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गुरुवार, 13 मार्च 2025

राठ क्षेत्र से मुख्यमंत्री आवास तक का सफर | कलाकारों का संरक्षण राज्य का कर्तव्य

 


एक होली की टीम ने पहल की वे देहरादून जाएंगे अपने लोगों के पास और इस बार एक नई शुरुआत करेंगे। कुछ नए गीत उनके गीतों में खुद का भाव वही लय और पूरे खुदेड़ गीत बन गए। खूब मेहनत भी की और इस पहल को करने का साहस भी किया। देहरादून घाटी पहुंचे और पर्वतीय अंचलों में थाली बजाकर जो हम होली मनाया करते थे, उसे विशुद्ध कलाकारी का स्वरूप दिया। हालांकि आज से पहले बहुत से शानदार टोलियों ने होली बहुत सुंदर मनाई है।।


बदलते समय के साथ संस्कृति के तमाम इन अंशो का बदला स्वरूप सामने आना जरूरी है, उसे बेहतर होते जाना भी जरूरी है। और यह तभी हो सकता है, जब वह प्रतिस्पर्धी स्वरूप में आए अर्थात एक दूसरे को देखकर अच्छा करने की इच्छा।

इस सब में सबसे महत्वपूर्ण है, संस्कृति के इन छोटे-छोटे कार्यक्रमों का अर्थव्यवस्था से जुड़ना अर्थात इन कार्यक्रमों से आर्थिक लाभ होना, यदि यह हो पा रहा है, तो सब कुछ उन्नत होता चला जाएगा संस्कृति भी।

पहाड़ों में खेत इसलिए छूट गए क्योंकि शहरों में नौकरी सरल हो गई और किफायती भी।।


गायकी के क्षेत्र में उत्तराखंड के कलाकार अच्छा कर रहे हैं। वह उसमें लगातार अच्छा करते जा रहे हैं। यह इसलिए है क्योंकि उस क्षेत्र ने उन्हें आर्थिक रूप से संपन्न भी बनाया है। उत्तराखंड में पर्यटन फलता फूलता है, यह इसलिए है क्योंकि वहां लोगों को रोजगार मिलता है ठीक ऐसे ही संस्कृति के इन छोटे कार्यक्रमों के कलाकारों को संवर्धन मिले लोगों का राज्य का तो निश्चित रूप से संस्कृति का संरक्षण होता है। अन्यथा संस्कृति के वे तमाम परंपराएं, रीति और कार्यक्रम आउटडेटेड हो जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हम सबके लिए "बाड़ी" एक पहाड़ी खाद्य व्यंजन अउटडेटेड भोजन हो चुका है।


इसलिए संस्कृति के इन छोटे कार्यक्रमों का इस आर्थिक जगत में मुख्य धारा से जुड़ना जरूरी है, तभी उनका संवर्धन संभव है।।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी ने किसके खिलाफ मोर्चा खोला है?

श्रीनगर किताब कौथिक आयोजित ना होना या जो खबर है, कि उसे होने से रोका गया। इस घटना ने बहुत से सवालों को पैदा किया है, बात यह है कि श्रीनगर में किताब कौथिक आयोजित होना था। इस कौथिक को करवाने वाली उस टीम में सदस्य कहें, हेम पंत जी ने अपनी बात को रखा। वह कहते हैं, कि इस आयोजन को पॉलिटिकल दृष्टि से देखा जा रहा है। जबकि ऐसा कुछ है नहीं। हम पहाड़ों के दूरस्थ गांव में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहते हैं, उसे स्थापित करना चाहते हैं। हमारे राज्य के ऐतिहासिक, पौराणिक क्षेत्र का ज्ञान लोगों को करवाना चाहते हैं। यही हमारा उद्देश्य है 12 सफल आयोजन करवाने के बाद 13 वें आयोजन में इस प्रकार की रुकावट को वे खेदपूर्ण बताते हैं।


दूसरी तरफ छात्र संघ है। छात्र संघ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया कि हमें इस बात की सूचना जब मिली की कॉलेज परिसर में किताब कौशिक का आयोजन होगा और इसमें कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए जाएंगे। हमने लाइब्रेरी में जो तमाम छात्र पढ़ने आते हैं उनसे बात की तो उनकी सहमति पर क्योंकि उनकी परीक्षाएं चल रही हैं, जिसके चलते छात्र हित में हमने इस किताब कौथिक के कार्यक्रम को इस वक्त स्थगित करने या पोस्टपोंड करने की बात रखी।

इस विषय पर जब नरेंद्र सिंह नेगी जी ने बात को उठाया तो मुद्दा व्यापक हो गया। अब एक तरफ तो हेम पंत जी और उनका वह साथी वर्ग जो किताब कौथिक का आयोजन करवाता है, अपने विशुद्ध उद्देश्य के साथ हैं। लेकिन बात अब पॉलिटिकल हाथों में जा चुकी है। यहां से आरोप लगने शुरू होते हैं। 


इस घटना ने कुछ सवाल जरूर पैदा किए हैं हेम पंत जी बताते हैं कि उन्होंने रामलीला मैदान में भी किताब कौथिक करवाने के लिए तैयारी की लेकिन वहां पर भी कुछ इसी प्रकार का विवाद पैदा हुआ। जिस वजह से अब उन्हें इसे पूरी तरह से स्थगित करना पड़ रहा है, ऐसे में सवाल बड़ा है। सरकार तक तो मालूम नहीं लेकिन क्षेत्र के विधायक जी इस विषय पर बात रखें तो बेहतर होगा। हालांकि बाद में यह मुद्दा पॉलिटिकल हाथों में गया, लेकिन मूल रूप से यह शिक्षा प्रेमियों, पुस्तक प्रेमियों और बुद्धिजीवियों का मुद्दा है।।

शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

गढवाली बोली | गढवली मा | मां की जुबान मातृबोली

गढवाली बोली

   शायद मेरी मां ला बचपन मा मी थैं इन नी सिखै होलो कि यु बिरौलो नी च ये कु  C A T  कैट बुलदिन, शायद वांकु परिणाम चा कि मि गढवली अपड़ी मातृभाषा थैं जणदूं छों। कम से कम इतगा जणदूं छों कि अपड़ी बात अपड़ी मातृबोली मा बोली सोकूं अर समझी सोकू।

   ईं मातृबोली से हमरी मां की जुबान च हम मा। हमारी मां की संघर्ष की कहानी च हम मां। वा जुबान हम मा सदनी कु राली। या जुबान हमरी मां को ज्ञान च हम मा। जु हमारी मां थैं हम मा सदनी रखलो। वीं आपबीती थैं सदनी बयां करली या जुबान। या जुबान हम मा अर हमारी ओंण वली पीढी मा सदनी जिंदा राली अर वीं संघर्ष की कहानी थैं बयां कनी राली।

या च मातृबोली

नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर वीडियो देखें।

https://youtu.be/uUc4bSAWL

बोला दौं क्या नी दे ईं बोली ला हम थैं।

   ऊ लोग जौंका मन की बात सिर्फ ईं बोली मा ह्वे सकदी, ऊंका आखरूं थैं, ऊकां दुख सुख से हम थैं ज्वड़दी। या बोली मीं थैं ऊंका इतगा करीब ला के खड़ी करदी, मिं ऊं थैं जाणी सौकू यनु लायक बणोंदी।

   गढवली बुलण वला लोगों की भावनाओं की कदर ऊं लोगों ह्वे सकदी, जुं थै वीं बोली की समझ हो। कदर तभी ह्वे सकदी जब वीं बात की समझ हो।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