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Showing posts with the label राजनीति

प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा और अब सवाल महेंद्र भट्ट से

श्री प्रेमचंद अग्रवाल को एक अदूरदृष्ट नेता के तौर पर याद किया जाएगा। जिन्होंने अपनी कही बात पर इस्तीफा दिया मंत्री पद को त्याग और इससे यह साबित होता है, कि आपने गलती की है। अन्यथा आप अपनी बात से, अपनी सत्यता से जनमानस को विश्वास में लेते, पार्टी को विश्वास में लेते और चुनाव लड़ते। आपके इस्तीफे ने आपकी गलती को साबित कर दिया। उन्होंने राज्य आंदोलन के दौरान अपनी भूमिका को स्पष्ट किया, अपना योगदान बताया और आखिरी तौर से वे भावनाओं से भरे हुए थे, उनके आंसू भी देखे गए। इसी पर उन्होंने अपने इस्तीफा की बात रख दी वह प्रेस वार्ता हम सबके सामने हैं।  यहां से बहुत कुछ बातें समझने को मिलती है, राजनीति में बैक फुट नहीं होता है, राजनीति में सिर्फ फॉरवर्ड होता है। यह बात उस समय सोचने की आवश्यकता थी, जब इस तरह का बयान दिया गया था, जिसने इतना बड़ा विवाद पैदा किया। यह नेताओं की दूर दृष्टि का सवाल है, उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि उनके द्वारा कही बात का प्रभाव कितना व्यापक हो सकता है। राजनीति में आपके द्वारा कही बात पर आप आगे माफी लेकर वापसी कर पाएंगे ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि उसका प्रभाव कभी-कभी इतना ...

तो ये हैं दिल्ली के नए मुख्यमंत्री | New CM Delhi | Delhi Election

दिल्ली में मुख्यमंत्री कौन होगा? यह सवाल अभी बना है, चर्चाएं अब भी जारी हैं। निश्चित रूप से बीजेपी इस चयन के माध्यम से पूरे देश में एक संदेश देने की कोशिश करेगी। 27 साल बाद बीजेपी दिल्ली में वापसी कर रही है। 70 विधानसभा सीटों में 48 पर भाजपा ने जीत हासिल की शेष 22 आम आदमी पार्टी को जीत मिली और कांग्रेस यथावत स्थिति पर रही। ऐसे में भाजपा संगठन में भी खुशी की लहर है। साथ ही दिल्ली की जनता के आशा और अपेक्षाएं बड़ी हैं। एक तो दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है, दूसरी ओर मोदी जी की सरकार है, जनता की अपेक्षाओं पर खडा उतरने के लिए भाजपा संगठन की तरफ से एक योग्य और क्षमतावान व्यक्ति को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया जाना है, साथ ही ऐसे व्यक्ति का चयन करना है जिससे पूरे देश में एक संदेश जा सके। दिल्ली के इस विधानसभा चुनाव में एक खास बात यह भी देखने को मिली कि भाजपा ने चुनाव के समय किसी चेहरे पर मोहर नहीं लगाई थी, बिना चेहरे के दिल्ली का चुनाव लड़ा और जीत भी गई। यही बात जब इंडिया गठबंधन के लिए पिछले लोकसभा चुनाव में उनके द्वारा इस तरह से लड़ा जा रहा था। जब उनसे पूछा जाता था, कि यदि गठबंधन जी...

कांग्रेस के कदम | Loksabha चुनाव 2024

राहुल गांधी से ही कांग्रेस पार्टी के हर स्तर पर चुनाव कर आंतरिक लोकतंत्र की स्थापना की बात करते रहें हैं। यह परिवारवाद के उस बड़े सवाल का जिसे लगातार भारतीय जनता पार्टी द्वारा उठाया जाता रहा है, का परिणाम है। नागालैंड में प्रचार रैली में मोदी जी ने परिवारवाद के हवाले से पुनः कांग्रेस को घेरा। ऐसे में कांग्रेस इन सवालों के निदान में पूरा जोर लगा रही है। कांग्रेस पार्टी के अहम निर्णय लेने वाली कार्यसमिति में सदस्यों की संख्या कुछ बढ़ाई गई। अब 30 सदस्य कार्यसमिति में होंगे। इसमें महिलाओं, एससी, एसटी, युवाओं आदि को आरक्षण भी दिया गया है। किंतु जब यह तय किया गया कि कांग्रेस पार्टी कि निर्णय लेने वाली अहम कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव नहीं होगा, बल्कि यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मलिकार्जुन खरगे जी जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, को यह अधिकार होगा कि वह सदस्यों को नामित करें, ऐसे में कांग्रेस पर लगने वाले परिवारवाद के सवालों के निवारण अभियान से जो वह आंतरिक हर स्तर पर चुनाव के माध्यम से दर्शाना चाहती थी, से पीछे हट गई। ऐसे में राहुल गांधी और गांधी परिवार का कोई सदस्य संचालन समि...

