ज़ल गायी, जहां वे प्रिंस मार्कस की भूमिका में थे। यह फिल्म जर्मन तानाशाह हिटलर के यहूदियों पर अत्याचार की कहानी को दर्शाती है।

   उनके बाद के लगभग सभी गायक उनके गायन शैली और गायकी को सुनकर प्रभावित रहे हैं। लता जी, रफी साहब, किशोर कुमार जी, मुकेश जी आदि उन्हें अपना गुरु मानते हैं। जब गायक मुकेश जी ने गीत गाया “दिल जलता है तो जलने दो” लोगों ने यही सोचा कि यह सहगल गा रहे हैं। मुकेश जी ने इतनी खूबसूरती से सहगल साहब को अपनी आवाज में उतारा था।

   आज भारतीय सिनेमा जगत किस मुकाम पर है। किंतु कभी यह सड़क पर कुछ लड़कों की टोली के साथ एक ही शॉट में पूरी फिल्म रिकॉर्ड कर रहा था। वह आधार रख रहा था, आज सिनेमा के अपार सौहरत और शोर का।
लेकिन तब सब मूक था।।

बुधवार, 6 अप्रैल 2022

दिव्या भारती अदाकारी में अविस्मरणीय | फिल्मिस्तान

   आज यदि दिव्या भारती जीवित होती तो वह 46 साल की होती, और अब तक दुनिया को कई खूबसूरत यादें दे चुकी होती। वह केवल 19 साल में अलविदा कह गई। लेकिन उनकी अदाकारी से लोग उन्हें आज भी याद करते हैं। 

   छोटी सी उम्र में उन्होंने जो मुकाम हासिल किया वह फिल्म जगत के जाने कितने सितारों का सपना रह जाता है। वह चुलबुली सी लड़की श्रीदेवी की हमशक्ल के रूप में देखी गई। हालांकि एक इंटरव्यू में दिव्या ने कहा, “मुझे ऐसा नहीं लगता जब मैंने श्रीदेवी को देखा तो बहुत बहुत खूबसूरत हैं, मुझसे कहीं अधिक।”

    शुरुआत में वह तेलुगु फिल्मों में दिखी। जब उन्होंने गोविंदा के साथ पहली फिल्म “शोले और शबनम” की तो वह फिल्म खाने की सितारा बन गई। साजिद नाडियावाला से मिलने के बाद दिव्या ने उनके शादी के लिए अपना धर्म बदल कर इस्लाम कबूल किया, और साजिद से शादी कर ली और खुद सना नाडियावाला बन गई। उनके भोलेपन और खूबसूरती से वह लोगों में आकर्षण बनी रही और डायरेक्टर्स की पहली पसंद बन गई। 

   ऐसा भी समय आया कि उन्होंने एक साल में चौदह फिल्में साइन कर ली। 90 के दशक के कई बड़े सितारों के साथ में उन्होंने काम किया, वह भी अपने छोटे से करियर में।

   लोग उन्हें याद करते हैं। दुनिया में लोग कई तरह से जीते हैं, कुछ लोग दुनिया बदलने को जीते हैं। और कुछ लोगों को दुनिया केवल चाहती है, वे जिएं दुनिया उन्हें प्यार करती है। उनमें कलाकार भी एक हैं।।

रविवार, 27 मार्च 2022

World Theatre Day विशेष लेख | 27 march

world theatre day

जब गोविंदा ने शुरुआत की। तो उन्होंने जो कोई फिल्में की, किंतु उनमें उन्हें उस धारा की तलाश थी, जहां वह अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकते हैं। तब तक संजय, अनिल कपूर काफी काम कर चुके थे। गोविंदा तलाश में थे, कि लोगों पर उनके किस अलग स्टाइल की छाप छोड़ी जा सकती है। जिससे गोविंदा नाम सुनते ही दर्शकों को एक दृश्य स्पष्ट हो जाए, कि गोविंदा है, तो ऐसा होगा। यह तब हुआ, जब गोविंदा को कॉमेडी फिल्में मिली। यह मानना होगा कि उस समय पर केवल कॉमेडी में किसी पूरी फिल्म को चला पाया हो ऐसा कोई अभिनेता पर्दे पर आपको कुछ ही मिलेंगे। हालांकि कॉमेडी मसाले के लिए कई कलाकार मशहूर रहे हैं। गोविंदा ने इससे ट्रेंड किया।

