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पुर्तगालियो का भारत आगमन | खंड 2

वास्कोडिगामा मालाबार तट पर कलीकट नामक स्थान पर पहुंचता है। जिस का वर्तमान नाम कोझीकोड है। यहां का शासक जमोरिन या सामुरी था। इससे पूर्व की घटनाएं हम खंड -1 यूरोपियों की भारत खोज और पुर्तगाली अभियान -1 में जान चुके हैं। 

जमोरिन वास्कोडिगामा का स्वागत करता है। इसलिए भी कि अब तक भारत में व्यापार पर अरब के लोगों का एकाधिकार था। व्यापार में एकाधिकार हो, तो भारत के लोगों को लाभ कम होता था। क्योंकि माल जिसे बेचना है, यदि कोई अन्य विकल्प ही ना हो, तो माल खरीदने वाला अपनी ही मनमानी से मोलभाव करता है। इसलिए पुर्तगाली व्यापारी जमोरिन को एक विकल्प के रूप में दिखा। जिससे अरबों और पुर्तगालियों में माल खरीदने की प्रतिस्पर्धा होगी और इससे भारत को लाभ होगा।

वास्कोडिगामा साठ गुना लाभ के साथ पुर्तगाल लौटता है। और उसने वहां के अन्य व्यापारियों को भी प्रेरित किया। 1500 में एक अन्य जहाजी अभियान पेट्रो अल्वारेज के नेतृत्व में भारत आया। यह तेरह जहाजों का बेड़ा था। अब पुर्तगालियों का उद्देश्य यह भी था। कि अरब के लोगों जो अरब सागर, हिंद महासागर में अपना वर्चस्व बनाए हैं। इनका वर्चस्व तोड़ा जाए। इसलिए वह बड़े जहाजी बेड़े के साथ आया था। कि समुद्र में हो सकने वाली संभावित लड़ाई में अरबों को मात दी जा सके। वह कोच्चि और कन्नूर पहुंचा। यह दोनों क्षेत्र भी केरल के ही तट पर हैं। मानचित्र में कन्नूर, कलीकट के ऊपर और कोच्चि, कलिकट के नीचे है। 1502 में एक बार फिर वास्कोडिगामा भारत की यात्रा पर आता है। 1503 में वह अपनी पहली व्यापारिक कोठी कोचीन में स्थापित करता है। आपको बता दें कि वास्कोडिगामा इस बार तो लौट गया। किंतु इसी कोचीन में 1524 में जब वह एक बार फिर भारत आया तो 1527 कि यहां उसकी मृत्यु हो गई।

 वहां 1498 में पुर्तगाल में भारत से व्यापार के लिए एक कंपनी “एस्तादो द इंडिया” नाम से बनाई गई। 1505 में पहला पुर्तगाली गवर्नर फ्रासिस्को डी अल्मीडा भारत आता है। जो 1509 तक भारत में पुर्तगाली गवर्नर रहता है। कोचीन पुर्तगालियों का मुख्यालय बना रहा। 

पुर्तगालियों की स्थिति में भारत के लिए पुर्तगाली नये गर्वनर अल्फांसो डी अल्बुकर्क के आने के बाद परिवर्तन हुए। अल्बुकर्क को अधिकारियों की भारत में वास्तविक सत्ता का संस्थापक कहा जा सकता है। उसने भारत की राजनीति में प्रवेश किया, और युद्ध से भूमि जीतने का प्रयास करना आरंभ किया। 1510 में ही उसने राजनीतिक रूप से गोवा पर नियंत्रण हासिल कर लिया। इसके बाद लगभग 450 साल तक यह पुर्तगालियों के नियंत्रण में रहा। जब तक कि 1961 में भारत ने अपने अधीन किया। और भारत का अभिन्न अंग बना दिया।

 अल्बुकर्क ने 1510 में गोवा को बीजापुर के शासक युसूफ आदिलशाह से जीता था। 1511 में इन्होंने मलक्का पर नियंत्रण कर लिया। मलक्का, मलेशिया और इंडोनेशिया के मध्य जल संधि का क्षेत्र है। इसके अलावा उन्होंने फारस की खाड़ी में एक अन्य खाड़ी को अपने कब्जे में कर लिया। यहां से यूरोप जाने वाले व्यापार को नियंत्रण किया जा सकता था। और हरमूज पर पुर्तगाली अधिकार का तात्पर्य अरबों के वर्चस्व में सेंध लगाने जैसा था। क्योंकि यह वही हरमुज है, जहां पर नियंत्रण रख अब तक अरबों ने यूरोप तक व्यापार पर कब्जा किया हुआ था। और इसी हरमुज जलसंधि जो फारस की खाड़ी में है, पर अरबों के नियंत्रण से यूरोपियों को भारत के लिए अन्य राह की तलाश करनी पड़ी।

 1515 तक हरमूज भी अब पुर्तगालियों के कब्जे में था। अब तक पुर्तगालियों ने लगभग हिंद महासागर के क्षेत्र में अरबों के वर्चस्व को छिन्न-भिन्न कर दिया था।।

इसके बाद की घटनाएं अगले खंड -3 में…

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