मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

कांग्रेस के कदम | Loksabha चुनाव 2024

कांग्रेस के कदम

राहुल गांधी से ही कांग्रेस पार्टी के हर स्तर पर चुनाव कर आंतरिक लोकतंत्र की स्थापना की बात करते रहें हैं। यह परिवारवाद के उस बड़े सवाल का जिसे लगातार भारतीय जनता पार्टी द्वारा उठाया जाता रहा है, का परिणाम है। नागालैंड में प्रचार रैली में मोदी जी ने परिवारवाद के हवाले से पुनः कांग्रेस को घेरा। ऐसे में कांग्रेस इन सवालों के निदान में पूरा जोर लगा रही है।

कांग्रेस पार्टी के अहम निर्णय लेने वाली कार्यसमिति में सदस्यों की संख्या कुछ बढ़ाई गई। अब 30 सदस्य कार्यसमिति में होंगे। इसमें महिलाओं, एससी, एसटी, युवाओं आदि को आरक्षण भी दिया गया है। किंतु जब यह तय किया गया कि कांग्रेस पार्टी कि निर्णय लेने वाली अहम कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव नहीं होगा, बल्कि यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मलिकार्जुन खरगे जी जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, को यह अधिकार होगा कि वह सदस्यों को नामित करें, ऐसे में कांग्रेस पर लगने वाले परिवारवाद के सवालों के निवारण अभियान से जो वह आंतरिक हर स्तर पर चुनाव के माध्यम से दर्शाना चाहती थी, से पीछे हट गई। ऐसे में राहुल गांधी और गांधी परिवार का कोई सदस्य संचालन समिति की बैठक में शामिल नहीं हुआ, जहां कार्यसमिति के सदस्यों को नामित किया जाना था। मतलब साफ है, कि कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ताओं में यह दर्शना चाहती है, कि गांधी परिवार के हस्तक्षेप से इतर अब मलिकार्जुन खरगे जी ही कांग्रेस के सभी फैसले लेंगे।
कार्यसमिति के सदस्यों को चुनाव के माध्यम से नहीं चुने जाने का फैसला जितना विपरीत है, उतना ही यह न करने के पीछे दिया गया कारण एक तरह से सही भी है। कारण दिया गया, कि इस समय चुनाव से कांग्रेस में आंतरिक विभाजन हो जाएगा। कांग्रेस की अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए यह फैसला ठीक हो सकता है। किंतु आंतरिक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापना की कांग्रेस की पहल इस के कारण से पीछे हो गई है।
लोकतंत्र में चुनाव एक अहम प्रक्रिया है। इस से निर्मित व्यवस्था सर्वसम्मति की व्यवस्था मानी गई है।

दरअसल कांग्रेस पूर्व से ही अपने दिल के शासनकाल में उपजे घोटालों, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, कुशासन जैसे आरोपों के घेरे में है। उसे इससे पार पाने के लिए बड़े प्रयासों की आवश्यकता है। इसमें भारत जोड़ो यात्रा बड़ा कदम है। जिसका उद्देश्य आम जनमानस तक पहुंच बनाना था।
संवाद ही लोकतंत्र में पार्टियों का मूल हथियार है। जिसका संवाद आम जनमानस से जितना बेहतर होगा वह पार्टी उतनी ऊंचाई हासिल कर लेगी। कांग्रेस ने यात्रा से यही करने का प्रयास किया है। इससे जरूर लाभ होगा। किंतु चुनाव में आगामी वर्ष कांग्रेस को कितना लाभ इससे मिलेगा यह देखने का विषय है। क्योंकि तर्क यह भी है, की यात्रा की भीड़ उत्साहित करने वाली हो सकती है, किंतु यह चुनावी रैलियों की भीड़ के जैसे भी हो सकती है, जिन्हें पार्टी के वोटर होना पक्का नहीं कहा जा सकता।।

