गुरुवार, 4 नवंबर 2021

वर्धमान से महावीर स्वामी होने की यात्रा | महावीर स्वामी जीवन परिचय | जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर mahaveer swami (vardhaman)

वर्धमान से महावीर स्वामी होने की यात्रा / जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर-

 धार्मिक क्रांति का युग छठी सदी ईसा पूर्व में वह प्रभावी क्रांति का दौर रहा जिसमें भारतीय हर मानव को स्वयं से जोड़ा। उसके जीवन के हर आयामों को प्रभावित किया। जैन धर्म उसी सदी का प्रकाश है। जैन धर्म यूं तो बहुत प्राचीन धर्म है। क्योंकि महावीर स्वामी से पूर्व 23 तीर्थंकर जैन धर्म के हो चले थे। किंतु महावीर स्वामी 24 वे तीर्थंकर के रूप में जैन धर्म को श्रेष्ठ प्रसिद्धि तक ले गए, और उन्हें ही जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक कहा गया।

   वह बालक वर्धमान नाम का 599 ईसा पूर्व विदेह राज्य की राजधानी वैशाली के निकट कुंड ग्राम में जन्मा था। वे कश्यप गोत्र के क्षत्रिय राजकुमार थे। पिता का नाम सिद्धार्थ था। वे ज्ञात्रिक गण के नेता थे। इनकी माता का नाम त्रिशला था जो मगध राजा श्वसुर चेटक की बहन थी। जो लिच्छवी वंश के क्षत्रिय राजकुमार थे।

   जैन ग्रंथों के अध्ययन में महावीर स्वामी के संपूर्ण जीवन का परिचय प्राप्त होता है। वर्धमान के जन्म पर उत्सव हुआ। कैदियों को कारावास मुक्त किया गया। बाल्यकाल से ही उन्हें राजसी सुख में डूबोने का प्रयत्न रहा। किंतु वे चिंतक प्रवृत्ति, मोह माया से दूर वैराग्य को आकर्षित रहे।  उनका विवाह भी तय हुआ। यशोदा नामक राजकुमारी उनकी पत्नी हुईं, और एक पुत्री को जन्म दिया। जिसका नाम अण्जा रखा गया। किंतु वे कभी इस सुखः में स्वयं का संतोष ना ढूंढ सके।

   30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने बड़े भाई की आज्ञा लेकर घर त्याग दिया, सन्यास ले लिया, और मोक्ष का मार्ग की खोज एकमात्र लक्ष्य साध लिया।

   प्रसंग है कि, वह जिन वस्त्रों में घर से निकले थे, 13 माह तक उन्हीं में विचरण करते रहे, जब वस्त्र फट गए तो वर्धमान नंगे बदन सत्य, ज्ञान, मोक्ष की प्राप्ति में सब कुछ त्याग कठिन तपस्या में रहे। गर्मी, सर्दी, बरसात में बेघर वे चिंतन में रहे। लोगों ने पत्थर मारकर उनका तिरस्कार किया, किंतु वे मौन चिंतक जीवन के लक्ष्य प्राप्ति के लिए निष्ठ थे। अपने तापस जीवन के तेरहवें वर्ष में जब वे साल वृक्ष के नीचे नदी तट पर लीन थे, उन्हें कैवल्य (निर्मल) ज्ञान प्राप्त हुआ। वह अहर्त (पूज्य) जिन (विजेता या जितेंद्र) निरग्रंथ (बंधन रहित) महावीर (परम प्रतापी) इन नामों से प्रचलित हुऐ। “जिन” नाम होने से वह जिस धर्म के प्रचारक रहे, उसे जैन धर्म कहा गया। महावीर की भांति अपनी इंद्रियों को विजित कर लिया वे महावीर कहलाए। 

   वे धर्म के प्रचार में लोगों को अपने उपदेशों से आकृष्ट करते  रहे। लोग उनके धर्म की दीक्षा लेने लगे कौशल, काशी, मगध, अंग आदि राज्यों में भ्रमण करते रहे। उनके तीस वर्ष तक धर्म के प्रचार से धर्म खूब प्रचलित हो गया। बहत्तर वर्ष की आयु में 529 ईसा पूर्व वे निर्वाण को प्राप्त हो गए।

   महावीर स्वामी कैवल्य ज्ञान का प्रचारक होने से आज तक हम सब में अहर्त हैं।

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