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सोमवार, 2 सितंबर 2024

2 Oct 1994 | रामपुर तिराहा कांड

फोटो स्त्रोत- https://images.app.goo.gl/LozKsV6fNdyRVqai8

सन 2003 में लेखक निर्माता अनुज जोशी जी के निर्देशन में एक फिल्म “तेरी सौ” बनाई गई जो कि उत्तरांचल अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन पर आधारित है। फिल्म में सक्षम जुयाल और पूजा रावत मुख्य पात्र नाम क्रम से मानव और मानसी हैं। जो डीएवी कॉलेज देहरादून के छात्र होते हैं। मानव उत्तराखंड आंदोलन में सेलाकुई के शहीद 15 वर्षीय सत्येंद्र चौहान के चचेरे बड़े भाई की भूमिका में होते हैं। 

डीएवी कॉलेज देहरादून तब छात्र एकता में उत्तराखंड आंदोलनकारियों का गढ़ हुआ करता था। डीएवी पीजी कॉलेज के छात्र दबंग माने जाते थे। हालांकि मानव और उसके साथियों का गांधीवादी विचार और शांतिपूर्ण ढंग से राज्य आंदोलन को आगे बढ़ाने वाला दिखाया गया है। मदन डुकलान जी के लिखे गीतों ने फिल्म को अधिक खूबसूरत बना दिया। फिल्म के गीत “मेरी जन्मभूमि मेरो पहाड़”,  “ले मशाले चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरी गांव के”,  “गढ़वाली अंताक्षरी”,  “तेरी सौं”, धार मा सी जून मुखड़ी च तेरी”,  “सौं उठोला कठ्ठा होला चला दिल्ली जोंला गढ कुमों द्वी हाथ बोटी हक अपड़ो ल्योला”,  “हक का बाना ह्वे गीं शहीद हमरा लाल देखी ल्या”,  “आंदी जांदी सांस छै तू  मेरा ज्यूणा की आश छै तू”।

जुयाल इस फिल्म में डीएवी छात्र के रूप में काफी रोचक पात्र है। उसका हर लब्ज गढ़वाली बोली और टोन में है। उसकी एक प्रेमिका भी है। मानव को जो लड़की पसंद होगी, वह पहले तो गढ़वाली बोल सकने वाली हो, गांव में रह सके, कॉलेज की पढ़ी लिखी, और घास भी काट सके।

मानव गांधीवादी विचारों को अनुसरण करने वाला छात्र हैं, वह आतंकवाद पर कहता है, कि हथियार उठाने वाला कैसा बुद्धिजीवी वह तो देशद्रोही है।

1 और 2 सितंबर 1994 के वे दिन जब खटीमा और मसूरी में आंदोलनकारियों के प्रदर्शन को गोलियों से शांत करने की कोशिश की गई, शहीदों के रक्त ने ऐसा मानो कि पूरे उत्तराखंड को बलिदान हो सकने का बल दे दिया हो। सारे उत्तराखंड में हड़ताल प्रदर्शन स्कूलों से कॉलेजों तक संस्थान बंद कर सड़कों पर भीड़ जमा होने का दौर था। अब आंदोलनकारी राज्य की आवाज दिल्ली तक प्रखर करने को स्वयं वहां पहुंचकर प्रदर्शन की योजना में थे। दिन तय किया गया। छात्रों ने भीड़ जुटाने का जिम्मा अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग गुटों में सौंप दिया। सर्वाधिक महत्वपूर्ण कि आंदोलन हर बूढ़े, बच्चे, जवान, पुरुष हो या महिला की मजबूत भागीदारी लिए था।

30 सितंबर 1994 को मेरठ मंडल के कमिश्नर साहब ने हरिद्वार, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और मेरठ के जिलाधिकारियों को दिल्ली जाने वाली बसों की चेकिंग के निर्देश दिए। 2 अक्टूबर को पर्वतीय शक्ति ने दिल्ली में प्रदर्शन की दिनांक तय की थी। कमिश्नर का निर्देश था, कि जितना हो सके बसों से आंदोलनकारियों को मना कर वापस रवाना किया जाए। जो अधिक जिद पर अड़े रहे तो उन्हें जाने दिया

जाए। किंतु इन सब में सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्देश जो रिकॉर्ड दर्ज है, मेरठ रेंज के डीआईजी बुआ सिंह जिन्होंने हरिद्वार मुजफ्फरनगर सहारनपुर पुलिस अधीक्षकों को किसी भी कीमत पर आंदोलनकारियों को रोकने गिरफ्तार करने के आदेश जारी किए। 

वह आदेश यूं कहें कि उस दिवस को उत्तराखंड के संपूर्ण इतिहास में काला कर देते हैं। पुलिस को उस समय पर गढवाल से आने वाले बसों और उनमें सवार आंदोलनकारियों पर विशेष ध्यान था। विशेषकर देहरादून से निकले आंदोलनकारियों पर रोक पुलिस की पहली कोशिश थी। क्योंकि देहरादून आंदोलनकारियों का केंद्र हो चुका था।

गढ़वाल से दिल्ली जाने के लिए मार्ग हरिद्वार से सहारनपुर होकर था, और वही कुमाऊं से जाने वाला मार्ग बिजनौर और बरेली से होकर था। पुलिस और प्रशासन का मुख्य ध्यान गढवाल वालों को काबू करना था। उस दिन परेड ग्राउंड में बसों की बड़ी संख्या और उनमें लोगों की हजारों की संख्या में ऐसे जमावड़ा लग गया था, कि जैसे सारे उत्तराखंड का मानव जीवन वहीं आकर रुक गया हो।

चमोली और उत्तरकाशी से बस ठीक समय पर निकल गई थी। किंतु देहरादून से दिल्ली उतना दूर नहीं यह सोचकर देहरादून से बसें शाम को रवाना होती हैं। जब तक कि चमोली और उत्तरकाशी की बसें हरिद्वार पार कर मुजफ्फरनगर की ओर निकल चुकी थी।

बहादराबाद और मोहन पुलिस चौकी पर आंदोलनकारियों को रोक की अड़चन झेलनी पड़ी। ऋषिकेश-हरिद्वार दिल्ली मार्ग पर बहादराबाद पुलिस चौकी के रोक ने डेढ-दो किलोमीटर की लाइन में बसों को जमा कर दिया। एक भारी पुलिस बल के बावजूद आंदोलनकारियों का विशाल जत्था रोक पाना नामुमकिन था। रास्ता खोल दिया गया, और आंदोलनकारी अपनी राह पर पर चल पड़े।

देहरादून-दिल्ली मार्ग पर मोहन पुलिस चौकी पर से कुछ बसों का वापस भेजा जा चुका था, किंतु वह भी पीछे से आ रहे जत्थे के साथ हो लिए। पचास से अधिक बसें और उनमें सवार तीन हजार से अधिक आंदोलनकारी जिसमें डीएवी के छात्रों का बड़ा समूह, अन्य आंदोलनकारियों का समूह दिल्ली को रवाना हुआ था। बैरियर तोड़ दिए गए और पुलिस की मौजूदगी को नाकाम कर दिया गया।


पुलिस ने मोहन और हरिद्वार से निकल चुके आंदोलनकारियों को नारसन में रोकने का पुख्ता इंतजाम कर लिया। किंतु नारसन में हरिद्वार और देहरादून दोनों मार्गों से पहुंचे आंदोलनकारियों का विशाल जत्था जमा हो गया, लगभग डेढ़ सौ से अधिक बसों मैं हजारों आंदोलनकारी और जमा कर दिया, पुलिस ने आगे की बसों के शीशे तोड़ दिए, आंदोलनकारी छात्रों से अभद्रता पर पुलिस पर पथराव प्रारंभ हो गया, वहीं कुछ अज्ञातों ने खड़ी बसों और ट्रकों को आग लगा दी, वह यूपी पुलिस के ही जवान थे। छात्रों और अन्य आंदोलनकारियों ने लगभग 200 पुलिस सिपाहियों पर पथराव किया, और उन्हें वहां से दौड़ा कर भागने को मजबूर कर दिया। पुलिस को काफिला रोक पाना संभव नहीं था।

काफिला आगे बढ़ता रहा, किंतु अगले ही नाके पर फिर पुलिस की कोशिश जो आंदोलनकारियों को कैसे भी कम से कम संख्या में प्रदर्शन तक पहुंचाने की थी, को लेकर इंतजाम किया गया। जिसमें रोक लगाई गई, और कहा गया कि इतनी बसें एक साथ नहीं जा सकती।  चार चार कर बसें आगे निकलेंगी। चमोली की बसें पहले मुजफ्फर के पहले के तिराहे पर जा पहुंची। यह तिराहा उत्तराखंड को अहिंसा दिवस पर राजनीति और प्रशासन का सबसे घृणित चेहरा दिखाने वाला था।

तिराहे पर पहले पहुंची बसों में पुलिस ने घुसकर भीतर बैठे पुरुषों जिन में भूतपूर्व सैनिक और अन्य आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसानी प्रारंभ कर दी। बड़े पुलिस बल के चलते आंदोलनकारियों ने जाकर गन्ने के खेतों में शरण ली। बसों में शेष बची महिलाओं और युवतीयों जिन्हें सुनसान जगह पर ले जाकर अभद्रता की गई, उनके कपड़े फाड़ दिए गए। यह रात के अंधेरे में कितना निरंकुश और बर्बर है, जहां पुलिस की पोशाक में मानव तो नहीं है।


पीछे की बसों को अब रोक पाना मुश्किल हो रहा था, जब वह रामपुर तिराहे पर आ पहुंचे तो तीन सौ बसों का विशाल जमावड़ा वहां जनसैलाब ले आया। रात्रि का चौथा पहर था। अंधेरा बहुत था।

तेरी सौं फिल्म दिखाती है, कि जब मानव और उसके साथियों की बस रुक जाती है, तो मानव बस की छत में चढ़कर आगे जाम का कारण देखने की कोशिश करता है, तो मालूम चलता है कि आगे बहुत सारे छात्र आंदोलनकारी पथराव कर रहे हैं। मानव अपने साथियों के साथ उन लोगों तक पहुंचता है, और एक को चिल्लाकर कहता है,  “तुम पथराव क्यों कर रहे हो तुम पागल हो गए हो क्या”  तब वह छात्र जवाब देता है,  “हां मैं पागल हो गया हूं क्योंकि पुलिस हमारी पर्वतीय महिलाओं को उठाकर ले गई है”। मानव को इस बात पर विश्वास नहीं होता है।

क्योंकि रात के अंधेरे में आंदोलनकारियों को सारी घटना के विषय में कुछ समझ नहीं आता है। कुछ को घटना मालूम ही नहीं हो पाती है। किंतु सुबह हुई और घायल हुए आंदोलनकारी अब मिलने लगे रात को हुई घटना अब आग की तरह सभी आंदोलनकारियों में फैलने लगी। महिलाओं और युवतियों को जिनके साथ अभद्रता हुई जिनके कपड़े फाड़ दिए गए स्थानीय लोगों ने उन्हें वस्त्र दिए जो सुबह सब कुछ जान कर मदद करते हैं।

