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प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा और अब सवाल महेंद्र भट्ट से

श्री प्रेमचंद अग्रवाल को एक अदूरदृष्ट नेता के तौर पर याद किया जाएगा। जिन्होंने अपनी कही बात पर इस्तीफा दिया मंत्री पद को त्याग और इससे यह साबित होता है, कि आपने गलती की है। अन्यथा आप अपनी बात से, अपनी सत्यता से जनमानस को विश्वास में लेते, पार्टी को विश्वास में लेते और चुनाव लड़ते। आपके इस्तीफे ने आपकी गलती को साबित कर दिया। उन्होंने राज्य आंदोलन के दौरान अपनी भूमिका को स्पष्ट किया, अपना योगदान बताया और आखिरी तौर से वे भावनाओं से भरे हुए थे, उनके आंसू भी देखे गए। इसी पर उन्होंने अपने इस्तीफा की बात रख दी वह प्रेस वार्ता हम सबके सामने हैं।  यहां से बहुत कुछ बातें समझने को मिलती है, राजनीति में बैक फुट नहीं होता है, राजनीति में सिर्फ फॉरवर्ड होता है। यह बात उस समय सोचने की आवश्यकता थी, जब इस तरह का बयान दिया गया था, जिसने इतना बड़ा विवाद पैदा किया। यह नेताओं की दूर दृष्टि का सवाल है, उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि उनके द्वारा कही बात का प्रभाव कितना व्यापक हो सकता है। राजनीति में आपके द्वारा कही बात पर आप आगे माफी लेकर वापसी कर पाएंगे ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि उसका प्रभाव कभी-कभी इतना ...

बनास के धावक | अंकित कुमार राष्ट्रीय गोल्ड मेडलिस्ट

  अंकित कुमार आजकल लोगों ने खूब सुना और देखा। देखते ही देखते पैठाणी घाटी का चर्चित चेहरा बन गया। हालांकि जो उन्होंने कर दिखाया है, वह इससे कई बड़ा है। गोवा में चल रहे राष्ट्रीय खेलों में पौड़ी गढ़वाल निवासी अंकित कुमार ने स्वर्ण पदक हासिल किया है। उन्होंने 10 किलोमीटर दौड़ को 29 मिनट और 51 सेकंड में पूरा कर यह पदक अपने नाम किया। बात यह है कि अंकित कुमार अपने निकटवर्ती गांव बनास के हैं और यह स्थानीय लोगों के लिए रेखांकित करने वाली बात है, हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।   यदि स्थानीय बातचीत के संदर्भ में विचार पेश करें। मेरा इस लेख को लिखने का मुख्य कारण क्षेत्रीय विषयों को अहमियत देना और क्षेत्रीय उपलब्धियां को क्षेत्र के लोगों से अधिक से अधिक जोड़ने का प्रयास करने के साथ यह भी है की साथी युवाओं से मैंने कई बार सुना है “बनास के धावक” शायद आपने भी सुना हो। जो लोग इस बात को पूर्व से जानते हैं और स्वीकार करते हैं, वे अंकित कुमार की इस उपलब्धि के बाद सीधे इसी बात का स्मरण करेंगे “बनास के धावक” बनास गांव के युवा तेज दौड़ते हैं। यह उपलब्धि फौजी के लिए दौड़ लगाते युवाओं के बीच ...

जोशीमठ ऐतिहासिक,धार्मिक महत्व & आज आपदा

ज्योतिर्मठ जोशीमठ यह स्थल कुछ अप्रिय घटनाओं के कारण चर्चा का विषय बना हुआ है। जोशीमठ में बड़ी मात्रा में भूधंसाव हो रहा है। यह इतना गंभीर मामला है, क्योंकि उस शहर के अस्तित्व पर ही खतरे की तरह दिख रहा है। जोशीमठ जो ऐतिहासिक धार्मिक और सामरिक महत्व के बारे स्थान है। ऐतिहासिक इस प्रकार से जोशीमठ की स्थापना आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में की। यह वही आदि शंकराचार्य हैं, जिन्होंने संपूर्ण देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। श्रृंगेरी मठ, गोवर्धन मठ, शारदा मठ और ज्योर्तिमठ। ज्योर्तिमठ नाम इसलिए है, क्योंकि यहां आदि शंकराचार्य ने ज्ञान प्राप्त किया, यहां उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। क्योंकि उन्हें ज्ञान रूपी ज्योति यहां प्राप्त की इसलिए यह ज्योर्तिमठ है। हर मठ के अंतर्गत एक वेद रखा गया है। ऋग्वेद की बात करें, तो यह गोवर्धन मठ के अंतर्गत रखा गया है। वही ज्योर्तिमठ के अंतर्गत जो वेद रखा गया है, वह अर्थवेद है। हर मठ में दीक्षा लेने वाले सन्यासियों के नाम के बाद संप्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है, जिस आधार पर वे उसी संप्रदाय के सन्यासी कहे जाते हैं...

