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मौर्य काल का भारत कैसा था | Maurya empire

मौर्य काल में मगध साम्राज्य में विस्तार हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने शासनकाल में पहले सौराष्ट्र को और फिर 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस को हराकर संधि में अफगानिस्तान तथा बलूचिस्तान का प्रदेश भी प्राप्त किया। इस विजय यात्रा को पुनः अशोक ने बढ़ाया, जो 261 ईसा पूर्व कलिंग की विजय के पश्चात अहिंसात्मक नीति का अनुसरण करने लगा। यूं कहें कि मौर्य काल की विजय यात्रा अशोक की कलिंग विजय तक रही। इसके पश्चात तो मौर्य वंश के पतन का ही अध्ययन प्राप्त होता है। मौर्य काल के समय भारत की क्या दशा थी, अर्थात मौर्यकालीन भारत कैसा था , इस पर एक संक्षिप्त परिचय कुछ इस प्रकार से है। कौटिल्य ने अपने महान ग्रंथ अर्थशास्त्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चार जातियों का जिक्र किया है। और वही यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने सात जातियों का अर्थात दार्शनिक, किसान, ग्वाले, कारीगर, सैनिक, निरीक्षक और अमात्य का जिक्र किया है। इस काल में दास प्रथा का भी प्रचलन हुआ करता था। अध्ययन में आता है, कि आठ प्रकार के विवाह उस काल में प्रचलन में थे। शादी के लिए कन्या की उम्र बारह वर्ष और वर की उम्र सोलह वर्ष होनी चाहिए ...

अशोक के पश्चात | मौर्य वंश का पतन

अशोक के पश्चात मगध के शासन पर 48 वर्षों तक उसी के वंशजों ने शासन किया। अशोक का पुत्र कुणाल अशोक के पश्चात सिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तत्पश्चात दशरथ संप्रति, शालिशुक, देववर्मा, शतधनुष तथा वृहद्रथ नाम के शासकों ने मगध के शासन पर मौर्य वंश का गौरव रखा।मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या उसके ही मंत्री पुष्यमित्र शुंग ने कर मौर्य वंश का अंत कर दिया। मौर्य साम्राज्य का पतन यूं कहें कि अशोक के शासनकाल से ही प्रारंभ हुआ तो गलत ना होगा। अशोक की बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा ब्राह्मण धर्म के कट्टर अनुयायियों को रास नहीं रही होगी। उन्होंने अशोक के पश्चात आने वाले मगध सम्राटों को असहयोग प्रस्तुत किया होगा। अशोक की अहिंसात्मक नीति ने सेना पर भी एक बड़ा प्रभाव डाला।राजकोष का अत्यधिक धन सार्वजनिक हित में प्रयोग होने लगा। शिलालेख, स्तंभों का निर्माण यह सब राज्य की सुरक्षा के अतिरेक राजकोष पर भार था। अशोक के शासनकाल के पश्चात उसके उत्तराधिकारी इतनी भी योग्य ना थे, कि वह मगध के इतने विशाल साम्राज्य को छिन्न-भिन्न होने से बचा सकें। साम्राज्य की इतनी विशालता, अशोक के उत्तराधिकारियों की केंद्रीय शास...

Ashoka maurya | अशोक महान क्यों?

