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शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

धैर्य की उपयोगिता Aug 1965 | Shantikunj Haridwar

   कोई भी काम करने में धैर्य की नितांत आवश्यकता है। जो धैर्यवान है, वह कर्म करने से पहले उसके शुभ अशुभ परिणाम पर विचार कर सकता है। उसको सफल बनाने के लिए मार्ग निर्धारित कर सकता है। अपने कर्म के सत्-असत एवं उपयोगिता-अनुपयोगिता पर सोच सकता है। इसके विपरीत जो अधैर्यवान है, आवेश अथवा उद्वेगपूर्ण है, वह ना तो कर्म की इन आवश्यक भूमिकाओं पर विचार कर सकता है और न दक्षता प्राप्त कर सकता है। वह तो अस्त-व्यस्त क्रियाकलाप की तरह एक निरर्थक श्रम ही होता है।

    अधैर्य मनुष्य का बहुत बड़ा दुर्गुण है। अधीर व्यक्ति में अपेक्षित गंभीरता का अभाव ही रहता है, जिससे वह चपलता के कारण समाज में उपहास, उपेक्षा और निंदा का पात्र बनता है। अधिक व्यक्ति के मन बुद्धि स्थिर नहीं रहते। वह न किसी विषय में ठीक से सोच सकता है और ना कर्तव्य का निर्णय कर सकता है। अधैर्यवान व्यक्ति अदक्षता, अस्त-व्यस्तता, अनिर्णयात्मकता एवं अक्षमता के कारण जीवन के हर क्षेत्र में असफल होकर दुख भोगता है इसके विपरीत जो धैर्यवान है, वह जिस कार्य को पकड़ता है, उसे पूर्ण मनोयोग, विवेक, बुद्धि और समग्र शक्ति लगाकर पूरा किए बिना नहीं रहता। धैर्यवान व्यक्ति कर्म करके उसके फल की प्रतीक्षा में व्यग्र नहीं होता, बल्कि फलाशक्ति से रहित होकर कार्य किया करता है।।

-अखंड ज्योति द्वारा 

24 अगस्त 1965

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -2

इससे पूर्व  ( गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन part -1 ) में हम जान चुके हैं। अब आगे…

इस परिसर को देख मुझे जो ख्याल आता है। जैसे इतिहास के पृष्ठों में हम यूं तो भारत के प्राचीन सभी धर्म किंतु विशेषकर बौद्धों के संघाराम तात्पर्य बौद्ध मठों या मंदिरों से है, जहां बहुत से व्यक्तियों के ठहरने का प्रबंध होता था। जहां वे लगातार निर्बाध अध्ययन करते रहते थे। पूरे भारत में ऐसे कई संघाराम होते थे। जो बौद्ध भिक्षुओं को संरक्षण व बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए होते थे। भगवान बुद्ध के बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद से और ईसा के जन्म के बाद जब तक मोटे तौर पर गुप्त वंश का साम्राज्य नहीं आया था। बौद्धों को खूब संरक्षण मिला।
कन्नौज का राजा हर्षवर्धन भी बौद्धों का ही मुख्य संरक्षक था। लेकिन पुष्यमित्र शुंग का प्रण की वह बौद्धों बिग को समाप्त कर देगा। दूसरी सदी ईस्वी में बौद्धों के एक ग्रंथ में बताया गया है, कि पुष्यमित्र ने कैसे एक संघाराम कुक्कुटाराम जो पाटलिपुत्र में था, को नष्ट कर दिया।वहां बौद्धों को कैसे मार दिया। यह भी एक प्रसंग बताया गया है।

शांतिकुंज के परिसर में वैदिक ऋषियों के नाम पर और विद्वानों के नाम पर भवन बनाए गए हैं। और ध्येय वाक्यों और विद्धानों की कही बातों को जगह जगह पर उकेरा गया है।

शांतिकुंज -संस्कारशाला

संस्कारशाला से आगे बढ़ते हैं। संस्कारशाला नाम से जो धर्मशाला का भी एक बड़ा हॉल है। जहां बड़ी संख्या में लोग आप पाएंगे। इसी संस्कारशाला में लोगों के शादी विवाह के कार्यक्रम भी संपन्न होते हैं। बड़ी संख्या में जोड़ें यहां विवाह को वैदिक परंपरा विधि विधान से बड़े सामान्य ढंग से संपन्न करवाते हैं। पंडित, मंत्रों का उच्चारण मंच से ही करते हैं, और सामने बैठे कई जोड़े का विवाह एक साथ संपन्न होता है। यह विवाह वैदिक विधान से संपन्न करवाते हैं। यह धूमधाम से विवाह के लिए आपको जगह नहीं देते हैं।

चित्र में -शांतिकुंज में विवाह

वहां के पुरोहितों की यह निष्ठा ही है, कि वह जिस प्रकार विवाह के अर्थ को और विवाह के लिए हर विधि विधान जो वे कर रहे हैं। उनके संदर्भ में स्पष्ट करते हुए समझाते जाते हैं। पति-पत्नी के धर्म की व्याख्या करते हैं। विवाह के अर्थ को स्पष्ट करते हैं।

संस्कारशाला के इस दीवार पर आप लिखा पढ़ सकते हैं। कि
|| वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ||
हम पुरोहित राष्ट्र को जागृत एवं जीवंत बनाए रखेंग