यह सब हो रहा था, जब सलमान और शाहरुख का आगाज हो चुका था। जो 90s का दौर था। जिस एक्शन पर फिल्मों का चलन हो गया था। उस किरदार में सटीक अभिनय के लिए पहली पसंद अक्षय और अजय देवगन बन गए। सनी देओल पहले ही एंग्री यंग मैन और उसके लिए जरूरी शानदार पर्सनैलिटी से इस ट्रेंड में कंपटीशन हाई कर चुके थे। पारिवारिक फिल्मों के लिए आमिर, सलमान जैसे क्यूट फेस बड़ी शालीनता से फिल्माए जा सकते थे। उनमें शाहरुख अभिनय में बादशाह होने की शुरुआत कर चुके थे। तब गोविंदा की अलग ट्रेंड के साथ पहचान बनती है। शानदार डायलॉग और उसमें कॉमेडी टाइमिंग, जोरदार डांस स्टेप और आवाज में बढ़िया वेरिएशन कि उनकी काबिलियत ने उनको खास जोन दे दिया। उन्होंने वहीं से उछाल हासिल किया। वह गाते भी बहुत सुंदर हैं। रंग बिरंगी हाफ टीशर्ट और डायलॉग कहने के शानदार तरीके ने अभिनय में गोविंदा की जमीन तैयार की।

   ऐसा ही मिथुन चक्रवर्ती का रहा था। शुरुआती फिल्मों में उन्हें ट्राईबल हीरो की भूमिका में लिया गया। धीरे-धीरे मिथुन ने ट्रेंड समझा और डांस और एक्शन का शानदार कंबीनेशन पैकेज बन गये। लंबी टांगे माइकल जैक्सन और अमिताभ की तरह और उसमें काफी चौड़ी मोरी वाली पैंट और फिर डांस। यह अदा दुनिया को मिथुन की दीवानी कर गई।

   जब एक्शन नया था, तो उसे कर सकने वाले ट्रेंड करने लगे। कॉमेडी का साधारणतया फिल्मों में हल्की मसाले की तरह कहीं-कहीं प्रयोग होता था। जब कॉमेडी को मुख्य आधार मानकर फिल्में बनने लगी तो शानदार कलाकारों की खोज हुई, और वे दुनिया की पसंद बन गए।

कलाकारी उन क्षेत्रों में एक है। जो प्यार की एक नई वजह देता है। इसीलिए चित्रकार, कलाकार, पत्रकार को  सम्मोहक होना चाहिए। वह कैसे भी हो सकता है। उसके दिखने से, उसकी बातों से, उसकी रचनात्मकता से, और भी।

सोमवार, 25 अक्टूबर 2021

काला पानी| | देवानंद फिल्म 1958 | Kala Pani movie 1958 | Dev Anand movie

Kala Pani

डायरेक्टर-   राज खोसला
प्रोड्यूसर-   देवानंद
गीत-   आशा भोसले, मोहम्मद रफ़ी
कलाकार-   देवानंद, मधुबाला, नलिनी, सप्रु, नासिर हुसैन, Johnnie Walker, मुमताज बेगम, जयवत साहू, Samson, Ravikant

  1958 की फिल्म काला पानी एक आपराधिक मामले की दास्तां है। माला एक तवायफ का नाम है।  नाच- गाने के शौकीन और विलासी जीवन यापन करने वाले लोग कोठे पर शिरकत देते हैं। माला का कत्ल हुए 15 साल बीत चुके हैं, और अदालत के द्वारा कातिल शंकरलाल नाम के व्यक्ति को ठहराया गया है। यह फिल्म जिस मुख्य पात्र के ऊपर बनी है। वह शंकरलाल का पुत्र है, जिसका नाम करण है। करण 15 वर्ष तक इस झूठ के साथ जीता है, कि उसके पिता मर चुके हैं। किंतु 1 दिन उसे यह मालूम चल जाता है, कि उसके पिता जीवित है, और हैदराबाद की जेल में सजा काट रहे हैं। वह अपने पिता से मिलने के लिए उत्सुक हो उठता है, यह  सच्चाई जानने के लिए कि क्या वास्तव में उसके पिता कातिल है, और हैदराबाद जाने का मन बना लेता है।