रूस-यूक्रेन युद्ध का एक वर्ष पूर्ण | विशेष लेख

             रूस-यूक्रेन युद्ध एक वर्ष हो चुका है। रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध जारी है। यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए मुसीबत बना हुआ है। कोरोना से उभरने के बाद कुछ गति जो विकास कार्यों की ओर अपेक्षित थी रूस-यूक्रेन युद्ध ने उस गाड़ी का टायर पंचर कर दिया। बात साफ है, वैश्वीकरण के युग में आप दुनिया के किसी राष्ट्र में हो रही हलचल से बिना प्रभावित हुए बचकर नहीं निकल सकते। हमारे देश में जो मांगे पैदा होती हैं, उनकी आपूर्ति के लिए विदेशों से आयात होता है, और विदेशों की आवश्यकता की आपूर्ति के लिए भारत उन्हें वस्तुएं निर्यात करता है। अतः हम संपूर्ण विश्व से परस्पर जुड़े हैं। इस वर्ष भारत को जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता के संदर्भ में प्रधानमंत्री जी ने इसीलिए ही कहा, कि कोई तीसरी दुनिया नहीं है हम सब एक नाव पर सवार है। यह कहने का तात्पर्य ही था कि हम सब की संपूर्ण दुनिया में तमाम राष्ट्रों की समस्याएं एक समान ही हैं। इसका प्रमाण दिया है, कोरोना महामारी ने और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के समय दुनिया का हर राष्ट्र आज महंगाई, खाद्य संकट, ऊर्जा संकट आदि समस्याओं का स...

राजपरिवारों की कन्याओं के विवाह | विशेष लेख

प्राचीन समय से ही राज परिवारों ने और शासकों ने अपनी कन्याओं के विवाह से अपने साम्राज्य को स्थापित करने की नीति का अनुसरण किया। कन्या को श्रेष्ठ पक्ष को सौंपकर विवाह संबंध स्थापना से उन्हें राजनीतिक लाभ प्राप्त हुए। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हर्यक वंश का शासक बिम्बिसार ने विवाह नीति का अनुसरण किया। उसकी तीन रानियां थी। पहली महाकौशल देवी जो कौशल प्रदेश की राजकुमारी थी, और प्रसनजीत जो अति प्रसिद्ध राजा हुआ, कि बहन थी। से विवाह किया और उसे दहेज में काशी प्राप्त हुआ। उसकी दूसरी रानी लिच्छवी शासक चेटक की बहन थी। इन्हीं से बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु का जन्म हुआ। लिच्छवी बेहद मजबूत गणराज्य हुआ करता था। और इससे बिंबिसार को अवश्य बल और राजनीतिक वर्चस्व हासिल हुआ होगा। उसकी तीसरी रानी मद्र की राजकुमारी क्षेमा थी। आज से 2300 साल पहले जब चंद्रगुप्त मौर्य ने 305 ईसा पूर्व में सेल्युकस को परास्त किया, तो उसने अपनी पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से किया। और भी संधि के अनुसार कार्य किए गए। किंतु यह भी राजनीतिक क्रियाकलाप के फल स्वरुप ही हो सका। अतः यह विवाह भी राजनीतिक रूप से प्रेरित था। भारत ही न...

