श्रीनगर किताब कौथिक आयोजित ना होना या जो खबर है, कि उसे होने से रोका गया। इस घटना ने बहुत से सवालों को पैदा किया है, बात यह है कि श्रीनगर में किताब कौथिक आयोजित होना था। इस कौथिक को करवाने वाली उस टीम में सदस्य कहें, हेम पंत जी ने अपनी बात को रखा। वह कहते हैं, कि इस आयोजन को पॉलिटिकल दृष्टि से देखा जा रहा है। जबकि ऐसा कुछ है नहीं। हम पहाड़ों के दूरस्थ गांव में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहते हैं, उसे स्थापित करना चाहते हैं। हमारे राज्य के ऐतिहासिक, पौराणिक क्षेत्र का ज्ञान लोगों को करवाना चाहते हैं। यही हमारा उद्देश्य है 12 सफल आयोजन करवाने के बाद 13 वें आयोजन में इस प्रकार की रुकावट को वे खेदपूर्ण बताते हैं।
दूसरी तरफ छात्र संघ है। छात्र संघ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया कि हमें इस बात की सूचना जब मिली की कॉलेज परिसर में किताब कौशिक का आयोजन होगा और इसमें कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए जाएंगे। हमने लाइब्रेरी में जो तमाम छात्र पढ़ने आते हैं उनसे बात की तो उनकी सहमति पर क्योंकि उनकी परीक्षाएं चल रही हैं, जिसके चलते छात्र हित में हमने इस किताब कौथिक के कार्यक्रम को इस वक्त स्थगित करने या पोस्टपोंड करने की बात रखी।
इस विषय पर जब नरेंद्र सिंह नेगी जी ने बात को उठाया तो मुद्दा व्यापक हो गया। अब एक तरफ तो हेम पंत जी और उनका वह साथी वर्ग जो किताब कौथिक का आयोजन करवाता है, अपने विशुद्ध उद्देश्य के साथ हैं। लेकिन बात अब पॉलिटिकल हाथों में जा चुकी है। यहां से आरोप लगने शुरू होते हैं।
इस घटना ने कुछ सवाल जरूर पैदा किए हैं हेम पंत जी बताते हैं कि उन्होंने रामलीला मैदान में भी किताब कौथिक करवाने के लिए तैयारी की लेकिन वहां पर भी कुछ इसी प्रकार का विवाद पैदा हुआ। जिस वजह से अब उन्हें इसे पूरी तरह से स्थगित करना पड़ रहा है, ऐसे में सवाल बड़ा है। सरकार तक तो मालूम नहीं लेकिन क्षेत्र के विधायक जी इस विषय पर बात रखें तो बेहतर होगा। हालांकि बाद में यह मुद्दा पॉलिटिकल हाथों में गया, लेकिन मूल रूप से यह शिक्षा प्रेमियों, पुस्तक प्रेमियों और बुद्धिजीवियों का मुद्दा है।।
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