सोमवार, 8 नवंबर 2021

बौद्ध धर्म की उन्नति के प्रमुख कारण | boddh dhrma in hindi | ancient india

 बौद्ध धर्म के प्रसार के मुख्य कारण-

बौद्ध धर्म ने देशभर में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रचलन के श्रेष्ठ स्तर को प्राप्त किया। नेपाल, चीन, कंबोडिया, जापान, तिब्बत, सुमात्रा, जावा, वर्मा, लंका, मध्य एशिया में अपनी जड़ों को मजबूत करने में बौद्ध धर्म बेहद सफल रहा।

इसके कई कारण देखे जा सकते हैं, जो बौद्ध धर्म के उन्नति के प्रमुख कारक है, सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि उस वक्त तक वैदिक सभ्यता का धर्म दोषपूर्ण हो चुका था। लोग यज्ञ तथा बली से तंग आ चुके थे, और यज्ञ में सरलता समाप्त हो जाने के कारण साधारण लोगों की पहुंच से ये बाहर हो गए थे।

   भगवान बुद्ध के बेहद आकर्षक रूप और उपदेशों के कारण बौद्ध धर्म में तीव्र उन्नति की।

मोनियर विलियम्स ने लिखा की “व्यक्तिगत चरित्र का प्रभाव उनके उपदेशों के अद्भुत आकर्षण से मिलकर अचूक हो जाता था”।

   भगवान बुद्ध अपने उपदेशों में पाली भाषा का प्रयोग करते थे। यह साधारण बोलचाल की भाषा थी। लोग इसे बेहद आसानी से समझ पाते थे। यह कारण भी वैदिक सभ्यता की जटिल संस्कृत भाषा में ज्ञान का विकल्प बौद्ध धर्म को जनसाधारण में दिखा पाने में सफल रहा।

   भगवान बुद्ध ने कभी जातिवाद और भेदभाव को नहीं माना। उन्होंने संपूर्ण मानव समाज को मोक्ष का अधिकारी कहा।  भगवान बुद्ध ने हर जाती हर वर्ग के व्यक्ति के लिए मोक्ष के मार्ग खोल दिये, यही कारण है कि जनसाधारण बौद्ध धर्म से एक बड़ी संख्या में जुड़ने लगा।

   बौद्ध धर्म के प्रचार में बौद्ध संघों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है, देश के कोने कोने में बौद्ध संघ स्थापित किए गए, और सर्वाधिक महत्वपूर्ण गौर करने योग्य विषय है, कि बौद्ध धर्म की उन्नति में बौद्ध मठों के निर्माण में सेठ साहूकारों और बड़े-बड़े सम्राट बिंम्बिसार, अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि ने भरसक योगदान दिया।

बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए समय-समय पर बौद्ध भिक्षुओं की और आचार्यों की सभा होती थी। बौद्ध प्रथम संगति राजगृह में हुई, दूसरी संगति वैशाली में, तीसरी अशोक के काल में पाटलिपुत्र में, और चौथी कनिष्क के काल में कश्मीर में हुई थी।

   बुद्ध की सीख में जीवन को मध्यम मार्ग से जीने का उपदेश सर्वाधिक सरल और व्यापक हो सकने योग्य था। एक साधारण जनमानस का विशाल भाग न तो बहुत अधिक विलासिता का जीवन जीता था, और ना ही बहुत अधिक कठिन तप का जीवन, वह तो मध्यम जीवन जीने के मार्ग का ही अनुसरण करता था, और इस पर जीवन में कुछ सरल आचरण जिसे आम जनमानस सुगमता से निभा सकता था। सत्य बोलना, जीवो पर दया करना आदि कुछ नैतिक आदर्श की बातें एक साधारण गृहस्थ का व्यक्ति भी पालन कर सकता था।

   भगवान बुद्ध का संपूर्ण जीवन ज्ञान की प्राप्ति और बौद्ध धर्म के प्रचार में व्यतीत हुआ। सिद्धार्थ नामक बालक ने अपने जीवन में राजसी सुख और विलासिता को देखा। किन्तु उन्होंने अपने जीवन में उसका तिरस्कार किया। जब वे कठिन तप में लीन थे, अपने शरीर को कष्ट दे रहे थे, तब शरीर सूखकर कांटा हो गया।

भगवान बुद्ध ने निष्कर्ष निकाला बेहद कठिन तपस्या का और अत्यधिक विलासिता का जीवन व्यर्थ है, निरर्थक है। अतः जीवन जीने के मध्यम मार्ग को अपनाओ।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Please comment your review.

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