KWMM junior high school paithani | संस्मरण लेख

kwmm junior high school paithani कलावती मेमोरियल मॉन्टेसरी जूनियर हाई स्कूल पैठाणी अपने 25 वर्ष की उपलब्धियों का उत्सव मना रहा है। एक समय था, कि विद्यालय तीन कक्षाओं में चलता था। आठवीं तक की कक्षाएं चलाई जाती थी। मुझे याद है, कि कक्षाओं के बाहर बरामदे में भी पढ़ाई करते थे। श्यामपट्ट केवल दीवारों पर नहीं बने थे। बल्कि लकड़ी के ब्लैक बोर्डों का भी प्रयोग होता था। जिन्हें एक जगह से दूसरी जगह पढ़ने के लिए जहां छात्र बैठे वहां ले जाए जा सके। और वह स्कूल की पुरानी बिल्डिंग किसे याद नहीं। उसके प्रवेश के लिए वह छोटी सी सीढ़ियां और फिर कक्षाएं। यदि कहें तो वह भवन परिवार के रहने के लिए ही बनाया गया था, स्कूल उसमें चलाई जा रही थी। लेकिन यह स्वीकार करना होगा, कि उन छोटी सी सीड़ियों से ही कई छात्रों ने शिक्षा के सफल सीढ़ियां चढ़ी। मुझे याद है, ऊपर प्रधानाचार्य ऑफिस होता था। वहां पर्याप्त जगह थी, यह ग्राउंड फ्लोर को लगाकर दूसरी मंजिल या आखिरी मंजिल पर था। वहीं से सीढ़ियां नीचे उतर कर दोनों तरफ दो कक्षाओं में खुलती थी, और वहीं से और नीचे उतरे तो फिर दोनों तरफ दो कक्षाएं और खुलती थी। उस ग्राउ...

प्रसिद्ध बुंखाल मेला | एक संस्मरण लेख

बुंखाल मेला पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)          हर बार की तरह बुंखाल की सुंदर झलकियां इस बार भी प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा सामने लाई गई हैं। और यह बेहद सुंदर हैं, और जो लोग मेले में नहीं थे, उन्हें यह और भी सुंदर लग रही हैं। बहुत से दोस्तों की तस्वीर देखी जो अन्य दोस्तों को फ्रेम में लिए हैं। जिन से मेरी मुलाकात भी काफी समय से नहीं हुई है। मेले का मतलब ही यह है, मिलना। बूंखाल मेले की एक पुरानी तस्वीर अब तो कई साधनों के माध्यम से हम एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, संपर्क में रहते हैं। लेकिन पहले यह सब साधन नहीं थे, तो मेला बड़े उल्लास का विषय था, क्योंकि वहां जाने कौन-कौन मिलने वाला है, इसके लिए मन में उत्साह होता था। वो एक सुंदर वीडियो जो शायद पिछले वर्ष का है, और इस प्रसिद्ध मेले के स्थान बुंखाल का भूगोल आकाश से दिखा रहा है, उसे सभी लोग साझा कर रहे हैं। वह वीडियो इस सुंदर मेले के लगभग सुंदरता को दर्शा भी रहा है। मैं जब पहली बार बुंखाल मेला गया। शायद 2009 में तो मुझे याद है, तब सभी पैदल जाते थे। एक तंग रास्ते में जो बुंखाल बाजार के ठीक नीचे की ओर से जो रास्ता म...