   उसकी मां उसे समझाती है, ऐसा भी कहती है, कि उसके पिता ने उसकी मां का त्याग कर दिया था, और उस तवायफ माला को अपना लिया था, और बाद में उसका भी कत्ल कर दिया। करण की मां भी उसके पिता को कातिल समझती है। करण यह सब जानकर भी सच की तलाश के लिए हैदराबाद चला आता है। और हैदराबाद में करन की प्रेम कहानी भी प्रारंभ होती है। जहां आशा नाम की एक लड़की जो प्रेस में काम करती हैं, और करण जिस होटल में कमरा लिए होता है, उस होटल की मालकिन आशा की चाची होती है। करण हैदराबाद की जेल में अपने पिता से मिलने के लिए इंचार्ज से मिलता है। 

   जब करन अपने पिता से मिलने लगता है, तो उसे अपने पिता की बेगुनाही का एहसास होता है। वह 15 साल पहले उसके पिता को गिरफ्तार करने वाले पुलिस अफसर से भी मिलता है। अपने पिता के बेगुनाही में सबूत इकट्ठे करने लगता है। इन सबके जरिए उसे शहर के एक और तवायफ किशोरी के बारे में मालूम चलता है। जिसने उसके पिता के अपराधी ठहराए जाने को लेकर गवाही दी थी। उसे यह भी मालूम चलता है, कि किशोरी के पास कुछ पत्र हैं, जो उसके पिता को बेगुनाह साबित कर सकते हैं। करण उसे अपने प्रेम जाल में फसाने में कामयाब हो जाता है। वह करण पर मर मिटने को तैयार होती है।

   वह करण को यह बताती है, कि उसके पास पैसे की कमाई का एक और जरिया है। करण जब उसके कमरे में तलाश करता है, तो वह खुद ही उन पत्र को करण के सामने फेंक देती है। किशोरी को भी यह मालूम चल जाता है, कि 15 साल पहले उसकी झूठी गवाही से जिस बेगुनाह को सजा हुई है, वह करण के पिता हैं। करण उन पत्रों को लेकर वकील राय बहादुर जसवंत राय के पास पहुंचता है। किंतु रायबहादुर भी 15 साल पहले करन के पिता को हुई सजा की साजिश में शामिल था। इसलिए राय बहादुर ने वह पत्र करन के सामने ही जला दिए। करन शहर में अपने पिता के बेगुनाही के लिए वकील के घर के बाहर लोगों की भीड़ इकट्ठा कर इंसाफ की मांग करता रहा। आशा जो करन की प्रेमिका थी, अपने अखबार में इस सच्चाई को छापती रही, आखिर में एक बार फिर करन की मुलाकात किशोरी से होती है, और किशोरी करण से मिलकर उसे असली पत्र देती है।

   वह कहती है, कि जो पुराने पत्र वकील ने जला दिए हैं, वह तो झूठे थे, और करन इन पत्रों को आशा के अखबार में छपवा देने के बाद अपने पिता को बेगुनाह साबित करवा देता है। इसके साथ ही फिल्म समाप्त हो जाती है।

बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

रावण के किरदार अरविंद त्रिवेदी जी नहीं रहे | ramanand sagar ramayana

ramanand sagar ramayana-arvind trivedi ji


8 नवंबर 1938 को इंदौर में जन्मे अरविंद त्रिवेदी की 90 के दशक के लोकप्रिय रामानंद सागर जी की रामायण के मशहूर कलाकारों में एक रहे। अरविंद त्रिवेदी जी ने रावण का किरदार निभाया। उनके पिताजी मूल रूप से गुजरात के थे। 300 से अधिक हिंदी गुजराती फिल्मों में अभिनय करने वाले अरविंद त्रिवेदी जी का निधन 83 वर्ष की उम्र में हो गया है। दुनिया भर में रामायण में रावण के किरदार के कारण उनको बेहद लोकप्रिय मिली। 90 के दशक में रामायण धारावाहिक की इतनी लोकप्रियता रही, कि 52 एपिसोड को एक्सटेंड कर 78 एपिसोड की शूटिंग की गई। रामायण धारावाहिक लगभग डेढ़ साल कि लंबे समय में तैयार हो सका। लगभग 55 देशों में रामायण धारावाहिक का टेलीकास्ट दुनिया भर में किया गया। जिससे 650 मिलियन से ज्यादा लोगों ने इसे देखा। इसी धारावाहिक का हिस्सा रावण के किरदार मैं अरविंद जी को लोगों ने बहुत सराहा। 1987 में जब रामायण दूरदर्शन पर प्रकाशित होने लगा, तो टीवी देखने वाले हर व्यक्ति में रामायण को देखने की अलग उत्सुकता थी। जो आस्था और विश्वास का जीवंत अभिनय था, यहां तक कि लोग धार्मिक आस्था के चलते टीवी की आरती उतारा करते थे। अरविंद जी ने एक इंटरव्यू में बताया, कि पहले तो जब वे शूटिंग के लिए जाते थे, तो ट्रेन में खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती थी। किंतु बाद में लोग उन्हें पहचानने लगे, उनका अभिवादन होने लगा। रामायण में रावण के किरदार को विश्व भर से ढेर सारी लोकप्रियता मिली। 2020 के लॉकडाउन के दौरान धारावाहिक रामायण ने टीआरपी के मामले में 5 साल के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। रामायण के तकरीबन सभी एपिसोड गुजरात के पास उमरगांव में फिल्माए गए थे। अरविंद जी ने ना केवल रामायण में बल्कि विक्रम और बेताल नाम के धारावाहिक में पहले ही दर्शकों का बेहद प्रेम हासिल किया था।

अरविंद त्रिवेदी जी की गहरी धार्मिक आस्था-

ramanand sagar ramayana-arvind trivedi ji

 अरविंद त्रिवेदी जी एक इंटरव्यू में कहते हैं, कि रावण का रोल उन्हें भगवान श्री राम की कृपा से प्राप्त हुआ है। असल जीवन में अरविंद जी बेहद सरल स्वभाव के रहे। उनका कहना है, कि वे असल जिंदगी में भी शिवभक्त रहे, और रावण भी शिव का भक्त था। रामायण की शूटिंग के दौरान अरविंद जी अपनी दैनिक दिनचर्या में पूजा पाठ के दौरान हाथ जोड़कर माफी मांगते थे, कि मैं रावण का किरदार करूंगा, हे ईश्वर मेरे मुंह से कुछ अपशब्द निकलेगा, मुझे उसके लिए माफ करना, मैं मात्र उस किरदार को निभा रहा हूं, असल तो मैं आपका भक्त हूं। अरविंद त्रिवेदी जी भगवान भोलेनाथ के बड़े भक्त रहे, उन्हें मंचों पर शिव तांडव का वाचन करते हुए देखा जा सकता है।

