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स्वामी विवेकानंद पर ब्रह्म समाज और गुरु रामकृष्ण का प्रभाव

स्वामी विवेकानंद

द न्यूयॉर्क हेराल्ड में तब छपा था, कि स्वामी विवेकानंद धर्म सम्मेलन में पहुंचे प्रतिनिधियों में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। और जिस धरती से स्वामी विवेकानंद जैसे विचारक दार्शनिक आते हैं, यदि हम वहां अन्य धर्म के प्रचारक भेजते हैं, तो यह मूर्खता है।
   यह सब 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन के बाद छापा गया था। इन्हीं भाषणों के साथ स्वामी विवेकानंद विश्व प्रसिद्ध हो गए। स्वामी विवेकानंद पूर्व में जिन्हें नरेंद्र नाम से जाना जाता था। ब्रह्म समाज के द्वारा स्थापित प्रेसीडेंसी कॉलेज के विद्यार्थी रहे, ब्रह्म समाज द्वारा इसकी स्थापना हिंदू कॉलेज के रूप में की गई थी। 2010 में इसे प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है।

   ब्रह्म समाज के संदर्भ में जिसे 1828 राजा राममोहन राय द्वारा गठित किया गया था। और उनके बाद यह महर्षि द्वारिका नाथ टैगोर और देवेंद्र नाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन के नेतृत्व में रहा। हालांकि देवेंद्र नाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन के विचारों में टकराव रहा, और वे बंट भी गए।
  किंतु प्रेसिडेंसी कॉलेज की स्थापना कोलकाता में 1817 में ही हो गई थी। जबकि राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना ही नहीं की थी। लेकिन राजा राम मोहन राय द्वारा ही इस कॉलेज की स्थापना की गई। और ब्रह्म समाज की विचारधारा राजा राममोहन राय के ही विचार थे। अतः प्रेसीडेंसी कॉलेज उनके विचारों से प्रभावित था। तब इसका नाम हिंदू कॉलेज था। 1855 में इसका नाम प्रेसिडेंसी कॉलेज हो गया। अब क्योंकि ब्राह्म समाज पाश्चात्य शिक्षा अथवा अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन करता था। साथ ही मूर्ति पूजा का, धर्म में फैले आडंबर और अंधविश्वास का विरोध करता था। और सामान्य सी बात है, कि प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र पर ब्रह्म समाज के विचारों का प्रभाव था।
लेकिन यदि कहा जाए, कि क्या विवेकानंद मूर्ति पूजा का समर्थन करते थे, तो जवाब हां होगा।

इसका सबसे अहम कारण था। गुरु रामकृष्ण परमहंस का काली पुजारी होना। रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। वे हिंदू, इस्लाम और ईसाई धर्म के ज्ञाता थे। उनके सानिध्य में स्वामी विवेकानंद को अपने मन में उपजे तमाम सवालों का जवाब मिला। जो कि उन्हें अपनी शिक्षा के द्वारा प्राप्त नहीं हो सके। गुरु रामकृष्ण परमहंस द्वारा प्राप्त ज्ञान का मूल था,  “मानव सेवा सबसे बड़ा धर्म है” और इसी तत्व को आत्मसात कर स्वामी विवेकानंद ने दुनिया में हिंदू धर्म का परचम लहराया। इसी कारण रामकृष्ण मिशन की विचारधारा में मानव सेवा भाव था। उनका मानना था कि मानव सेवा सबसे बड़ा धर्म है और वे मानव में ही ईश्वर देखते हैं। इस तरह ब्रह्म समाज साथ ही उसी की एक शाखा प्रार्थना समाज, दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 में स्थापित आर्य समाज के बाद स्वामी विवेकानंद मानव सेवा के मूल भाव के साथ एक नए विचार में रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हैं।

क्योंकि आर्य समाज और ब्रह्म समाज में मूल अंतर था। कि ब्रह्म समाज में वेदों की शिक्षा के साथ-साथ पाश्चात्य शिक्षा का भी समर्थन था। किंतु आर्य समाज का मानना था। कि यदि भारत को आगे बढ़ना है, तो मूल, वेदों की ओर लौटना होगा।
वहीं रामकृष्ण मिशन मानव सेवा के एक नए विचार के साथ कार्य करता है।

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