
गुप्त वंश के राजाओं में विदेश नीति को लेकर विवाह संबंध का अहम स्थान है। उन्होंने इसका उपयोग अपने राज्य के विस्तार और शासन के विस्तृत क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण संबंधों को कायम रखने के लिए किया। इस प्रकार के सन्धियों में गुप्त वंश के राजा चंद्रगुप्त प्रथम जिसने लिच्छिवियों की कन्या राजकुमारी कुमार देवी से विवाह कर लिया। इससे उसे आर्यव्रत में मान और गौरव प्राप्त हुआ। समुद्रगुप्त स्वयं को “लिच्छवी दौहित्र” अपने अभिलेखों में कहता है। अर्थात लिच्छिवियों की पुत्री का पुत्र और इस प्रकार अपनी मातृ संबंध को अपना गौरव दर्शाने का प्रयत्न करता है।
अर्थात वैवाहिक संबंध का परिणाम प्रभावपूर्ण था।
यह भी बताया गया है। कि चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र समुद्रगुप्त ने शकों और अन्य राजवंशों के शासकों से उनकी कन्याओं को उपहार स्वरूप ग्रहण किया था। इस तरह से निकटवर्ती राज्यों से संबंधों को अधिक मैत्रीपूर्ण बनाया गया।
ठीक इसी प्रकार चंद्रगुप्त द्वितीय ने एक नागकन्या राजकुमारी कुबेर नागा से विवाह कर अपना प्रभाव बढ़ाया। उससे उनकी एक पुत्री का जन्म हुआ। उसका नाम प्रभावती गुप्ता था। चंद्रगुप्त द्वितीय ने बड़ी समझदारी से अपनी पुत्री का विवाह वाकाटक राजा रुद्र सिंह द्वितीय से कर दिया और उससे एक मैत्री का और सहयोग संबंध स्थापित कर दिया। वाकाटकों से उसे लाभ हुआ। क्योंकि वाकाटक जिस भौगोलिक स्थिति में थे, वह गुजरात और सौराष्ट्र के पश्चिम क्षत्रपों के आक्रमण की दशा में उनकी सेवा या तिरस्कार का स्थान हो सकता था। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री वाकाटक शासक को सौंप यह सब अपने पक्ष में कर लिया। क्योंकि रूद्र सेन द्वितीय का काल छोटा रहा और उसकी मृत्यु के बाद उसके दो अव्यस्क पुत्र दिवाकर सेन और प्रवरसेन द्वितीय की संरक्षिका के रूप में गद्दी पर मुख्य रूप से शासन प्रभावती गुप्ता ने किया। उसने 390 से 410 ईसवी तक इसी रूप में शासन किया। यह चंद्रगुप्त द्वितीय के लिए एक अहम समय बन गया। जब उसने पश्चिम क्षत्रपों को प्रास्त कर उन्हें अपने साम्राज्य में मिला दिया।
विवाह संबंध गुप्तों की नीति का अहम अंग रहा। जो इतिहास के प्रश्नों में उनके सफल शासन का कारण प्रतीत होता है।