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गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -2

इससे पूर्व  ( गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन part -1 ) में हम जान चुके हैं। अब आगे… इस परिसर को देख मुझे जो ख्याल आता है। जैसे इतिहास के पृष्ठों में हम यूं तो भारत के प्राचीन सभी धर्म किंतु विशेषकर बौद्धों के संघाराम तात्पर्य बौद्ध मठों या मंदिरों से है, जहां बहुत से व्यक्तियों के ठहरने का प्रबंध होता था। जहां वे लगातार निर्बाध अध्ययन करते रहते थे। पूरे भारत में ऐसे कई संघाराम होते थे। जो बौद्ध भिक्षुओं को संरक्षण व बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए होते थे। भगवान बुद्ध के बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद से और ईसा के जन्म के बाद जब तक मोटे तौर पर गुप्त वंश का साम्राज्य नहीं आया था। बौद्धों को खूब संरक्षण मिला। कन्नौज का राजा हर्षवर्धन भी बौद्धों का ही मुख्य संरक्षक था। लेकिन पुष्यमित्र शुंग का प्रण की वह बौद्धों बिग को समाप्त कर देगा। दूसरी सदी ईस्वी में बौद्धों के एक ग्रंथ में बताया गया है, कि पुष्यमित्र ने कैसे एक संघाराम कुक्कुटाराम जो पाटलिपुत्र में था, को नष्ट कर दिया।वहां बौद्धों को कैसे मार दिया। यह भी एक प्रसंग बताया गया है। शांतिकुंज के परिसर में वैदिक ...

गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज हरिद्वार सचित्र वर्णन | part -1

चित्र में- शांतिकुंज परम तपस्वी ऋषियुग्म पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा शांतिकुंज से पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का नाम याद आ जाता है। आपने इनका नाम भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा जो गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वाधान में अखिल विश्व गायत्री परिवार के सौजन्य से करवाई जाती है, के कारण जरूर सुना होगा। पूरे देश में इनकी शाखाएं और कई कार्यकर्ता होते हैं। और यह परीक्षा उन्हीं के द्वारा पूरे देश में संचालित होती है। संस्कृति ज्ञान परीक्षा की किताब जो हर छात्र को विद्यालय स्तर तक और सभी अन्य पर होने वाली इस परीक्षा की तैयारी के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं। विद्यालय स्तर से अन्य सभी स्तरों पर विजेताओं को प्रथम द्वितीय और तृतीय स्तर के पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। उद्देश्य एक ही है, भारतीय प्राचीन संस्कृति के ज्ञान से नई पीढ़ी को अवगत करवाना। चित्र में- शांतिकुंज परिसर मे प्रवेश के लिए एक द्वार शांतिकुंज एक आश्रम एक धर्मशाला जहां कई लोग निशुल्क रुकते हैं, हरिद्वार में यह धार्मिक आकर्षण का एक मुख्य केंद्र है। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के विषय में यहां इस आलेख से पता च...

वैदिक सभ्यता विशेष | Arya in india | Vedic sabhyata | आर्यों की देन

वैदिक सभ्यता के जितने तथ्यों को समेटा जाए, वह वास्तव में आर्यों की कितनी बड़ी छाप आज के भारत पर है, जिनमें से कुछ चाह कर भी हम छोड़ नहीं सकते। वे आज भी जीवित हैं। ये अतीत के उन पृष्ठों का गहन दर्शन है जिसे आज तक भारत स्वयं में समेटे है, और उसे प्रमाणित करता है।    वसुदेव कुटुंबकम संपूर्ण पृथ्वी को कुटुम्ब मान देना यह सिद्धांत का प्रतिपादन, सर्वव्यापक चिंतन वैदिक काल के आर्यों की संपूर्ण विश्व के कल्याण की चिंता को दर्शाता है। जीवन के ऊंचे ऊंचे आदर्शों का सृजन किया। वे आर्य थे वे इस संसार के सभी सांसारिक सुखों को नाशवान समझते थे। वे परलौकिक सुख तथा मोक्ष की प्राप्ति का पाठ पढ़ाते थे। यह चेतना कि वह लौ है, जो आज तक भारतीयों के मन मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़े है।    उनका प्रमुख व्यवसाय हालांकि कृषि था। वह सिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों जैसे व्यवसाय प्रधान सभ्यता न थी। किंतु वह वस्तु विनियम से चीजों की अदला बदली से व्यापार करते थे। यह भी मालूम हुआ है, कि उन लोगों ने “निष्क” नामक एक मुद्रा का प्रचलन भी किया था।    वे राजा को राज्य का एक अंग मात्र मानते थे। उन लोग...

