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बौद्ध धर्म के पतन के प्रमुख कारण | बौद्ध धर्म का अपनी ही भूमि पर न्यून अनुयायी | Boddh dharma

   बौद्ध धर्म ने जिस तीव्रता के साथ उन्नति की उसके पतन की कहानी भी उतनी ही तीव्र रही। बौद्ध धर्म का अपनी ही जन्मभूमि में जैसे उन्मूलन सा हो गया। हालांकि विश्व के अनेक राष्ट्रों में आज भी बौद्ध धर्म विद्यमान है।

   बौद्ध धर्म के उन्नति के कारणों का ज्ञान होने के पश्चात इस के पतन के कारणों का भी अनुमान लगाया जा सकता है। उन्नति में जिन कारणों ने साथ दिया था, उनका अभाव कालांतर में हो जाने पर बौद्ध धर्म का पतन हुआ। 

   बुद्ध जी के पश्चात बौद्ध धर्म के अनेक शाखाओं ने जन्म लिया, मतों में भेद होने लगा। प्रारंभ में बौद्ध संघों में जो भिक्षुक-भिक्षुणियां रहते थे। उनका जीवन बहुत श्रेष्ठ था, वह बहुत पवित्र और आदर्शमय थे। किंतु कालांतर में उनका चारित्रिक पतन हो गया, जिससे वे लोगों में घृणा के पात्र हो गए।

जब बौद्ध धर्म ने उन्नति करना प्रारंभ किया तो ब्राह्मणों ने अपने धर्म के दोषों को जांचना प्रारंभ किया। उन्होंने तेजी से इसमें सुधार के प्रयत्न प्रारंभ किए। शंकराचार्य आदि जैसे बड़े सुधारक आचार्य हुए, जिन्होंने बौद्ध धर्म का खंडन किया और ब्राह्मण धर्म के पुनरुत्थान पर कार्य किया। उन्होंने ब्राह्मण धर्म वैष्णव और शैव धर्म के रूप में प्रचलन में खूब सहयोग दिया। भक्ति मार्ग दिखाया जो इतना ही सरल था, जितना कि बुद्ध जी द्वारा दिखाया गया मार्ग।

यदि आप बौद्ध धर्म के पतन का एक सबसे बड़ा कारण कलान्तर में राजाओं द्वारा सहयोग न मिलना कहें तो गलत ना होगा, क्योंकि जब बौद्ध धर्म प्रारंभ में उन्नति के पथ पर तीव्र गतिमान था। तब उसे तत्कालीन अनेक राजाओं का संवर्धन मिला, किंतु कालांतर में राजाओं का आश्रय न मिल सका। शुंग वंश के राजा ब्राह्मण थे। उन्होंने ब्राह्मण धर्म को संरक्षण दिया। गुप्त सम्राटों ने भी ब्राह्मण धर्म को अपना संरक्षण दिया आगे चलकर राजपूत राजाओं ने भी जो बेहद रण प्रिय थे। अहिंसा के धर्म को समर्थन देने की बजाय ब्राह्मण धर्म को ही उन्नति के पथ पर होने को सहयोग किया। बौद्ध धर्म का पतन का श्रेष्ठ कारण कालांतर में राजाओं का संवर्धन न मिल पाना भी है।

   कालांतर में विदेशी आक्रमणकारियों ने भी बौद्ध धर्म को पतन की ओर ले जाने को राह प्रशस्त की, विशेषकर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने कई बौद्ध मठों और बिहारो को नष्ट कर दिया।

यही कारण कुछ प्रमुख रहे होंगे, जो बौद्ध धर्म अपनी ही भूमि में आज न्यून संख्या में अनुयायियों को लिए है।

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