रविवार, 26 फ़रवरी 2023

रूस-यूक्रेन युद्ध का एक वर्ष पूर्ण | विशेष लेख

             रूस-यूक्रेन युद्ध

एक वर्ष हो चुका है। रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध जारी है। यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए मुसीबत बना हुआ है। कोरोना से उभरने के बाद कुछ गति जो विकास कार्यों की ओर अपेक्षित थी रूस-यूक्रेन युद्ध ने उस गाड़ी का टायर पंचर कर दिया।
बात साफ है, वैश्वीकरण के युग में आप दुनिया के किसी राष्ट्र में हो रही हलचल से बिना प्रभावित हुए बचकर नहीं निकल सकते। हमारे देश में जो मांगे पैदा होती हैं, उनकी आपूर्ति के लिए विदेशों से आयात होता है, और विदेशों की आवश्यकता की आपूर्ति के लिए भारत उन्हें वस्तुएं निर्यात करता है। अतः हम संपूर्ण विश्व से परस्पर जुड़े हैं।
इस वर्ष भारत को जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता के संदर्भ में प्रधानमंत्री जी ने इसीलिए ही कहा, कि कोई तीसरी दुनिया नहीं है हम सब एक नाव पर सवार है।
यह कहने का तात्पर्य ही था कि हम सब की संपूर्ण दुनिया में तमाम राष्ट्रों की समस्याएं एक समान ही हैं। इसका प्रमाण दिया है, कोरोना महामारी ने और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के समय दुनिया का हर राष्ट्र आज महंगाई, खाद्य संकट, ऊर्जा संकट आदि समस्याओं का सामना करने को मजबूर है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के एक वर्ष होने के साथ अब तक शांति के कोई प्रयास साकार होते नहीं दिखते।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत, चीन, पाकिस्तान के साथ लगभग 30 से अधिक देशों ने वोट नहीं दिए, और अपनी स्थिति को बरकरार रखा। इसका यही कारण रहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में जो प्रस्ताव रखा गया, उसमें रूस के पक्ष में कोई बात नहीं थी, अर्थात रूस जिन कारणों से युद्ध में है, उन विषयों को प्रस्ताव में कोई स्थान नहीं दिया गया। ऐसे में यह प्रस्ताव रूस की सैनिक अभियान को निरर्थक साबित करता है। क्योंकि प्रस्ताव में रूस जिन कारणों से युद्ध में है, अथवा रूस की महत्वकांक्षी का स्थान नहीं है, इस कारण से इस प्रस्ताव को रूस और उसके समर्थक राष्ट्र स्वीकृति क्यों देंगे। वहीं भारत, चीन, पाकिस्तान आदि राष्ट्र इस पर वोटिंग ना करना ही ठीक समझते रहेंगें। इस प्रकार यह प्रस्ताव केवल एक प्रयास ही रह जाएगा।
भारत का पक्ष शांति स्थापित हो इसी और है। इसका प्रमाण है, जब मोदी जी ने रूसी राष्ट्रपति से कहा था, कि यह युद्ध का समय नहीं है। किंतु साथ ही भारत का अपने पारंपरिक मित्र से दोस्ती बनाए रखने का भी प्रश्न है। किंतु भारत की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर निष्पक्षता और स्पष्टवादिता ने यूक्रेन को निराश नहीं किया है। भारत ने इसीलिए वोटिंग में प्रतिभाग नहीं किया। इससे यह तो साफ होता है, कि भारत रूस के सैनिक अभियान कि साथ नहीं है। किंतु वहीं भारत ने यूक्रेन के पक्ष में भी मत नहीं दिया है।
चीनी भी रूस के सैनिक अभियान पर कुछ नहीं कहा है। हां अमेरिका और यूरोपियन राष्ट्रों द्वारा यूक्रेन को हथियार उपलब्ध कराए जाने की निंदा की और इसी को यूक्रेन में युद्ध जारी रहने का कारण बताया।

