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Alexander in india झेलम का युद्ध in hindi विस्तृत वर्णन | सिकन्दर का भारत पर आक्रमण तथा वापस लौटने का कारण

    327 ईसा पूर्व में सिकंदर ने हिंदूकुश पर्वत को पार कर वह काबुल में आ डटा था, वहां पर उसने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त किया, जिसमें एक सेना का संचालन उसने अपने विश्वस्त सेनापति को दिया जो खैबर के दर्रे से आगे बढ़ी। और दूसरी सेना को अपने नियंत्रण में रखकर वह काबुल की घाटी में प्रवेश करता है, अनेक छोटे-छोटे राजाओं को  जीतते हुए वह आगे बढ़ता है। और अंततः यह दोनों सेनाएं ओहिंद नामक स्थान पर पुनः मिलती हैं, वहां से ये आसानी से सिंधु नदी को पार कर जाते हैं।

   सिंध नदी के पार उस समय पर अर्थात सिधु नदी के पूर्व में उस समय पर मुख्य तौर से दो सबल शासक थे, आंभी तथा पुरु या पोरस।

किंतु उन दोनों के मध्य में सहयोग का संबंध न था, वे एक दूसरे के प्रतिद्वंदी बने रहे। और यह सिकंदर के पक्ष में था। इससे पहले कि सिकंदर आक्रमण करता आंभी ने सिकंदर को अपने राज्य में आने का निमंत्रण दे दिया। दरअसल वह सिकंदर के माध्यम से पोरस को नीचा दिखाना चाहता था। यदि पोरस और आंभी साथ मिलकर सिकंदर का सामना करते तो शायद वे जरूर जीत जाते।

   326 ईसा पूर्व में आंभी की राजधानी तक्षशिला में सिकंदर अपनी सेना के साथ प्रवेश करता है। आंभी उसका स्वागत करता है, और पोरस के खिलाफ सिकंदर की विजय में उसका साथ देता है।

   पोरस का राज्य झेलम तथा चुनाव नदी के बीच में था। सिकंदर ने पोरस के राज्य पर आक्रमण कर दिया, वह झेलम नदी के पश्चिम तट पर आ डटा किंतु पोरस की सेना पहले से ही झेलम नदी के पूर्वी तट पर झंडा गाड़े खड़ी थी। कई महीनों तक दोनों सेनाएं जैसी की तैसी वही पड़ी रही, किंतु झेलम नदी को पार करने का साहस किसी ने ना किया, फिर एक दिन अंधेरी रात में जब बहुत भयानक आंधी चल रही थी, सिकंदर की सेना झेलम नदी को पार कर जाती हैं, और जब पोरस को यह मालूम होता है, तो वह भी रण के मैदान में अपनी सेना के साथ पहुंचता है। दोनों में भीषण संग्राम होता है, पहले तो पोरस की सेना सिकंदर की सेना को शिकस्त दे रही होती है। किंतु बाद में किसी तरह सिकंदर जीत जाता है, और पोरस को बंदी बना लिया जाता है।

   इस रण क्षेत्र का एक प्रसंग सम्मुख आता है, कि जब पोरस को बंदी बना लिया जाता है, और उन्हें सिकंदर के सामने लाया जाता है, तो सिकंदर पोरस से प्रश्न करता है, कि कहो तुम्हारे साथ क्या व्यवहार किया जाए पोरस बेहद स्वाभिमानी व्यक्ति थे, उनका जवाब आता है कि जैसे “एक राजा दूसरे राजा के साथ व्यवहार करता है”।

   सिकंदर पोरस जैसे स्वाभिमानी व्यक्ति से मित्रता का महत्व समझता था। जब तक सिकंदर भारत में रहता है पुरु उससे अपने मैत्री भाव का निर्वाह करता है। सिकंदर पोरस से मैत्री संबंध स्थापित करता है, और वहां से आगे बढ़ता है, जहां दो अन्य राज्यों को मार्ग में जीतता है। अंत में वह पंजाब की अंतिम नदी व्यास के पश्चिमी किनारे पर आ खड़ा होता है, और यह वही सीमा थी, जहां से मगध का विशाल साम्राज्य भारत के पूर्वी छोर तक विस्तारित था, यदि सिकंदर यहां विजय हासिल करता तो पूरे भारत पर उसका वर्चस्व स्थापित हो जाता।

   किंतु मगध के साम्राज्य पर आक्रमण करने का उसकी सेना का कोई विचार न था। उस उत्साह में कमी थी। उसकी सेना में अब इतना साहस न रहा था कि मगध जैसे विशाल साम्राज्य को चुनौती दे सकें। क्योंकि बहुत लंबे समय अपने घर से बाहर थे, और युद्ध करते करते वे थक भी गए थे। वह बहुत दूर आ गए थे। अब घर वापस लौटना चाहते थे। यही कारण होगा, कि मगध की सीमा को सिकंदर पार न कर सका, और उसने वापस लौटने का निश्चय किया।

वह पोरस से मिला शासन संबंधी नीति पर विचार विमर्श किए, और वहां से लौट गया, लौटते वक्त भी उसे अनेक सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा, अनेक छोटे-छोटे राज्यों से उसका सामना हुआ। सिंध के निचले प्रदेश में पटल नाम के स्थान पर उसने अपनी सेना को तीन भागों में विभक्त कर दिया, एक को उसने समुद्री मार्ग से और दो को स्थल मार्ग से भेज दिया, वह स्वयं स्थल मार्ग से हो चला, अंत में वह अपनी टुकड़ी के साथ बेबीलोन जा पहुंचा, वहां पर ज्वर से पीड़ित हो गया, और 32 वर्ष की उम्र में 323 ईसा पूर्व उसका परलोकवास हो गया।

यहीं पर उसके विश्व विजय की यात्रा का अंत हो जाता है। हालांकि उसकी विश्वविजय का ख्वाब पूर्ण तो ना हो सका, किंतु वह विश्व के महान सेनानियों में अपने आप को दर्ज करा सकने में सफल रहा।

    उपरोक्त प्रसंग आप सब ने इसी प्रकार से अध्ययन जरूर किया होगा।

किंतु यह एक पक्ष की कहानी है, कई तथ्य आज भी इस प्रश्न को जीवित रखते हैं कि जीता कौन था, पोरस या सिकंदर? 

यदि सिकंदर विश्व विजेता था तो वह पोरस के राज्य से वापस क्यों लौटा?

वे यूरोपीय लेखकों के द्वारा सिकंदर की प्रसंग को यथावत लिखा नहीं मानते हैं, बल्कि सिकंदर की महानता को अथवा यूरोपियों की महानता को प्रस्तुत करती हुई दृष्टि में रहकर लिखा हुआ मानते हैं।

वे आज भी इस विषय के निचोड़ को रत हैं।

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