भारत में समाजवाद | कांग्रेस vs भाजपा

भारत में समाजवाद समाजवाद किसी भी राष्ट्र का अपने नागरिकों के लिए अंतिम लक्ष्य है। जिसका तात्पर्य नागरिकों में समानता लाने से है। समाजवाद को आप इस आलेख [ समाजवाद का विचार और पूंजीवादी | मार्क्सवाद   ]  में समझ सकते हैं। मोटे तौर पर समाजवाद वंचितों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने का सिद्धांत है। भारत में समाजवाद की दिशा में कई कार्य आजादी के बाद से ही आरंभ किए गए जैसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जमींदार प्रथा के अंत के लिए कानून, भूमि सुधार कानून जिसमें जो जमीन के बड़े भाग जमीदारों ने अपने कब्जे में किए थे। वह बड़ी जमीन के भाग उनकी संपत्ति हो गई थी, जिसके चलते जो अन्य लोग थे, वे जमीदारों के यहां केवल मजदूर के रूप में कार्य करते थे और इससे बेगारी, मजदूरी और भीषण गरीबी, असमानता और अन्याय की संभावना बनी रहती थी।  आजादी के बाद सबसे पहले यही कार्य किया गया। उन जमींदारों से जमीन छीनकर किसानों में बांट दी गई, और जमीदारी प्रथा का भी अंत कर दिया गया। यह समाजवादी विचार के अंतर्गत किया गया कार्य है। जहां संसाधन को समाज के हर व्यक्ति में बराबर बांट दिया गया और जमीदार वर्ग...

साम्यवाद का विचार | मार्क्सवाद

समाजवाद की चरमता साम्यवाद है। या ऐसा कह सकते हैं, कि समाजवाद के विचार को जब अधिक विकसित किया गया तो साम्यवाद विचार का जन्म हुआ, और जो कि मार्क्सवाद है। जब समाजवादी विचार लोकप्रिय होने लगा तो इस विचार को चरमता तक पहुंचाने के लिए साम्यवादी विचार का जन्म हुआ।  यदि ऐसा कहा जाए, कि जहां समाजवाद में समाज में संसाधनों को सभी में समान रूप से वितरण की बात की गई है, और व्यक्तिवाद का विरोध किया गया है। तो साम्यवाद कुछ अन्य मूल्यों को समाज के लोगों के लिए होने की पैरवी करता है। हालांकि साम्यवाद भी समाजवाद की भांति पूर्ण तो परिभाषित नहीं किया जा सकता। जैसे समाजवाद को पूंजीवाद के स्वरूप और परिस्थितियों के अनुरूप अलग-अलग प्रकार का हो सकता है और अलग-अलग ढंग से परिभाषित और प्रयोग किया गया है।  मार्क्स तथा एंगेल्स  द्वारा साम्यवाद विचार को जन्म दिया गया। “कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र” जिसे वैज्ञानिक कम्यूनिज्म का मूल कहा जाता है। इसी में मार्क्सवाद और साम्यवाद के विचार की विवेचना की गई है। इसे कॉल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तैयार किया था। जहां समाजवाद व्यक्तिवाद का विरोध ...

जूलियस सीज़र | प्रकरण 2 | पोम्पी और सीजर में दूरी

जूलियस सीज़र रोम की राजनीति में तीन बातें उस समय तक, जिसमें एक राज परिवार की औरतों द्वारा पुरुषों पर वर्चस्व रखना, या पीछे से शासन में हस्तक्षेप रखना, और कहीं तो राज परिवार में औरत ही राजनीति में मुख्य भूमिका में होती थीं। वही दूसरा, की राज परिवार अपने पुत्र पुत्रियों का प्रयोग अपनी राजनीति जमाने में भी करते थे। अपनी पुत्री का विवाह किसी व्यक्ति से कर जो वर्चस्व शाली प्रतीत होता है। या राजनीति में जो स्थान मजबूत रखता है। और तीसरी बात, अहम अंधविश्वास और जादू टोना तथा बलि देकर अपनी कामना के लिए अपनी देवी से प्रार्थना करना। आगे हम जानेंगे कैसे ब्रूटस जब मारा जाता है, तब उसकी मां शाप देते हुए अपनी आत्महत्या कर देती है। उधर पोम्पी मैग्नेस और जूलियस सीज़र में दूरियां बढ़ रही हैं। पिछले प्रकरण में हमने जान लिया था, कि पोम्पी मैग्नेस जो रोम में शांति बनाए रखे है, लगभग 8 वर्षों से जिन वर्षों में जूलियस सीज़र यूरोप के तमाम देशों में अपनी सेना के साथ विजय का पताका फहरा रहा था। दरअसल इस विजय अभियान का अहम कारण 390 ईसा पूर्व में गॉल द्वारा रोम शहर पर हुए आक्रमण और उसे लूट लेने से जन्मा था। इ...

