सोमवार, 18 अक्टूबर 2021

Arya in india explain in hindi | आर्यों को जानने की साधन | vedas, upnishad, brahmin, sutra, etc in hindi

आर्यों का विस्तार तथा संहिता, वेद, आरण्य, सूत्र इत्यादि की व्याख्या-

आर्यों को जानने की साधन
 

आर्यों का विस्तार- सप्त सिंधु, मध्य देश, आर्यव्रत और दक्षिणाव्रत

● उत्तर भारत में आर्य-

आर्य भारत में धीरे-धीरे आगे बढ़े भले ही वह मूल किसी भी प्रदेश के हों। किंतु भारतीय आर्य प्रारंभ में सप्त सिंधु में ही निवास करते थे। वह सात नदियां का देश जो सिंधु (सिन्ध), झेलम (वित्स्ता),  चुनाव (अस्कनी), रावी (परुषणो), व्यास (पिषाका), सतलज (शतुद्री), सरस्वती।

आर्य जैसे जैसे आगे बढ़े। भारतीय प्रदेशों के नाम देते रहें। कुरुक्षेत्र के निकट के भागों में अधिकार करने से उन्होंने उस प्रदेश का नाम ब्रह्मा व्रत रखा। मुख्य विषय यह है, कि उन्हें भीषण संघर्ष अनार्य से करना पड़ा होगा। जब वह और आगे बढ़े और गंगा यमुना दोआब और उसके निकट के प्रदेश पर अधिकार प्राप्त किया, उन्होंने उस प्रदेश का नाम ब्रह्मर्षि देश रखा जब उन्होंने आगे बढ़कर हिमालय और विन्ध्याचल के मध्य के भाग को अधिकार में लिया और स्वयं को प्रसारित किया तो इस प्रदेश को उन्होंने मध्य देश नाम दिया। जब उन्होंने वर्तमान बंगाल और बिहार के क्षेत्रों को भी अधिकार में लिया तो संपूर्ण उत्तर भारत को आर्यवर्त पुकारा।

● आर्यों का दक्षिण भारत में प्रवेश-

बहुत समय तक आर्य विंध्याचल को पार न कर सके। किंतु सबसे पहले अगस्त्य ऋषि विंध्याचल को पार कर दक्षिण भाग में पहुंचे। वहां भी उन्होंने अपने आर्य सभ्यता का प्रचार प्रसार किया। वे दक्षिण में भी फैल गए।उन्होंने दक्षिण प्रदेश को दक्षिणाव्रत नाम से पुकारा। 

आर्यों को जानने के साधन-

आर्यों का परिचय उनके ग्रंथों से प्राप्त होता है। उनके ग्रंथ संहिता या वेद, ब्राह्मण तथा सूत्र तीन भागों में विभक्त किया जा सकते हैं।

■ संहिता, वेद, श्रुति –

संहिता से तात्पर्य संग्रह है। अर्थात मंत्रों का संग्रह। वेद संस्कृत के विद शब्द से है, जिसका तात्पर्य जानना है। भारतीय आर्यों के ज्ञान का संग्रह है, वेद। वेद मनुष्य वक्तव्य नहीं है। वह ब्रह्मा वाक्य है। इन्हें ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा मुख से सुना है। यह श्रुति भी कहलाए।

आर्यों के चार वेद-

वेद संस्कृत भाषा में हैं। आर्यों की भाषा।

उन्होंने चार वेदों को संग्रहित किया कम्रशः वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।

1. ऋग्वेद-

ऋग्वेद विश्व का सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ है। यह ऋचाओं का संग्रह है। संभवत यह तब संग्रहित किया गया होगा जब आर्य सप्त सिंधु प्रदेश में निवास करते रहे होंगें। ऋग्वेद का अर्थ ऋचाओं के संग्रह से है। आर्यों ने किस वेद में स्तुति मंत्रों का संग्रह किया वह ऋग्वेद है। 

