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काला पानी| | देवानंद फिल्म 1958 | Kala Pani movie 1958 | Dev Anand movie

Kala Pani

डायरेक्टर-   राज खोसला
प्रोड्यूसर-   देवानंद
गीत-   आशा भोसले, मोहम्मद रफ़ी
कलाकार-   देवानंद, मधुबाला, नलिनी, सप्रु, नासिर हुसैन, Johnnie Walker, मुमताज बेगम, जयवत साहू, Samson, Ravikant

  1958 की फिल्म काला पानी एक आपराधिक मामले की दास्तां है। माला एक तवायफ का नाम है।  नाच- गाने के शौकीन और विलासी जीवन यापन करने वाले लोग कोठे पर शिरकत देते हैं। माला का कत्ल हुए 15 साल बीत चुके हैं, और अदालत के द्वारा कातिल शंकरलाल नाम के व्यक्ति को ठहराया गया है। यह फिल्म जिस मुख्य पात्र के ऊपर बनी है। वह शंकरलाल का पुत्र है, जिसका नाम करण है। करण 15 वर्ष तक इस झूठ के साथ जीता है, कि उसके पिता मर चुके हैं। किंतु 1 दिन उसे यह मालूम चल जाता है, कि उसके पिता जीवित है, और हैदराबाद की जेल में सजा काट रहे हैं। वह अपने पिता से मिलने के लिए उत्सुक हो उठता है, यह  सच्चाई जानने के लिए कि क्या वास्तव में उसके पिता कातिल है, और हैदराबाद जाने का मन बना लेता है।

   उसकी मां उसे समझाती है, ऐसा भी कहती है, कि उसके पिता ने उसकी मां का त्याग कर दिया था, और उस तवायफ माला को अपना लिया था, और बाद में उसका भी कत्ल कर दिया। करण की मां भी उसके पिता को कातिल समझती है। करण यह सब जानकर भी सच की तलाश के लिए हैदराबाद चला आता है। और हैदराबाद में करन की प्रेम कहानी भी प्रारंभ होती है। जहां आशा नाम की एक लड़की जो प्रेस में काम करती हैं, और करण जिस होटल में कमरा लिए होता है, उस होटल की मालकिन आशा की चाची होती है। करण हैदराबाद की जेल में अपने पिता से मिलने के लिए इंचार्ज से मिलता है। 

   जब करन अपने पिता से मिलने लगता है, तो उसे अपने पिता की बेगुनाही का एहसास होता है। वह 15 साल पहले उसके पिता को गिरफ्तार करने वाले पुलिस अफसर से भी मिलता है। अपने पिता के बेगुनाही में सबूत इकट्ठे करने लगता है। इन सबके जरिए उसे शहर के एक और तवायफ किशोरी के बारे में मालूम चलता है। जिसने उसके पिता के अपराधी ठहराए जाने को लेकर गवाही दी थी। उसे यह भी मालूम चलता है, कि किशोरी के पास कुछ पत्र हैं, जो उसके पिता को बेगुनाह साबित कर सकते हैं। करण उसे अपने प्रेम जाल में फसाने में कामयाब हो जाता है। वह करण पर मर मिटने को तैयार होती है।

   वह करण को यह बताती है, कि उसके पास पैसे की कमाई का एक और जरिया है। करण जब उसके कमरे में तलाश करता है, तो वह खुद ही उन पत्र को करण के सामने फेंक देती है। किशोरी को भी यह मालूम चल जाता है, कि 15 साल पहले उसकी झूठी गवाही से जिस बेगुनाह को सजा हुई है, वह करण के पिता हैं। करण उन पत्रों को लेकर वकील राय बहादुर जसवंत राय के पास पहुंचता है। किंतु रायबहादुर भी 15 साल पहले करन के पिता को हुई सजा की साजिश में शामिल था। इसलिए राय बहादुर ने वह पत्र करन के सामने ही जला दिए। करन शहर में अपने पिता के बेगुनाही के लिए वकील के घर के बाहर लोगों की भीड़ इकट्ठा कर इंसाफ की मांग करता रहा। आशा जो करन की प्रेमिका थी, अपने अखबार में इस सच्चाई को छापती रही, आखिर में एक बार फिर करन की मुलाकात किशोरी से होती है, और किशोरी करण से मिलकर उसे असली पत्र देती है।

   वह कहती है, कि जो पुराने पत्र वकील ने जला दिए हैं, वह तो झूठे थे, और करन इन पत्रों को आशा के अखबार में छपवा देने के बाद अपने पिता को बेगुनाह साबित करवा देता है। इसके साथ ही फिल्म समाप्त हो जाती है।

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