अमेरिका ने हाल ही में यूक्रेन को 2 अरब डॉलर के हथियार उपलब्ध करवाने की घोषणा की है। इस प्रकार के निरंतर समर्थन के चलते यूक्रेन युद्ध के मोर्चे से पीछे नहीं हटने वाला है, और सामने रूस अपने दृढ़ हठ पर अड़ा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के एक वर्ष हो जाने पर दुनिया के अनेक देशों ने रूस के सैनिक अभियान के विरोध में प्रदर्शन किए। जर्मनी में एक खूनी रंग का केक बनाकर उस पर मानव खोपड़ी रखकर प्रदर्शन किया गया। रूसी दूतावास के सामने एक जर्जर टैंक को रखा गया, और रूस की दुनिया में कमजोर स्थिति को दर्शाया गया।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने भी यूक्रेन में हुए हमलों से गई जानों के लिए 2 मिनट का मौन धारण किया। ब्रिटेन के सम्राट जेम्स तृतीय ने भी अपनी संवेदना प्रकट की। अन्य कई और स्थानों पर भी प्रदर्शन की खबरें रही।।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

राजपरिवारों की कन्याओं के विवाह | विशेष लेख


प्राचीन समय से ही राज परिवारों ने और शासकों ने अपनी कन्याओं के विवाह से अपने साम्राज्य को स्थापित करने की नीति का अनुसरण किया। कन्या को श्रेष्ठ पक्ष को सौंपकर विवाह संबंध स्थापना से उन्हें राजनीतिक लाभ प्राप्त हुए।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हर्यक वंश का शासक बिम्बिसार ने विवाह नीति का अनुसरण किया। उसकी तीन रानियां थी।
पहली महाकौशल देवी जो कौशल प्रदेश की राजकुमारी थी, और प्रसनजीत जो अति प्रसिद्ध राजा हुआ, कि बहन थी। से विवाह किया और उसे दहेज में काशी प्राप्त हुआ।
उसकी दूसरी रानी लिच्छवी शासक चेटक की बहन थी। इन्हीं से बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु का जन्म हुआ। लिच्छवी बेहद मजबूत गणराज्य हुआ करता था। और इससे बिंबिसार को अवश्य बल और राजनीतिक वर्चस्व हासिल हुआ होगा।
उसकी तीसरी रानी मद्र की राजकुमारी क्षेमा थी।

आज से 2300 साल पहले जब चंद्रगुप्त मौर्य ने 305 ईसा पूर्व में सेल्युकस को परास्त किया, तो उसने अपनी पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से किया। और भी संधि के अनुसार कार्य किए गए। किंतु यह भी राजनीतिक क्रियाकलाप के फल स्वरुप ही हो सका। अतः यह विवाह भी राजनीतिक रूप से प्रेरित था।

भारत ही नहीं विदेशों में भी यह चलन रहा। जुलियस सीजर की कथा में और अन्य कई चलचित्रों में भी दिखाया जाता है, कि राज परिवार किस प्रकार अपनी पुत्री धन का प्रयोग अपनी सत्ता को कायम रखने या और ऊंचा उठाने में करते रहे थे। जुलियस सीजर को ही दिखाया गया है, कि वह कैसे अपनी पुत्री का विवाह अपनी ही उम्र के अपने मित्र से कर देता है। बदले में वह अपने मित्र से सेना की टुकड़ी हासिल कर लेता है, फिर अपनी विजय यात्रा के लिए निकल पड़ता है, जिससे वह रोम में अथाह प्रसिद्धि हासिल करता है, और रोम के लोगों के लिए अत्यधिक धन लूट कर लाता है। यह सब इसलिए कि वह अपनी पुत्री का अपने मित्र से विवाह कर देता है। और बदले में सैनिक टुकड़ी पाता है।

गुप्त काल में चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छिवियों की राजकुमारी से विवाह कर दिया। जिसका नाम कुमारदेवी था। लिच्छवी गणराज्य की शक्ति पर ही वह अपना गुप्त साम्राज्य स्थापित कर पाता है, यह वर्णन आता है।

आधुनिक भारत के इतिहास में पुर्तगाली गवर्नर अलबुकर्क ने विवाह संबंध नीति को प्रयोग कर अपने साम्राज्य को स्थापित करने का प्रयास किया। क्योंकि भारत में हिंदू धर्म में विधवा औरतों का विवाह वर्जित था, उसने उन्हें अपने पुर्तगाली ईसाइयों से विवाह कर लेने को कहा, और पुर्तगाली बस्ती स्थापित करने का प्रयास करता रहा।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