2. यजुर्वेद-

यजु का अर्थ है पूजन। यज्ञ का विधान यजुर्वेद में है। इस वेद में बलि की प्रथा उसका महत्व, विधान का वर्णन प्राप्त है। संभवत यह ग्रंथ कुरुक्षेत्र के प्रदेश में जब आर्य विस्तारित हो चुके थे। तब संग्रहित किया गया होगा।

3. सामवेद-

साम का अर्थ है, शांति। यहां इसका तात्पर्य गीत से शांति से है। सामवेद के मंत्र संगीतमय हैं।

4. अथर्ववेद

अथ का अर्थ है, मंगल या कल्याण, अथर्व का अर्थ है, अग्नि। तथा अथर्व का अर्थ है, पुजारी अर्थात इस ग्रंथ के अनुरूप पुजारी अग्नि तथा मंत्रों की सहायता से भूत पिशाच आदि से मानव के रक्षा करता है। इस ग्रंथ में बहुत से प्रेत पिशाचों जो का जिक्र है।

■ ब्राह्मण ग्रंथ-

 जब वेदों का आकार बहुत बड़ा हो गया था, वह बड़े कठिन हो गए थे। साधारण लोग उन्हें समझ नहीं पाते थे। अतः वेदों की व्याख्या करने के लिए जिन ग्रंथों की रचना की गई वे ब्राह्मण कहलाए। ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञ की विवेचना की गई है। ऐतरेय, शतपथ आदि कुछ प्रमुख ब्राह्मण ग्रंथ हैं।

■ आरण्य ग्रंथ-

 आरण्य का अर्थ है, जंगल। जिन ग्रंथों की रचना जंगलों में शांतिमय वातावरण में की गई, आरण्यक कहलाए। यह उन्हीं लोगों के लिए थे, जो जंगलों में जाकर चिंतन किया  करते थे।

■ उपनिषद-

उपनिषद का अर्थ है जो ग्रंथ गुरु के समीप बैठकर श्रद्धा पूर्वक पढ़े जाते हैं। उनका नाम उपनिषद रखा गया। उपनिषदों में उच्च कोटि की दार्शनिक विवेचना भी है। और इनमें यह भी संकेत मिलते हैं। कि तब तक आर्यों में वर्ण व्यवस्था तथा आश्रम की प्रथा अधिक मजबूती से स्थापित हो चुकी थी।

■ सूत्र ग्रंथ-

सूत्र का शाब्दिक अर्थ होता है। तागा सूत्र उन ग्रंथों को कहते हैं जो इस प्रकार लिखे हों जैसे मोती की भांति धागे में पिरो दिया गया हो। 

 जबआर्य ग्रंथों की संख्या बहुत बढ़ गई। जब वे विशालकाय ग्रंथ हो गए तब ऐसे ग्रंथों की आवश्यकता पड़ी जो छोटे आकार के हों परंतु वे बड़े भाव दें। पाणिनी ने सूत्रों की तीन विशेषताएं बतलाई हैं, अर्थात वे थोड़े से अक्षरों में लिखे जाते हैं, बड़े संदिग्ध होते हैं, और बड़े ही सारगर्भित होते हैं। सूत्रों की रचना में पाणिनी और पतंजलि का प्रमुख तौर से योगदान है।

 विल्सन महोदय ने लिखा है। कि प्राचीनता की कल्पना में जो कुछ अत्यधिक रोचक है, उसके संबंध में पर्याप्त सूचना हमें वेदों से मिलती है।

इन ग्रंथों का सबसे बड़ा महत्व है, कि इनसे आर्यों के प्रारंभिक इतिहास जानने में सहायता मिलती है, साथ ही हिंदू जाति का प्रारंभिक इतिहास उनके बिना अंधकार में होता। यह भारतीय प्राचीन सभ्यता के एक और मूलाआधार है।

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