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कांग्रेस के कदम | Loksabha चुनाव 2024

राहुल गांधी से ही कांग्रेस पार्टी के हर स्तर पर चुनाव कर आंतरिक लोकतंत्र की स्थापना की बात करते रहें हैं। यह परिवारवाद के उस बड़े सवाल का जिसे लगातार भारतीय जनता पार्टी द्वारा उठाया जाता रहा है, का परिणाम है। नागालैंड में प्रचार रैली में मोदी जी ने परिवारवाद के हवाले से पुनः कांग्रेस को घेरा। ऐसे में कांग्रेस इन सवालों के निदान में पूरा जोर लगा रही है।

कांग्रेस पार्टी के अहम निर्णय लेने वाली कार्यसमिति में सदस्यों की संख्या कुछ बढ़ाई गई। अब 30 सदस्य कार्यसमिति में होंगे। इसमें महिलाओं, एससी, एसटी, युवाओं आदि को आरक्षण भी दिया गया है। किंतु जब यह तय किया गया कि कांग्रेस पार्टी कि निर्णय लेने वाली अहम कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव नहीं होगा, बल्कि यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मलिकार्जुन खरगे जी जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, को यह अधिकार होगा कि वह सदस्यों को नामित करें, ऐसे में कांग्रेस पर लगने वाले परिवारवाद के सवालों के निवारण अभियान से जो वह आंतरिक हर स्तर पर चुनाव के माध्यम से दर्शाना चाहती थी, से पीछे हट गई। ऐसे में राहुल गांधी और गांधी परिवार का कोई सदस्य संचालन समिति की बैठक में शामिल नहीं हुआ, जहां कार्यसमिति के सदस्यों को नामित किया जाना था। मतलब साफ है, कि कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ताओं में यह दर्शना चाहती है, कि गांधी परिवार के हस्तक्षेप से इतर अब मलिकार्जुन खरगे जी ही कांग्रेस के सभी फैसले लेंगे।
कार्यसमिति के सदस्यों को चुनाव के माध्यम से नहीं चुने जाने का फैसला जितना विपरीत है, उतना ही यह न करने के पीछे दिया गया कारण एक तरह से सही भी है। कारण दिया गया, कि इस समय चुनाव से कांग्रेस में आंतरिक विभाजन हो जाएगा। कांग्रेस की अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए यह फैसला ठीक हो सकता है। किंतु आंतरिक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापना की कांग्रेस की पहल इस के कारण से पीछे हो गई है।
लोकतंत्र में चुनाव एक अहम प्रक्रिया है। इस से निर्मित व्यवस्था सर्वसम्मति की व्यवस्था मानी गई है।

दरअसल कांग्रेस पूर्व से ही अपने दिल के शासनकाल में उपजे घोटालों, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, कुशासन जैसे आरोपों के घेरे में है। उसे इससे पार पाने के लिए बड़े प्रयासों की आवश्यकता है। इसमें भारत जोड़ो यात्रा बड़ा कदम है। जिसका उद्देश्य आम जनमानस तक पहुंच बनाना था।
संवाद ही लोकतंत्र में पार्टियों का मूल हथियार है। जिसका संवाद आम जनमानस से जितना बेहतर होगा वह पार्टी उतनी ऊंचाई हासिल कर लेगी। कांग्रेस ने यात्रा से यही करने का प्रयास किया है। इससे जरूर लाभ होगा। किंतु चुनाव में आगामी वर्ष कांग्रेस को कितना लाभ इससे मिलेगा यह देखने का विषय है। क्योंकि तर्क यह भी है, की यात्रा की भीड़ उत्साहित करने वाली हो सकती है, किंतु यह चुनावी रैलियों की भीड़ के जैसे भी हो सकती है, जिन्हें पार्टी के वोटर होना पक्का नहीं कहा जा सकता।।

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