आर्यों का जीवन | ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वन प्रस्थानम, सन्यास | Area's life

      वैदिक काल में आश्रम व्यवस्था प्रचलन में थी। आश्रम शब्द संस्कृत के श्रम शब्द से निर्मित है, जिसका तात्पर्य परिश्रम से है। वैदिक काल की सभ्यता में जीवन का पहला चरण ब्रम्हचर्य से प्रारंभ होता है, जो कि आश्रम में बीतता था।  छात्र यज्ञोपवीत के बाद आश्रम जाता था। विद्या  के अर्जन के लिए जब ब्रह्मचर्य का जीवन आश्रम में बिता कर घर लौटता तो गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता जहां उसकी शादी होती और वह जीवन के भौतिक सुखों को प्राप्त करता एक समय पर वह जीवन के तीसरे चरण वनप्रस्थान को प्राप्त कर लेता, जिसमें वह अपने घर परिवार को छोड़कर वन की ओर निकल पड़ता। जहां वह लगातार एकांतवास में चिंतन करता।  वनप्रस्थान के पश्चात जीवन का अंतिम चरण जिसमें वह प्रवेश करता है, वह सन्यासी है। सन्यासी व्यक्ति घूम घूम कर अपने जीवन के चिंतन का प्रचार प्रसार करता। अतः वैदिक काल में जीवन के चार चरण हुए ब्रह्मचर्य , गृहस्थ ,  वनप्र स्थान तथा सन्यासी ।    जीवन के इन चार चरणों का मूल आर्यों के चार ऋणों तथा चार पुरुषार्थों पर विश्वास होना भी प्राप्त होता है। क्योंकि आर्यों के...

वैदिक काल का जीवन | जाति प्रथा का उदय | vedic period and the rise of caste system in hindi

वैदिक काल की सभ्यता कैसी रही होगी। इतिहास जो कुछ माध्यमों से सूचित करा पाता है, उससे एक लेख इस विषय पर तैयार कर रहा हूं। वैदिक काल में वेदों की रचना तत्पश्चात उनकी व्याख्या के लिए ब्राह्मण ग्रंथों की रचना और अंत में सूत्रों की रचना की गई। जो वैदिक काल की व्यवस्था का भी वर्णन करते हैं।    उस काल में आर्य कुटुंब, कुल की इकाई में रहते थे। गृह का प्रधान पिता होता था। कई गृह से ग्राम जिसका प्रधान ग्रामीण होता था। कई ग्राम मिलकर विश बनाते थे, जिसका प्रधान विशपति होता तथा कई विशों से जन, जिसका प्रधान गोप होता था, जो राजा स्वयं होता था।  ऋगवैदिक काल में आर्यों के छोटे-छोटे राज्य थे। किन्तु अनार्यों पर विजय होने पर वे राज्य विस्तार करते रहे। विजय के उपलक्ष में राजसूया, अश्वमेध यज्ञ करने लगे।    वैदिक काल में राज्य का प्रधान राजन था। वह अनुवांशिक था, किंतु निरंकुश नहीं होता था। परामर्श हेतु उसके लिए एक समिति तथा सभा होती थी। सभा के सदस्य बड़े बड़े तथा उच्च वंश के लोग थे। किंतु समिति के सदस्य राज्य के सभी लोग थे। ऋगवैदिक काल में पुरोहित, सेनानी तथा ग्रामणी राज्य के प्रमुख...

Arya in india explain in hindi | आर्यों को जानने की साधन | vedas, upnishad, brahmin, sutra, etc in hindi

