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भारत की भौगोलिक व्याख्या | दक्षिणापथ, आर्यावर्त भौगोलिक विविधता

    भारत के भूगोल का भारतवासियों पर प्रभाव गौरतलब है। स्थल असमानता भारतवासियों को भिन्न करती है। उनके संस्कृति, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक रूचि और जीवन का कारण है।

 ■  हिमालय की पर्वत माला ने जिस प्रकार हिंदुस्तान को पोषित किया है। उसका संरक्षण किया है, वह किसी से छिपा नहीं है। उत्तर की शीत हवाओं से संरक्षण, मानसूनी हवाओं का अवरोध और उत्तर की भूमि की समृद्धि, आक्रमणकारियों के लिए अभेद्य अवरोध बना रहा है द ग्रेट हिमालय। हिंदुस्तानियों के लिए वास्तव में ग्रेट है। हिंदुस्तान का कभी सोने की चिड़िया होना हिमालय के संरक्षण की देन है।

ऋषियों ने प्राचीन काल से अब तक हिमालय की भागों में चिंतन के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किए। इस की गोद की पवित्रता में प्रकृति के साधक रहें। यह भारतवासियों की धार्मिक जीवन पर भी प्रभावी रहा। हिमालय की इन सब महत्ता से ही हिमालय भारत का मुकुट है।

 ■  उत्तर का विशाल मैदान अथवा गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन की उर्वरता भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक जीवन को प्रभावित करती रही है। अतीत के पृष्ठो में बड़े-बड़े साम्राज्य का उदय और पतन इसी मैदान में हुए। महाभारत का महान युद्ध इसी भूमी पर लड़ा गया। मौर्य, गुप्त वंश के यशस्वी शासन इसी भूमि की उपज रहे। दिल्ली सल्तनत का उदय, मुगल साम्राज्य इसी मैदान पर घटित हुआ है। बंगाल भूमि से अंग्रेजों ने अपनी विजय यात्रा यहीं से प्रारंभ की, और स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल भी इसी भाग में पहली बार सन 1857 में उदघोष हुआ। 

   इस भाग में धार्मिक उदय, कला, व्यापार, चिंतन की ओर मानव को प्रेरित किया। यह भूमि उर्वरक और समृद्ध है। अतः अवकाश का समय अधिक होने से उत्तर भारत के लोग जीवन यापन के लिए श्रम के अतिरिक्त स्वयं को रचनात्मक कलाओं में पारंगत करते रहे। उन्हें कला में सृजन के लिए पर्याप्त समय मिला। वेद, शास्त्र ग्रंथ, स्मृति, पुराण, बौद्ध, जैन धर्म आदि विचारों ने यहीं जन्म लिया। इस प्रदेश के समृद्धि पर आक्रमणकारियों की सदैव से दृष्टि रही। राजस्थान के मरुस्थलीय भाग में राजपूतों ने जैसे हिंदू संस्कृति को जीवित रखा वह अविस्मरणीय है। राजपूत वीरांगनाओं ने कैसे जोहर अपनाया यह अदम्य साहस की मिसाल सदैव जुबान में रहेगी। स्वतंत्र भाव से जीने के लिए राजपूतों का संघर्ष उन्हें अरावली की श्रेणियों में शरण लेने के लिए विवश कर गया, किंतु यह वही भूमि है, जिससे पोषित राजपूतों ने आन की रक्षा, शूर-वीरता, शत्रु को पीठ न दिखाना जैसे गुणों को जीवित रखा।

 ■  दक्षिण का पठारी प्रदेश वह भूभाग है। जहां कभी राजनीतिक एकता प्राप्त ही ना हुई। वे सदैव से अपने स्वतंत्र अस्तित्व के लिए प्रयत्नशील रहे। यह भूभाग उर्वरक न होने से कठिन परिश्रमी लोगों का देश रहा है। और यहीं मराठों का जन्म होता है। जिन्होंने छापामार रणनीति को अपनाया, अपनी वीरता से मुसलमानों से भी भीषण संघर्ष किया। वह भारत में हिंदवी स्वराज्य स्थापित करना चाहते थे। शिवाजी, बालाजी, बाजीराव, नाना फड़नीस आदि सदैव याद रहेंगे।

■   उत्तर भारत और दक्षिण भारत में गहरी भिन्नता है। सतपुड़ा और विंध्याचल के उस पार हो जाने से उन्होंने अपनी अलग जीवन शैली का विकास किया है। उत्तर भारत में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र चार वर्ण है। जबकि दक्षिण भारत में ब्राह्मण और शूद्र दो ही वर्ण हैं। उनके खान-पान, वेशभूषा, रीति-रिवाज व्यवसाय में गहरी भिन्नता है।

   उत्तर भारत में संस्कृत भाषा आर्यों के द्वारा प्रचलन में आई, और तत्पश्चात संस्कृत से ही जन्मी अनेकों भाषाएं उदित हुई। वहीं दक्षिण में तमिल, तेलुगू , कन्नड़, मलयालम भाषा बिलकुल भिन्न है।

■  किंतु दक्कन के तटीय भागों का भारत के व्यापारिक इतिहास में वृहद स्थान रहा है। दरअसल यहां मसालों के उत्पादन में यूरोपियों को व्यापार के लिए आकृष्ट किया। और यहीं से वे अपनी छोटी-छोटी व्यापारिक संस्थाओं को जन्म देकर सारे भारत में अपना अधिपत्य स्थापित करने को प्रयत्नशील हुए।

  भारत की संस्कृति प्राचीन है। और इस संस्कृति और सभ्यता के उदय में भारत की प्राकृतिक भौगोलिक परिस्थितियों का भी योगदान है। इसीलिए भारत में भौगोलिक विविधता के साथ सांस्कृतिक भिन्नता प्राप्त है।

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