यह सब जानकर छात्रों का बड़ा जत्था अब पुलिस पर टूट पड़ा। साढे छः बजे का समय और छात्रों पर आंसू गैस के गोले दागे जाने लगे। आंदोलनकारी धैर्य खो चुके थे। लगभग छः बजकर पचास मिनट पर वहां बिना चेतावनी गोलियां चलनी आरंभ हो गई। पहाड़ी लोगों के लिए लोकतंत्र का यही न्याय था, जिसके चलते उनके साथ दागी गई बंदूक की गोलियों से पेश आया गया। उस फायरिंग ने राजेश लखेरा, रविंद्र रावत, गिरीश भत्री, बलवंत सिंह, सूर्य प्रकाश तपड़ियाल  की जान ले ली, घायल अशोक कौशिक जिन्हें चंडीगढ़ पीजीआई में भर्ती कराया गया, उनका वहीं देहांत हो गया। बंदूक से निकलती बेजान गोलियां और लाठियां पीड़ा का एहसास कर रही हैं, किंतु उन्हें थामे मानव के सेवकों के हाथ नहीं कांपे। वहीं विकास नगर की बस में 15 साल के सेलाकुई के सत्येंद्र चौहान भी थे, जब पुलिस और आंदोलनकारियों के टकराव में झुककर पत्थर उठा रहे थे, तभी पुलिस की गोली विकास नगर के ही विजय पाल सिंह रावत के पैर को भेदती हुए सीधे जाकर सतेंद्र के सिर पर लगी। वे शहीद हो गए। यह कितना भावुक कर देने वाला है।

यह दहशत की काली रात के बाद की सुबह थी। अहिंसा का दिन। जिन औरतों की आबरू पर हाथ डाला गया और जिन हाथों का यह घिनौना कृत्य था, उनके विरोध में उठे स्वरों को हमेशा के लिए दबा दिया गया। फिल्म में दिखाया गया है, कि जब मानव सुबह अपने साथियों से अपने भाई के विषय में पूछता है। वह उसे बताते हैं, कि मैंने उसे देखा है, और वह अपने गांव के लोगों के साथ ही है। किंतु मानसी का कोई पता नहीं।

इस घटना के दौरान आंदोलनकारी अपने घायल साथियों को रुड़की के अस्पताल के लिए रवाना कर रहे थे। हजारों लोग जख्मी हो गए। जब रुड़की में घायलों की बड़ी संख्या पहुंचने लगी। और यह देख कर रुड़की के स्थानीय पर्वतीय लोगों ने पुलिस थाने पर धावा बोल दिया। पुलिस थाना छोड़कर भागने लगी। चश्मदीद कहते हैं, कि घायलों की बड़ी संख्या वहां अस्पताल में दर्द से कराह रही थी, स्थानीय पर्वतीय गढ़वाली कुमाऊनी महिलाएं उनके घावों को सहला रहीं थी।

जब रुड़की के अस्पतालों में बड़ी भीड़ जमा होने लगी, तो एसडीएम श्रीवास्तव ने यह आदेश दिया कि लोगों को हटाया जाए, और एक और निरंकुश हुकुम जो कि उन पर लाठीचार्ज तक कर देने का था, कितनी अमानवीय को प्रस्तुत करता है। वहां खड़े एक गढ़वाल राइफल के जवान जो छुट्टी पर घर थे, ने यह सुना उन्होंने अपनी बेल्ट उतारकर एसडीएम श्रीवास्तव की वहीं जमकर पिटाई कर दी, और कहते रहे कि तुम लोगों ने हमारी जान मसूरी, खटीमा और रामपुर तिराहे पर ली है, अब अस्पताल में भी हमारी जान लोगे। एसडीएम श्रीवास्तव मदद के लिए चिल्लाता रहा। किंतु पुलिस के किसी एक सिपाही की इतनी हिम्मत ना हो सकी, की वह कदम आगे बढ़ाए।


राजनेता और प्रशासन एक ओर था, आंदोलनकारी पहाड़ियों को मानव भी नहीं समझा गया। थानाध्यक्ष चपार राजवीर सिंह और थानाध्यक्ष पुरकाजी दाताराम ने डॉक्टर प्रीतम सिंह से मिलकर ऑपरेशन के दौरान घायल सिपाहियों में छर्रे भीतर लगावा दिए। ताकि आंदोलनकारियों पर आरोप लगाया जा सके, कि उन्होंने गोलियां दागी है। राजनेताओं का एक कर्तव्य जवाबदेही उनसे क्या नहीं करवाती यहां स्पष्ट है।

इस घटना ने आंदोलनकारियों को वही जमा कर दिया, तिराहे पर हजारों आंदोलनकारी धरने पर बैठ गए। बीस हजार से अधिक गढ़वाली लोग वहां उपस्थित थे। वह सुबह से भूखे प्यासे किंतु आसपास के लोगों ने मदद की घायल लोगों और आंदोलनकारियों के लिए कई ट्रैक्टर भरकर भोजन उपलब्ध करवाया। देहरादून तक जैसे खबर पहुंची, पुलिस थानों को आग के हवाले कर दिया गया। पूरे उत्तराखंड में आग लगाकर और पुलिस का विरोध प्रारंभ हो गया। 3 अक्टूबर 1994 का दिन देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, श्रीनगर, उखीमठ, गोपेश्वर, देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, में कर्फ्यू का ऐलान था। किंतु यह मात्र ऐलान तक सीमित था, सड़कों पर आंदोलनकारियों कि कोई रोक नहीं थी। पुलिस नदारद थी। जब पुलिस चौकियों को आग के हवाले कर देने का सारे उत्तराखंड में जैसे मुहिम चल पड़ी, तो पुलिस ने कई जगहों पर गोलियां चलाई। फायरिंग में शहादत रामपुर तिराहे तक सिमट नहीं गई थी। बल्कि देहरादून में फायरिंग से राजेश रावत और दीपक वालिया शहीद हो गए। कोटद्वार में पृथ्वी सिंह बिष्ट और राकेश देवरानी शहादत को प्राप्त हुए नैनीताल में प्रताप सिंह बिष्ट शहीद हो गए। यह शहादत केवल उत्तराखंडयों के भविष्य के लिए थी, क्योंकि लोकतंत्र और प्रशासन तो दुश्मन होकर गोलियां दाग रहा था।


मुलायम सिंह प्रशासन का तो यह तक बयान था, कि रात सुनसान जगह महिला बाहर होगी, तो रेप होगा। 2006 में बुआ सिंह को उत्तर प्रदेश का पुलिस महानिदेशक बनाया गया, और उत्तराखंड जैसे सब कुछ भूल गया। ऐसा प्रतीत होता है, कि उत्तराखंड हमें भेंट में मिला हो, हमें यह तय करना था, कि उत्तराखंड शहादत का फल है, और उस शहादत के कारक कैसे जीवन में उपलब्धियां हासिल किए, कैसे सामान्य जीवन जिये। उस शहादत का अंजाम सब कुछ भूलना तो नहीं।

तत्कालीन मुख्यमंत्री के इस बयान का भी तेरी सो फिल्म में जिक्र है, कि मैं उनकी चिंता क्यों करूं, उन्होंने मुझे दिया ही क्या है, सिर्फ एक विधायक।

मानव अपने भाई की शहादत के बाद अपने मूल विचार से डगमगा जाता है। जब उसका साथी पत्रकार बडोला उससे पूछता है, कि मानव यह हथियार तुम्हें किसने दिए, वह कौन था, क्या तुम उसे जानते हो। मानव जवाब में ना कहता है। तो बडोला उसे कहता है, कि वह हथियार तुम्हें देशद्रोही ने दिए हैं, और हमारा रास्ता हथियार नहीं है। तब मानव कहता है, देश, लोकतंत्र सब छलावा है। बडोला अब मानव का साथ छोड़ देता है। क्योंकि वह आज भी शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों पर विश्वास रखता है।

फिल्म का एकमात्र फाइट सीन जब मानव एक पुलिस कर्मचारी जम्बू सिंह को अपने साथियों के साथ मिलकर पीटता है। मानव के स्थितियों के साथ बदले विचारों को दर्शाता है।

जब मानव को प्रोफ़ेसर पाठक अपने यहां बुलाते हैं, उससे उसकी योजना के विषय में जानने के लिए, तो प्रोफेसरों उसे समझाते हैं, उससे सवाल करते हैं, कि तुम्हें इस काम के लिए एक बड़ा ग्रुप जोड़ना होगा, तुम पचास, साठ लोग जोड़ोगे किंतु इकसठवें के विषय में तुम्हारी क्या राय है, क्या तुम मुझे वचन दे सकते हो, कि वह इकसठवां आदमी तुम्हारे दिए हथियार का दुरुपयोग नहीं करेगा, निर्दोष का शोषण नहीं करेगा, अबला की इज्जत नहीं लूटेगा। डाकुओं का ग्रुप गिरोह तुम्हारे एसोसिएशन के नाम पर किसी को फिरौती के लिए नहीं उठाएगा। यदि तुम मुझे वचन दे सकते हो, तो हां मैं प्रोफेसर पाठक तुम्हारे साथ सबसे पहले हथियार उठा लूंगा। 

मानसी भी मानव को उसके बदले हुए विचार को लेकर समझाती है। वह उसे भी औरों की तरह एक ऐसा पुरुष बताती है, जो सोचता है, कि महिलाओं पर हुए जुल्म का बदला सिर्फ पुरुष ले सकता है, वह उसे पुरुष प्रधान समाज का एक तत्व बताती है।

आखिर में मानव सत्याग्रह मार्ग पर होता है। वह हथियार उठाता है, किंतु वार नहीं कर पाता। उसे एहसास होता है। कि हथियार से लड़ी लड़ाई कभी खत्म नहीं होती। मेरी एक गोली दागना कल मेरे समाज में उनकी दस गोलियां दागना लेकर आएगी।।

बुधवार, 15 नवंबर 2023

वर्ल्ड क्रिकेट सेमीफाइनल IND vs NZ | विशेष लेख

वर्ल्ड क्रिकेट सेमीफाइनल IND vs NZ

भारतीय क्रिकेट टीम वानखेड़े स्टेडियम की ओर रवाना हो रही है। हर चेहरा कितना मशहूर है, और खुश भी। वह सब कितने शानदार और सुंदर हैं। लेकिन उन्हीं चेहरों के पीछे जिम्मेदारियां का कितना भार है, अगर उनमें कोई उस भार को महसूस करने लगा हो तो अवश्य ही वह छुपाते छुपाते भी ना छुपा सकेगा।

संपूर्ण भारत क्रिकेट का विशाल स्टेडियम है। तमाम विषयों में रुचि रखने वाले भारतीय, क्रिकेट के लिए विशेष रूप से समर्पित हैं। इसका प्रमाण है, दुनिया के किसी मैदान में क्रिकेट के लिए, भारतीय टीम के समर्थन के लिए भारतीयों की संख्या। यह हमेशा से गौर करने वाली है।