रामायण में किरदार कैसे मिला-

1987 में जब रामानंद सागर जी ने धारावाहिक रामायण बनाने का निर्णय किया, और यह बात अरविंद त्रिवेदी जी को मालूम हुई, साथ ही वह यह भी जाने कि रामायण में कई दिग्गज कलाकार काम करने वाले हैं। अरविंद जी रामायण में रोल पाने के लिए मुंबई की ओर बढ़ चले। बड़ी संख्या में लोग रामायण में किरदार पाने के लिए ऑडिशन दे रहे थे। अरविंद जी के मन में स्वयं के रावण जैसे शक्तिशाली किरदार या किसी अन्य पसंद के किरदार को निभाने को लेकर पहले से कोई मन इच्छा नहीं थी। या यूं कहें कि वह तो रामायण धारावाहिक में किसी भी किरदार को पाने के लिए ऑडिशन देने पहुंचे थे। वह केवट के लिए ऑडिशन दिए थे। जब उनका ऑडिशन हुआ उस समय तक श्री राम के किरदार के लिए अरुण गोविल जी का निर्णय हो चुका था, और रावण के किरदार को लेकर अरुण जी ने जिस नाम को आगे किया था, वह बॉलीवुड के मशहूर विलेन अमरीश पुरी जी थे। किंतु अमरीश पुरी जी ने इस रोल को मनाही कर दी। इसका कारण यह हो सकता है, क्योंकि उस समय अमरीश पुरी जी फिल्मी दुनिया में एक सफल विलन के रूप में पहचाने जाने लगे थे। वे धारावाहिक टीवी शो में नहीं बंधना चाहते थे। इसके बाद रावण को लेकर एक ऐसा कलाकार जो बुद्धिमान भी दिखता हो और शक्तिशाली भी की खोज जारी रही। जब अरविंद त्रिवेदी जी ने रामानंद सागर जी के सामने अपना ऑडिशन स्क्रिप्ट पढ़ी तो उन्हें लगा कि रामानंद जी को उनका ऑडिशन पसंद नहीं आया। किंतु रामानंद जी ने उन्हें रोककर कहा, कि तुम हमारी रामायण में रावण का रोल करोगे, और इस तरह अरविंद त्रिवेदी जी को उनके जीवन का एक सबसे मशहूर किरदार प्राप्त हुआ।

फिल्मी कैरियर-

300 से ज्यादा हिंदी गुजराती फिल्में अपने कैरियर में अरविंद त्रिवेदी जी ने दी। हिंदी फिल्मों में जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर जैसे अनेक लोकप्रिय कलाकारों के साथ त्रिवेदी जी काम कर चुके हैं। शाहरुख खान की फिल्म त्रिमूर्ति में मुख्य विलेन के किरदार में अरविंद त्रिवेदी जी को देखा जा सकता है।

राजनीतिक जीवन-

अरविंद त्रिवेदी जी फिल्मी दुनिया में महान योगदान के साथ राजनीति के भी हिस्सा रहे। 1991 से 96 तक बीजेपी पार्टी से सांसद चुने गए। गुजरात में साबरकांडा क्षेत्र से इन्हें संसद के लिए चुना गया। अटल जी की सरकार के दौरान 2002 में अरविंद जी को सीबीएफसी अर्थात सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का चेयरमैन बनाया गया था।

कुछ मशहूर किस्से-

रावण के किरदार को या यूं कहें कि अरविंद त्रिवेदी जी को रावण के अभिनय के लिए तैयार होने में लगभग 5 घंटों का समय लगता था। 10 किलो का मुकुट हुआ करता था। और शरीर पर कई अन्य आभूषण हार हुआ करते। जब एक बार रावण हनुमान अंगद को फेंककर अपने से दूर फेंक देते हैं, तब जामवंत उन पर वार करते हैं। रामानंद सागर जी की रामायण में जामवंत के किरदार राजशेखर उपाध्याय जी बताते हैं, कि जब मैंने रावण का किरदार निभा रहे अरविंद त्रिवेदी जी पर वार किया, तो उनकी कमर पर इतनी जोर से लग गई, कि वह सचमुच मूर्छित हो गए।
ऐसे ही जब एक बार अरविंद त्रिवेदी जी कुछ आम घर के लिए रख गए, और शूटिंग में व्यस्त हो गए तो वानरों की सेना का किरदार निभा रहे कलाकारों ने आम की सारी पेटी खाली कर दी। इस बात पर अरविंद जी ने हंसकर कहा कोई बात नहीं।

मंगलवार, 21 सितंबर 2021

मेधावी छात्र से बैडमैन तक का सफर | गुलशन ग्रोवर जन्मदिन विशेष

गुलशन ग्रोवर

बचपन

गुलशन ग्रोवर जी स्कूल के दिनों में बड़े मेधावी छात्र हुआ करते थे। विद्यालय में अच्छे अंको से पास होना, और एक अच्छे विद्यार्थी की तरह शालीन स्वभाव से पर्दे पर बैडमैन हो जाने तक का सफर कैसे तय हुआ।

