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Showing posts from March, 2022

World Theatre Day विशेष लेख | 27 march

world theatre day जब गोविंदा ने शुरुआत की। तो उन्होंने जो कोई फिल्में की, किंतु उनमें उन्हें उस धारा की तलाश थी, जहां वह अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकते हैं। तब तक संजय, अनिल कपूर काफी काम कर चुके थे। गोविंदा तलाश में थे, कि लोगों पर उनके किस अलग स्टाइल की छाप छोड़ी जा सकती है। जिससे गोविंदा नाम सुनते ही दर्शकों को एक दृश्य स्पष्ट हो जाए, कि गोविंदा है, तो ऐसा होगा। यह तब हुआ, जब गोविंदा को कॉमेडी फिल्में मिली। यह मानना होगा कि उस समय पर केवल कॉमेडी में किसी पूरी फिल्म को चला पाया हो ऐसा कोई अभिनेता पर्दे पर आपको कुछ ही मिलेंगे। हालांकि कॉमेडी मसाले के लिए कई कलाकार मशहूर रहे हैं। गोविंदा ने इससे ट्रेंड किया। यह सब हो रहा था, जब सलमान और शाहरुख का आगाज हो चुका था। जो 90s का दौर था। जिस एक्शन पर फिल्मों का चलन हो गया था। उस किरदार में सटीक अभिनय के लिए पहली पसंद अक्षय और अजय देवगन बन गए। सनी देओल पहले ही एंग्री यंग मैन और उसके लिए जरूरी शानदार पर्सनैलिटी से इस ट्रेंड में कंपटीशन हाई कर चुके थे। पारिवारिक फिल्मों के लिए आमिर, सलमान जैसे क्यूट फेस बड़ी शालीनता से फिल्माए जा सकते थे। उनमे...

23 march | शहीद दिवस पर एक खास लेख

23 march गांधी के तरीके ने जितनी बड़ी संख्या में लोगों को सड़कों पर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लाकर खड़ा कर दिया। संभवत उतना क्रांतिकारी न कर सके। और यही कारण है, कि देश के आजादी का लंबा संघर्ष हुआ। अन्यथा क्रांति तो ऐसा प्रवाव है, कि संपूर्ण भारत में यदि यह पुरजोर होती, तो आजादी लंबे समय का संघर्ष नहीं था। किंतु ऐसा नहीं हो सका, क्रांति की ज्वाला जब-जब भड़की उसे उसी तीव्रता से आत्तयायियों ने दफन कर दिया। आम जनमानस का बड़ा भाग क्रान्ति के संघर्ष कि उस ज्वलंत धारा में प्रवेश कर पाने में असक्षम रहा। यही कारण है, कि आजाद भारत तेज क्रांतिकारी विचारों से तेज अथवा जल्दी स्थापित ना हो सका, बल्कि वह तो अपेक्षाकृत धीमी प्रक्रिया से अस्तित्व में आया। इस बात से इंकार नहीं जा सकता।   किंतु इसका तात्पर्य नहीं कि गांधी के मार्ग से ही आजादी प्राप्त हुई है। ऐसा कहना उस महान बलिदान का अपमान है।  सच तो यह है, कि उन महान क्रांतिकारियों के बलिदान की ज्वलंत भावना ने ब्रिटिश हुकूमत के जहन में पहले ही आजाद भारत स्थापित कर दिया था। क्रांतिकारियों के अतिरेक आजादी की लड़ाई तो उनके बलिदान के आश्रय में...