हर भारतीय खिलाड़ी उस संख्या का सीधा भरवाहक है। वह हर खिलाड़ी जो क्रिकेट के लिए मशहूर है, जो भारतीय टीम का हिस्सा है, उसका स्वप्न है यह एक मैच खेलना, इस मैच में जीत की वजह बनना। नये खिलाड़ियों के लिए तो बड़ी चुनौती है और बाकी जो चेहरा जितना मशहूर उतनी आशाओं का वाहक।

मैं उन्हीं चेहरों को पढ़ने का प्रयास कर रहा हूं, जिन्हें भारत के लिए आज मैदान पर उतरना है। लेकिन आप वहां केवल सहजता और वैल कम्फर्ट पाएंगे, और यही है जो उन्हें भारतीय टीम का हिस्सा बनाता है। वह हर खिलाड़ी हमेशा की तरह है, क्योंकि वह जिन रास्तों को पार कर यहां पहुंचे हैं, वहां वे उन सब भावों को छोड़ आए हैं। इसलिए एक सामान्य व्यक्ति की तरह इस मैच की अहमियत उनके मैदान पर प्रदर्शन को प्रभावित नहीं करेगी, और ना ही उनके चेहरे के भावों को।

यह हार्ड प्रेशर नॉकआउट मैच आपको प्रभावित नहीं करता। आप हमेशा की तरह ही खेलना चाहते हैं। मैदान पर उतरने के बाद तुरंत ही रोहित शर्मा के दो चौकों ने साफ कर दिया कि हम जहां हैं वह क्रिकेट की सर्वोत्तम स्थित है, और हम तैयार हैं…

अमोल पालेकर | फिल्म अपने पराये से

अमोल पालेकर


सादगी और केवल सादगी असल में अमोल पालेकर ने यही तो पेश किया है। अपनी लगभग हर फिल्म एक आदर्श गुणी पुरुष की भांति ही दिखे हैं। इन्हें नेक्स्ट डुअर पर्सन कहा गया। क्योंकि इनकी आवाज और अभिनय ने हर दूसरे व्यक्ति को अपने आप से मिलाया।


एक मृदंग को बजाते हुए अमोल जाने कब बड़े हो गए, यह वे खुद भी नहीं जान पाए। लेकिन वे इन सब बातों की सुध नहीं लेते। आज से 30 साल पहले एक अच्छे मध्यम वर्गीय परिवार में दो भाइयों के बाद उनका जन्म हुआ था, बहुत सुंदर मृदंग बजाते हैं अमोल। प्रातः होने के साथ उनकी ताल छिड़ जाती है। घर के सभी बच्चे दौड़कर चाचा की ओर बढ़ते हैं, और अमोल एक सुंदर भजन गाते हैं। उनकी भाभी पूजा करती हुई और साथ ही अमोल के भजन।

यूं तो अमोल का विवाह भी हो गया है, और वह एक खुशमिजाज और बेफिक्र व्यक्ति हैं। लेकिन यहां बेफिक्री उसकी पत्नी के लिए असहज है। हालांकि वह बहुत समझदार और शील स्त्री है, घर की लगभग सभी जिम्मेदारियां उसी के हाथों में हैं। लेकिन साथ ही वह एक स्वाभिमानी स्त्री है, और केवल इस बात से चिंतित है, कि उसका पति अमोल किसी काम को गंभीरता से नहीं लेता। यही है कि वह कुछ भी कमा कर घर नहीं लाता। इससे घर का खर्चा बड़े दो भाइयों की ही कमाई पर है। अमोल की पत्नी घर के खर्चे में योगदान न होने के चलते जिठानियों के साथ कई बार असहज महसूस करती है। कई बातें उसे चुभती हैं, और वह जो बेहद स्वाभिमानी है, यह भाव उसे चिंतित करता है।

लेकिन वह अमोल को कुछ बोल भी नहीं पाती। हां बार-बार समझाने का प्रयास करती है, अपना दुख व्यक्त करती है। लेकिन कभी क्रोध नहीं जताती, इसलिए क्योंकि अमोल एक कोमल हृदय व्यक्ति है। काम नहीं करता यह सबसे बड़ा दोस है अन्य तो उसमें कई ऐसे गुण हैं जो बेहद दुर्लभ हैं। उसका सादा व्यक्तित्व और उसी से सधी आवाज सीधे मन में प्रवेश कर जाती है। वह एक सरल पुरुष है, बस वह किसी काम को कमाई का जरिया बना ले तो उसकी पत्नी हर प्रकार से अपने आप को सहज महसूस करे।।

मंगलवार, 14 नवंबर 2023

महेंद्र सिंह धोनी | भारतीय क्रिकेट का सितारा

रेलवे प्लेटफार्म की बेंच पर बैठा युवा इंतजार कर रहा है। वह जीवन की सफलता के लिए प्रकाश चाहता है, जो उसकी राह प्रसस्त करे। वह असमंजस में है, कि वह अपनी रेलवे की नौकरी त्याग दे या नहीं।
वहां परिवार बड़ी आश बांधे है, की पुत्र रेलवे में नौकरी पा गया है भविष्य सुरक्षित है। लेकिन महेंद्र इतने में संतुष्ट नहीं है, क्योंकि वह जीवन भर अब तक क्रिकेट के लिए समर्पित रहा है। वह एक श्रेष्ठ खिलाड़ी है। लेकिन योग बनते नहीं दिखे कि वह भारत के लिए खेले।

यहां इस बेंच पर बैठा महेंद्र इसी के मध्य उलझा है, कि वह किस तरफ बढ़े। एक ओर तो वह रेलवे की नौकरी कर सकता है। वहीं दूसरी ओर क्रिकेट उसे बुला रहा है। वह आगे बढ़ना चाहता है। एक और उसके परिवार की आशाएं और खुशियां हैं, जो कहीं तो पूरी हो गई है, जबकि वह रेलवे में सरकारी नौकरी कर रहा है। लेकिन दूसरी ओर उसका मन स्थिर नहीं है।

आती ट्रेन को देख वह स्पष्ट होता गया और भी अधिक कि उसे किस राह पर चलना है। रेलवे की नौकरी के बाद वह रोज खेलता तो है, लेकिन यह उसे कहीं लेकर नहीं जा रहा, वे खिलाड़ी जो रणजी में उसके साथ खेले उनमें कई आज भारतीय क्रिकेट के सितारे हो गए हैं।
ट्रेन उसकी तरफ बढ़ रही है, ट्रेन की हेडलाइट उसके लिए क्रिकेट स्टेडियम के लाइट्स की तरह बनती चली गई। ट्रेन का शोर उसके नाम के शोर में तब्दील हो गया, जैसे कि वह भारतीय टीम के लिए क्रिकेट के मैदान पर उतर रहा हो एक महान पारी के लिए और वह दौड़कर ट्रेन को पकड़ लेता है। और चल पड़ता है, अपनी नौकरी को हमेशा के लिए छोड़कर जरूर अपने परिवार की उन खुशियों को तोड़कर लेकिन वह आगे निकलना चाहता है।
भारतीय क्रिकेट के लिए उसे बहुत करना है। उससे सब का पसंदीदा खिलाड़ी कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धोनी बनना है, और वह बना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट कप्तानों में एक श्री महेंद्र सिंह धोनी।।

शनिवार, 11 नवंबर 2023

हजारों असफलताओं की सफलता | एडिसन

थॉमस अल्वा एडिसन
थॉमस अल्वा एडिसन एक बहुत ही चर्चित नाम। वे केवल वैज्ञानिक जगत में बड़े आविष्कारों के लिए नहीं जाने जाते, बल्कि उनका जीवन एक प्रेरक कहानी के तौर पर भी पेश किया जाता है। इसका श्रेय उनकी माता को भी जाता है, कि एडिसन एक बेहद जिज्ञासु और लग्नशील व्यक्तित्व को प्राप्त करते हैं।

स्कूल के समय पर एडिसन बेहद एकांत प्रिय छात्र थे, साथ ही वह जिज्ञासु प्रकृति के थे, तो अपने गुरुजनों से बिल्कुल अटपटे सवाल करते। इन सब सवालों के जवाब तो दिए भी जा सकते थे, और शायद नहीं भी। लेकिन शिक्षकों द्वारा उनकी इस उत्सुकता को बढ़ावा न दिया जा सका। उनकी माता को विद्यालय बुलाया गया और एडिशन के शिक्षकों के साथ व्यवहार की शिकायत की गई। तब तक एडिशन छोटा बालक था।

अगले कुछ ही दिनों में एडिशन एक पत्र के साथ घर लौटा, मां को वह पत्र लाकर सौंप दिया कि स्कूल से प्राप्त हुआ है, एडिशन तब तक पूरा पढ़ना भी नहीं जानते थे, तो मां से उस पत्र में लिखा हुआ जानना चाहते थे।

  उस पत्र को पढ मां की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने एडिसन को बताया कि इस पत्र में लिखा है, कि हमारे स्कूल में एडिसन एक बेहद बुद्धिमान छात्र है। वह एक जीनियस है। किंतु हमारे विद्यालय में एडिसन को पढ़ाने के लिए उतने ही जीनियस शिक्षकों की आवश्यकता है, जिनका यहां अभाव है, इसलिए एडिसन इस विद्यालय में नहीं पढ़ सकता है।

हालांकि यह सब जो एडिसन की मां ने एडिसन को बताया, झूठ था।

लेकिन यहां एडिसन का मनोबल जरूर बढ़ता है। उसे दिशा मिलती है। वह घर में ही कई प्रयासों को आरंभ करता है। छोटे-छोटे आविष्कारों के लिए लगातार कोशिशें। एक समय के बाद एडिशन रुपए कमाने के लिए अखबार बेचने का काम करते हैं, और वहीं से केवल 14 साल की उम्र में ही अपना प्रिंटिंग प्रेस तक स्थापित करते हैं।

आगे उनकी मेहनती, जिज्ञासु और लग्नशील प्रकृति उन्हें आविष्कारों की दुनिया में ले आई। यूं तो उन्होंने अपने जीवन में सैकड़ो आविष्कार किये, लेकिन सर्वाधिक प्रसिद्ध आविष्कार बिजली का बल्ब है। जो 1879 में उनके द्वारा बनाया गया। हालांकि यह एक विवादपस्त विषय रहा, कि उनसे पहले ही यह बल्ब वह वूवकूंतक और मअंदे ने बना लिया था। हां उन्होंने पेटेंट नहीं करवाया था। लेकिन यह बल्ब कुछ ही घंटे जलता था। वहीं एडिसन का बल्ब लगभग 10 घंटे जलने में सक्षम था। वह बल्ब वास्तव में बड़ा प्रकाशमय था। उतना ही जितना की एडिसन के प्रयास थे। कहा गया कि इस बल्ब के आविष्कार में एडिसन ने हजार प्रयास किये, और तब यह प्रकाश मिला।

