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प्रधानमंत्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति की विवेकानुसार निर्णय लेने की शक्ति

प्रधानमंत्री की नियुक्ति के संबंध में संविधान का अनुच्छेद 75 कहता है। कि राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री की नियुक्ति होगी। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री के निर्वाचन की कोई विशेष प्रक्रिया नहीं दी गई है।

सामान्य परंपरा के अनुसार लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित करता है। किंतु प्रधानमंत्री के निर्वाचन के संबंध में दो परिस्थितियां जहां राष्ट्रपति की व्यक्तिक विवेक स्वतंत्रता कार्य करती है।

पहली परिस्थिति में जब संसद में कोई भी दल बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है। इस दशा में राष्ट्रपति अपनी व्यक्तिक विवेक स्वतंत्रता का प्रयोग करता है, और बड़े दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। वह 1 माह के भीतर उसे संसद में बहुमत अथवा विश्वास मत हासिल करने के लिए कहता है।

1980 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के प्रधानमंत्री को नियुक्त करने और प्रधानमंत्री के संसद में बहुमत सिद्ध करने के संदर्भ में में कहा था। कि संविधान में यह आवश्यक नहीं है, कि एक व्यक्ति प्रधानमंत्री नियुक्त होने से पूर्व ही लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करे, बल्कि प्रक्रिया बताई गई कि राष्ट्रपति को पहले प्रधानमंत्री को नियुक्त करना चाहिए, और उसके पश्चात निश्चित समय सीमा में प्रधानमंत्री को बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना चाहिए।

दूसरी परिस्थिति में जब पद पर रहते हुए प्रधानमंत्री की मृत्यु हो जाए। इस दशा में यदि सत्ताधारी दल के द्वारा प्रधानमंत्री का कोई स्पष्ट नेता निर्धारित न किया जा सका हो। राष्ट्रपति अपने व्यक्तिगत निर्णय के आधार पर प्रधानमंत्री नियुक्त करता है किंतु यदि सत्ताधारी दल प्रधानमंत्री की मृत्यु के पश्चात एक नया नेता चुनता है, तो राष्ट्रपति को उसी नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करना होगा।

1979 में पहली बार राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने प्रधानमंत्री के निर्वाचन में अपनी व्यक्तिगत विवेक का प्रयोग किया था। जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व की जनता दल की सरकार का पतन हो गया तो राष्ट्रपति के द्वारा गठबंधन के नेता और जो तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

जब 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। तब तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने अपने व्यक्तिक निर्णय के आधार पर से राजीव गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, और इसके बाद कॉन्ग्रेस दल ने संसद में राजीव गांधी को अपना नेता स्वीकार किया। इससे पूर्व में भी इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न हुई जब प्रधानमंत्री का पद पर रहते ही अक्स्मात निधन हो गया ।

1964 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए ही निधन हुआ। तब राष्ट्रपति ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में एक अस्थाई व्यवस्था अपनाई 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए निधन हुआ तब भी अस्थाई व्यवस्था के तौर पर कार्यवाहक प्रधानमंत्री को नियुक्त किया गया। 1964 और 1966 में दोनों ही समय कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर गुलजारी लाल नंदा को कार्यभार सौंपा गया।।

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