बिंदुसार के बड़े पुत्र अशोक का सिहासनारोहण कलिंग विजय और अशोक के धम्म तक की यात्रा उस काल के बेहद रोचक शासक होना दर्शाती है। अशोक ने अपने काल में कलिंग विजय के पश्चात अपनी युद्ध यात्रा को समाप्त कर धर्म यात्रा का मार्ग अनुसरण किया। उसने एक लोक मंगलकारी प्रशासन का संचालन किया। अपनी प्रजा के भौतिक सुख मात्र के सम्पन्नता के अलावा उनके आध्यात्मिक और नैतिक स्तर का उन्नयन किया।
अशोक बिंदुसार का जेष्ठ पुत्र था। उसका एक छोटा भाई विगतशोक था। इन दोनों भाइयों की मां एक ब्राह्मण कन्या जिनका नाम चंपा या सुभद्रांगी था। अशोक मगध का सम्राट होने से पूर्व शासन की अच्छी समझ रखता था। वह अपने पिता के शासनकाल में अवंती या उज्जैनी तथा तक्षशिला का गवर्नर रह चुका था।
बौद्ध धर्म की मानें तो अशोक के सिंहासनारोहण होना उसके द्वारा उसके 99 सौतेली भाइयों की हत्या का परिणाम था। अथवा यूं कहें कि अशोक ने सिंहासन के लिए अपने 99 सौतेले भाइयों की हत्या की थी। हालांकि बहुत से बुद्धिजीवी इसे कपोलकल्पित मानते हैं।
किंतु एक विषय यह भी है कि अशोक का राज्यअभिषेक सिहासनारोहण के चार वर्षों पश्चात हुआ था। अतः यह तो निश्चित है, कि संघर्ष जरूर हुआ होगा और इसमें कुछ भाइयों की हत्या भी अवश्य हुई होगी।
अशोक ने सम्राट हो जाने के पश्चात सर्वप्रथम अपने पूर्वजों की भांति साम्राज्यवादी नीति अपनाकर कलिंग पर विजय की योजना बनाई, उसने अपने राज्यभिषेक के नवें वर्ष में ही कलिंग जो कि उसके साम्राज्य के दक्षिण पूर्वी हिस्से में था, और एक शक्तिशाली स्वतंत्र राज्य था, जो कि भविष्य में उसके लिए और उसके साम्राज्य के लिए खतरा बना हुआ था, उस पर विजय हासिल की।
कलिंग विजय अशोक के हृदय परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण हुआ, अशोक ने विजय यात्रा की जगह धर्म यात्राएं करना प्रारंभ कर दिया। वह कलिंग के युद्ध में हुए लाखों लोगों की हत्या और उस हिंसा के प्रभाव से अहिंसा का पुजारी हो गया।
वास्तव में कहें तो अशोक का पूर्णतः लोक मंगलकारी शासन कलिंग की विजय के पश्चात प्रारंभ होता है, जहां अशोक युद्ध यात्रा से अपने आपको पीछे खींच लेता है, और जनकल्याण के लिए धर्म के प्रचार-प्रसार में प्रयत्न प्रारंभ करता है।
अशोक की शासन व्यवस्था पुरखों से चली आ रही व्यवस्था का ही ज्यों का त्यों स्वरूप रही, हां अशोक का बड़ा साम्राज्य उस समय पर पांच प्रांतों में विभक्त था, और प्रत्येक प्रांत में पूर्व की भांति एक प्रांतपति नियुक्त किया जाता था।
अशोक के समय और उसके शासन का महत्वपूर्ण ज्ञान के साधन उसके द्वारा खुदवाय गए शिलालेख और स्तंभ हैं।
अशोक ने अपने राजधानी में पशु हत्या पर निषेध कर दिया था। प्रारंभ में अशोक को हिंसा से परहेज न था। अध्ययन में यह भी है, कि अशोक के रसोई में प्रतिदिन पशुओं की हत्या होती थी। वह युद्ध प्रिया भी था। इससे यह अनुमान लगाया जाता है, कि प्रारंभ में अशोक ब्राह्मण धर्म का अनुयाई रहा। जिसका अनुसरण उसने कलिंग विजय तक किया।