इन सफलताओं के बाद एडिसन पूरी दुनिया के चर्चित नामों में शामिल थे। एक दिन अलमारी में उन्हें वह पत्र मिला जो स्कूल से वे लाए थे, उन्होंने पढ़ा तो उस पर लिखा था, कि एडिशन को विद्यालय के शिक्षकों के साथ व्यवहार के चलते स्कूल से निकाल दिया गया है।

एडिसन उन लोगों में हैं जो नामी कॉलेजों से डिग्री तो हासिल न कर सके, लेकिन उनके नाम पर कई किताबें कॉलेज में पढ़ी जाती हैं।।

मंगलवार, 7 नवंबर 2023

संस्कृतियों का उदय | विशेष लेख

दुनिया एक गति के साथ है। यह केवल धरती का घूमना सूरज के चारों ओर चक्कर लगाना मात्रा नहीं है, बल्कि धरती से बाहर उस ब्रह्मांड की गति, वहां हर कारण जो अपना चक्र पूरा कर रहा है। साथ ही धरती के भीतर हर प्राणी हर वस्तु और पदार्थ अपना समय बिता रहे हैं। यह सब एक चक्र में है और एक गति से प्रेरित हैं।

यह पदार्थ प्राणियों के संबंध में है। क्या यह मानव सभ्यताओं और संस्कृतियों के लिए भी सत्य है, कि वह भी एक चक्र में है, और एक चक्र पूरा कर लेने के बाद उनका काल भी समाप्त हो जाएगा।

हजारों साल पुरानी कोई सभ्यता यदि आज भी प्रासंगिक है, तो यह वह दूरदृष्टि है जो तब हजारों साल पहले आने वाले हजारों सालों के लिए स्थापित की गई, और लोग तब से आज तक उसका निष्ठावान अनुसरण करते हैं। दुनिया की गति के साथ या इस बीते समय के साथ स्थितियां और जीवन जीने के लिए साधन और विकल्प भी बदल रहे हैं।

यह बात तो स्वीकार करनी होगी, की सभ्यताएं तभी पनपती हैं जब मानव अपने लिए मूलभूत आवश्यकता के संसाधन जुटा पा रहा हो। भूखे और प्यासे व्यक्ति के लिए अन्न जल का मिल जाना ही सबसे बड़ी बात है, हर भोजन की तलाश में भटकते संसार के किसी भी अन्य प्राणी की ही भांति।

इस प्रकार सभ्यता पनपने के लिए आवश्यक है, कि वह प्राणी मूलभूत आवश्यकता के साधनों को प्राप्त कर पा रहा हो, अन्यथा भोजन के लिए द्वारा द्वारा भटकते किसी जानवर की जाति में क्यों सभ्यता नहीं पनप जाती। 

दरअसल आरंभिक विषय किसी भी प्राणी जाति के लिए जीवन जीने के लिए साधन जुटाने का ही है। यही सवाल है जो जन्म के बाद किसी प्राणी को गति देता है।

आज जहां हम हैं, मानव जाति जो अनेक सांस्कृतिक भूमिकाओं में बंटी हुई है। लड़ाई इस प्रकार भी है कि सभी एक ही संस्कृति को सर्वोच्च मान लें, उसे स्वीकार करें। इस प्रकार तो यह बड़ी लड़ाई है, और संभव दिखती नहीं।

लेकिन कौन संस्कृति है, जो अपने आपको जीवित रख सकेगी। एक तो वह जो सबसे अधिक दूरदृष्टि को दर्शा रही है, और दूसरी जो समय के साथ स्वयं को अनुकूलित कर रही हैं।।

सोमवार, 6 नवंबर 2023

अब सचिन कहो या विराट! विशेष लेख

विराट कोहली ने क्रिकेट के मैदान पर उपलब्धियों के सबसे ऊंचे पायदान को छू लिया है। जिन्होंने उस पायदान को स्थापित किया था, वह भी भारतीय और आज फिर उसे दोहराया है वह भी भारतीय।

विराट कोहली ने अपने वनडे इंटरनेशनल करियर में 49वां शतक लगाया है। और यह सचिन तेंदुलकर के ही बराबर है। अब विराट कोहली इस कीर्तिमान को छू चुके हैं। तो वह सचिन तेंदुलकर के समकक्ष हो गए हैं, यह बात होनी स्वाभाविक है।

यह तो है, कि आधुनिक दौर के क्रिकेट में विराट कोहली ने एक स्तर स्थापित किया है, जिसे महान कहा जा सकता है। वह कीर्तिमान जो बीते समय में सचिन तेंदुलकर द्वारा स्थापित किए गए हैं, वे भावी भविष्य के लिए केवल महान कीर्तिमान नहीं, केवल प्रेरणा नहीं बल्कि आज यदि कोई उस कीर्तिमान को छूता है, उससे आगे बढ़ता है तो यह हमारी उन्नति का प्रतीक है। यह हमारे बढ़ते रहने का प्रतीक है। इसलिए कहते हैं कि रिकॉर्ड बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिए। क्योंकि हम भविष्य को उन्नति की ओर बढ़ता हुआ चाहते हैं, और ऐसा ही होता है।

लेकिन यह तो है, कि इस कीर्तिमान को हासिल कर लेने से विराट कोहली ग्रेट विराट कोहली कहे जाने के और योग्य हो गए हैं। तो अब उस सवाल कि सचिन के समकक्ष हैं विराट कोहली?

इस सवाल को कैसे जवाब दिया जाए जिससे महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और उनके तमाम प्रशंसको तथा विराट कोहली और उनके प्रशंसकों जो की एक समान भी हैं तथा विचारों के उन तमाम पहलुओं जो इससे संबंधित है, के साथ न्याय हो सके।

यह भारत का सौभाग्य है कि क्रिकेट के दो महान सितारे हमारे हैं, और वे हमारे साथ हैं। लगभग एक ही दौर में इन दो महान उपलब्धियां ने हमें चर्चा की ओर और करीब लाया है।

सन् 2012 में सचिन तेंदुलकर ने अपना 100वां शतक लगाकर दुनिया के लिए क्रिकेट जगत में महानता का स्तर स्थापित किया। इस समय तक विराट कोहली भी भारतीय क्रिकेट टीम में अपने लगभग चार वर्ष पूरे कर चुके थे। जब सचिन तेंदुलकर फलक पर थे, तब विराट कोहली अपना आधार बना रहे थे। यहां शुरुआत और मुकाम साथ थे। यहां एक रोल मॉडल बना और विराट कोहली ने उन्हें गहराई से जाना और बहुत लग्नशील होकर उनका अनुसरण किया। इसी का नतीजा सामने है, आज उनके लिए कोई रिकॉर्ड कठिन नहीं है। वे मैदान पर उतरते हैं, कि आज जिस मुकाम पर वे हैं वहां नए रिकॉर्ड बनते चले जाते हैं।

आप यह भी कह सकते हैं, कि विराट कोहली के लिए मुकाम सचिन तेंदुलकर ने स्थापित किया था। हालांकि यह सब उनकी काबिलियत उनके धैर्य और समर्पण का फल है, जो भारत को विराट कोहली में सचिन तेंदुलकर का रूप दिखा है। और यह सचिन तेंदुलकर का महान खेल रहा है, की हर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी की तुलना उनसे होगी, क्योंकि वह वे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सबसे पहले आने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक मुकाम स्थापित किया।

जो उस उपलब्धि को हासिल करेगा, वह स्वत: ही महान होगा। किंतु ऐसा कितनी ही बार भविष्य में होता रहे, आप इस बात को स्वीकार करेंगे, कि वह कभी सचिन तेंदुलकर के समकक्ष नहीं होगा।।

रविवार, 5 नवंबर 2023

अब सर्वश्रेष्ठ विराट कोहली कहो।

केवल खिलाड़ियों के साथ विराट कोहली मैदान पर नहीं खेल रहे हैं। वे वहीं से दर्शकों में मैदान की ऊर्जा भर रहे हैं। यह उनका एक अलग अंदाज दर्शाता है। और यही है जो विशाल संख्या में चाहने वालों को देता है। यही जो उन्हें सबसे अलग बनाता है।

यह वह दौर है, जहां विराट कोहली अपने सर्वश्रेष्ठ पर हैं। किसी भी स्थिति में मजबूत और विश्वस्त। विराट आज अपने जन्मदिन पर सर सचिन तेंदुलकर के एक और विराट रिकॉर्ड को अपने नाम कर चुके हैं। वन डे इंटरनेशनल क्रिकेट में 49 बार सौ रनों की पारी। यह कैसा है, पहले तो आप अपने कठिन परिश्रम से भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बनते हैं, जो अपने आप में एक महान सफलता है। लेकिन उसके बाद भी आप ठहर नहीं जाते, आप लगातार आगे बढ़ाने को उत्सुक हैं। आपमें प्यास है, और आप पूरी तरह से उसके लिए समर्पित हैं। आप लगातार नए प्रयोग करते हैं, और उनसे सीखते हैं। तब जाकर एक विराट “विराट कोहली” सामने आते हैं। जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है, कि आज मैदान पर आए हैं तो जाने क्या रिकॉर्ड बनाने को।

वह एक महान बल्लेबाज हैं, और इस बात को उन्होंने साबित किया है। क्रिकेट के इतिहास में महानता के उन आयामों पर कदम रखकर आज वे क्रिकेट जगत का ऐसा सितारा बन गए हैं। जिसकी रोशनी सतत है, और वह आने वाली कई पीढ़ियों को सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट की परिभाषा बताएगी।

हैप्पी बर्थडे विराट “विराट कोहली”।

शनिवार, 4 नवंबर 2023

बनास के धावक | अंकित कुमार राष्ट्रीय गोल्ड मेडलिस्ट


  अंकित कुमार आजकल लोगों ने खूब सुना और देखा। देखते ही देखते पैठाणी घाटी का चर्चित चेहरा बन गया। हालांकि जो उन्होंने कर दिखाया है, वह इससे कई बड़ा है। गोवा में चल रहे राष्ट्रीय खेलों में पौड़ी गढ़वाल निवासी अंकित कुमार ने स्वर्ण पदक हासिल किया है। उन्होंने 10 किलोमीटर दौड़ को 29 मिनट और 51 सेकंड में पूरा कर यह पदक अपने नाम किया।


बात यह है कि अंकित कुमार अपने निकटवर्ती गांव बनास के हैं और यह स्थानीय लोगों के लिए रेखांकित करने वाली बात है, हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।

  यदि स्थानीय बातचीत के संदर्भ में विचार पेश करें। मेरा इस लेख को लिखने का मुख्य कारण क्षेत्रीय विषयों को अहमियत देना और क्षेत्रीय उपलब्धियां को क्षेत्र के लोगों से अधिक से अधिक जोड़ने का प्रयास करने के साथ यह भी है की साथी युवाओं से मैंने कई बार सुना है “बनास के धावक”

शायद आपने भी सुना हो। जो लोग इस बात को पूर्व से जानते हैं और स्वीकार करते हैं, वे अंकित कुमार की इस उपलब्धि के बाद सीधे इसी बात का स्मरण करेंगे “बनास के धावक”

