अफगान घटनाचक्र-
अमेरिका का अफगानिस्तान से पलायन तालिबानियों की हौसला अफजाई रही। राह इतनी सरल रही कि देखते ही देखते अफगान तालिबान शासित हो गया। वह भूमि अफगानो की है। यह स्वर भी सुनने में आए कि तालिबानी अफगानी नहीं है।
अमेरिका का इतने वर्षों में अफगान को छोड़ने का यह तो ठीक समय ना था। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसा नहीं किया। उसे वैश्विक हितों के संरक्षण की दृष्टि से देखेंगे। अमेरिका विश्व महाशक्ति का यूं एक स्वयं के हितों के एवज में अवयस्क अफगान को संकटों में छोड़ना उचित तो नहीं। जिस तरह से अमेरिका ने अफगान से निकला ऐसा प्रतीत होता है, कि अमेरिका ने अफगान को अफगान सरकार के हाथ में नहीं बल्कि तालिबानियों के हाथ में सौंप दिया हो। किंतु अफकान के इन हालातों पर जवाबदेही किसकी होगी।
अब इन स्थितियों में पक्ष-विपक्ष समर्थन असमर्थन में बयानबाजी का दौर आरंभ होता है। रूस भी कुछ स्पष्ट मालूम नहीं होता है। बयान बाजी के बाद जिस बिंदु पर विचारक पहुंचे तो चीन और पाकिस्तान को लेकर तालिबानियों के खेमे में होने को मान लिया है। तालिबानियों का समर्थक वही है, जो उस नीति का समर्थक है, जिसमें किस प्रकार तालिबानी अफगान को अपने कब्जे में कर लेते हैं।
दूसरी और अमेरिका यूं ही तो एशिया में बैरागी नहीं हो सकता। स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति जॉ बाइडन का यह कदम उन्हें भी परेशान करता होगा। वह स्वयं यह मानते हैं, कि यह एशिया में उन शक्तियों को बढ़ावा दे सकता है, जो अवांछित हैं। इन्हीं कारणों से भी अमेरिका इतने वर्षों से अफगान में स्वयं को रखे था।
हालांकि कुछ राष्ट्रों ने तालिबान का विरोध भी किया है जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा कि तालिबान की सत्ता में वापसी भयानक व नाटकीय है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी विरोधी स्वरों में दिखे।
हालांकि तालिबान किस तरह से स्थितियों को संभाल रहा है। इसका एक दृश्य कि तालिबान के कट्टर विरोधी रहे गुल आगा शेरजई को और सद्र इब्राहिम को तालिबान अंतरिम सरकार में क्रमशः वित्त मंत्री और गृह मंत्री बनाए जाने की खबर है।
इन खबरों से स्थायित्व की ओर बढ़ती अफगान घटनाक्रम का अंदेशा है, किंतु यह कितनी दूर तक को है।
यह जानना शेष रहेगा कि तालिबान की लड़ाई अमेरिका से थी, या अमेरिका और अफगान सरकार दोनों से। यह तालिबान की नीतियों और कार्यों से मालूम होगा।
खैर इन सब में अफगान की आम जनमानस का हित सर्वोपरि रहे यही आशाएं हैं।
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