आर्यों का विस्तार- सप्त सिंधु, मध्य देश, आर्यव्रत और दक्षिणाव्रत ● उत्तर भारत में आर्य- आर्य भारत में धीरे-धीरे आगे बढ़े भले ही वह मूल किसी भी प्रदेश के हों। किंतु भारतीय आर्य प्रारंभ में सप्त सिंधु में ही निवास करते थे। वह सात नदियां का देश जो सिंधु (सिन्ध), झेलम (वित्स्ता),  चुनाव (अस्कनी), रावी (परुषणो), व्यास (पिषाका), सतलज (शतुद्री), सरस्वती। आर्य जैसे जैसे आगे बढ़े। भारतीय प्रदेशों के नाम देते रहें। कुरुक्षेत्र के निकट के भागों में अधिकार करने से उन्होंने उस प्रदेश का नाम ब्रह्मा व्रत रखा। मुख्य विषय यह है, कि उन्हें भीषण संघर्ष अनार्य से करना पड़ा होगा। जब वह और आगे बढ़े और गंगा यमुना दोआब और उसके निकट के प्रदेश पर अधिकार प्राप्त किया, उन्होंने उस प्रदेश का नाम ब्रह्मर्षि देश रखा जब उन्होंने आगे बढ़कर हिमालय और विन्ध्याचल के मध्य के भाग को अधिकार में लिया और स्वयं को प्रसारित किया तो इस प्रदेश को उन्होंने मध्य देश नाम दिया। जब उन्होंने वर्तमान बंगाल और बिहार के क्षेत्रों को भी अधिकार में लिया तो संपूर्ण उत्तर भारत को आर्यवर्त पुकारा। ● आर्यों का दक्षिण भारत में प्रवेश-...

आर्य कौन थे | आर्यों का मूल स्थान | यूरोपीय सिद्धांत, मध्य एशिया सिद्धांत, भारतीय सिद्धांत व्याख्या | Who were aryas

आर्य   कौन थे? इनका मूल स्थान क्या था?      यह बेहद विवादपस्त प्रश्न है। स्मिथ लिखते हैं कि,  “ आर्यों के मूल निवास के संबंध में जानबूझकर विवेचना नहीं की गई है, क्योंकि इस संबंध में कोई विचार निश्चित नहीं हो सका है”।  आर्य का अर्थ है, श्रेष्ठ और वे अनार्य (अश्रेष्ठ) उन्हें कहते हैं, जिनसे वे अपने भारत भूमि भ्रमण में संघर्ष किए। सर्वप्रथम आर्य शब्द वेदों में प्रयुक्त है, व्यापक तौर से यह एक प्रजाति है। जिनकी शारीरिक रचना विशिष्ट है। जिनके शरीर लंबे डील-डौल, हृष्ट-पुष्ट, गोरा रंग, लंबी नाक वाले तथा वीर साहसी होते हैं। भारत, ईरान और यूरोपीय प्रदेश के कई देशों के लोगों का इन्हीं के संतान होने का मत है। यह लोग प्रारंभ से ही पर्यटनशील होते हैं। और इसी प्रवृत्ति से यह लोग संपूर्ण विश्व में फैलने लगे। और इन लोगों ने विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप अलग अलग संस्कृति का विकास किया।   1.  आर्यों का मूल स्थान को लेकर विद्वानों का एकमत होना बहुत कठिन है। क्योंकि विद्वान अलग-अलग ढंग से आर्यों के मूल स्थान की विवेचना करते हैं। इ...

भारतीय सभ्यता के जनक | आदिम निवासी, द्रविड, आर्य, शक, कुषाण, हूण, मुगल, यूरोपियन का भारतीय सभ्यता पर प्रभाव | Development of Indian civilization in hindi

      भारतीय सभ्यता के आरंभिक सूत्रपात कर्ता भारत के आदमी निवासी थे, और उन्हीं की सभ्यता को आर्य और द्रविड़ो ने रूप दिया। तत्पश्चात कालांतर में यूनानी, शक, कुषाण, हूण, मुसलमान और यूरोपियों ने भारतीय सभ्यता को प्रभावित किया, किंतु अनेकों आक्रमणों के बावजूद भी भारत वासियों ने अपनी संस्कृति को अब तक स्वयं में जीवित रखा है। { भारतीय सभ्यता के सूत्रधार } ◆    आदिम निवासी भारतीय सभ्यता के सूत्रधार हैं। वह किरात, कोल, संथाल, मुंड जाति के थे। किरात जाति के लोग असम, सिक्किम और उत्तर पूर्वी हिमालय क्षेत्रों के निवासी करते हैं। और संथाल तथा कोल जाति के लोग छत्तीसगढ़, छोटानागपुर तथा खासी-जयंतिया की पहाड़ी इलाकों में निवासी हैं। यह लोग प्रारंभ में जंगली थे। विद्वानों का मत है कि पाषाण काल की सभ्यता के प्रवर्तक भी आदिम निवासी ही थे। ◆    दक्कन में द्रविड़ अधिक सभ्य थे। वे आदिम निवासियों से अधिक सभ्य थे। वह काले रंग के मझोले कद और चौड़ी नाक के होते हैं। यह लोग तमिल, तेलुगू ,मलयालम, कन्नड़ भाषा का प्रयोग करते हैं।  मिट्टी के बर्तनों पर सुंदर चित्रकारी, स...