भाषण कला पर कुछ लिखा है-

यदि आप लिखते हैं, और लगातार बोलते रहे हैं, तो उस दशा में आप बेहतर वक्ता हो सकते हैं।
मैंने यह भी पाया कि यदि आप किसी प्रतियोगिता का हिस्सा हैं, तब अन्य साथियों के भाषणों में ज्ञान की भारी मात्रा हो सकती है। उन्होंने इतनी अधिक सूचनाएं एकत्रित कर अपने भाषणों को तैयार किया होता है, और ऊपर से समय की बंदिश, जिसके चलते प्रतिभागी को जल्दी-जल्दी भाषण कहना होता है। किंतु उसमें आपकी साफ नीति हो सकती है, दो बात कहूंगा, तो ऐसे कहूंगा कि वह श्रोताओं पर सीधा प्रभाव डालें।
भाषण के अनेक तरीके हो सकते हैं, उनमें दो पर बात करते हैं।
एक तरीका जिसमें बात को सीधे ढंग से रखा जाता है, अभिनय कला की कोई भूमिका नहीं। जैसे हमारे पूर्व प्रधानमंत्री माननीय मनमोहन सिंह जी का तरीका रहा है। वहीं एक और भाषण का तरीका जिसमें शब्दों को चुन चुन कर हर वाक्य को बड़ा प्रभावी बनाया जाता है, जैसा डॉ कुमार विश्वास जी के भाषणों के संबंध में है। अब इसी तरीके को दो अलग अलग वक्ताओं में अलग-अलग ढंग से पाते हैं-
इसी स्टाइल की भाषण कला, एक ओर आप अटल जी में पाएंगे। किंतु वे थोड़ा ठहर कर जरूर बोलते थे, और बड़ी रुचि के साथ स्वर ऊँचा और नीचा करना, वाक्य को अंत करते हुए आवाज पर विशेष नियंत्रण रखना। यह उनके अभिभाषणों की अनेक विशेषता में एक रही है।
वहीं दूसरी ओर आप बीजेपी के प्रवक्ता सुधांशु चतुर्वेदी जी को इसी स्टाइल में सुनेंगे। किंतु वे थोड़ा कम ठहरते हैं, और कम समय में अधिक से अधिक बातें बोलते हैं। इसमें कई बार कई श्रोता समझने में पीछे रह जाते हैं, और सुधांशु जी काफी आगे पहुंच चुके होते हैं। किंतु उनका यह तरीका उन्हें बहुत प्रभावी बनाता है।
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