सबका साथ सबका विकास एक भावना | विशेष लेख

“सब का साथ सबका विकास” इस नारे कि मैं दो प्रकार से विवेचना कर सकता हूं। एक राजनीतिक दृष्टि से, दूसरा सामाजिक परिपेक्ष में। इस नारे की राजनैतिक दृष्टि से विवेचना में मैं आपको लेकर चलता हूं, इस प्रकार के नारों का प्रयोग राजनीति में पूर्व में भी हुआ है। इंदिरा गांधी जी के समय में हमने देखा, गरीबी हटाओ का नारा किस तरह से लोकप्रियता के ऊंचे आयाम को चुमता है। अटल जी प्रधानमंत्री बन कर आए तो हमने सुना शाइनिंग इंडिया, इंडिया शाइनिंग। 2014 में मोदी जी प्रधानमंत्री बनकर आते हैं, नारा रहा “अच्छे दिन आएंगे” उसके बाद “ सबका साथ सबका विकास ” पड़ोस के मुल्क पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान बनते हैं, तो नारा होता है, “तब्दीलियत आएगी, बेहतरी आएगी”। आजकल उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल में जब लोगों से पूछा जाता है, कि राज्य सरकार की नीति कैसी है, तो लोग कहते हैं, कि इस सरकार की नीति है, “सबका साथ सबका विकास”। यहां मैं मानता हूं कि राजनीतिक दृष्टि से इस नारे की सार्थकता निकल कर आती है। सरकार को और क्या चाहिए। आम जनमानस के मुख में वह नारा पुरजोर है, जो सरकार के कार्यों को सारगर्भित करता है। सरकार क...

दुनिया के कदम शांति की ओर | रूस यूक्रेन युद्ध

शांति केवल तब कायम हो सकती है, जब दुनिया में कोई ना हो, यह सब शून्य हो और कोई हलचल ना हो, शांति का इसके अतिरिक्त कोई स्थाई पता नहीं दिखता, भले वे कोई, सभ्यता और शिक्षा की महान स्थिति में क्यों ना हों, किंतु शांति वहां भी स्थाई नहीं। शांति का स्थाई पता शायद हम में से कोई जीते जी जान पाया हो। मैं दुनिया में शांति के विषय पर कह रहा हूं, व्यक्तिगत शांति नहीं। इसका एक कारण यह हो सकता है, कि संसार क्योंकि किसी एक राह पर नहीं चल सकता है। संसार एक जैसा नहीं सोच सकता है। संसार में असमानता ओं की विशाल सूची है। इन सब कारणों के चलते हम कहीं ना कहीं तो जरूर टकराते हैं, और हम टकराव में स्वयं को ही स्वाभाविक तौर से ठीक साबित करना चाहते हैं, हम विजेता होंगे, क्योंकि हम सही हैं, और हम अपनी संपूर्ण शक्ति को झोंकने से पीछे नहीं हटेंगे। यदि यह कहा जाए कि दुनिया में प्रकृति से उपलब्ध हर वस्तु का उपयोग होना है, तो उनसे इजाद हुए हर आधुनिक साधन का प्रयोग होना भी तय है। चाहे वह परमाणु हथियार क्यों ना हों, और सबसे महत्वपूर्ण की उनके प्रयोग होने को तब बल मिलता है, जब उन्हें शांति के लिए इजाद किया गया हो...

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ | woman empower

“ बे टी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”। बेटी, स्त्री ईश्वर की धरा पर सर्वाधिक खूबसूरत कृति है। हमें स्त्री का सम्मान केवल इसलिए नहीं करना चाहिए, बल्कि इसलिए भी क्योंकि उसमें मिलकर रहने की, एकता में रख सकने की, उस भावना की अधिक गहरी समझ होती है।    एक महिला केवल एक परिवार को बांधकर नहीं रखती। बल्कि इसी तर्ज में वह संपूर्ण संसार के बंधन का कारण है। उसमें संसार के आधी शक्ति विलीन है। प्रेमचंद जी ने लिखा है- स्त्री के मूल गुण ममता, सौम्यता, शीलता, सौंदर्य उसे पुरुषों से महान बनाते हैं। पुरुष उसके बराबर नहीं बल्कि उससे पीछे हैं। सुष्मिता सेन जब मिस यूनिवर्स बनी तब उन्होंने कहा सृष्टि में नारी ममता की स्रोत है, हमें उसका सम्मान करना चाहिए। इन सब के बाद सवाल यह है, कि इश्वर की इस महान कला का कहां तिरस्कार हुआ है, जो आज तक यह नारा “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” बुलंद है। यह नारा बुलंद होता है। जब एक बच्ची को मां के गर्भ में ही मार दिया जाता है, यदि वह धरा पर जन्म ले भी लेती है, तो उसे स्कूल शिक्षा से वंचित रखने का प्रयास होता है। यदि वह शिक्षा प्राप्त कर भी लेती है या नहीं कर पाती है, तब एक दिन जब उस...