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भारत में पुर्तगाली | खंड -3

भारत में पुर्तगालियों ने अपनी कई कोठियां जो अधिकतर पश्चिम तट पर स्थापित की। जिनमें कोचीन से आरंभ कर गोवा, दमन, दीव, कन्नूर के क्षेत्र में थी। इससे पूर्व की घटनाएं हम खंड पुर्तगालियो का भारत आगमन | खंड 2 में जान चुके हैं। 

दो अन्य पुर्तगाली गवर्नर जिनके नाम किन्ही कारणों से आते हैं। एक 1929 में पुर्तगाली गवर्नर बनकर भारत आए नीनो डी कुन्हा। जिसने 1530 में अपना मुख्यालय कोचीन से बदलकर गोवा कर दिया। और गोवा पुर्तगालियों का लंबे समय तक आजादी के बाद तक भी अड्डा बना रहा। 1535 में दीव और 1559 में दमन पर पुर्तगालियों ने कब्जा कर लिया।

आप देखेंगे कि पुर्तगालियों ने सूरत की ओर अधिक आकर्षण नहीं दिखाया। जबकि बाद में हम जानेंगे, कि डच और ब्रिटिश भारत आते हैं। तो वह सूरत में अपनी कोठियों को स्थापित करते हैं। वहां से सूती वस्त्रों का व्यापार बहुत उन्नत स्थिति में होता था।
यह लोग जब किसी स्थान पर कोठियां बनाते थे। कोठियां जो बंदरगाह पर होती थी। या समुद्र तटों पर किन्हीं स्थानों में यह बसने का प्रयास करते थे। जैसे मुंबई क्षेत्र बंदरगाह था ही नहीं। लेकिन अंग्रेजों ने वहां उस क्षेत्र को बसाया। वहां बंदरगाह अथवा जहाज के उतरने के लिए उपयुक्त स्थल तैयार किया।

एक अन्य नाम गवर्नर अल्फांसो डिसूजा एक पुर्तगाली गवर्नर के कार्यकाल में 1542 में तब के प्रसिद्ध ईसाई धर्मगुरु सेंट जेवियर भारत आए।
पुर्तगालियों ने भारत में कोचीन, कन्नूर, गोवा, दमन जो पश्चिम तट पर तथा पूर्वी तट पर हुगली, मद्रास पर कब्जा किया। इसके अलावा एशिया में इन्होंने मलक्का के क्षेत्र और फारस की खाड़ी में हरमुज को अपने कब्जे में कर लिया था।
पुर्तगाली भारत व्यापार के लिए ही आए थे। यह प्रत्यक्ष स्पष्ट होता है, लेकिन साथ ही इनका गुप्त उद्देश्य धर्म का प्रचार भी था। और यह उसके लिए भी प्रयास करते थे। हिंद महासागर पर इन्होंने अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित किए रखा, जब तक की डच और अंग्रेजों ने अपना वर्चस्व स्थापित नहीं किया था। इन्होंने हिंद महासागर में अपने वर्चस्वता की ताकत पर एक कोर्टेज की व्यवस्था स्थापित की। पुर्तगाली व्यापारियों को छोड़ अन्य को, स्थानीय व्यापारियों को यदि यूरोप व्यापार के लिए जाना था और हिंद महासागर से गुजारना था, उन्हें यह कोर्टेज या परमिट लेना होता था।

स्वयं तब दिल्ली का बादशाह अकबर कोर्टेज परमिट लेते थे। क्योंकि इसके ही आधार पर पुर्तगाली यह जताना चाहते थे, कि भारत का बादशाह भी उनका परमिट लेता है। भले वह बादशाह से शुल्क ले या ना ले, लेकिन संकेत स्थानीय व्यापारियों के लिए था। कि वे परमिट लें अवश्य, जैसे कि बादशाह भी लेता है।

बिना कोर्टेज परमिट के व्यापारिक जहाजों को सागर में लूट लेते थे लेकिन परमिट होने पर भरोसा देते थे, कि उनकी सुरक्षा करेंगे। कोर्टेज व्यवस्था के अलावा जब अल्फांसो डी अल्बुकर्क 1509 में भारत में पुर्तगाली गवर्नर बन कर आया। उसने भी ब्लू वाटर पॉलिसी और विवाह नीति अपनाई। ब्लू वाटर पॉलिसी से हिंद महासागर में वर्चस्व हासिल करना। विवाह नीति से वह अपनी संख्या भारत में बढ़ाना चाहते थे। हिंदू धर्म में विधवा औरतों की शादी निषेध थी। लेकिन क्योंकि वह इसाई थे। तो वह उनसे शादी कर लेते थे। इस तरह वे अपनी बस्ती बता रहे थे।
गोवा के चर्च जो आज भी प्रसिद्ध हैं। वे पुर्तगालियों ने बनाए थे। इनके निर्माण की गोथिक शैली पुर्तगालियों की ही थी। 1556 में पुर्तगालियों ने गोवा में पहला प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की थी। और इससे लेख छापकर, पत्रिका छाप ईसाई धर्म के प्रचार में भी प्रयोग किया जाता था। इसके अलावा भारत में तंबाकू, आलू गन्ना, पपीता, लाल मिर्च को पुर्तगाली ही भारत लाए थे।
उनके पतन के कारण इनके धार्मिक प्रचार की नीति जिसमें इसाई धर्म को सर्वोच्च मानना और अन्य को नहीं भी कारण था। वहीं स्पेन का वर्चस्व पुर्तगाल पर यूरोप में बढ़ता जा रहा था। तथा ब्रिटिश और डचों के आगमन से इनकी शक्ति क्षीण होने लगी।

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