धैर्य की उपयोगिता Aug 1965 | Shantikunj Haridwar

   कोई भी काम करने में धैर्य की नितांत आवश्यकता है। जो धैर्यवान है, वह कर्म करने से पहले उसके शुभ अशुभ परिणाम पर विचार कर सकता है। उसको सफल बनाने के लिए मार्ग निर्धारित कर सकता है। अपने कर्म के सत्-असत एवं उपयोगिता-अनुपयोगिता पर सोच सकता है। इसके विपरीत जो अधैर्यवान है, आवेश अथवा उद्वेगपूर्ण है, वह ना तो कर्म की इन आवश्यक भूमिकाओं पर विचार कर सकता है और न दक्षता प्राप्त कर सकता है। वह तो अस्त-व्यस्त क्रियाकलाप की तरह एक निरर्थक श्रम ही होता है।     अधैर्य मनुष्य का बहुत बड़ा दुर्गुण है। अधीर व्यक्ति में अपेक्षित गंभीरता का अभाव ही रहता है, जिससे वह चपलता के कारण समाज में उपहास, उपेक्षा और निंदा का पात्र बनता है। अधिक व्यक्ति के मन बुद्धि स्थिर नहीं रहते। वह न किसी विषय में ठीक से सोच सकता है और ना कर्तव्य का निर्णय कर सकता है। अधैर्यवान व्यक्ति अदक्षता, अस्त-व्यस्तता, अनिर्णयात्मकता एवं अक्षमता के कारण जीवन के हर क्षेत्र में असफल होकर दुख भोगता है इसके विपरीत जो धैर्यवान है, वह जिस कार्य को पकड़ता है, उसे पूर्ण मनोयोग, विवेक, बुद्धि और समग्र शक्ति लगाकर पूरा किए बिना...

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -2

इससे पूर्व  ( गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन part -1 ) में हम जान चुके हैं। अब आगे… इस परिसर को देख मुझे जो ख्याल आता है। जैसे इतिहास के पृष्ठों में हम यूं तो भारत के प्राचीन सभी धर्म किंतु विशेषकर बौद्धों के संघाराम तात्पर्य बौद्ध मठों या मंदिरों से है, जहां बहुत से व्यक्तियों के ठहरने का प्रबंध होता था। जहां वे लगातार निर्बाध अध्ययन करते रहते थे। पूरे भारत में ऐसे कई संघाराम होते थे। जो बौद्ध भिक्षुओं को संरक्षण व बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए होते थे। भगवान बुद्ध के बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद से और ईसा के जन्म के बाद जब तक मोटे तौर पर गुप्त वंश का साम्राज्य नहीं आया था। बौद्धों को खूब संरक्षण मिला। कन्नौज का राजा हर्षवर्धन भी बौद्धों का ही मुख्य संरक्षक था। लेकिन पुष्यमित्र शुंग का प्रण की वह बौद्धों बिग को समाप्त कर देगा। दूसरी सदी ईस्वी में बौद्धों के एक ग्रंथ में बताया गया है, कि पुष्यमित्र ने कैसे एक संघाराम कुक्कुटाराम जो पाटलिपुत्र में था, को नष्ट कर दिया।वहां बौद्धों को कैसे मार दिया। यह भी एक प्रसंग बताया गया है। शांतिकुंज के परिसर में वैदिक ...

गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -1

चित्र में- शांतिकुंज परम तपस्वी ऋषियुग्म पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा शांतिकुंज से पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का नाम याद आ जाता है। आपने इनका नाम भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा जो गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वाधान में अखिल विश्व गायत्री परिवार के सौजन्य से करवाई जाती है, के कारण जरूर सुना होगा। पूरे देश में इनकी शाखाएं और कई कार्यकर्ता होते हैं। और यह परीक्षा उन्हीं के द्वारा पूरे देश में संचालित होती है। संस्कृति ज्ञान परीक्षा की किताब जो हर छात्र को विद्यालय स्तर तक और सभी अन्य पर होने वाली इस परीक्षा की तैयारी के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं। विद्यालय स्तर से अन्य सभी स्तरों पर विजेताओं को प्रथम द्वितीय और तृतीय स्तर के पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। उद्देश्य एक ही है, भारतीय प्राचीन संस्कृति के ज्ञान से नई पीढ़ी को अवगत करवाना। चित्र में- शांतिकुंज परिसर मे प्रवेश के लिए एक द्वार शांतिकुंज एक आश्रम एक धर्मशाला जहां कई लोग निशुल्क रुकते हैं, हरिद्वार में यह धार्मिक आकर्षण का एक मुख्य केंद्र है। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के विषय में यहां इस आलेख से पता च...