वे दिल्ली में पले बड़े, दिल्ली के ही स्कूल में उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की परिवार की स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, जब गुलशन ग्रोवर जी कहते हैं, कि मैं बचपन में स्कूल की ड्रेस को अपने साथ लिए सुबह डिटर्जेंट और साबुन, फिनायल इत्यादि को बेचने घर-घर जाया करता था। आप की अदालत मैं गुलशन ग्रोवर का अपने बचपन के विषय में कहना है, कि जो लोग उन्हें बचपन में जानते थे, आज पर्दे पर उन्हें देखकर जरूर सोचते हैं, कि यह इतना अच्छा लड़का ऐसे रोल कैसे कर सकता है, यह तो ऐसा लड़का है ही नहीं।

गुलशन ग्रोवर असल जिंदगी में कभी बैडमैन रहे ही नहीं उनकी बहनों से सुने तो बचपन में गुलशन उन्हें पढ़ाया करते थे। स्कूल समय से ही झगड़े लड़ाइयों से दूर रहे गुलशन स्क्रीन पर एक अलग ही रंग में दिखते हैं। बचपन से ही कलाकारी का एक अलग शौक गुलशन साहब को रहा। उन्होंने बचपन में रामलीला से स्कूल कॉलेजों में ड्रामा के मंचों तक गुलशन ग्रोवर अपनी अदाकारी की धार पेनी करते रहे। वह श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स दिल्ली से ग्रेजुएट हुए।

सफल कलाकार बनने का सफर

गुलशन ग्रोवर ग्रेजुएशन के बाद मुंबई को रवाना हो गए। उन्होंने वहां प्रो० रोशन तनेजा के एक एक्टिंग स्कूल में एडमिशन ले लिया, और वहां जिन सहपाठी से उनकी मुलाकात हुई। जिनमें एक और सफल कलाकार अनिल कपूर, मदन खान, मदन जैन, सुरेंद्र पाल इत्यादि।

जब गुलशन ग्रोवर एक्टिंग स्कूल लास्ट ईयर पास आउट हुए। एक निरीक्षक के तौर पर छात्रों को प्रोत्साहित करने और उनकी उन्नति को आंकने अनिल कपूर साहब के पिता सुरेंद्र कपूर जी वहां उपस्थित हुए, और उन्होंने गुलशन ग्रोवर को सर्वाधिक अंक दिए, विश्वास दिलाया कि जो आवश्यकता हो मुझे जरूर बताना, मैं तुम्हें मदद देने की पूरी कोशिश करूंगा, और जिस मदद का वादा सुरेंद्र कपूर जी ने गुलशन ग्रोवर से किया था, उसमें पहली सबसे बड़ा साथ जो दिया उन्होंने अपनी फिल्म “हम पांच” में काम देकर।

अपनी एक्टिंग कोर्स पूरा हो जाने के बाद अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आवश्यकताओं पर खर्चा को लेकर गुलशन ग्रोवर साहब ने उसी एक्टिंग स्कूल में एक्टिंग टीचर के तौर पर नौकरी कर ली और अपनी एक्टिंग टीचर की नौकरी के साथ-साथ हुए फिल्म मेकर से मुलाकात के लिए दौड़ भी करते रहे। इसी दौरान प्रोफेसर रोशन तनेजा से संजय दत्त एक्टिंग कोर्स लेने आए इस तरह से गुलशन ग्रोवर भी उनके टीचर रहे।

पहली फिल्म

गुलशन ग्रोवर की पहली फिल्म को लेकर संजय दत्त साहब के पिता सुनील दत्त जी कहते हैं, कि उन दिनों में संजय दत्त की ट्रेनिंग के दौरान गुलशन ग्रोवर संजय दत्त को मिला करते रहे। एक दिन संजय दत्त ने अपनी पिता सुनील दत्त जी से कहा कि पिताजी यह गुलशन हैं और यह बहुत अच्छी कॉमेडी कर लेता है। जब सुनील दत्त जी ने उन्हें देखा तो उन्होंने गुलशन में एक अच्छा एक्टर पाया। उन्होंने सलाह दी कि तुम विलेन के रोल में काम किया करो। उन्हीं दिनों सुनील दत्त जी रॉकी फिल्म को फिल्माने की तैयारी में थे। वहीं से गुलशन ग्रोवर का पहला रोल निकल कर आया।