अशोक मात्र भारत का ही नहीं, बल्कि विश्व के महान सम्राटों में गिना जाता है। उसकी महानता में अनेक विद्वान लिखते हैं। एच जी वेल्स ने लिखा “प्रत्येक युग और प्रत्येक राष्ट्र इस प्रकार के सम्राट को नहीं उत्पन्न कर सकता है। अशोक अब भी विश्व के इतिहास में अद्वितीय है”। अशोक का सभी राजस्व सुखों का त्याग विलासिता का त्याग और संत के समान जीवन यापन उस समय पर एक सम्राट के विषय में बेहद रोचक प्रसंग दिखाता है। उसकी सहष्णुता तथा उदार प्रवृत्ति ने कभी प्रजा पर अपने धर्म को थोपने का प्रयत्न नहीं किया। हां स्वतंत्र प्रसार का प्रयत्न जरूर किया। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। किंतु उसने कभी प्रजा पर बौद्ध धर्म के अनुसरण को लेकर अत्याचार नहीं किए। वह सभी संप्रदाय के साधु-संतों में दान दक्षिणा करता रहा। उसने अपने धर्म को राज्य धर्म घोषित कर दिया था, और इस धर्म की बातें इतनी सरल थी, कि कोई भी व्यक्ति इन्हें अपनाकर भौतिक सुखों में निर्लज्जता से बचा रहे, और एक स्वस्थ समाज को जन्म देने में योगदान दे। मात्र एक महान धर्म प्रचारक होने के साथ-साथ अशोक एक महान राष्ट्र निर्माता भी था। उसने अपने साम्राज्य में एक भाषा ...

अशोक | Maurya Empire

बिंदुसार के बड़े पुत्र अशोक का सिहासनारोहण कलिंग विजय और अशोक के धम्म तक की यात्रा उस काल के बेहद रोचक शासक होना दर्शाती है। अशोक ने अपने काल में कलिंग विजय के पश्चात अपनी युद्ध यात्रा को समाप्त कर धर्म यात्रा का मार्ग अनुसरण किया। उसने एक लोक मंगलकारी प्रशासन का संचालन किया। अपनी प्रजा के भौतिक सुख मात्र के सम्पन्नता के अलावा उनके आध्यात्मिक और नैतिक स्तर का उन्नयन किया। अशोक बिंदुसार का जेष्ठ पुत्र था। उसका एक छोटा भाई विगतशोक था। इन दोनों भाइयों की मां एक ब्राह्मण कन्या जिनका नाम चंपा या सुभद्रांगी था। अशोक मगध का सम्राट होने से पूर्व शासन की अच्छी समझ रखता था। वह अपने पिता के शासनकाल में अवंती या उज्जैनी तथा तक्षशिला का गवर्नर रह चुका था। बौद्ध धर्म की मानें तो अशोक के सिंहासनारोहण होना उसके द्वारा उसके 99 सौतेली भाइयों की हत्या का परिणाम था। अथवा यूं कहें कि अशोक ने सिंहासन के लिए अपने 99 सौतेले भाइयों की हत्या की थी। हालांकि बहुत से बुद्धिजीवी इसे कपोलकल्पित मानते हैं। किंतु एक विषय यह भी है कि अशोक का राज्यअभिषेक सिहासनारोहण के चार वर्षों पश्चात हुआ था। अतः यह तो निश...

बिंदुसार | चंद्रगुप्त के पश्चात

   चंद्रगुप्त मौर्य ने 298 ईसा पूर्व अपने पुत्र बिंदुसार के हाथों में मगध के विशाल साम्राज्य को सौंप कर स्वयं संयास ले लिया। बिंदुसार अपने पिता की भांति साम्राज्यवादी नीति के अनुरूप चलकर मगध के साम्राज्य को और अधिक विस्तारित तो नहीं कर सका, किंतु उसने अपने साम्राज्य में शासन का सफलता से संचालन किया।    बिंदुसार के काल में तक्षशिला में एक विद्रोह हुआ था, अध्ययन में आता है, उस विद्रोह को बिंदुसार के बड़े पुत्र अशोक ने शांत किया था। विदेशियों के साथ बिंदुसार के संबंध बेहद अच्छे थे। यूनानीयों के साथ उसके अच्छे संपर्क थे। इसलिए व्यापार में अच्छी वृद्धि हुई। अतः यह कहना उचित है, कि बिंदुसार एक कुशल प्रशासक था। 273 ईसा पूर्व में बिंदुसार परलोक सिधार गया, और यहीं आरंभ होता है, अशोक।

