आर्य कौन थे? आर्यों का मूल स्थान-
आर्य कौन थे? इनका मूल स्थान क्या था?
यह बेहद विवादपस्त प्रश्न है। स्मिथ लिखते हैं कि, “आर्यों के मूल निवास के संबंध में जानबूझकर विवेचना नहीं की गई है, क्योंकि इस संबंध में कोई विचार निश्चित नहीं हो सका है”।
आर्य का अर्थ है, श्रेष्ठ और वे अनार्य (अश्रेष्ठ) उन्हें कहते हैं, जिनसे वे अपने भारत भूमि भ्रमण में संघर्ष किए। सर्वप्रथम आर्य शब्द वेदों में प्रयुक्त है, व्यापक तौर से यह एक प्रजाति है। जिनकी शारीरिक रचना विशिष्ट है। जिनके शरीर लंबे डील-डौल, हृष्ट-पुष्ट, गोरा रंग, लंबी नाक वाले तथा वीर साहसी होते हैं। भारत, ईरान और यूरोपीय प्रदेश के कई देशों के लोगों का इन्हीं के संतान होने का मत है। यह लोग प्रारंभ से ही पर्यटनशील होते हैं। और इसी प्रवृत्ति से यह लोग संपूर्ण विश्व में फैलने लगे। और इन लोगों ने विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप अलग अलग संस्कृति का विकास किया।
1. आर्यों का मूल स्थान को लेकर विद्वानों का एकमत होना बहुत कठिन है। क्योंकि विद्वान अलग-अलग ढंग से आर्यों के मूल स्थान की विवेचना करते हैं। इससे कुछ प्रमुख सिद्धांत निर्मित होते हैं। यूरोपीय सिद्धांत में भाषा संस्कृति के आधार पर कुछ विद्वान आर्यों का आदि देश यूरोप के होने का मत देते हैं। उनके मतानुसार आर्य यूरोप से ही ईरान और भारत को बढे। उनके तर्क थे, कि भारत, ईरान और यूरोप के आर्यों की भाषा की समानता जैसे पितृ, पिदर, पेटर, फादर और मातृ, मादर, मेटर, मदर और दुहितृ, दुख्तर, डॉटर, आदि। इस तर्क से उनका मूल निवास प्रारंभ में एक ही रहा होगा यह तो तय होता है। और वह वहीं से अलग-अलग प्रदेशों में विस्तार किए होंगे।
यूरोपियन सिद्धांत के समर्थन में उनके अन्य तर्क है। कि यूरोप में आर्यों की संख्या एशिया के आर्यों से अधिक हैं, संभवत वे एशिया में यूरोप से ही आए हों। उनका तर्क यह भी है कि, पर्यटन प्रायः पश्चिम से पूर्व को हुए हैं। और पूर्व की ओर यूरोप से आने में कोई मरुस्थल, वन प्रदेश, पर्वत इतना जटिल नहीं है, जो पार ना हो सके। वे यूरोप के सिद्धांत को इन तर्कों से ठीक ठहराते हैं। और आर्यों को वही का मूलनिवासी कहते हैं। किंतु यूरोप के किस प्रदेश में आर्यों का आदि है। यह प्रश्न भी विवाद में हैं, जिस पर अलग-अलग विद्वान अलग-अलग मतों का समर्थन करते हैं।
● डॉ० पी० गाइल्स ऑस्ट्रिया हंगरी का मैदान जो यूरोप के मध्य प्रदेश भाग में हैं। का समर्थन किया है। यह प्रदेश शीतोष्ण कटिबंध में है। वहां पशु गाय, बैल, घोड़े, कुत्ते वनस्पति जैसे गेहूं, जौ जिनसे आर्य परिचित थे। प्राप्त हैं। और वे यह तर्क भी देते हैं, कि यह मैदान सर्वाधिक माध्य है, उन सभी स्थानों तक पहुंचने का जो जो आर्यों का पर्यटन प्रदेश बना। अथवा जहां तक वे पहुंच सके।
● कुछ अन्य विद्वानों ने पेन्का के समर्थन में जर्मनी प्रदेश को आर्यों का मूल स्थान कहा है। उनका तर्क है कि, प्राचीन आर्यों के बाल भूरे थे, और जर्मन लोगों के बाल आज भी भूरे हैं। इसके अलावा बहुत से शारीरिक विशेषताएं जो प्राचीन आर्यों मैं पाई जाती थी, वह जर्मन के आर्यों में भी थी। इसके अलावा उनका तर्क है, कि इस प्रदेश पर कभी विदेशी जाति का प्रभुत्व नहीं रहा। उन लोगों ने सदैव इण्डो-यूरोपियन भाषा का प्रयोग किया। और प्राचीनतम पात्र इसी प्रदेश में प्राप्त हुए हैं। अतः आर्य इस प्रदेश के आदि मूल निवासी थे।
