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यूरोपियों का भारत आगमन | कारण और प्रयास

पूर्व से ही भारत के साथ स्थल और जलमार्ग दोनों से व्यापार हो रहा था। भारत से यूरोप जाने के लिए आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, तुर्की से होकर पहुंचा जाता और जलमार्ग से अरब सागर से फारस की खाड़ी या लाल सागर से प्रवेश मिलता हुआ आगे भूमध्य सागर के साथ लगे देशों जैसे इटली और ग्रीस आदि में पहुंचा जाता।

 यूरोप का रोमन साम्राज्य दो भागों में विभाजित एक पश्चिम का पश्चिम रोमन साम्राज्य जिसकी राजधानी रोम और पूरब का पूर्वी रोमन साम्राज्य किसकी राजधानी कॉन्सटेन्टिनोपल थी। इस पूर्वी रोमन साम्राज्य को बैजंतिया साम्राज्य भी कहा जाता था। अरबी लोगों ने बैजन्तिया साम्राज्य की राजधानी कॉन्सटेन्टिनोपल कहा।

तुर्की में उस्मानिया साम्राज्य का उदय हुआ, और 1453 में बैजन्तिया साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर अब कुस्तुनतुनिया उस्मानिया साम्राज्य में मिल गया। जोकि बैजन्तिया साम्राज्य की राजधानी थी।

कुस्तुनतुनिया का आधुनिक नाम इस्तांबुल है। यह टर्की का हिस्सा है, यह यूरोप महाद्वीप में है, जबकि टर्की शेष पूरा एशिया महाद्वीप में स्थित है। यह कुस्तुनतुनिया या आधुनिक इस्तांबुल यूरोप जाने के मार्ग में अहम था। क्योंकि यहां उस्मानिया साम्राज्य का विस्तार हो गया, उस्मानिया के अधिकार में व्यापार पर बड़े करारोपण हुए इससे वस्तुएं महंगी भी हुई। उस्मानिया साम्राज्य के इस अधिपत्य ने भी यूरोपियों को नया मार्ग ढूंढने के लिए प्रेरित किया। 

पूर्व से ही अरब और ईरान के लोग भारत से व्यापार कर यूरोप के देशों तक पहुंचाते थे। इससे उन्हें भी भारत में सीधे व्यापार की लालसा होती।

यूरोप ठंडा क्षेत्र होने के कारण वे मांस का भी काफी प्रयोग करते हैं। उसको सुरक्षित रखने के लिए भी उन्हें मसालों की आवश्यकता होती जो उन्हें भारत से प्राप्त होते थे। 

भारत की खोज के लिए यूरोपियों के लिए एक अहम कारण यूरोप में पुनर्जागरण भी था। यूरोप में प्राचीन साहित्य जो मानव पर केंद्रित था, यदि वह कर्म करेगा तो प्राप्त कर सकेगा। तर्क इत्यादि का समावेश था। मध्यकाल में ईश्वर केंद्रित समाज का निर्माण हो गया। सब कुछ ईश्वर की कृपा पर आश्रित है, मान लिया गया। जब कुस्तुनतुनिया को उस्मानिया साम्राज्य में विलीन कर दिया गया, तो बैजन्तिया साम्राज्य के विद्धान अपने प्राचीन साहित्य को भी अपने साथ ले गए। प्रिंटिंग प्रेस की सहायता से उसका प्रसार किया गया। तर्कशक्ति और वैज्ञानिक दृष्टि का विकास हुआ वे सोचने लगे, कि ईश्वर की शक्ति सर्वोच्च है तो बैजन्तिया या जैसे साम्राज्य का अंत कैसे हुआ। यूरोप में पुनर्जागरण हुआ, नवीन ज्ञान की लौ जली। खोज और अविष्कारों का दौरा आया। उनमें जिज्ञासा बढ़ने लगी, और यही जिज्ञासा उन्हें विशाल समुद्र में ले आई।

उन अभियानों को जान लेते हैं, जो यूरोप के देशों ने भारत की खोज के लिए भेजे और उनके प्रयास-

स्पेन ने कोलंबस के नेतृत्व में एक अभियान भेजा जो पश्चिम दिशा में चले जाने से अमेरिका की ओर बढ़ गया और इसलिए हम पढ़ते हैं, 1492 में कोलंबस ने अमेरिका की खोज की।

पुर्तगाल का प्रिंस हेनरी को द नेविगेटर कहा गया। क्योंकि समुद्री खोजों के प्रति उसकी जिज्ञासा और प्रयासों से कुछ हासिल भी हुआ। प्रिंस हेनरी के संरक्षण में अफ्रीका महाद्वीप के पश्चिम तट की ओर कई अभियान भेजे जाते रहे, और अफ्रीका के पश्चिम तट का एक मानचित्र भी तैयार किया गया।

1487 में एक बड़ी सफलता पुर्तगालियों को मिली यह बार्थोलोम्यो डियाज के नेतृत्व में एक जहाजी अभियान का अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणतम हिस्से तक पहुंचना था। इस स्थान को केप ऑफ गुड होप कहा गया, आशा अंतरीप।

हालांकि बार्थोलोम्यो डियाज ने इसे केप ऑफ स्टोर्म कहा। वह 1488 में लिस्बन पुर्तगाल वापस लौट गया। लगभग 10 वर्षों के बाद 1497 में पुर्तगाली एक अन्य जहाजी बेड़ा वास्कोडिगामा के नेतृत्व में भारत की खोज के लिए निकलता है। केप ऑफ गुड होप से आगे हिंद महासागर में बढ़ने के लिए उसे अब्दुल मनीक नाम का एक व्यापारी जो पूर्व से अरब के व्यापारियों के साथ रहा था, पथ प्रदर्शन के रूप में मिलता है। एक दिशा में चल वे हिंद महासागर से भारत के दक्षिण तटीय क्षेत्र में मालाबार तट तक पहुंचता है। जहां वह पहुंचता है, वह कालीकट था। वर्तमान में से कोझीकोड कहा जाता है। वास्कोडिगामा 1498 में यहां पहुंचा तब कालीकट का शासक जमोरिन था। इसे शामुरी भी कहा गया है।

वास्कोडिगामा अपने सब खर्चों के बाद लगभग 60 गुना मुनाफे के साथ पुर्तगाल पहुंचता है। यह उनकी बड़ी सफलता थी, और अन्य के लिए आकर्षण।

1500 में पेड्रो अल्वारेज एक अभियान का नेतृत्व कर भारत आया इस पुर्तगाली अभियान और आने वाले अभियानों में अब पुर्तगाल की नीति हिंद महासागर में अरब का वर्चस्व तोड़ने की थी। उन्होंनें अरबों पर हमले किए, उनके जहाजों पर हमले किए। 1502 में वास्कोडिगामा फिर भारत आया था पुर्तगालियों ने ब्रिटिश के आने तक लगभग 150 सालों तक अपनी शक्ति भारत में स्थापित रखी।

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