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उत्तराखंड में भाजपा की उभरती समस्याएं



पार्टी का नेतृत्व खेमा बड़ा होने से अब भाजपा की उत्तराखंड में चुनौती भी बड़ी है, कि वे सभी बागी हुए तथा योग्य, बुजुर्ग सभी नेताओं को मनोवांछित सीटों पर टिकट दे, जीत हो तो मंत्रिमंडल में जगह दे, मुख्यमंत्री का पद दें। वही भाजपा पार्टी के उत्तराखंड में पहले से ही दिग्गज नेता अपनी भक्ति, लंबे समय से पार्टी में होने के फल में अपने ही विचार को पार्टी का विचार मानने की मनः स्थिति में आ चुके हैं।

2016 में एक ओर पहले से ही कांग्रेस से बागी नेता अपनी मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी के लिए अधीर हुए हैं। भाजपा उन्हें भी अपनी पार्टी में ग्रहण कर पूर्णतः पकाने का काम कर रही हैं। किंतु वह बागी नेता तो राजनीति में अरसे से हैं, अतः अब इंतजार करना उन्हें लाजमी नहीं, और राजनीति में लंबे समय से होने के कारण अधिक अनुभव के कायदे से यूं तो उन्हें ही मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होना चाहिए, किंतु भाजपा के लिए तो वे इतने पुराने नहीं जितने कि वे राजनीति में पुराने हो चुके हैं।
खैर एक ओर जहां नेताओं का भाजपा का दामन थामना हो रहा है। वही सीट पर यह समस्या होगी, कि टिकट दे किन्हें।
पुरोला की ही सीट का हाल देखें कि विधायक राजकुमार मुख्यमंत्री, घोषणाओं के बदला बदली के दौर में खुद भी एक कदम और बदल लिए हैं, क्षेत्र में राजनीति का दायरा और तीव्रता कम नहीं होती है, इस पर विपक्षी व्यक्ति का अपनी ही पार्टी का विधायक हो जाना और उस समय पर जब चुनाव 2022 दरवाजे पर हैं, तब वर्तमान पुरोला विधायक राजकुमार जी का यह कदम पूर्व विधायक पुरोला मालचंद जी को भविष्य में भाजपा का पुरोला सीट पर टिकट को लेकर समीकरण स्पष्ट दिख रहे हैं। और यही कारण है कि वह इस विषय पर बोले।
दरअसल पुरोला क्षेत्र में चर्चाएं यह भी होने लगी कि विधायक मालचंद जी कांग्रेस में शामिल होंगे, किंतु विधायक मालचंद जी ने यह तथ्य पूर्णता असत्य दर्शाए। उनका यह भी कहना है, कि पुरोला सीट पर 2022 भाजपा से टिकट उन्हें ही मिलने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि वह भाजपा पार्टी के एजेंडे पर सदैव से कार्य करने को नियत रहे हैं। जबकि कुछ लोगों ने भाजपा पार्टी को छोड़ दिया था। अतः स्पष्ट है, कि पुरोला सीट पर भाजपा के लिए टिकट को लेकर समस्या जरूर है, और उम्मीदवारों में से किसी का टिकट ही प्राप्त करना अपने आप में एक बड़ी जीत है।
टिकट वितरण में संतोष असंतोष और अपनी ही पार्टी के सदस्य का आकर विरोधी हो जाना राजनीति का पहलू है, और हो भी क्यों नहीं 5 साल में एक बार तो यह पर्व होता है, और 5 वर्षों तक अपने आप को साधना में रखें उम्मीदवार को टिकट हाथ ना लगे, तो वह स्पष्टतः निराश ही होगा।
2016 से कांग्रेस से बागी नेताओं की मुख्यमंत्री पद की चाह अब तक भाजपा भी पूर्ण नहीं कर सकी है। अब वह किसी दिशा में दल बदलें। वे राज्य में शीर्षस्थ नेता रहे हैं। यदि अब दलों की दिशा बदलते हैं, तो दिशाहीन कहलाएंगे।
कुल मिलाकर राजनीति में बड़ा परिवार होने पर और एक ही सीट की इच्छा रखने वाले काबिल कई उम्मीदवार हो जाना पार्टी में असंतोष पैदा करता है। और पुरोला वर्तमान विधायक राजकुमार जी का भाजपा में शामिल होना तथा पुरोला के पूर्व विधायक मालचंद जी का इस पर बयान कि 2022 में पुरोला सीट से टिकट उन्हें ही मिलने वाला है, यह तय है कि कहीं ना कहीं टिकट वितरण एक खेमे में असंतोष जरूर पैदा करेगा।

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