शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

भारत में समाजवाद | कांग्रेस vs भाजपा

भारत में समाजवाद

समाजवाद किसी भी राष्ट्र का अपने नागरिकों के लिए अंतिम लक्ष्य है। जिसका तात्पर्य नागरिकों में समानता लाने से है। समाजवाद को आप इस आलेख [ समाजवाद का विचार और पूंजीवादी | मार्क्सवाद में समझ सकते हैं।

मोटे तौर पर समाजवाद वंचितों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने का सिद्धांत है। भारत में समाजवाद की दिशा में कई कार्य आजादी के बाद से ही आरंभ किए गए जैसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण, जमींदार प्रथा के अंत के लिए कानून, भूमि सुधार कानून जिसमें जो जमीन के बड़े भाग जमीदारों ने अपने कब्जे में किए थे। वह बड़ी जमीन के भाग उनकी संपत्ति हो गई थी, जिसके चलते जो अन्य लोग थे, वे जमीदारों के यहां केवल मजदूर के रूप में कार्य करते थे और इससे बेगारी, मजदूरी और भीषण गरीबी, असमानता और अन्याय की संभावना बनी रहती थी। 

आजादी के बाद सबसे पहले यही कार्य किया गया। उन जमींदारों से जमीन छीनकर किसानों में बांट दी गई, और जमीदारी प्रथा का भी अंत कर दिया गया। यह समाजवादी विचार के अंतर्गत किया गया कार्य है। जहां संसाधन को समाज के हर व्यक्ति में बराबर बांट दिया गया और जमीदार वर्ग की इतिहास में उस बड़े जमीन के भाग को हासिल करने के लिए की गई मेहनत मशक्कत को महत्व नहीं दिया गया तथा संसाधनों का समाजीकरण कर दिया गया।

यह कदम सरकार के समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हैं, ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि समाज में सभी तबके के लोग गरीब, अमीर, मध्यम के लिए एक सरकार जो सबकी है, स्थापित है। वह सरकार कृषि की सारी जमीन को जो जमीदार के एकाधिकार में थी, उसे छीन लेती है और किसानों में बराबर बांट देती हैं, यह समाजवाद है। 

 समाजवादी विचार का मुख्य उद्देश्य यह भी है, कि राज्य के संपूर्ण संसाधनों पर या तो सीधे जनता का नियंत्रण हो, या राज्य की सरकार का, किंतु पूंजीवाद का पूर्ण विरोध किया गया है।

कांग्रेस के शासन से ही भारत में समाजवाद के साथ-साथ पूंजीवाद भी पनपता रहा है। निजी क्षेत्रों में पूंजीपतियों ने बड़े-बड़े व्यापार को स्थापित किया है। इसलिए भारत के समाजवाद को विशिष्ट स्वरूप का कहा गया है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण की समाजवाद को पूंजीवाद के विपरीत देखा गया है।

  हो सकता है, कि कांग्रेस का अधिक झुकाव था, कि देश की तमाम संस्थाओं का राष्ट्रीयकरण किया जाए और पूजीपतियों को हावी ना होने दिया जाए। अथवा सरकार संस्थाओं को अपने हाथ में रखे, और तब जनता को एक समान रूप से उसका लाभ मिलता रहे, एक समान नीतियों के अंतर्गत जो कि सरकार तय करेगी। और इसलिए कांग्रेस की ओर से भाजपा की वर्तमान सरकार पर लगातार आरोप लगाए जाते हैं, कि भाजपा ने देश में तमाम सरकारी संस्थाओं का जैसे रेलवे, संचार, एयर सर्विस आदि का प्राइवेटाइजेशन कर दिया है। अथवा प्राइवेट व्यापारियों को सौंप दिया है और यह निजीकरण है क्योंकि संस्थाओं के राष्ट्रीयकरण या सरकारीकरण की अपेक्षा संस्थाओं का प्राइवेटाइजेशन और पूंजीवाद अधिक बढ़ता दिख रहा है। जिससे समाजवादी विचार को खतरा है।

यह सत्य है, कि पूंजीवाद में खतरा होता है, कहीं पूजीपतियों का एकाधिकार ना हो जाए और वे मनमानी करने लगेंगे। लेकिन पूंजीवाद आजादी के बाद से कांग्रेस के काल में भी पनपता रहा है क्योंकि कांग्रेस सरकार भी पूंजीवाद के महत्व को समझती थी। और विश्वास करती थी कि समाजवाद कि यूरोपीय सिद्धांत के साथ चलकर पूंजीवाद को पूर्णता समाप्त करने के बजाए पूंजीपतियों और सरकार के सामन्जस्य से तीव्र विकास के चलते समाजवाद को अधिक तीव्रता से हासिल किया जा सकता है।

आप इसे ऐसे समझे की निजीकरण ने एक प्रकार से समाजवाद की ओर भी प्रयास किया है। हमें स्वीकार करना होगा, कि निजी व्यापार में कार्य सरकारी व्यवस्था की अपेक्षा अधिक तीव्रता से होता है। इससे यदि किसी पूंजीपति व्यापारी ने जो संचार के क्षेत्र में कंपनी का मालिक है, ने सरकारी संचार की कंपनियों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से और देश के दूरस्थ क्षेत्रों को संचार से जोड़ पाने में सफलता हासिल की है। जहां सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत संचार सेवा आज तक पहुंच ही नहीं सकी थी। क्योंकि पूंजीपति ने बाजार में प्रतिस्पर्धा के चलते अधिक मेहनत से कार्य किया और दूर-दूर तक संचार व्यवस्था स्थापित की यह भी समाजवाद की दिशा में एक कदम है। जहां शहर के लोग जो संचार तथा इंटरनेट की सुविधा का उपभोग करते हैं, लेकिन दूर विषम परिस्थितियों युक्त गांव के लोग इस सुविधा का उपभोग नहीं कर सकते। सरकारी व्यवस्थाओं के अंतर्गत अब तक उन गांव में संचार व्यवस्था नहीं पहुंच सकी थी। अब वहां संचार व्यवस्था की सुविधा है, इस वजह से गांव और दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोग और शहरों में रहने वाले लोगों को संचार के मामले में समान सुविधा मिल रही है। अर्थात समानता आई है, और समानता लाने का विचार ही समाजवाद है। इस प्रसंग में समाजवाद पूंजीपतियों के द्वारा लाया गया, इसलिए यह कहा जा सकता है, की सरकार पूंजीपतियों के सहयोग से विकास के कार्यो को तो तीव्र कर ही सकती है, साथ ही समाजवाद की दिशा में भी आगे बढ़ सकती है।

यह मानना होगा, कि पूंजीपतियों के हाथ में विकास की गति तीव्र हो जाती है। बजाय सरकारी व्यवस्थाओं में हो रही विकास की गति से। इसीलिए आज युवाओं से स्टार्टअप और अपने इनिशिएटिव को आगे बढ़ाने के लिए जागरूक किया जा रहा है।

 किंतु साथ ही सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए, कि पूंजीपतियों की मनमानी आरम्भ ना हो जाए, और ख्याल रखना होगा, कि कहीं समाज में ऐसा भी वर्ग हो जिसका जीवन स्तर इतना निम्न है। तथा आय इतनी कम है, कि वह किसी भी सेवा का लाभ नहीं उठा पा रहा है।।

पूंजीवाद के चरम पर होने के नुकसान हम अगले आलेख में देखेंगे….

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