भूस्खलन के कारणों में हम अपक्षय और अपरदन, गुरुत्वाकर्षण कारक, जलवायु कारक के साथ-साथ प्लेट विवर्तनिकी से इसे जानेंगे ]
अपक्षय और अपरदन की प्रक्रिया के कारण चट्टानों में होने के कारण भूस्खलन की घटना संभावित होती है। इन चट्टानों में अधिक वर्षा होने के पश्चात जब धूप पड़ती है। तो वह सुख कर नीचे की ओर खिसकने लगते हैं और यह भूस्खलन के रूप में आपदा है।
बड़ी-बड़ी चट्टानों में गुरुत्वाकर्षण के कारण भी भूस्खलन की घटना संभावित होती है। ऊंची चट्टानों पर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण चट्टानों में भूस्खलन की घटना होती है।
किसी प्रदेश की जलवायु भी उस प्रदेश में हुए भूस्खलन के लिए उत्तरदाई होती है। यदि कोई प्रदेश की जलवायु अधिक वर्षायुक्त है, तो उस प्रदेश में भूस्खलन संभावित है। इसके अतिरिक्त वनों का कटाव भूकंप की घटना आदि भी भूस्खलन को जन्म देते हैं।
उत्तर भारत में विशेषकर हिमालई क्षेत्रों में होने वाली आपदाओं के संबंध में प्लेट विवर्तनिक महत्वपूर्ण है। भारतीय प्लेट के यूरेशियाई प्लेट से टकराने के कारण ही हिमालय पर्वत का जन्म हुआ है। जहां यह दोनों प्लेटें टकराती हैं, वह अभिसरित सीमा का एक प्रकार है।
[ नोट- पृथ्वी के अनेक प्लेटों में दो प्लेटें आपस में जहां मिलती हैं, वहां पर अपसरित सीमा अभिसरण सीमा और रूपांतर सीमा बनती हैं। अपसरण सीमा जब प्लेटें एक दूसरे से विपरीत दिशा में पीछे हटते हैं। तो मध्य के खाली स्थान में नई पर्पटी का निर्माण होता है, क्योंकि नई पर्पटी का जन्म होता है इसलिए इसे अपसरण सीमा के साथ रचनात्मक सीमा भी कहते हैं।
जब दो प्लेटों के मिलने के स्थान पर एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंस जाती है, तो इसे अभिसरण सीमा कहते हैं। क्योंकि यहां प्लेट का विनाश हुआ है इसलिए इसे विनाशात्मक किनारा भी कहते हैं।
रूपांतर सीमा दो प्लेटों के मिलने के स्थान पर जब ना तो नयी पर्पटी का निर्माण होता है और ना ही पर्पटी का विनाश होता है, इसे इसे रूपांतर सीमा कहते हैं। इसका कारण यह है कि सीमा पर प्लेट एक दूसरे के साथ साथ क्षैतिज दिशा में दिशा में सरक जाती हैं ]
भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के मिलने के स्थान पर अभिसरण सीमा या विनाशात्मक किनारे का जन्म होता है, इन प्लेटों के टकराव से ही हिमालय का जन्म हुआ है। और क्योंकि यह दो प्लेटों के मिलने की सीमा है, इसलिए यह भूगर्भिक हलचलों से उत्पन्न घटनाओं के लिए संवेदनशील क्षेत्र है। साथ ही भारतीय प्लेट अब भी यूरेशियन प्लेट को निरन्तर धक्का दे रही है। और यह भूगर्भिक हलचलों को जन्म देता है। परिणाम में आपदाएं जन्म लेते हैं। हिमालय क्षेत्रों की बजाए दक्षिण के क्षेत्रों को भूगर्भिक दृष्टि से अधिक स्थिर माना जाता है।