संस्कारशाला से आगे नचिकेता भवन जो एक बड़ी बिल्डिंग है। यहां भी बहुत से कपड़े बिल्डिंग के हर मंजिल में बाहर रेलिंग पर सूख रहे हैं। लगता है, यहां भी यात्री आदि या शांतिकुंज के विद्यार्थी, ब्राह्मण या स्वयंसेवी रहते होंगे। शायद कुछ लोग यहां के स्थाई रहने वाले भी हैं। वह भी इन भवनों में उपलब्ध कमरों में रहते होंगे।
नचिकेता भवन के मुख्य द्वार पर ही नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्र की सूचना का भी एक बोर्ड लगा है। तात्पर्य है, कि यहां दैनिक रूप से कार्यक्रम होते ही रहते हैं। शान्तिकुन्ज के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता है।

जगह जगह पर मार्ग के दोनों ओर तख्तियों पर मानव के लिये लिखे आलेखों द्वारा सीख दी जा रही हैं। ऐसा ही एक नचिकेता भवन के बाहर अखंड ज्योति द्वारा 1965 अगस्त 24 का लिखा आलेख “धैर्य की उपयोगिता” धैर्यवान होने की सीख देता है।।

आगे अगले खंड में शीघ्र….

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -1

चित्र में- शांतिकुंज परम तपस्वी ऋषियुग्म पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा

शांतिकुंज से पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का नाम याद आ जाता है। आपने इनका नाम भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा जो गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वाधान में अखिल विश्व गायत्री परिवार के सौजन्य से करवाई जाती है, के कारण जरूर सुना होगा। पूरे देश में इनकी शाखाएं और कई कार्यकर्ता होते हैं। और यह परीक्षा उन्हीं के द्वारा पूरे देश में संचालित होती है। संस्कृति ज्ञान परीक्षा की किताब जो हर छात्र को विद्यालय स्तर तक और सभी अन्य स्तरों पर होने वाली इस परीक्षा की तैयारी के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं। विद्यालय स्तर से अन्य सभी स्तरों पर विजेताओं को प्रथम द्वितीय और तृतीय स्तर के पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। उद्देश्य एक ही है, भारतीय प्राचीन संस्कृति के ज्ञान से नई पीढ़ी को अवगत करवाना।

चित्र में- शांतिकुंज परिसर मे प्रवेश के लिए एक द्वार

शांतिकुंज एक आश्रम एक धर्मशाला जहां कई लोग निशुल्क रुकते हैं, हरिद्वार में यह धार्मिक आकर्षण का एक मुख्य केंद्र है। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के विषय में यहां इस आलेख से पता चलता है कि-

चित्र में- गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के विषय में

  “शांतिकुंज परम तपस्वी ऋषियुग्म पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की तपोभूमि है। यहां 1926 से प्रज्वलित अखंड ज्योति, हर व्यक्ति के लिए उपयोगी युग ऋषि की लिखी 3200 पुस्तकें, गायत्री माता मंदिर, देवात्मा हिमालय मंदिर, ऋषियुग्म के समाधि स्थल दर्शनीय एवं आस्था के केंद्र हैं। करोड़ों साधकों द्वारा किए गए गायत्री मंत्र, जप, अनुष्ठान, यज्ञ संस्कार और यहां चलने वाले प्रशिक्षण शिविर इसे ऊर्जावान बनाते हैं। जाति लिंग भाषा प्रांत धर्म संप्रदाय आदि के भेदभाव के बिना मानव मात्र के लिए कल्याणकारी सर्वमान्य व विज्ञानसम्मत अध्यात्म चेतना का विश्वव्यापी विस्तार युग तीर्थ शांतिकुंज का प्रमुख अभियान है। शांतिकुंज का संकल्प है-

मानव में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण”


चित्र में- शांतिकुंज परिसर मे एक भवन

शांतिकुंज का परिसर एक वैदिक समाज का परिवेश तैयार करता दिखता है। शानदार उपयोगी वृक्ष वाटिका मुख्य मार्ग के दोनों ओर कम मात्रा में किंतु अलग-अलग प्रकार के होने से आकर्षण का भाग है। बहुत से लोग यहां निशुल्क रुके हुए हैं। यह धर्मशाला के रूप में भी है। कई लोग जो प्रतीत होता है, कि यहां के स्थाई हो गए हैं। लोगों ने अपने वस्त्र यहां मुख्य मार्ग के दोनों और सुखाने को धूप पर रखे हैं। जो एक बड़ा हॉल है, वही धर्मशाला है। जहां लोग अपने अपने सामान के साथ कोई जगह देख कर लेटे हैं, या बैठे हैं। कुछ लोग अंदाजा है, कि स्थाई रूप से यहां रह रहे होंगे, या कुछ लंबे समय से यहां होंगें। शायद वही लोग हैं, जो परिसर में चार पांच मंजिला भवनों में कमरे पाए हुए हैं।

चित्र में- शांतिकुंज द्वारा संचालित अन्य संसथान

परिसर काफी बड़ा है, धर्मशाला के अलावा बाकी अधिकतर क्षेत्र शांत ही है। शांतिकुंज के परिसर में ही लगभग मध्य में एक कैंटीन को भी जगह दी गई है। यहां लोग जो दैनिक रूप से श्रद्धालु या यात्री देखने आते होंगे वह कुछ फास्ट फूड खा लेते होंगे।

आगे गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -2 में…

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