● यूरोपीय सिद्धांत के अंतर्गत आर्यों के आदि मूल निवास को लेकर दक्षिण रूस के प्रदेश को भी कुछ विद्वानों का मत प्राप्त है। वह कृषि, पशु, उपजाऊ भूमि के आधार पर कहते हैं। कि यूरोप में आर्यों का प्रारंभ में आदि मूल स्थान दक्षिण रूस ही है।
यूरोपीय सिद्धांत के अनुरूप यूरोप में आर्यों के प्रारंभिक मूल स्थान को लेकर ऑस्ट्रिया-हंगरी का मैदान, जर्मनी प्रदेश और दक्षिण रूस के प्रदेश के मध्य और अन्य भी अनेक मत प्राप्त हैं। किंतु कुछ विद्वानों का मत है, कि आर्य यूरोप के मूल निवासी ना होकर मध्य एशिया के आदि मूल निवासी हैं। और मध्य एशिया का सिद्धांत जन्म लेता है।
2. जर्मन विद्वान मैक्समूलर मध्य एशिया को आर्यों का आदि देश होने का तर्क देते हैं। उनके तर्कों में मध्य एशिया वह स्थान है। जहां आर्य प्रारंभ में थे। और यह ईरान, भारत और यूरोप के सन्निकट भी है। यहीं से उन प्रदेशों में पर्यटन हुआ होगा। आर्य पहले अपने वर्षों की गणना हिम से करते थे, बाद में वे शरद से वर्षों की गणना करने लगे। उनके मत में इसका तात्पर्य है कि, पहले आर्य शीत प्रदेश मध्य एशिया के निवासी थे। बाद में वे दक्षिण की ओर बढ़े वहां उन्हें सुहावना बसंत मिला उनका तर्क यह भी है, कि आर्यों के ग्रंथ जिन पशुओं और अन्नों का उल्लेख देते हैं। उनका मध्य एशिया में प्राप्ति है। वह इस तर्क से अपना मत मजबूत करते हैं। कि कालांतर में शक, कुषाण हूंण आदि जातियां मध्य एशिया से ही भारत आए हैं।
3. आर्यों के संबंध में तीसरा सिद्धांत आर्कटिक सिद्धांत है। वेदों के आधार पर बाल गंगाधर तिलक भी इसका समर्थन करते हैं। उनका तर्क है, कि वेदों में छः महीने दिन और छः महीने रात का वर्णन है। वेदों में उषा की भी स्तुति है, जो बहुत लंबी है। यह सब उत्तरी ध्रुव में संभव है, पारसियों के धर्म ग्रंथ अवेस्ता में भी वर्णन है कि, उनके देवता अहुरमज्द ने जिस देश का निर्माण किया, वहां दस महीने सर्दी और दो महीने मात्र गर्मी होती थी। तिलक जी का निष्कर्ष है, कि यह प्रदेश उत्तरी ध्रुव के निकट कहीं होगा अवेस्ता में वहां तुषारपात का भी वर्णन है। तिलक जी का मत है कि पहले आर्य जब वहां थे तो वहां बसंत का मौसम था। किंतु जब वहां तुषारपात हुआ, तो आर्य वहां से चल पड़े। वहीं से यूरोप, ईरान और भारत वर्ष आ पहुंचे।
4. कुछ विद्वान आर्यों का मूल स्थान भारत भूमि होने का समर्थन करते हैं। डॉ० राजबली पांडे ने लिखा कि “संपूर्ण भारतीय साहित्य में एक भी संकेत नहीं है, जिससे सिद्ध हो सके कि भारतीय आर्य बाहर से आए थे। जन्श्रुतियों, भारतीय अनुश्रुतियों में कहीं इस बात की गंध नहीं है, कि भारतीय आर्यों की पितृभूमि और धर्म भूमि कहीं अन्य बाहर के देश में है”।
श्री अविनाश चंद्र दास के विचार में सप्त सिंधु आर्य आदि मूल निवास स्थान था। कुछ विद्धान गंगा का मैदान आर्यों की आदि भूमि का मत देते हैं। भारतीय सिद्धांत के समर्थन में विद्धान कहते हैं, कि भारतीय आर्यों के विषय में वैदिक ग्रंथ में कहीं नहीं लिखा मिलता कि आर्य बाहर से आए हैं। बल्कि सप्तसिंधु पंजाब का गुणगान है। जिस मुख्य भोज्य गेहूं, जौ का आर्यों को ज्ञान था, वह इस प्रदेश में बाहुल्य में प्राप्त हैं। अतः वे अपना मत कि भारतीय आर्य कहीं बाहर से नहीं आए हैं। को मजबूती से पेश करते हैं।
इतिहास के पृष्ठों की यही अस्पष्टता आज भी हमें अतीत के गर्भ में छुपे उन रहस्यों को जानने के लिए आकर्षित करती हैं।
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