कलिंग विजय के पश्चात अशोक का दया भाव जागृत होता है। वह स्वयं को परिवर्तित करता है। उसने उन सब उत्सव समारोह को बंद करा दिया, जहां मांस, मदिरा, नाच-गाना आदि का प्रयोग होता था। आनंद-यात्राओं के स्थान पर उसने धर्म-यात्राओं का प्रचलन प्रारंभ किया। उसने प्रजा तक धर्म के प्रसार के लिए और उनके नैतिक और आध्यात्मिक उन्नयन के लिए “धर्म महामात्र” तथा “प्रादेशिक” नाम के कर्मचारी नियुक्त किए थे, जो घूम घूम कर प्रजा में धर्म के प्रसार का कार्य करते थे।
अशोक में दया भाव इस कदर हो चला था, कि केवल मानव नहीं बल्कि उसने पशु पक्षियों की भी सेवा की। उसने मनुष्यों के साथ-साथ पशु पक्षियों के लिए भी ओषधालय बनवाएं।
अशोक स्वयं को परिवर्तित करने का निश्चय कर चुका था। उसने बौद्ध धर्म के प्रसार में भी बौद्ध धर्म के अनुयायियों का सहयोग किया। उसने अनेक बौद्ध मठों की स्थापना की भिक्षुओं को घूम-घूम कर इस धर्म के प्रसार के लिए प्रोत्साहित किया। अशोक ने भगवान बुद्ध के जीवन के संबंध रखने वाले उन सभी स्थानों पर विचरण किया। अशोक के काल में तीसरी बौद्ध सभा का आयोजन पाटलिपुत्र में हुआ। और उसने इस सभा के माध्यम से बौद्ध धर्म में हुए आपसी मतभेदों को दूर करने का प्रयत्न किया।
अशोक ने अपना एक धर्म का प्रसार किया। जिसे “अशोक के धम्म” के नाम से प्रसिद्ध मिली यह सभी धर्मों के अच्छी बातों के लिए था, और मनुष्य तथा अन्य सभी प्राणियों के उत्थान पर केंद्रित है।
अशोक अपने धर्म कि शिक्षा प्रजा तक पहुंचाने से पूर्व स्वयं उस धर्म का अनुसरण करता था। या यूं कहें, कि स्वयं अशोक भिक्षु हो चुका था। जीवन भर उसने मांस खाना, शिकार खेलना, नाच देखना, जैसी राजसी विलासिता से दूरी बनाए रखी, और स्वयं के धर्ममय जीवन से आवाम को एक सुंदर संदेश दिया।
अशोक ने अपने धर्म के प्रचार प्रसार में कोई कसर न छोड़ी उसने अपनी धार्मिक शिक्षाओं को स्तंभों तथा शिलाओं पर खुदवाया उसने अपने धर्म के प्रसार को मात्र अपने राज्य की सीमा तक सीमित ना रखा, बल्कि अपने धर्म के प्रचार के लिए अनुयायियों को वर्मा, तिब्बत, चीन, कोरिया, जापान, तथा पूर्वी द्वीप समूह में भेजा।
इतना ही नहीं उसने अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को धर्म के प्रसार के उद्देश्य से लंका भेजा।
कलिंग की हिंसा अशोक के जीवन को हिंसा के पथ से किस दिशा में ले आती है। अशोक का हृदय परिवर्तन उसके जीवन को अत्यधिक रोचक प्रस्तुत करती है।
इसी से आगे बढ़ते हुए, महान शासक अशोक के विषय में अन्य पोस्ट भी अपलोड की गई हैं, जो भारतीय प्राचीन इतिहास में मौर्यों के संबंध में आपकी जानकारी में इजाफा करेगा। मौर्य साम्राज्य पर क्रमवार पोस्ट अपलोड की गई हैं जिन्हें आप विजिट कर सकते हैं।
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