उत्तराखंड राजनीति चुनावी पहल आजकल | Uttrakhand politics

उत्तराखंड में 2022 के चुनाव को लेकर हर दिन पक्ष विपक्ष, राजनीतिक दल अपने आप को आम जनमानस में सबसे मजबूत समर्थ और योग्य जताने की कोशिश में कार्यक्रमों का आयोजन कर रहें हैं। आज उत्तराखंड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि पर  रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी का आगमन उत्तराखंड में भाजपा की जीत के लिए प्रयोग किए जाने वाले बड़े पेंचों में एक है।  2017 की भांति भाजपा ने अपनी केंद्र सरकार की उपलब्धियों से मुनाफा उत्तराखंड 2022 चुनाव में हासिल करना है, यह तो तय है। किन्तु दूसरी ओर विपक्ष राज्य में भाजपा के हर कदम पर उसे घेरने के पुख्ता इंतजाम किए हुए है। पीठसैंण में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी के दौरे से पूर्व ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल जी ने उनकी पुरानी घोषणा सैनिक स्कूल को लेकर कहा की उन्हें पीटसैंण की जनता से इस वादे को ना निभा पाने पर माफी मांगनी चाहिए, साथ ही उन्हें ऐसी घोषणा करनी चाहिए जिन्हें तीन माह में उत्तराखंड भाजपा सरकार पूरा कर सके। भाजपा के केंद्रीय  नेताओं का उत्तराखंड दौरा आम जनमानस पर अधिक प्रभावी न हो सके इसके लिए कांग्रेस भरसक प्रय...

Boxer Jaideep Rawat | Step which made him

Boxer Jaideep Rawat मु झे नहीं मालूम था, कि हमारे यहां से भी कोई लड़का मुक्केबाजी में खुद को आंकता होगा। अपना भविष्य एक मुक्केबाज होने में देखता होगा। तब जब वह इस खेल को जिसमें अपने करियर बनाने के लिए पहली दफा चयन प्रक्रिया में खड़ा था, मुझे तब यह मालूम नहीं था कि वह एक दिन इस खेल से दुनिया के सामने एक चेहरा प्रस्तुत होगा।    हम क्रिकेट खेल से चयन की आश में थे, और आप भी। यदि आप जयदीप के निवास क्षेत्र से होते तो आप भी क्रिकेट खेल में ही स्वयं को चयनित होने की लाइन में रखते। किंतु जयदीप ने ऐसा नहीं किया, उसने मुक्केबाजी को चुना। मुझे नहीं मालूम यह कैसे हुआ। एक पहाड़ी लड़का जो हम सब के साथ पल-बड़ा हो रहा हो, एक परिवेश, एक विद्यालय, एक से लोग, किंतु कैरियर के संबंध में जब खेल जहन में आया तो जिस खेल को चुना वह मुक्केबाजी। जयदीप जिस क्षेत्र से आते हैं, मैं निश्चित हूं यह कहने में, जयदीप ने यह खेल पहले कभी नहीं खेला था। हां टेलीविजन सुविधाओं के चलते देखा जरूर होगा।    दरअसल बात है 2014-15 की बैच की भर्ती के लिए महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज देहरादून में आठवीं और नौवीं कक्षा...

गढवाली बोली | गढवली मा | मां की जुबान मातृबोली

गढवाली बोली     शायद मेरी मां ला बचपन मा मी थैं इन नी सिखै होलो कि यु बिरौलो नी च ये कु  C A T  कैट बुलदिन, शायद वांकु परिणाम चा कि मि गढवली अपड़ी मातृभाषा थैं जणदूं छों। कम से कम इतगा जणदूं छों कि अपड़ी बात अपड़ी मातृबोली मा बोली सोकूं अर समझी सोकू।    ईं मातृबोली से हमरी मां की जुबान च हम मा। हमारी मां की संघर्ष की कहानी च हम मां। वा जुबान हम मा सदनी कु राली। या जुबान हमरी मां को ज्ञान च हम मा। जु हमारी मां थैं हम मा सदनी रखलो। वीं आपबीती थैं सदनी बयां करली या जुबान। या जुबान हम मा अर हमारी ओंण वली पीढी मा सदनी जिंदा राली अर वीं संघर्ष की कहानी थैं बयां कनी राली। बोला दौं क्या नी दे ईं बोली ला हम थैं।    ऊ लोग जौंका मन की बात सिर्फ ईं बोली मा ह्वे सकदी, ऊंका आखरूं थैं, ऊकां दुख सुख से हम थैं ज्वड़दी। या बोली मीं थैं ऊंका इतगा करीब ला के खड़ी करदी, मिं ऊं थैं जाणी सौकू यनु लायक बणोंदी।    गढवली बुलण वला लोगों की भावनाओं की कदर ऊं लोगों ह्वे सकदी, जुं थै वीं बोली की समझ हो। कदर तभी ह्वे सकदी जब वीं बात की समझ हो।