Skip to main content

Posts

Showing posts with the label jainism

बौद्ध और जैन धर्म की भारत को देन | Indian history | Boddh and jain dharma

बौद्ध और जैन धर्म ने भारत भूमि को हिंसा के महत्वपूर्ण पाठ से अवगत कराया। प्राणी मात्र पर दया की शिक्षा दी। यह वही अहिंसा है, जिसका अनुसरण कर महात्मा गांधी जी ने भारत में स्वतंत्रता के आंदोलन में अभूतपूर्व योगदान दिया। आम जनमानस से स्वतंत्रता के आंदोलन को इसी मार्ग से जोड़ सकने में समर्थ रहे।    ऊंच नीच जात पात भेदभाव को ना मानकर एक लोकतांत्रिक समझ का संदेश दिया। मानव के सत्कर्म और सदाचार पर अधिक बल देकर देशवासियों की नैतिक स्तर को ऊंचा किया।    उत्तर वैदिक काल में आते-आते यज्ञ और बलिदान के विरोध में हिंदुओं में प्रबल विचारधारा जन्म ले चुकी थी और यही विचारधारा “भागवत धर्म” के तौर पर सम्मुख आई। जिसके प्रवर्तक श्री कृष्ण थे। उनका कहना था, कि देवी-देवताओं के ऊपर भी भगवान है, जिसे प्रसन्न करने के लिए न यज्ञों की आवश्यकता है, न जंगल में जाकर चिंतन करने की, न तपस्या करने की जरूरत है। बल्कि उपासना और भक्ति के मार्ग मात्र से ही मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। और यह मार्ग उतना ही सरल था जितना कि बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का था।       बौद्ध और जैन धर्म की ...

Jainism in hindi | जैन धर्म एक परिचय | जैन धर्म की मान्यताएं

  जैन धर्म को मानने वाले लोगों को जैनी कहा जाता है। कालांतर में जैनी लोग दो संप्रदाय में विभक्त हो गए, पहला श्वेताम्बर और दूसरा दिगंबर। श्वेताम्बर लोग उदार और सुधारवादी होते हैं। यह श्वेत वस्त्र पहनते हैं। तथा अपनी मूर्तियों को भी सफेद वस्त्र पहनाते हैं। यह जैन धर्म के कठोर नियमों को कुछ ढीला करने के पक्ष में है। दूसरी और दिगंबर होते हैं। यह जैन धर्म के कठोर नियम को पालन करते हैं। यह बेहद कट्टरपंथी लोग होते हैं। यह लोग नंगे रहते हैं। और अपनी मूर्तियों को भी नंगा रखते हैं।    जैन धर्म एक क्रांतिकारी धर्म रहा जिसने वैदिक धर्म को चुनौती दी। जैन धर्म के सिद्धांत बिल्कुल अलग हैं, जिनमें सृष्टि की नित्यता पर विश्वास अर्थात सृष्टि का ना तो आदी है ना अंत, इसे किसी ने नहीं बनाया है, और ना ही कोई इसका विनाश कर सकता है।  जैनी लोगों का मानना है, कि ईश्वर ने सृष्टि को नहीं बनाया है, किंतु सृष्टि को बनाया किसने है?  इस सवाल के जवाब में जैनी लोगों का मानना है, कि सृष्टि जीव तथा अजीव इन दो तत्वों के संयोग से बनी है, और यह दो तत्व सतत हैं, इनका नाश नहीं हो सकता और ठीक इसी प्...

वर्धमान से महावीर स्वामी होने की यात्रा | महावीर स्वामी जीवन परिचय | जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर mahaveer swami (vardhaman)

  धार्मिक क्रांति का युग छठी सदी ईसा पूर्व में वह प्रभावी क्रांति का दौर रहा जिसमें भारतीय हर मानव को स्वयं से जोड़ा। उसके जीवन के हर आयामों को प्रभावित किया। जैन धर्म उसी सदी का प्रकाश है। जैन धर्म यूं तो बहुत प्राचीन धर्म है। क्योंकि महावीर स्वामी से पूर्व 23 तीर्थंकर जैन धर्म के हो चले थे। किंतु महावीर स्वामी 24 वे तीर्थंकर के रूप में जैन धर्म को श्रेष्ठ प्रसिद्धि तक ले गए, और उन्हें ही जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक कहा गया।    वह बालक वर्धमान नाम का 599 ईसा पूर्व विदेह राज्य की राजधानी वैशाली के निकट कुंड ग्राम में जन्मा था। वे कश्यप गोत्र के क्षत्रिय राजकुमार थे। पिता का नाम सिद्धार्थ था। वे ज्ञात्रिक गण के नेता थे। इनकी माता का नाम त्रिशला था जो मगध राजा श्वसुर चेटक की बहन थी। जो लिच्छवी वंश के क्षत्रिय राजकुमार थे।    जैन ग्रंथों के अध्ययन में महावीर स्वामी के संपूर्ण जीवन का परिचय प्राप्त होता है। वर्धमान के जन्म पर उत्सव हुआ। कैदियों को कारावास मुक्त किया गया। बाल्यकाल से ही उन्हें राजसी सुख में डूबोने का प्रयत्न रहा। किंतु वे चिंतक प्रवृत्ति, मोह...

बौद्ध और जैन धर्म के उदय का कारण | वैदिक धर्म की जटिलताएं | धार्मिक क्रांति के युग का आरंभ | Buddha, jain, bhagwat dharmo ka उदय

वैदिक काल के धर्म के स्थान पर धार्मिक क्रांति के युग में नव धर्मों का उदय हुआ। जो वैदिक काल के धर्म ग्रंथों की जटिलता ही रही होगी, जो मानव ने अन्य धर्मों को अपनाया। वैदिक काल के धर्म ग्रंथ संस्कृत में थे, उनकी भाषा जटिलता, सामान्य मानव उससे अछूता ही रहा, वह उसे समझ पाने में असमर्थ ही था। तब वह एक ऐसे सरल मार्ग जो मोक्ष प्राप्ति को मिल सके उसे अपनाने को तैयार था। वह उसके स्वागत में था।      वैदिक धर्म में यज्ञों को एकमात्र मोक्ष की प्राप्ति का साधन बताया है। किन्तु समय के साथ यह महंगे होते गए तब इसे जनसाधारण करवा पाने में असमर्थ हो गया।    मानव में चेतना का नव अध्याय पल्लवित हो रहा था। तो यज्ञ में पशुओं की बलि देवी देवताओं को प्रसन्न करती है, यह ना होकर लोगों के मन में वैदिक धर्म को हिंसा धर्म होने की बात आने लगी। क्यों बेजुबानों की बलि दी जाए। चेतना का नवयुग बेजुबान के दर्द का एहसास कर पा रहा था। वह मानव चेतना का नया-नया नभ चूम रहा था।    वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था व्यवसाय पर आधारित थी  किंतु कालांतर में वह जाति प्रथा का रूप धारण कर भेदभाव ऊंच...