बनास गांव के युवा तेज दौड़ते हैं। यह उपलब्धि फौजी के लिए दौड़ लगाते युवाओं के बीच हुई प्रतिस्पर्धा के कारण ही सामने आई होगी। अब तक मैं सर्वाधिक जो नाम सुना हूं वह मुकेश हैं। बनास गांव के मुकेश। 

उनका नाम भी तब अधिक सामने आया था, जब पहले कभी यहां हुई एक दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम आकर उन्होंने इनाम में एक स्कूटी हासिल की थी। यह प्रेरक जीत थी। इससे कई युवा अपने आप में छुपी प्रतिभा को ढूंढने के लिए आगे आते हैं। इससे बात युवाओ में एक बार फिर हुई, बनास के धावक होते हैं। तभी से यह बात मुझे स्थानीय खेलकूद के संदर्भ में याद आती है, और आज बड़े स्तर पर अपने आप को सबसे तेज साबित कर आए हैं बनास के धावक, अंकित कुमार।

मैं इस लेख को मित्रवत भाव में लिख रहा हूं स्थानीय लोगों के लिए यह अधिक महत्व का है। वे इसे अधिक गहराई से समझ सकेंगे। इन बातों को वह शायद पूर्व से ही सहमति भी देते हो।

  यह अंकित कुमार हैं, और यह उन तमाम क्षेत्र के धावकों का सर्वश्रेष्ठ चेहरा बन गए हैं। उन्होंने गांव के रास्तों और कच्ची सड़क की दौड़ को सबसे मजबूत मेहनत साबित कर दिया है। उन्होंने गांव के रास्तों को दौड़ के ट्रैक पर सफल साबित किया है।।

शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

मैं खेलूंगा | महान सचिन तेंदुलकर का उदय

हाल ही में वानखेड़े स्टेडियम मुंबई के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की एक प्रतिमा को अनावरित किया गया। सचिन तेंदुलकर स्वयं इसे उन तमाम सहयोगियों अपने साथी क्रिकेटरों के साथ होने का फल बताते हैं। वहीं भारत इस प्रतिमा को भारतीय क्रिकेट का एक समग्र स्वरूप के रूप में देख रहा है।

सचिन तेंदुलकर की क्रिकेट की वह तमाम ऐतिहासिक परियां जाने कितनी बार भारतीयों के लिए गर्व करने का एक चेहरा बने श्री सचिन तेंदुलकर। उनका वह आरंभिक समय भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलना, वह एक मैच जिसकी चर्चा करना आज भी एक महान प्रेरणा है। वह मैच बताता है, कि क्यों सचिन तेंदुलकर महान सचिन तेंदुलकर हैं।

केवल पंद्रह साल का एक बालक भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा एक मैच के दरमियान जब मैदान पर उतरता है, तो सामने विपक्षी खिलाड़ियों के तो पहले ही हौसले ऊंचाई पर थे। इसके दो कारण थे, एक तो केवल 24 रनों पर भारतीय टीम के चार बल्लेबाज वापस लौट गए थे। और दूसरा अब जो क्रीज पर खड़ा था, एक बालक केवल पंद्रह वर्ष का।

गेंदबाजी पाकिस्तान के हाथों में थी, बेहद तेज गेंदबाज लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार और बड़े-बड़े नाम वकार यूनुस, इमरान खान और वसीम अकरम जैसे गेंदबाज।

पहली गेंद जो उस बालक के सामने से यूं जाकर निकली जैसे गेंद हो ही न केवल हवा का झोंका हो। सामने दूसरे छोर पर नवजोत सिंह सिद्धू जो खड़े थे, जाकर पूछते हैं तो बालक ने कहा मैं ठीक हूं।

अगली गेंद एक बाउंसर थी, और उस बालक के हेलमेट से नाक पर जा लगी, यह बहुत तेज था। वहां खून बहने लगा एक पंद्रह वर्ष का बालक भारतीय टीम के लिए खेलता हुआ। दर्शकों कि जहां पूर्व से ही एक पंद्रह वर्षीय बालक को लेकर सहानुभूति थी, इसलिए क्योंकि पाकिस्तान के तेज गेंदबाजों के सामने वह किसी भी प्रकार से सक्षम नहीं दिख रहा था। दर्शकों का तो साफ मानना था, कि इतनी कम उम्र के बालक को इतने बड़े मैच में कैसे खेलने दिया गया है। 

वहां खिलाड़ी और डॉक्टर खड़े हुए और अब उस बालक को मैदान छोड़ने को कहा गया वह जाए और कुछ समय आराम करे।लेकिन उस बालक ने इन तमाम बातों को नकार दिया। अपने आत्मविश्वास और मजबूत इरादे को जाहिर किया। दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की।

वह बोला और जो बोला वह आज तक नये बल्लेबाजों के लिए महान प्रेरणा है। वह बालक कहता है “मैं खेलूंगा”

यह कोई और नहीं सचिन तेंदुलकर थे। और यहां इस मैदान में भारतीय क्रिकेट का एक सितारा पैदा हुआ। वह खेला और ऐसा खेला की भारत ही नहीं दुनिया क्रिकेट से उसे नहीं पहचानती बल्कि उसके चेहरे से क्रिकेट को पहचानती हैं।।

दुनिया एक सफर में और जीवन चक्र | विशेष लेख

जीने के लिए प्लायन एक अहम क्रिया है?



आज से हजारों साल पहले मानव ने अफ्रीका से दुनिया भर में पलायन आरंभ किया। हर कोने को जानना और अपने लिए उपयुक्त स्थान की तलाश में सफर जारी है। आज भी यह जारी है, और सच तो यह है, कि यह सफर दुनिया में चल रहे हजारों प्राणी जातियों के सफर में एक है। वह सब सफर कर रहे हैं, अपने जीवन के लिए कोई अपने भोजन के लिए और कोई बदलते समय, मौसम और जलवायु के लिए।

कुल मिलाकर दुनिया एक सफर में है। कोई धीमी चाल में और कोई तीव्र। कोई हर समय सफर में ही है, कोई मौसम के साथ सफर में है, कोई साल में एक बार तो कोई जीवन में एक बार सफर में है।

यह सफर धरती पर बसे केवल प्राणी जगत के लिए नहीं है। यह सफर तो स्वयं इस धरती के लिए भी है, वह भी सफर में है। हमारी धरती सूरज का चक्कर लगा रही है, यह मौसम परिवर्तन का कारण है। धरती अपने अक्ष पर भी घूम रही है, और यह रात दिन के लिए कारण है। सूरज के सामने जो हिस्सा होगा वहां दिन होगा और यह 12 घंटे के समय के लिए है। धरती 23.5 डिग्री झुकी हुई भी है और यह ध्रुव पर एक महत्वपूर्ण घटना को जन्म देता है। छः माह दिन और छः माह रात, और यह यहां के जीवन को बहुत विशेष बना देता है।

यह किसी प्राणी की अनुकूलन क्षमता पर निर्भर है कि वह वहां जी रहा है। अन्य प्राणी जगत वहां से पलायन करें। छः माह की धूप में पिघलती बर्फ ध्रुव पर सभी जीवो को जल में ले आती है। वह अब केवल तैरेंगे। हालांकि वहां धूप इतनी गरम नहीं, किंतु यह है, और बर्फ को पिघलती है। क्योंकि तापमान शून्य से कुछ अधिक पहुंचता है।

  तेज धूप और गर्म कालाहारी रेगिस्तान में पलायन के लिए जंगली भैंसें तैयार हैं। वह दूर कहीं जल की तलाश में सफर आरंभ कर रहे हैं। यह अफ्रीका का विशाल झुंड बनकर अपने जीवन के लिए सफर आरंभ करता है। इनका यह सफर अन्य जीवों के लिए भी भोजन का जरिया है। वहां राह में शेरों के लिए यह शिकार है। वे इस सफर का इंतजार करते हैं।

यही है, कि एक सफर से जीवन चक्र संभव है।

गुरुवार, 2 नवंबर 2023

गेंदबाजों का क्रिकेट | भारत Vs श्रीलंका

भारतीय क्रिकेट टीम का आज पूरी तरह से उत्साह पूर्ण प्रदर्शन रहा। यह निडर प्रदर्शन श्रीलंका के खिलाफ होना, भारतीय टीम के आत्मविश्वास का प्रदर्शन है। हालांकि भारत की ओर से स्कोर बोर्ड पर अच्छी चुनौती दी गई थी। लेकिन यह इतना भी दबाव पैदा नहीं करता है, कि श्रीलंका जैसी बड़ी टीम को इस स्थिति में ले आए। यहां भारतीय गेंदबाजी की बड़ी तारीफ करनी होगी। खास कर तेज गेंदबाज जो लगातार शानदार प्रदर्शन दे रहे हैं।

  इस खेल में आज सिर्फ बॉल विकेट के लिए फेंकी जा रही थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था। बल्ले ने भारत के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं कहा। यह श्रीलंका जैसी टीम के लिए बड़ी निराशा है। यह कुछ ऐसा ही था, जैसे तमाम अब तक हुए मैचों को जीत आने के बाद भारतीय टीम ने अपना वह सब अनुभव आज के मैच में उतार दिया हो। यह बड़ी जीत है। यह भारतीय टीम के मजबूत विजन को दर्शाता है। बैटिंग के शानदार प्रदर्शन के बाद गेंदबाजी में यह कर दिखाना पूरी तरह से एक तरफा मैच की स्थिति पैदा करने वाला रहा।

  वहां जब से मोहम्मद शमी को खेलने को मैदान पर लाया गया है, उन्होंने अपनी जगह को पूरी तरह से निश्चित कर लिया है। हर मैच में अपना पूर्ण देकर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यह फटा पोस्टर निकला हीरो जैसा है।

  यह प्रदर्शन जहां केवल बल्लेबाज मैच जीतने वाले हीरो की तरह सामने नहीं है, बल्कि भारतीय गेंदबाजों ने भी कुछ ऐसा दर्शाया है, कि यदि वह लय में हैं, तो किसी टीम को बेहद कम रनों पर रोक सकते हैं, और यहां तो टीम भी श्रीलंका है।

  यह टीम आज के प्रदर्शन से कई बड़ी टीम है। हम सभी जानते हैं कि श्रीलंका क्रिकेट टीम बेहद शानदार है। उनकी गेंदबाजी ने भी अच्छा काम किया। हालांकि इस सब में भारतीय टीम ने स्कोर बोर्ड पर अच्छी चुनौती दी, लेकिन यह अजेय लक्ष्य नहीं था। लेकिन अंतिम रूप से जहां श्रीलंका की बैटिंग जो अच्छी मानी जाती है, यदि पूरी तरह से नाकाम रही, तो यह भारतीय गेंदबाजों को श्रेय जाता है। और आज भले ही तीन भारतीय बैट्समैन शतक से बिल्कुल करीब तक गए हो और बेहद शानदार प्रदर्शन किया हो लेकिन अंतिम रूप से भारतीय तेज गेंदबाजों ने इस शाम को अपने नाम कर दिया।।

