
शांति केवल तब कायम हो सकती है, जब दुनिया में कोई ना हो, यह सब शून्य हो और कोई हलचल ना हो, शांति का इसके अतिरिक्त कोई स्थाई पता नहीं दिखता, भले वे कोई, सभ्यता और शिक्षा की महान स्थिति में क्यों ना हों, किंतु शांति वहां भी स्थाई नहीं।
शांति का स्थाई पता शायद हम में से कोई जीते जी जान पाया हो। मैं दुनिया में शांति के विषय पर कह रहा हूं, व्यक्तिगत शांति नहीं।
इसका एक कारण यह हो सकता है, कि संसार क्योंकि किसी एक राह पर नहीं चल सकता है। संसार एक जैसा नहीं सोच सकता है। संसार में असमानता ओं की विशाल सूची है। इन सब कारणों के चलते हम कहीं ना कहीं तो जरूर टकराते हैं, और हम टकराव में स्वयं को ही स्वाभाविक तौर से ठीक साबित करना चाहते हैं, हम विजेता होंगे, क्योंकि हम सही हैं, और हम अपनी संपूर्ण शक्ति को झोंकने से पीछे नहीं हटेंगे।
यदि यह कहा जाए कि दुनिया में प्रकृति से उपलब्ध हर वस्तु का उपयोग होना है, तो उनसे इजाद हुए हर आधुनिक साधन का प्रयोग होना भी तय है। चाहे वह परमाणु हथियार क्यों ना हों, और सबसे महत्वपूर्ण की उनके प्रयोग होने को तब बल मिलता है, जब उन्हें शांति के लिए इजाद किया गया हो। क्योंकि इस संसार का हर दशा में मूल अलाप शांति के लिए ही है। भले ही वह भीषण युद्ध में संलग्न क्यों ना हो।
आज यूरोप के वे राष्ट्र जो सभ्यता और नगरीकरण की मिसाल बने थे, और दुनिया को आकृष्ट करते रहे हैं। वह आज भी लोगों को उनके विषय में बात करने के लिए आकर्षित कर रहे हैं। बस अंतर यह है, कि पूर्व में लोग उनके आकर्षण के प्रभाव में उनकी तरफ बढ़ते थे। किन्तु आज लोग वहां से निकलने को आतुर हैं। कारण शांति के लिए- रूस यूक्रेन युद्ध!
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