जुलियस सीजर | रोमन साम्राज्य | प्रकरण- 1

जुलियस सीजर- रोमन साम्राज्य दो नाम आप बिल्कुल कंठस्थ कर लें जुलियस सीजर और ऑक्टेविन। एक जो जिससे हम आरंभ करेंगे और दूसरा जिस तक हम पहुंचेंगे। जुलियस सीजर एक गंभीर स्वभाव का आदमी है। बड़ी सैनिक नेतृत्व की क्षमता रखने वाला और अपनी सैनिक कुशलता के कारण ही सैनिकों का उस पर विश्वास भी अटूट है। वहां रोम में उसका मित्र पोम्पी मैग्नेस, जुलियस सीजर की ही तरह खूब लोकप्रिय और रोम सीनेट में ऊंचा स्थान रखता है। सीनेट का तात्पर्य संसद से है। वह एक गणराज्य था, रोमन गणराज्य।  यह वह समय था, कि रोम यूरोप के तमाम इलाकों को जीतता जा रहा था। वहीं कुछ अफ्रीका के भागों पर भी वह अपना वर्चस्व हासिल करने में सफल रहा। किंतु वह स्वयं रोम पर शासन न कर सका। वहां बड़ी अव्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता ने जन्म लिया। ऑक्टेविन वह है जो यह सब देख रहा है और समझ रहा है। जुलियस सीजर और पोम्पी मैग्नेस जो साथ थे तो गणतंत्र में स्थिरता थी, किंतु यह भी था, कि संसद की प्रक्रिया जिसे पोम्पी मैग्नेस संभाल रहा था। उसी समय सैनिक कार्यवाही कर यूरोप के बड़े भाग पर विजय का पताका लहराने जुलियस सीजर के नेतृत्व में सेना लड़ रही थी।...

मंत्रिपरिषद से अलग राष्ट्रपति की शक्तियों पर चर्चा कीजिए?

संविधान के अनुसार राष्ट्रपति की स्थिति भारत की संसदीय व्यवस्था में नाममात्र के कार्यपालिका प्रधान की है। कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान प्रधानमंत्री होता है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है, की राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख होता है। किंतु कार्यकारी नहीं। वह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है, किंतु उस पर शासन नहीं करता। राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख होता है। जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। राष्ट्रपति की शक्तियों के संदर्भ में अनुच्छेद 53 और अनुच्छेद 74 जो इस प्रकार हैं- अनुच्छेद 53 के अनुरूप “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। वह इसका प्रयोग स्वयं व अपने अधीनस्थ अधिकारियों के सहयोग से करेगा” यहां  प्रयुक्त “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी” का तात्पर्य राष्ट्रपति के संघ की कार्यपालिका की औपचारिक रूप से प्रधानता से है। अनुच्छेद 74 के अनुरूप- “राष्ट्रपति की सलाह व सहायता के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद होगी और वह अपने कार्य व कर्तव्य का उनकी सलाह पर निर्वहन करेगा” इस अनुच्छेद के अंतर्गत दर्शाई गई प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाल...

पंजाब के नए मुख्यमंत्री | चरणजीत सिंह चन्नी

सुखविंदर सिंह रंधावा का नाम पंजाब मुख्यमंत्री पद को लेकर सबसे आगे था। उनके पश्चात अमृता सोनी के सी एम बनने को लेकर के इनकार ने सुनील जाखड़ और साथ ही नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी रेस में शामिल रहा। नवजोत सिंह सिद्धू को इस वक्त मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस हाईकमान नई मुसीबत गले नहीं लेना चाहती। चुनाव निकट है। जहां सुनील जाखड़ का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आने लगा था, तब सिद्धू पक्षी नेता दल ने उनका विरोध दर्शाया। अंत में आकर चरणजीत सिंह चन्नी नाम पंजाब के नए सीएम के पद को हासिल होगा। पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत जी ने ट्वीट कर यह जानकारी साझा की। चरणजीत सिंह चन्नी- पंजाब के नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी रूपनगर जिले के चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक वर्तमान में है। वह पंजाब विधानसभा में 2015 से 16 तक विपक्ष के नेता के तौर पर प्रमुख रहे। वे दलित समाज के अंग है, और पंजाब में पहले मुख्यमंत्री होंगे जो दलित सिख हैं। चरणजीत सिंह चन्नी जी के विषय में रोचक प्रसंग- एक बेहद रोचक विवरण पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जी के विषय में है। 2018 में उनके विषय में एक वीडियो देख...