श्रेयश अय्यर श्रीलंका के खिलाफ शानदार

इस वर्ल्ड कप में खिलाड़ियों का शानदार देखा गया। आज इसी लय में श्रेयश अय्यर ने भारतीय क्रिकेट टीम में अपने होने का प्रदर्शन किया। एक शानदार प्रदर्शन। यूं तो सुभमन गिल और विराट कोहली की भी एक लंबी शानदार पारी रही, लेकिन श्रेयश अय्यर आज के मैच में खास हैं। यह इसलिए भी क्योंकि इस वर्ल्ड कप में खेल प्रेमियों के साथ स्वयं श्रेयश अय्यर भी अपना सर्वश्रेष्ठ ढूंढ रहे थे।

 भारतीय टीम का हिस्सा इस वर्ल्ड कप में श्रेयश अय्यर अब तक अपना खास नहीं दे पाए थे। पूर्व में एक मैच के बाद जब उन्हें बाहर रखा गया यह कहकर की फिटनेस संबंधी समस्या है, और ईशान किशन को उनकी जगह पर लाया गया तो उनकी ओर से एक निराशा प्रतिक्रिया प्रकट की गई, कि उन्हें यह सब का पता भी नहीं चला कि उन्हें कैसे प्लेइंग इलेवन से बाहर रखा जा रहा है।

यह भारतीय क्रिकेट टीम कप्तान और मैनेजमेंट के लिए बड़ी विडंबना है, कि कैसे खिलाड़ियों में सर्वश्रेष्ठ का चयन हो। क्योंकि भारत में प्रतिवर्ष होने वाले इंडियन प्रीमियर लीग के चलते खिलाड़ियों का एक शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है। वही खिलाड़ी देश की टीम के लिए खेलने की योग्यता भी रखते हैं। हालांकि वहां खेल रहे खिलाड़ी खेल प्रेमियों के सामने एक हीरो की छवि तो हासिल कर ही लेते हैं। उनके अपने-अपने चाहने वाले भी होते हैं, जो उनके लिए केवल उनके लिए मैदान में दर्शक बन बैठे होते हैं। इसमें जब खिलाड़ियों का भारतीय टीम के लिए चयन किया जाता है, तो खेल प्रेमियों की इच्छा और खेल मैनेजमेंट के द्वारा चयन किए गए खिलाड़ियों में गतिरोध बनना तय होता है। लेकिन फिर भी जिन भी खिलाड़ियों का चयन किया जाता है, वह श्रेष्ठ ही होते हैं।

आज श्रेयश अय्यर ने यही दर्शाया की काफी समय से इस टूर्नामेंट में शांत उनका बल्ला समय पर अपनी उपस्थिति दिखा सकता है। आज उनके बल्ले ने जिन छक्कों की झड़ी लगाई गई, वह उनके शानदार खिलाड़ी होने की पहचान है। खेल में एक रौनक बांध कर रखी थी, श्रेयस अय्यर ने।

उनके बल्ले से निकले छह छक्कों में एक इस टूर्नामेंट का सबसे लंबा छक्का है, जो 106 मी का है। श्रेयश अय्यर आज की शाम के हीरो बनकर भारत के लिए एक शानदार पारी को जमाते हैं।।

होमी जहांगीर भाभा और भारत का परमाणु परीक्षण

1966 में वियना जा रहे एक वायुयान के क्रेश हो जाने की घटना ने भारत के न्यूक्लियर रिसर्च की ओर बढ़ती आशाओं को धीमा कर दिया। इस विमान में होमी जहांगीर भाभा भी थे। वह इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी की एक कांफ्रेंस के लिए वियना जा रहे थे। भारत को पहले एटॉमिक बम बनाने का वादा करने वाले होमी जहांगीर भाभा, भारतीय एटॉमिक रिसर्च के फादर कहे जाते हैं। 

यह उनकी मेहनत का ही फल था, कि उनकी मृत्यु के 8 वर्षों पश्चात भारत ने पहले एटॉमिक प्रशिक्षण में सफलता हासिल की।

अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद वे इंजीनियरिंग के लिए कैंब्रिज गये। उनके पिता भी यही चाहते थे, कि वह इंजीनियरिंग करें और इसी में अपना भविष्य देखें। किंतु कैंब्रिज में कुछ लोगों से उनकी मुलाकात के कारण उनका झुकाव धीरे-धीरे मैथ्स और थियोरेटिकल फिजिक्स की ओर चला गया। उन्होंने कैंब्रिज में अपनी इंजीनियरिंग पूरी की। लेकिन इसी दरमियान उन्होंने अपने पिताजी को इस संदर्भ में खबर दी की वह अपने भविष्य में इंजीनियरिंग को लेकर इतने रुचिकर नहीं हैं। उन्होंने कैंब्रिज में ही न्यूक्लियर फिजिक्स में अपनी पीएचडी भी पूरी की। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जो की 1939 में शुरू हो गया था वे वापस इंग्लैंड ना जा सके। इस दरमियान वे भारत अपनी छुट्टियों के लिए आए हुए थे। इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बेंगलुरु से जुड़ने का फैसला किया। इस संस्थान का संचालन उस समय पर डॉक्टर सी० वी० रमन कर रहे थे। यहीं होमी जहांगीर भाभा की विक्रम साराभाई से भी मुलाकात होती है। 

विक्रम साराभाई जो इस समय पर कैंब्रिज में विद्यार्थी थे, और वही कारण की द्वितीय विश्व युद्ध के कारण वे भी अब भारत लौट आए थे। भाभा जो की कॉस्मिक रेज के माध्यम से परमाणु के कणों का अध्ययन करना चाहते थे। वहीं विक्रम साराभाई इन्हीं कॉस्मिक रेस की सहायता से बाह्य अंतरिक्ष के अध्ययन में रुचिकर थे। 

एक बार सी०वी० रमन ने होमी जहांगीर भाभा को लिओनार्दो दा विंची के समक्ष बताया था। लगभग पांच सालों तक इस संस्थान में कार्य करने के बाद 1943 में होमी जहांगीर भाभा ने जे०आर०डी० टाटा को फंडामेंटल फिजिक्स के लिए भारत में एक रिसर्च इंस्टीट्यूट खोलने को कहा, और 1945 में इसे स्थापित किया गया।

भारत की आजादी के बाद जब पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बने 1948 में ही होमी जहांगीर भाभा ने पं० नेहरू को एक पत्र लिखकर भारत में न्यूक्लियर एनर्जी पर शोध की जरूरत को जाहिर किया और उन्होंने नेहरू जी से इस बात को भी कहा की एक एटॉमिक एनर्जी कमिशन बनाया जाएगा, जो न्यूक्लियर एनर्जी से संबंधित शोध की रिपोर्ट को सीधे प्राइम मिनिस्टर से साझा करेगा। इसके बाद ही पंडित नेहरू ने 1948 में एटॉमिक रिसर्च कमिशन को स्थापित किया।

इसके पहले अध्यक्ष होमी जहांगीर भाभा बने। एस०एस० भटनागर और के०एस० कृष्णन इस कमीशन के अन्य सदस्य थे। पं० नेहरू से होमी जहांगीर भाभा की गहरी मित्रता थी। कहते हैं, कि पं० नेहरू को केवल दो लोग भाई कह सकते थे, एक जयप्रकाश नारायण और दूसरे होमी जहांगीर भाभा।

अब जब 1954 में मुंबई में एटॉमिक रिसर्च सेंटर बनाने की शुरुआत हुई। इसी के साथ भारत में एटॉमिक रिसर्च प्रोग्राम को भी तीव्र गति प्राप्त हुई। इसी समय इंडियन गवर्नमेंट ने भी एटॉमिक रिसर्च को लेकर बजट में वृद्धि की। अब तक होमी जहांगीर भाभा एटॉमिक एनर्जी को लेकर दुनिया भर में पहचान प्राप्त कर रहे थे। 1950 तक भाभा इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी में भारत का नेतृत्व करने लगे थे। और इसी के चलते यूनाइटेड नेशन में 1955 में उन्हें एक कांफ्रेंस का प्रेसिडेंट बनाया गया, जो एटॉमिक एनर्जी के शांतिप्रिय प्रयोग को बढ़ावा देती थी। यह कॉन्फ्रेंस जेनेवा स्विट्जरलैंड में आयोजित की गई थी।

इसके बाद इन्हीं कुछ प्रयासों के चलते और दुनिया भर में एटॉमिक रिसर्च को लेकर प्रसिद्धि पा रहे होमी जे भाभा के कारण भारत को इससे लाभ हुआ। 1955 में शांतिप्रिय एटॉमिक एनर्जी के प्रयोग के वादे के चलते कनाडा ने भारत को एटॉमिक रिएक्टर दिए। अमेरिका ने भी भारत को भारी जल उपलब्ध कराने का वादा किया।

इसके बाद तो भारत ने भी 1956 में अपना पहला न्यूक्लियर रिएक्टर विकसित किया। जिसे अप्सरा कहा गया, और यह एशिया के सबसे पुरानी रिसर्च रिएक्टर के तौर पर जाना जाता है। इन्हीं सब उपलब्धियां के बाद अब भाभा के लिए एटॉमिक बम बनाने के द्वारा खुल गए थे। लेकिन अब तक भारतीय नेता इस स्थिति में नहीं थे। वह इस विचार के पक्ष में भी नहीं थे। दूसरी ओर भारत आजादी के बाद से अब तक गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी से जकड़ा हुआ था। इन सब के बीच केवल होमी जहांगीर भाभा ही थे, जो भारत के लिए न्यूक्लियर रिसर्च की दिशा में एक दूर दृष्टि को लिए हुए थे।

1962 में भारत और चीन के युद्ध और इस समय पर भारत को हुए नुकसान में एटॉमिक एनर्जी की दिशा में भारत को बढ़ने के लिए प्रेरित किया। क्योंकि 1964 तक चीन ने अपने एटॉमिक बम का सफल परीक्षण कर दिया था, और यह भारत के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती के रूप में सामने थी। इसी समय पर होमी जहांगीर भाभा ने यह बात कही थी, कि वह इस स्थिति में हैं, कि 18 महीने के भीतर में भारत को उसका अपना न्यूक्लियर बम दे सकते हैं।

लेकिन तमाम कारणों दुनिया भर के दबाव के चलते यह कार्यवाही आगे ना बढ़ सकी। उधर नए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अब पदासीन हो चुके थे। इसके बाद 1965 में जब एक बार फिर भारत और पाकिस्तान युद्ध हुआ तो एक बार फिर स्थिति पैदा हुई कि न्यूक्लियर एनर्जी की दिशा में प्रयास किए जाएं। लेकिन उससे पहले की भाभा इस पर काम करते 1966 में उनकी मृत्यु हो गई, और इसी के साथ अब एटॉमिक रिसर्च सेंटर को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर नाम दिया गया। नए अध्यक्ष के तौर पर विक्रम साराभाई को चुना गया। विक्रम साराभाई जो इस समय पर इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन को विकसित करने में लगे हुए थे।

