समाज में एक औरत और पुरुष के किसी अपराध में होने पर अशिष्ट व्यवहार पर दंड देने वाले तीसरे व्यक्ति का उनके प्रति दृष्टिकोण कैसा होगा। यह औरत और पुरुष के संपूर्ण समुदाय के द्वारा किए गए असम्मानजनक कृत्यों के आंकड़ों से अनुमान कर सकते हैं।
जैसे किसी विद्यालय में एक कक्षा के 10 बच्चों ने अवज्ञा की तो सारे विद्यालय में शिक्षक उसके कक्षा को संपूर्ण कक्षा को ही बिगड़ी कक्षा कहने लगते हैं। हो सकता है, कि आज भी विश्व में या अपने ही देश में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के द्वारा किए अपराधों की संख्या में तो समानता ना आई हो, और यदि अपने आसपास समाज में भी हम दृष्टि डालें तो सामान्य तौर से घरेलू हिंसा का अपराध हो या अन्य तो ज्यादातर पुरुष ही अपराधिक कटघरे में खड़े हैं। हालांकि कहीं पर औरत भी अपराधी है, यह अपवाद है। किंतु यह उतना नहीं जितना पुरुष वर्ग अपराधिक कार्यों में ऊंचे आंकड़े दे चुका है।
इस प्रकार की दृष्टिकोण में और सामाजिक समीकरणों में जब एक अन्य व्यक्ति अथवा तीसरा व्यक्ति पुरुष और महिला को अपराध में पाता है, अथवा एक दूसरे पर आरोप मढते पाता है, तो विषय की जानकारी ना होने पर भी वह अधिकतर स्थिति में और अक्सर पुरुष को आरोपी दृष्टि से देखता है। वृतांत का विश्लेषण एक घटना से प्राप्त हो रहा है। यह हाल ही की घटना है।
जहां लखनऊ के चौराहे पर एक लड़की टैक्सी ड्राइवर को पीट रही है। उसे एक दो और इसी क्रम में 20 थप्पड़ मार देती है। जो वीडियो उपलब्ध हुआ उसमें लोग जो वीडियो बना रहे हैं, और सारे विषय को प्रारंभ से देख रहे हैं, जान रहे हैं, वह लड़की को बदतमीज कहते सुने जा सकते हैं।
किंतु हुआ वही जो सामाजिक दृष्टि के अनुरूप तय हो गया है। जब तृतीय व्यक्ति अर्थात पुलिस बिना विषय के जानकारी के पहुंची तो टैक्सी ड्राइवर अर्थात पुरुष को हिरासत में ले लिया। लड़की को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। हालांकि वीडियो ने तमाशा और खींच दिया, और पुलिस को अपराध की रूह तक पहुंचना पड़ा।
किंतु अंततः इस घटना से क्या मायने ज्ञात होते हैं, क्या यह कि लड़कियां या महिलाएं अशिष्ट होती हैं, उन पर हाथ उठाना चाहिए, टैक्सी ड्राइवर को लड़की को पीटना चाहिए था।
शायद हमारे कई विचार होंगे किंतु इस तथ्य को आप कितना अपनाएंगे की एक महिला या लड़की के आचरण से संपूर्ण महिला वर्ग को उस दृष्टि से देखना ठीक नहीं, इसे एकल मानव की अशिष्टता की दृष्टि से जानना चाहिए। ठीक यही पुरुषों के लिए दृष्टता होनी चाहिए।
इन सब घटना चक्र में आकर हमारी बुद्धि ने विषयों पर विचार की जो राह प्राप्त कर ली है। वह प्रकृति की देन इस सुंदर दुनिया से हमें कितना दूर लाकर खड़ा कर गई हैं।
फेक फेमिनिज्म जैसे शब्दों ने तकरीबन सभी औरतों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यह ठीक नहीं जैसे नारी एक मकान को घर बना देती है। उसमें प्यार भर देती है। वही नारी समाज को बेहद सुंदर बना सकने में भी सक्षम है। हमारे देश की नारी को इस दिशा में कदम बढ़ाने हैं। उन्हें यह तय करना होगा, कि वे उस स्थिति पर न पहुंचे कि समाज में कोई किसी अपराध में औरत को बिना विषय की जानकारी वाला तीसरा व्यक्ति आरोपी मान ले।
मुद्दे बनते रहते हैं। सोशल मीडिया घर-घर तक पहुंचाती हैं। और बहुत सफल भी है। किंतु इस प्रकार के मुद्दों से हमारी दृष्टिता पर क्या प्रभाव हुआ जा रहा है, इस पर आप क्या सोचते हैं।।
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