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन प्रबंधन भाग- 2

चंद्रगुप्त मौर्य एक महान नेता और विजेता रहा उसने 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस निकेटर से अपने जीवन में आखिरी युद्ध लड़ा, वह अपने साम्राज्य का विस्तार हिंदूकुश से बंगाल और हिमालय से नर्मदा नदी तक कर पाने में सफल रहा।   चंद्रगुप्त मौर्य के पास अपनी विजय यात्रा में शानदार सुसंगठित चतुरंगी सेना थी। सेना का प्रधान स्वयं सम्राट होता था। वह युद्ध के दौरान रण क्षेत्र में होता था। सेना का संपूर्ण प्रबंध 30 सदस्यों की एक परिषद के पास होता था। यह परिषद 6 समितियों में विभक्त होती, जिस हर समिति में 5 सदस्य हुआ करते थे। एक समिति पैदल सेना के लिए, दूसरी समिति अश्व रोहियों के लिए, तीसरी समिति रथ सेना के लिए, चौथी समिति हस्ति सेना के लिए, पांचवी समिति जल सेना के लिए और छठी समिति रसद रण क्षेत्र तक पहुंचाने वाली सेना के लिए प्रबंधक थी। सेना में चिकित्सा विभाग भी होता था। अस्त्र शास्त्र के निर्माण के लिए सरकारी कार्यालय हुआ करते थे। चंद्रगुप्त की यह सेना स्थाई हुआ करती थी, और राज्य से सीधे वेतन पाती थी।   इतने बड़े साम्राज्य में सेना का प्रबंध, वेतनभोगियों और लोक मंगलकारी कार्यों को सुचारु रूप स...

अर्थशास्त्र और इंडिका से मौर्य वंश का शासन प्रबंध

पश्चिम में हिंदू कुश पर्वत से पूर्व में बंगाल तक उत्तर में हिमालय से दक्षिण में कृष्णा नदी तक हिंदुस्तान का विशाल भाग किसी एक शक्तिशाली राजा द्वारा केंद्र से शासित हो रहा था। इतने बड़े साम्राज्य में शासन की निश्चित कड़ियां थी, जो शासन को सुचारू रखती थी।     चंद्रगुप्त मौर्य के काल में शासन प्रबंध को समझने के लिए जो साधन उपलब्ध हैं, वह उस दौर की विद्धान राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ चाणक्य द्वारा लिखा “ अर्थशास्त्र ” और चंद्रगुप्त के शासन में एक यूनानी राजदूत जोकि सेल्यूकस का राजदूत था, मेगस्थनीज। उसने चंद्रगुप्त के साम्राज्य में जो कुछ देखा सुना वह सब कुछ अपनी पुस्तक “ इंडिका ” में लिखा। मेगास्थनीज के विवरण में चंद्रगुप्त के स्थानीय स्वशासन का काफी विवरण मिलता है।    अध्यन के अंतर्गत चंद्रगुप्त के शासन को समझने के लिए उसे तीन भागों में वितरित किया जा सकता है। केंद्रीय शासन, प्रांतीय शासन और स्थानीय शासन।    जो भी हो किंतु व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका का सर्वोच्च प्रधान राजा होता था, वह केंद्रीय सकती थी, और वह स्वेच्छाचारी भी हो सकता था, और निरंकु...

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल | साम्राज्य का प्रसार तथा विजित प्रदेश | Maurya dinesty Chandragupt

Chandragupta maurya   संपूर्ण उत्तर भारत में जिसका साम्राज्य स्थापित हो चुका था, वह दक्षिण की ओर बढ़ता है, और सौराष्ट्र की भूमि पर भी अपना अधिकार स्थापित करता है, इतना ही नहीं वह मालवा को भी अपने अधिकार में करता है, कुछ विद्वानों का मत है, कि उस क्रांतिकारियों के नेता चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य मैसूर राज्य की सीमा तक प्रसारिता था।     चंद्रगुप्त की विजय का आरंभ पंजाब की भूमि से होता है। सिकंदर के भारत से लौट जाने के पश्चात पंजाब की भूमि में यूनानीयों के विरोध में एक बड़ी क्रांति ने जन्म लिया। चंद्रगुप्त मौर्य क्रांतिकारियों का नेता हो गया उसने यूनानीयों को भारत भूमि से मार भगाया और पंजाब पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया।    चंद्रगुप्त मौर्य अब अपने लक्ष्यों के प्राप्ति के उदीयमान पृष्ठों को लिख रहा था। यह वही मगध का साम्राज्य था, जिस पर आक्रमण का साहस सिकंदर न कर सका, किंतु दृढ़ संकल्पित चंद्रगुप्त मौर्य पंजाब पर अपने अधिपत्य के पश्चात मगध के विशाल साम्राज्य पर विजय के मंसूबे को साकार करता है। ब्राह्मण चाणक्य साथ हैं। 321 ईसा पूर्व में चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य ...