1967 तक नई प्रधानमंत्री के तौर पर श्रीमती इंदिरा गांधी पदासीन हो चुकी थी। क्योंकि साराभाई पूर्व से ही एटॉमिक बम बनाने की दिशा में सहमत नहीं थे। लेकिन इंदिरा गांधी के बार-बार कहने के कारण उन्होंने इस कार्य के लिए सहमति दी।

1971 की लड़ाई के बाद जब इंदिरा गांधी की प्रसिद्ध में वृद्धि हुई, तो उन्होंने 1972 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर से न्यूक्लियर बम के परीक्षण को लेकर बात कही। इसे स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया गया। 18 मई 1974 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन राजस्थान के पोखरण में यह सफल परीक्षण किया गया। इसी के साथ होमी जहांगीर भाभा का स्वप्न भी पूरा हो गया।।

मुख्य रूप से होमी सेठना और राजा रमना दो महत्वपूर्ण नाम, इस कार्य के लिए पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई। 75 से कम लोगों ने इस प्रोजेक्ट में काम किया, बात यही थी कि दुनिया भर को इस संदर्भ में कोई खबर नहीं होनी चाहिए। विक्रम साराभाई इस पूरे प्रोजेक्ट को संचालित कर रहे थे। यह इतना गोपनीय था कि भारत के रक्षा मंत्री को भारतीय सेना को इस संदर्भ में कोई जानकारी नहीं थी।

सोमवार, 30 अक्टूबर 2023

भारतीय क्रिकेट टीम का सर्वश्रेष्ठ | विशेष लेख

 दूर इलाकों में कहीं जो युवा क्रिकेट खेल रहा है, और ऐसे हजारों मेहनती खिलाड़ी असल में इसी दिन के लिए हैं। कि जब उनमें से कोई भारतीय टीम का हिस्सा बने तो वह ऐसी क्रिकेट खेलें जो आज भारतीय टीम ने इंग्लैंड के खिलाफ खेली है।

  उनकी ईमानदार मेहनत जो दुर्गम क्षेत्र में कम संसाधनों के साथ केवल एक उम्मीद पर चल रही है, उसका परिणाम एक मजबूत भारतीय टीम भी है। यह भारतीय टीम की ताकत है, कि मोहम्मद शमी जैसे शानदार खिलाड़ी भी बेंच पर बैठे रहते हैं।

  मैं इस लेख को क्रिकेट विश्व कप 2023 के 29 अक्टूबर को हुए भारत बनाम इंग्लैंड मैच के बाद लिख रहा हूं। यह शानदार क्रिकेट प्रदर्शन भारतीय टीम को वर्ल्ड कप विजेता के रूप में दर्शाता है।

  बुमराह और मोहम्मद शमी की आरंभिक गेंदबाजी ने सामने खड़े विपक्षी बल्लेबाजों को आश्चर्यजनक ढंग से आउट कर दिया। यह गेंदबाजी का बेहद उत्कृष्ट प्रदर्शन था। सबसे महत्वपूर्ण यह भारतीय क्रिकेट को उठाता है। युवा जो इस खेल के लिए समर्पित भाव से जुटे हुए हैं। इसे अपना भविष्य चुन चुके हैं। उनके लिए यह और अधिक मेहनत का सबक है।

 और भारत में क्रिकेट इतने विशाल खेल प्रेमियों की वजह क्या है? यही बस इस खेल में जीत और हार लाखों दिलों को खुश करती है या निराश कर देती है। हर व्यक्ति इस खेल से जुड़ा है। इस खेल में अपने हीरो को देखता है। देश में हर खिलाड़ी जो एक छोटे से प्लेटफार्म पर खेल रहा है, उसकी ईमानदार कोशिश उन बड़े स्तर पर खेल रहे खिलाड़ियों का कद बनाता है।

दरअसल यह देश के किसी कोने में खेल रहे खिलाड़ी की मेहनत का ही फल है। क्योंकि उसकी ईमानदार मेहनत और उसका उन छोटे स्तरों पर खेलना एक बड़ी भारतीय टीम को गठित करता है। उसे छोटे स्तर पर उसके खेल से जन्मी प्रतिस्पर्धा एक भावी खिलाड़ी को अत्यधिक मेहनत के लिए प्रेरित करती है। इन छोटे स्तरों पर जन्मी इस प्रतिस्पर्धा के चलते ही महान खिलाड़ियों का उदय संभव है।।

रविवार, 29 अक्टूबर 2023

India vs England भारत की जीत | विशेष लेख

ये इंग्लिश क्या सोचते होंगे। भारत ने आज क्रिकेट के मैदान पर इंग्लैंड को काफी बड़े अंतर से हराया। यह कोई छोटा क्रिकेट मुकाबला नहीं है, यह विश्व कप है। वे लोग जो इंग्लैंड की ओर से अपनी टीम का समर्थन करने आए होंगे भले वे कम संख्या में थे, बेहद कम लेकिन अत्यधिक निराश हुए होंगे।

  दरअसल यह जैंटलमैनों का खेल था, और एक जमाने में इंग्लैंड के लोगों के अलावा और किसे जेंटलमैन कहा जा सकता था। यह उन्हीं का खेल उन्हीं को आज मैदान पर मात देता है। हालांकि यह कोई बड़ी बात नहीं, खेल है और इसके दो पहलू हार और जीत हैं। अब हार हुई या जीत उसे स्वीकार करना भी खिलाड़ी का एक गुण है।

   लेकिन यह मन है और यह सोचता जरूर होगा। बड़ी बात यह है, कि सामने भारत था, और उससे यह बड़ी हार कई पहलुओं को खुला कर देती है।

 भारत ब्रिटिशों का गुलाम रहा मुल्क। ब्रिटिश क्रिकेटरों और उन जैंटलमैनों के शौक क्रिकेट खेल में भारतीय व्यक्ति फील्डिंग करता हुआ, केवल फील्डिंग।

 वह लगान फिल्म भी याद आती है। हालांकि वहां क्रिकेट से कोई मतलब नहीं था, बस उस खेल को जीतकर ब्रिटिशों से कर की माफी स्वीकार करानी थी। हालांकि तब वह भावना अतुलनीय रही होगी। 

  लेकिन शायद ब्रिटिशों का राष्ट्र प्रेम ऐसा नहीं है। हम भारतीय यदि क्रिकेट का शौक रखते हैं, तो आपको क्रिकेट के मैदान पर पूरा भारत दिखेगा। हमारे लिए यह खेल बेहद अहमियत रखता है। इस बात का अंदाजा आप मैदान में भारतीय दर्शकों की भीड़ से लगा सकते हैं। और यह खेल बहुत से लोगों के लिए देशभक्ति को प्रस्तुत करने का एक मौका भी है। यही भावना इस खेल से देश के हर व्यक्ति को जोड़ती है।

वहीं क्रिकेट एक खेल है, एक खेल केवल। 

इंग्लैंड इस भावना में आ चुका है, यह उनके लिए देश के गौरव से जुड़ा बड़ा सवाल नहीं बन जाता है। वे इससे उभर चुके हैं, या वे इसमें नहीं फंसना चाहते हैं। बस यह की क्रिकेट एक खेल है, उनकी एक टीम है, जो देश के नाम पर खेलती हैं। जीते तो गौरव का विषय है, हारे तो खेल का एक पहलू ही है हार, और वे उसे स्वीकार करते हैं।।

रविवार, 7 मई 2023

रिश्ता | Amitabh bachchan an Akashy kumar

        रिश्ता

चार लोगों के चक्रव्यूह में फंस कर हजारों लोग काम करते हैं। 

जब विजय कपूर शहर के नामी बिजनेसमैन अपने पुत्र अजय को समझाता है। वह चाहता है, कि उसका पुत्र एक बड़ा बिजनेसमैन केवल अपने पिता के बदौलत ना बन जाए बल्कि जमीन से लगातार अपने प्रयासों से एक सफल व्यक्ति बनकर पिता की कुर्सी हासिल करे। अजय अपने ही पिता की कंपनी में मजदूरों के काम से आरंभ करता है। मजदूरों का एक यूनियन लीडर जो काम तो करता नहीं अपने दो-तीन करीबियों के साथ बैठकर जुआ खेलता अन्य मजदूरों को अपनी सेवा पर रखता। यह बात अजय को जमी नहीं। वह उससे भिड़ गया, यह कहते कि वह विजय कपूर का बेटा है, और तुम उसकी मिल में काम की बजाय जुआ खेलते हो।

यूनियन लीडर उसे अपने अंडर एक मजदूर कहकर पुकारता है और उसकी बात नहीं सुनता।  अजय उस पर हाथ उठाता है, यूनियन लीडर मजदूरों की हड़ताल करवा देता है। विजय कपूर को यह बात मालूम हुई तो वह अजय को यूनियन लीडर से सबके सामने माफी मांगने को कहता है। अजय बेहद संवेदनशील, स्वाभिमानी और सैद्धांतिक व्यक्ति झुकना कभी नहीं चाहेगा क्योंकि वह सही था।

अपने पिता की आज्ञा पर यूनियन लीडर से माफी मांग लेता है उसकी आत्मा में ग्लानी का एक भाव यूं भर जाता है, कि रह-रहकर उमड़ता है। उसके पिता ने इस मामले का कारण अजय के अनुभव की कमी बताया। उसे बताया कि मिल मजदूरों, मैनेजमेंट और मालिक के आपसी तालमेल से चल रही है। रही बात मजदूरों की यदि तुम्हें मालूम है कैसे भेड़ों के बड़े समूह को नियंत्रण में रखने के लिए चार कुत्तों को रखा जाता है।

“यहां चार लोगों के चक्रव्यू में हजारों मजदूर काम करते हैं”

फिल्म “रिश्ता” से प्रेरित

सोमवार, 6 मार्च 2023

कांग्रेस विपक्ष को एक कर सकेगी | चुनाव 2024

कांग्रेस :चुनाव 2024

एक तरफ कांग्रेस अपनी साख बचाने को देश भर में भारत जोड़ो जात्रा से मिशन राहुल को साधने पर लगी है। साथ ही भारत जोड़ो यात्रा आम जनमानस से संवाद स्थापित करने में भी अहम है। और यह राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को जरूर लाभ पहुंचाएगी। किंतु फिर भी 24 का चुनाव ऐसा तो नहीं संभव की कॉन्ग्रेस इकलौती चलकर विजय हासिल कर ले। उसे भाजपा के विपक्षी दलों को एकत्रित करना होगा। लेकिन समस्या यह है, कि विपक्ष क्या वे सभी कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे। इसके संबंध में कई बिखराव युक्त टिप्पणियां आना आरंभ हो गया है। इसके चलते ऐसे समीकरण बनते नजर नहीं आ रहे हैं।

