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अंग्रेजों की प्रशासन की नीति | ईस्ट इंडिया कंपनी


कंपनी का निवेदन ब्रिटिश संसद तक पहुंच चुका था। वह ऋण चाहते थे, क्योंकि कंपनी घाटे में चल रही थी। तब के ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड नार्थ ने अपने स्तर से जांच कमेटी बिठाई और मालूम हुआ कि कंपनी के दिवालियापन के पीछे भ्रष्टाचार का हाथ है। 1773 में कंपनी पर लगाम के लिए रेगुलेटिंग एक्ट लाया गया। और अनेकों उपबंधों में एक अब कंपनी के कर्मचारी भारतीयों से उपहार नहीं ले सकेंगे, साथ ही निजी व्यापार पर भी प्रतिबंध कर दिया गया। क्योंकि कंपनी के कर्मचारी स्वयं ही लाभ के लिए अपने निजी व्यापार को ही वरीयता देते थे। कंपनी के लाभ हानि को नहीं। इस समय जब उपहार, निजी व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया, तो प्रशासकों को संतुष्ट और खुश रखने की नीति को समझिए उसी समय कंपनी के कर्मचारियों के वेतन में भी वृद्धि की गई। प्रशासनिक कर्मचारियों से सत्ता की मांग होती है, कि वे ईमानदार और निष्ठा कायम रखें। यह तभी हो सकता है, जब प्रशासनिक कर्मचारी स्वयं संतुष्ट हों। अन्यथा वह भ्रष्टाचार की ओर मुड़ता है। सत्ता यह ख्याल रखती है। और भरसक प्रयत्न करती है, कि प्रशासन में उसके कर्मचारियों को बेहतर जीवन दिया जाए। अन्यथा सर्वाधिक योग्य वर्ग समाज का क्यों प्रशासन में सेवा देने को जाएगा।

1786 में कार्नवालिस भारत आया, एक एक्ट के साथ। और कुछ नई शक्तियों के साथ आता है। वही जब वह भारत आया तो उसने कर्मचारियों का वेतन में अच्छी वृद्धि कर दी। और यही था, कि 1793 में ब्रिटिश संसद से आया चार्टर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के वेतन को भारतीय राजस्व से ही दिया जाए ऐसा प्रावधान किया। कार्नवालिस ने ऐसा इसलिए किया कि उसको लगता होगा, कि कर्मचारी अपने देश से दूर, अपने परिवार से दूर हैं, निजी व्यापार से भी लाभ नहीं उठा सकते उस पर भी प्रतिबंध है, इसलिए वेतन बढ़ा कर उनका आंतरिक आक्रोश दफन किया जा सकता है। ऐसा करना कर्मचारियों को कंपनी के प्रति निष्ठावान बनाता है।

कोई भी राष्ट्र अपने प्रशासकों को इसी प्रकार प्रशासनिक सेवा में सेवा के प्रति निष्ठावान बनाए रखता है।

1765 में इलाहाबाद की संधि के बाद जब ब्रिटिशों को बंगाल का क्षेत्र जिसमें बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे, प्राप्त हुआ। उन्होंने व्यवस्था स्थापित कि उन्हें मात्र अपना स्वार्थ जिसमें कंपनी को सर्वाधिक लाभ हासिल करना था। लॉर्ड क्लाइव ने द्वैध शासन स्थापित किया। कंपनी ने राजस्व वसूलने का अधिकार लिया, और नाममात्र का बंगाल के शासक को राज्य के अन्य सभी प्रबंधन के मामले सौंप दिये अर्थात सारे उत्तरदायी मामले पर जहां जनता को जवाब देना था, बंगाल के शासक को सामने रखा और स्वयं मात्र राजस्व का लाभ उठाया। और राजस्व वसूली के लिए आप जानेंगे, तो उन्होंने स्वयं को व्यवस्था में नहीं आने दिया बल्कि राजा सिताब राय और मोहम्मद रजा खां की सहायता से अथवा उन्हें ही राजस्व वसूली के कार्य के लिए नियुक्त किया।
   मोहल्ले में लोग सार्वजनिक कूड़ा उठाने वाली गाड़ी को किराए देने के संदर्भ में आक्रोश में थे, लेकिन जो व्यक्ति कूड़े की गाड़ी की उस व्यवस्था का मालिक है, वह अपने ही क्षेत्र का था। और जब वह गाड़ी से उतरा तो जैसे वहीं समस्या का समाधान हो गया। और लोगों का आक्रोश शांत हो गया।

राजस्व को वसूलने के संदर्भ में अंग्रेजों की भी कुछ यही प्रशासन की नीति थी।

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