रॉकी फिल्म कामयाब फिल्म रही, किंतु गुलशन ग्रोवर साहब को बहुत पहचान तो नहीं मिली थी, उन्हें इस फिल्म में काम से फिलहाल तक तो उस स्तर पर नोटिस नहीं किया गया।

अनिल कपूर जी के पिता सुरेंद्र कपूर जी ने भी गुलशन ग्रोवर जी को अपनी फिल्म हम पांच में काम करने का मौका दिया। “हम पांच” फिल्म में काम कर रहे गुलशन ग्रोवर साहब कि उसी दौरान मुलाकात शबाना आजमी जी से होती है, और उन्हें गुलशन ग्रोवर की मेहनत उनका समर्पण बेहद पसंद आया और उन्होंने मोहन कुमार जी से “अवतार” फिल्म के लिए गुलशन ग्रोवर का जिक्र किया उनकी तस्वीरों को उन तक पहुंचाया। इसी पहल के चलते मोहन कुमार साहब ने गुलशन ग्रोवर जी को फिल्म अवतार में काम दिया। इसके बाद गुलशन ग्रोवर के करियर में अनेकों कामयाब फिल्मों का झरोखा बह चला।

बॉलीवुड का बैडमैन

गुलशन ग्रोवर साहब के चाहने वाले बेडमैन के नाम से जानते हैं। इसे लेकर सुभाष घई की फिल्म राम-लखन में गुलशन ग्रोवर को मिला रोल का जिक्र आता है। उस फिल्म के रिलीज होने के बाद गुलशन ग्रोवर का जादू दर्शकों के जुबान पर साफ दिख रहा था। दर्शक फिल्म देख कर बाहर निकले तो केवल बैडमैन, बैडमैन ही कह रहे थे, और उस फिल्म की सफलता के साथ ही गुलशन ग्रोवर साहब बैडमैन के नाम से मशहूर हो गए।

हॉलीवुड का किस्सा

हॉलीवुड को लेकर गुलशन ग्रोवर साहब का एक किस्सा कुछ इस प्रकार से है, कि किसी डायरेक्टर की नजर जब रेस्टोरेंट मैं बैठे गुलशन ग्रोवर पर पड़ी तो उसने उनसे सवाल किया क्या तुम मेरी फिल्म में काम करोगे। वह यह नहीं जानता था, कि गुलशन ग्रोवर बॉलीवुड में पहले ही एक सफल कलाकार हैं। गुलशन ग्रोवर हॉलीवुड की भी कई फिल्मों में काम कर चुके हैं।

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

मंदाकिनी। राम तेरी गंगा मैली की खूबसूरत अदाकारा

"राम तेरी गंगा मैली" की खूबसूरत अदाकारा

80 के दशक में आई एक शानदार फिल्म राम तेरी गंगा मैली (1985) से बॉलीवुड में अपना कदम रखने वाली खूबसूरत अदाकारा यासमीन या मंदाकिनी आज भी याद है। उस समय पर राज कपूर साहब अपने छोटे बेटे राजीव कपूर साहब के बॉलीवुड में डैब्यू के लिए एक शानदार फिल्म के साथ लांच करना चाहते थे, और सबसे अहम कि यह फिल्म राज कपूर साहब के डायरेक्शन में की गई उनकी आखिरी फिल्म रही।

राज कपूर साहब की समझ में अपने छोटे भाई शशि कपूर साहब की बेटी संजना कपूर गंगा के किरदार में पहली पसंद थी। डिंपल कपाड़िया और आशा पारेकर से होकर गंगा के किरदार में मंदाकिनी आकर टिकती है। फिल्म सुपरहिट होती है। इसके पश्चात मंदाकिनी ने अपने करियर में तकरीबन 50 फिल्मों में काम किया, किंतु सफलता का वह मुकाम उन्हें कभी हासिल ना हो सका, और फिर मंदाकिनी रील लाइफ से गायब, गुमनाम हो गई।

किंतु मंदाकिनी की वह आंखें….

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