  देखिए यह तो साफ है, कि विपक्षी दलों का एकजुट होना आवश्यक है। अन्यथा भाजपा को अलग-अलग चलकर पराजय तक ले जाएं, यह तो उतना सरल नहीं। कांग्रेस पिछले कई चुनावों के परिणामों में अपने नेतृत्व की अहम स्थिति को भाजपा के विपक्ष के कई बड़े दलों की दृष्टि में खोई हुई प्रतीत होती है। हां भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी ने कुछ छलांग जरूर लगाई है। किंतु सूचना यह भी आती रही की इस यात्रा में ही कई कांग्रेस के समर्थक दलों ने सीधी भूमिका के स्थान पर शुभकामना भेजना ही ठीक समझा।

ऐसे में सवाल यह है, कि क्या वे राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते अथवा वे कांग्रेस को ही विपक्षी दलों के गठबंधन का नेतृत्व नहीं देना चाहते। यदि विपक्षी दलों का यह मानना है, तो कांग्रेस के लिए यह बड़ा संकट है। किंतु कांग्रेस ऐसा क्यों मानेगी, वह देश की सबसे पुरानी पार्टी है, और आज भी भाजपा के सामने विपक्ष का अहम चेहरा कांग्रेस ही दे रही है।

 इन सब सवालों में प्रमाण सामने हैं, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने यह कह दिया, कि कांग्रेस को इस बार लोकसभा चुनाव में 200 ही के लगभग सीटों पर लड़ना चाहिए, बाकी उसे क्षेत्रीय दलों पर और अन्य पार्टियों पर विश्वास करना चाहिए। यह सलाह शायद भाजपा को हराने के लिए परिस्थिति अनुरूप ठीक लग रहा हो। लेकिन यह कांग्रेस के लिए अपनी बड़ी विरासत छोड़ना है। कांग्रेस का सीमित होना है। उन सबमें जो एक सवाल हमेशा वही बना रहता है, विपक्ष का नेता कौन?

कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी के नाते विपक्ष के गठबंधन में अहम भूमिका निभाने वाली है। किंतु यह किन शर्तों पर हो सकेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यदि वह हो जाता है, ऐसे में विपक्षी गठबंधन नेतृत्व के सर्वसम्मत चेहरे के बिना यह पूर्व की भांति ही गठबंधन होगा। ऐसे में जहां सामने मोदी जी हैं जिनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता ही विपक्षी दलों के लिए भारी पड़ जायेगी।।

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

कांग्रेस के कदम | Loksabha चुनाव 2024

कांग्रेस के कदम

राहुल गांधी से ही कांग्रेस पार्टी के हर स्तर पर चुनाव कर आंतरिक लोकतंत्र की स्थापना की बात करते रहें हैं। यह परिवारवाद के उस बड़े सवाल का जिसे लगातार भारतीय जनता पार्टी द्वारा उठाया जाता रहा है, का परिणाम है। नागालैंड में प्रचार रैली में मोदी जी ने परिवारवाद के हवाले से पुनः कांग्रेस को घेरा। ऐसे में कांग्रेस इन सवालों के निदान में पूरा जोर लगा रही है।

कांग्रेस पार्टी के अहम निर्णय लेने वाली कार्यसमिति में सदस्यों की संख्या कुछ बढ़ाई गई। अब 30 सदस्य कार्यसमिति में होंगे। इसमें महिलाओं, एससी, एसटी, युवाओं आदि को आरक्षण भी दिया गया है। किंतु जब यह तय किया गया कि कांग्रेस पार्टी कि निर्णय लेने वाली अहम कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव नहीं होगा, बल्कि यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मलिकार्जुन खरगे जी जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, को यह अधिकार होगा कि वह सदस्यों को नामित करें, ऐसे में कांग्रेस पर लगने वाले परिवारवाद के सवालों के निवारण अभियान से जो वह आंतरिक हर स्तर पर चुनाव के माध्यम से दर्शाना चाहती थी, से पीछे हट गई। ऐसे में राहुल गांधी और गांधी परिवार का कोई सदस्य संचालन समिति की बैठक में शामिल नहीं हुआ, जहां कार्यसमिति के सदस्यों को नामित किया जाना था। मतलब साफ है, कि कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ताओं में यह दर्शना चाहती है, कि गांधी परिवार के हस्तक्षेप से इतर अब मलिकार्जुन खरगे जी ही कांग्रेस के सभी फैसले लेंगे।
कार्यसमिति के सदस्यों को चुनाव के माध्यम से नहीं चुने जाने का फैसला जितना विपरीत है, उतना ही यह न करने के पीछे दिया गया कारण एक तरह से सही भी है। कारण दिया गया, कि इस समय चुनाव से कांग्रेस में आंतरिक विभाजन हो जाएगा। कांग्रेस की अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए यह फैसला ठीक हो सकता है। किंतु आंतरिक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापना की कांग्रेस की पहल इस के कारण से पीछे हो गई है।
लोकतंत्र में चुनाव एक अहम प्रक्रिया है। इस से निर्मित व्यवस्था सर्वसम्मति की व्यवस्था मानी गई है।

दरअसल कांग्रेस पूर्व से ही अपने दिल के शासनकाल में उपजे घोटालों, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, कुशासन जैसे आरोपों के घेरे में है। उसे इससे पार पाने के लिए बड़े प्रयासों की आवश्यकता है। इसमें भारत जोड़ो यात्रा बड़ा कदम है। जिसका उद्देश्य आम जनमानस तक पहुंच बनाना था।
संवाद ही लोकतंत्र में पार्टियों का मूल हथियार है। जिसका संवाद आम जनमानस से जितना बेहतर होगा वह पार्टी उतनी ऊंचाई हासिल कर लेगी। कांग्रेस ने यात्रा से यही करने का प्रयास किया है। इससे जरूर लाभ होगा। किंतु चुनाव में आगामी वर्ष कांग्रेस को कितना लाभ इससे मिलेगा यह देखने का विषय है। क्योंकि तर्क यह भी है, की यात्रा की भीड़ उत्साहित करने वाली हो सकती है, किंतु यह चुनावी रैलियों की भीड़ के जैसे भी हो सकती है, जिन्हें पार्टी के वोटर होना पक्का नहीं कहा जा सकता।।

रविवार, 26 फ़रवरी 2023

रूस-यूक्रेन युद्ध का एक वर्ष पूर्ण | विशेष लेख

             रूस-यूक्रेन युद्ध

एक वर्ष हो चुका है। रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध जारी है। यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए मुसीबत बना हुआ है। कोरोना से उभरने के बाद कुछ गति जो विकास कार्यों की ओर अपेक्षित थी रूस-यूक्रेन युद्ध ने उस गाड़ी का टायर पंचर कर दिया।
बात साफ है, वैश्वीकरण के युग में आप दुनिया के किसी राष्ट्र में हो रही हलचल से बिना प्रभावित हुए बचकर नहीं निकल सकते। हमारे देश में जो मांगे पैदा होती हैं, उनकी आपूर्ति के लिए विदेशों से आयात होता है, और विदेशों की आवश्यकता की आपूर्ति के लिए भारत उन्हें वस्तुएं निर्यात करता है। अतः हम संपूर्ण विश्व से परस्पर जुड़े हैं।
इस वर्ष भारत को जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता के संदर्भ में प्रधानमंत्री जी ने इसीलिए ही कहा, कि कोई तीसरी दुनिया नहीं है हम सब एक नाव पर सवार है।
यह कहने का तात्पर्य ही था कि हम सब की संपूर्ण दुनिया में तमाम राष्ट्रों की समस्याएं एक समान ही हैं। इसका प्रमाण दिया है, कोरोना महामारी ने और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के समय दुनिया का हर राष्ट्र आज महंगाई, खाद्य संकट, ऊर्जा संकट आदि समस्याओं का सामना करने को मजबूर है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के एक वर्ष होने के साथ अब तक शांति के कोई प्रयास साकार होते नहीं दिखते।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत, चीन, पाकिस्तान के साथ लगभग 30 से अधिक देशों ने वोट नहीं दिए, और अपनी स्थिति को बरकरार रखा। इसका यही कारण रहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में जो प्रस्ताव रखा गया, उसमें रूस के पक्ष में कोई बात नहीं थी, अर्थात रूस जिन कारणों से युद्ध में है, उन विषयों को प्रस्ताव में कोई स्थान नहीं दिया गया। ऐसे में यह प्रस्ताव रूस की सैनिक अभियान को निरर्थक साबित करता है। क्योंकि प्रस्ताव में रूस जिन कारणों से युद्ध में है, अथवा रूस की महत्वकांक्षी का स्थान नहीं है, इस कारण से इस प्रस्ताव को रूस और उसके समर्थक राष्ट्र स्वीकृति क्यों देंगे। वहीं भारत, चीन, पाकिस्तान आदि राष्ट्र इस पर वोटिंग ना करना ही ठीक समझते रहेंगें। इस प्रकार यह प्रस्ताव केवल एक प्रयास ही रह जाएगा।
भारत का पक्ष शांति स्थापित हो इसी और है। इसका प्रमाण है, जब मोदी जी ने रूसी राष्ट्रपति से कहा था, कि यह युद्ध का समय नहीं है। किंतु साथ ही भारत का अपने पारंपरिक मित्र से दोस्ती बनाए रखने का भी प्रश्न है। किंतु भारत की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर निष्पक्षता और स्पष्टवादिता ने यूक्रेन को निराश नहीं किया है। भारत ने इसीलिए वोटिंग में प्रतिभाग नहीं किया। इससे यह तो साफ होता है, कि भारत रूस के सैनिक अभियान कि साथ नहीं है। किंतु वहीं भारत ने यूक्रेन के पक्ष में भी मत नहीं दिया है।
चीनी भी रूस के सैनिक अभियान पर कुछ नहीं कहा है। हां अमेरिका और यूरोपियन राष्ट्रों द्वारा यूक्रेन को हथियार उपलब्ध कराए जाने की निंदा की और इसी को यूक्रेन में युद्ध जारी रहने का कारण बताया।

अमेरिका ने हाल ही में यूक्रेन को 2 अरब डॉलर के हथियार उपलब्ध करवाने की घोषणा की है। इस प्रकार के निरंतर समर्थन के चलते यूक्रेन युद्ध के मोर्चे से पीछे नहीं हटने वाला है, और सामने रूस अपने दृढ़ हठ पर अड़ा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के एक वर्ष हो जाने पर दुनिया के अनेक देशों ने रूस के सैनिक अभियान के विरोध में प्रदर्शन किए। जर्मनी में एक खूनी रंग का केक बनाकर उस पर मानव खोपड़ी रखकर प्रदर्शन किया गया। रूसी दूतावास के सामने एक जर्जर टैंक को रखा गया, और रूस की दुनिया में कमजोर स्थिति को दर्शाया गया।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने भी यूक्रेन में हुए हमलों से गई जानों के लिए 2 मिनट का मौन धारण किया। ब्रिटेन के सम्राट जेम्स तृतीय ने भी अपनी संवेदना प्रकट की। अन्य कई और स्थानों पर भी प्रदर्शन की खबरें रही।।

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