मौर्य वंश के उदय की कहानी | चन्द्रगुप्त मौर्य का परिचय | Maurya Dynasty Chandragupt मौर्य का संघर्ष

    भारत में सिकंदर की एक तीव्र यात्रा के ही दौर में जिस साम्राज्य के पूरे उत्तर भारत में स्थापित होने का पथ प्रशस्त हो रहा था।  वह मोर्य साम्राज्य था। मगध की गद्दी पर नया वंश आसीन होता है। जिस राजवंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य हुआ।     चंद्रगुप्त मौर्य किस कुल का था या उनका वंश क्या था, यह ज्ञान निश्चित नहीं है। कुछ विद्वानों के विचार में एक नाइन जिसका नाम मुरा था, चंद्रगुप्त मौर्य उसका पुत्र था। और वह नंदराज की एक शूद्रा पत्नी थी। इस विचार के अनुरूप चंद्रगुप्त मौर्य एक शूद्र कुल का था। किंतु कुछ विद्वानों के मत के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय वंश का था। उनके मतानुसार नेपाल की तराई में पिप्पलिवन नामक एक छोटा सा प्रजातंत्र राज्य था। जिस पर चंद्रगुप्त मौर्य के पिता जो सूर्यवंशी क्षत्रिय थे, और मोरिय जाति के राज शासक थे।    दुर्भाग्यवश एक सबल राजा ने चंद्रगुप्त मौर्य के पिता जो कि नेपाल के तराई क्षेत्र में स्थित एक प्रजातांत्रिक राज्य के प्रधान थे, उनकी हत्या कर दी, और उनसे राज्य छीन लिया। विद्वानों के मतानुसार उस वक्त पर चंद्रगुप्त ...

Alexander की भारत यात्रा का प्रभाव | सिकंदर | भारत पर यूनानी प्रभाव

सिकंदर(Alexander) सिकंदर(Alexander) के आक्रमण का प्रभाव भारत में इतिहासकारों में मतभेद दिखाने वाला एक और विषय है। कुछ विद्वानों का मानना है, कि सिकंदर (Alexander)  का आक्रमण एक तूफान की तरह था, जिसने थोड़ी देर के लिए भारतीयों को झकझोर जरूर दिया था, और फिर पानी के बुलबुले की तरह वह समाप्त भी हो गया। कुछ विद्वानों के विचार में यह बेहद क्षणिक था और भारत के छोटे से क्षेत्र में यह होने पर पूरे भारत पर इसके प्रभाव को गहनता से भी नहीं देखते हैं। उनका मत है कि यह केवल एक सैन्य विजय थी, और यूनानी लोग कुछ ही दिनों के बाद भारत से निकल गए थे, अतः यहां भारत में यूनानीयों का कोई स्थाई प्रभाव ना हो सका। वे तो स्वयं बर्बर और लुटेरे थे, लुटेरे यूनानी सैनिकों से भारत की सभ्यता जो स्वयं में इतनी ऊंची थी, कभी कुछ नहीं सीख सकती थी। इस विषय में स्मिथ महोदय ने लिखा है “यूनानी प्रभाव कभी अंतः स्थल तक प्रविष्ट नहीं हो सका भारतीय राजसंस्था और समाज का संगठन जो जाति व्यवस्था पर आधारित था, वस्तुतः अपरिवर्तित हुआ रहा और सैन्य शास्त्र में भारतवासी सिकंदर(Alexander)  की तीक्ष्ण करवाल द्वारा सिखाई हुई शि...