
तालिबान में महिलाएं-
तालिबानी महिलाओं को लेकर कैसी मनः स्थिति में है, और समय के साथ कितना परिवर्तन स्वयं में ला पाने में वह सफल हो सका है, यह सब तालिबान से आने वाली खबरों में साफ हो रहा है, महिलाओं का सड़कों पर प्रदर्शन अपनी आजादी और खुली सांस की लड़ाई।
तालिबान मानसिकता में जीवन के समस्त अधिकारों को वे खो नहीं देना चाहती। वे उन जंजीरों में बंध कर खुद को कैदी महसूस कर रही हैं। वह दुनिया में खुद को उन महिलाओं में गिनना चाहती हैं, जो हर विषय पर कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति की राह में सेवा दे सकती हैं।
ऐसे में तालिबानी बुर्खा, हिजाब उन्हें तो जरूर ढक लेगा, किंतु उनके आक्रोश की ज्वाला, हक को लड़ने की मानसिकता को नहीं ढक सकता है, तालिबान से महिलाओं को लेकर सर्वाधिक पिछड़े फैसलों की अपडेट मिल रही हैं, किंतु अफगानी महिलाओं ने अपने अपने स्तर से इस मानसिकता के खिलाफ जंग को जारी रखने की मुहिम छोड़ी नहीं है। सोशल मीडिया पर रंग बिरंगे वस्त्रों में अपनी तस्वीरों को वह पोस्ट कर रही हैं। वे लिखती हैं, कि वह रंग बिरंगी पोशाक हमारी संस्कृति हैं, तालिबान हमारी पहचान तय नहीं करेगा। इस प्रकार से विरोध लगातार जारी है।
वही अफगान से 32 महिला फुटबॉल खिलाड़ी अपने परिवार को लिए लाहौर पहुंच गए हैं। यह सब तालिबान की नजरों से बचकर हुआ है। तालिबानी लोग इन्हें धमका रहे थे। क्योंकि ये महिला होते हुए खेल से जुड़ी हैं। तालिबान को यह मंजूर नहीं। यह महिला खिलाड़ी 2022 में कतर में होने वाले विश्व कप में शामिल होंगे। इन महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा को देखते हुए इन्हें पाकिस्तान ले जाने का कदम ब्रिटेन के एक एनजीओ ने उठाया।
इन सब घटनाओं से स्पष्ट हो रहा है, कि तालिबान महिला प्रतिभा और उनकी अहमियत को कितना आंकता है, इसलिए उन्हें बांध कर रखने का प्रयत्न करता है।
तालिबान को लेकर दुनिया में-
तालिबान के कारनामों पर समर्थन देने वाले और आशंकित और विरोधी रुख लिए राष्ट्रों के नाम धीरे-धीरे साफ हो रहे हैं। खाड़ी देशों के एक वरिष्ठ अफसर की माने तो अफगान के विषय पर जहां चीन और पाक एक तरफ हैं, तो भारत, रूस और ईरान एक ओर होंगे। उनका कहना यह भी है, कि ईरान की नज़दीकियां भारत और रूस से अधिक है, वे अपनी ओर से अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की मिलीभगत पर कहते रहेंगे।
दुनिया में पाकिस्तान अपने तालिबानी समर्थन स्टैंड के चलते घेरे में तो आया है, और यदि ऐसा नहीं है तो क्यों खबरों में है, की काबुल की सड़कों पर पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए गए। इस पर सोचने का विषय है कि काबुल की सड़कों पर विरोधी क्यों तालिबान के बजाय पाकिस्तान के खिलाफ स्वर ऊंचा करते हैं।
अफगानिस्तान बिगड़ते हालात-
पिछले दिनों की खबरों से यह मालूम हुआ, कि लोग अफगान में इस स्थिति में आ गए हैं, कि खाने को कुछ नहीं काम के जरिए समाप्त हो गए हैं। बैंकों से रुपए मिल पाना बेहद मुश्किल हो रहा है, वहां लंबी कतारें हैं। लोग यहां तक कि अपने घरों का सामान बेचने को सड़कों पर बैठे हैं। यूएन ने फिर अफगान के बिगड़ते हालातों पर चिंता व्यक्त की है। अफगान में मानवीय स्थिति बत्तर हालातों में आ चुकी है। वहां लोगों के पास भोजन, दवा, घर जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं है।
वहीं अफगान के मानव अधिकार आयोग ने कहा कि तालिबान उनके दफ्तर को अपने अधिकार में ले चुका है। तालिबान मानव अधिकार आयोग के कामकाज में दखलंदाजी करता है। उनके कंप्यूटर, कार सभी तालिबान अपने इस्तेमाल के लिए प्रयोग में ला रहा है। उन्हें अपनी स्वतंत्र कार्यकारिणी को लेकर चिंता है।
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