भारतीय सभ्यता के सूत्रधार / भारतीय सभ्यता पर आक्रांताओं का प्रभाव–
भारतीय सभ्यता के आरंभिक सूत्रपात कर्ता भारत के आदमी निवासी थे, और उन्हीं की सभ्यता को आर्य और द्रविड़ो ने रूप दिया। तत्पश्चात कालांतर में यूनानी, शक, कुषाण, हूण, मुसलमान और यूरोपियों ने भारतीय सभ्यता को प्रभावित किया, किंतु अनेकों आक्रमणों के बावजूद भी भारत वासियों ने अपनी संस्कृति को अब तक स्वयं में जीवित रखा है। { भारतीय सभ्यता के सूत्रधार }
◆ आदिम निवासी भारतीय सभ्यता के सूत्रधार हैं। वह किरात, कोल, संथाल, मुंड जाति के थे। किरात जाति के लोग असम, सिक्किम और उत्तर पूर्वी हिमालय क्षेत्रों के निवासी करते हैं। और संथाल तथा कोल जाति के लोग छत्तीसगढ़, छोटानागपुर तथा खासी-जयंतिया की पहाड़ी इलाकों में निवासी हैं। यह लोग प्रारंभ में जंगली थे। विद्वानों का मत है कि पाषाण काल की सभ्यता के प्रवर्तक भी आदिम निवासी ही थे।
◆ दक्कन में द्रविड़ अधिक सभ्य थे। वे आदिम निवासियों से अधिक सभ्य थे। वह काले रंग के मझोले कद और चौड़ी नाक के होते हैं। यह लोग तमिल, तेलुगू ,मलयालम, कन्नड़ भाषा का प्रयोग करते हैं। मिट्टी के बर्तनों पर सुंदर चित्रकारी, समूह में रहना, पशुपालन, कृषि और नदियों के व्यापार तथा वाणिज्य करने वाले लोग जहाज और नाव का भी निर्माण करते थे। यह द्रविड़ सभ्यता है। { भारतीय सभ्यता के सूत्रधार }
◆ आर्यों को भारतीय सभ्यता का प्रमुख प्रवर्तक कहा गया। प्रारंभ में पंजाब से होकर आर्य संपूर्ण उत्तर भारत में फैले। वह गोरे, लंबे-चौड़े और लंबी नाक वाले लोग हैं। वह वीर साहसी और रण प्रिय रहे। कालांतर में आर्य दक्षिण में भी गए, और दक्षिण के सभ्यता पर उनका प्रभाव प्रकाश में है। साथ ही द्रविड़ सभ्यता भी परिपक्व सभ्यता रही। आर्य सभ्यता भी उनसे अप्रभावित न रह सकी। और इन्हीं का योग से भारतीय सभ्यता का जन्म हुआ। हालांकि हिंदुओं के पथ प्रदर्शक आर्य ही हैं। उनकी भाषा संस्कृत में ही हमारे साहित्य ग्रंथ हैं। हिंदी, बंगाली, मराठी व संस्कृत की ही धाराएं हैं। { भारतीय सभ्यता के सूत्रधार }
◆ पारसी लोग मूलतः भारतीय निवासी ही थे। अवस्ता इनका प्रधान धर्म ग्रंथ है। यह अग्नि पूजक होते हैं। यह भारत में आज भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। बड़े राष्ट्र विचारी होते हैं। भारतीय सभ्यता के विकास में इनका योगदान भी रहा है।
◆ तत्पश्चात उत्तर-पश्चिमी पहाड़ी भारतीय प्रदेशों में यूनानीयों का भी प्रवेश हुआ, जो सभ्यता के दौड़ में कुछ आगे थे। अतः इनका प्रभाव भी भारतीय सभ्यता पर रहा।
◆ शक और कुषाण लोगों ने तत्पश्चात क्रम से भारत में प्रवेश किया, शक लोग बर्बर जाति के थे, और कुषाण यू-ची जाति के लोग थे। यह जातियां भारत के पश्चिम-उत्तर प्रदेशों में प्रविष्ट हुए। कुषाण शासकों का प्रारंभ में मूल स्थान चीन के उत्तर-पश्चिम में था। उन्होंने अपने नाम की मुद्राएं भी चलाएं। कुछ समय तक शासन भी किया, किंतु कालांतर में भारतीय सभ्यता में रंग गए, हालांकि उसे प्रभावित करते रहे।
◆ पांचवी-छठी सदी में हूणों ने भी भारतीय पश्चिम-उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया। यह लोग तब असभ्य थे। इनका प्रभाव भी भारतीय सभ्यता पर रहा। कुछ विद्वानों का मत यह है, कि गुज्जर, जाट तथा कुछ राजपूत इन्हीं के वंशज है।
◆ तत्पश्चात आठवीं शताब्दी से ही मुसलमानों ने भारतीय क्षेत्र में आना आरंभ कर दिया था। वह लोग अपनी उत्कृष्ट सभ्यता संस्कृति को लेकर यहां आए। ये अरबी, तुर्क, मुगल थे। उन्होंने लगभग हजार साल भारत पर शासन किया। और इनके सभ्यता का परिणाम रहा कि भारत में दो धाराएं संस्कृति हिंदू और मुस्लिम बन गए। जो कभी एक ना हो सके। और जिसका निवारण भारत का विभाजन द्विराष्ट्र सिद्धांत से किया गया, और पाकिस्तान का जन्म हुआ।
◆ पंद्रहवीं शताब्दी से यूरोप वासियों का व्यापारिक मनसा के लिए भारतीय प्रदेशों में प्रवेश होने लगा। कालांतर में पुर्तगाल, डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज भारतीय सभ्यता को प्रभावित करने वाले और पाश्चात्य संस्कृति की छाप भारत में छोड़ गऐ। अंग्रेजों ने शासन किया और पाश्चात्य के साहित्य, समानता, बंधुत्व, अस्पृश्यता का निवारण, राजनैतिक, लोकतांत्रिक, धार्मिक तर्कवाद जैसी अनेकों नवचेतना का जन्म भारत में होता है।
किंतु यह भी सत्य है, कि पुरा भारतीय मूल संस्कृति के विकास में कई अवरोध रहे। अनेको आत्यायियों ने इसे समाप्त करने का प्रयत्न किया। किंतु इन हवाओं के झोंकों को झेलती हुई भारतीय संस्कृति आज भी हममें जीवित रही है।
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