Captain amrinder singh | राजनीतिक जीवन और उपलब्धियां

पंजाब  के हाल तक और इस्तीफा सौंप चुके मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जी का 52 वर्ष का राजनीतिक जीवन हो चुका है। वह 9 वर्ष तक पंजाब के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं। उनका जन्म 1942 में हुआ था। वह राष्ट्रीय डिफेंस अकादमी और भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक के बाद भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं। 1963 से 1966 तक वे भारतीय सेना में सेवारत रहे। 1965 की इंडो पाक युद्ध में भी वे भारतीय सेना का हिस्सा थे। राजनीतिक जीवन- वे स्कूल समय से ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी के अच्छे मित्र रहे, और राजनीति में प्रवेश इसी मित्रता के साथ हो गया। कांग्रेस पार्टी से उनका परिचय राजीव गांधी जी के द्वारा ही हुआ। वे 1980 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। किंतु ऑपरेशन ब्लू स्टार के विषय में उन्होंने 1984 में संसद को इस्तीफा दे दिया, तथा कांग्रेस छोड़ दी, उन्होंने शिरोमणि अकाली दल में शामिल होना स्वीकार किया, और राज्य विधानमंडल में तलवंडी सबो से चुने गए। वे राज्य सरकार में कृषि तथा वन मंत्री भी रहे। अमरिंदर सिंह जी ने सन 1992 में पार्टी अकाली दल से अपने आप को हटा लिया, और एक नई पार्टी ...

पंजाब मुख्यमंत्री का इस्तीफा | कैप्टन अमरिंदर सिंह का सिद्धू को लेकर बयान

  नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के मध्य कि रार चुनाव से कुछ ही समय पहले रंग दिखा गई, और साफ कर गई की आखिर यह रार कितनी गहरी थी। कांग्रेस हाईकमान हमेशा से बचाव में लगी रही वह कई मुलाकात पूर्व में पंजाब में पार्टी की गुटबाजी के लिए कर चुके, कभी नवजोत सिंह सिद्धू की राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात हो, या कैप्टन अमरिंदर सिंह जी की पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी से मुलाकात हो, किंतु हर कोशिश नाकाम रही और मुख्यमंत्री पद का इस्तीफा आखिर पंजाब के राजनैतिक रार का फल हुआ। कांग्रेस हाईकमान का ही फैसला होगा, कि आखिर मुख्यमंत्री पद को कौन पंजाब में होगा, यह कैप्टन का कहना है। किंतु उन्होंने साफ बोल में नवजोत सिंह सिद्धू को अयोग्य बताया है। उन्होंने कहा है, कि सिद्धू पाकिस्तान परस्त हैं, वह इमरान और भाजपा के साथ हैं, यदि वह मुख्यमंत्री बनता है, तो यह देश हित में नहीं है, वह इसे स्वीकार नहीं करेंगे। दूसरी ओ र उन्होंने यह भी कहा कि सिद्धू का यह सब करना उसकी मुख्यमंत्री पद की आकांक्षा ही है। अब कांग्रेस हाईकमान इन सब हालातों में कैसे राज्य में स्थायित्व ला सकेगी। कैप्टन अमरिंद...

उत्तराखंड में भाजपा की उभरती समस्याएं

पार्टी का नेतृत्व खेमा बड़ा होने से अब भाजपा की उत्तराखंड में चुनौती भी बड़ी है, कि वे सभी बागी हुए तथा योग्य, बुजुर्ग सभी नेताओं को मनोवांछित सीटों पर टिकट दे, जीत हो तो मंत्रिमंडल में जगह दे, मुख्यमंत्री का पद दें। वही भाजपा पार्टी के उत्तराखंड में पहले से ही दिग्गज नेता अपनी भक्ति, लंबे समय से पार्टी में होने के फल में अपने ही विचार को पार्टी का विचार मानने की मनः स्थिति में आ चुके हैं। 2016 में एक ओर पहले से ही कांग्रेस से बागी नेता अपनी मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी के लिए अधीर हुए हैं। भाजपा उन्हें भी अपनी पार्टी में ग्रहण कर पूर्णतः पकाने का काम कर रही हैं। किंतु वह बागी नेता तो राजनीति में अरसे से हैं, अतः अब इंतजार करना उन्हें लाजमी नहीं, और राजनीति में लंबे समय से होने के कारण अधिक अनुभव के कायदे से यूं तो उन्हें ही मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होना चाहिए, किंतु भाजपा के लिए तो वे इतने पुराने नहीं जितने कि वे राजनीति में पुराने हो चुके हैं। खैर एक ओर जहां नेताओं का भाजपा का दामन थामना हो रहा है। वही सीट पर यह समस्या होगी, कि टिकट दे किन्हें। पुरोला की ही सीट का हाल देखें कि विधायक र...