वैदिक काल के धर्म के स्थान पर धार्मिक क्रांति के युग में नव धर्मों का उदय हुआ। जो वैदिक काल के धर्म ग्रंथों की जटिलता ही रही होगी, जो मानव ने अन्य धर्मों को अपनाया। वैदिक काल के धर्म ग्रंथ संस्कृत में थे, उनकी भाषा जटिलता, सामान्य मानव उससे अछूता ही रहा, वह उसे समझ पाने में असमर्थ ही था। तब वह एक ऐसे सरल मार्ग जो मोक्ष प्राप्ति को मिल सके उसे अपनाने को तैयार था। वह उसके स्वागत में था।
वैदिक धर्म में यज्ञों को एकमात्र मोक्ष की प्राप्ति का साधन बताया है। किन्तु समय के साथ यह महंगे होते गए तब इसे जनसाधारण करवा पाने में असमर्थ हो गया।
मानव में चेतना का नव अध्याय पल्लवित हो रहा था। तो यज्ञ में पशुओं की बलि देवी देवताओं को प्रसन्न करती है, यह ना होकर लोगों के मन में वैदिक धर्म को हिंसा धर्म होने की बात आने लगी। क्यों बेजुबानों की बलि दी जाए। चेतना का नवयुग बेजुबान के दर्द का एहसास कर पा रहा था। वह मानव चेतना का नया-नया नभ चूम रहा था।
वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था व्यवसाय पर आधारित थी किंतु कालांतर में वह जाति प्रथा का रूप धारण कर भेदभाव ऊंच-नीच को समाज में जन्म दे रही थी। लोग ऐसे धर्म को ढूंढने लगे जो भेदभाव न रखें। समान दृष्टि से सबको देखे। वैदिक काल में ब्राह्मण श्रेष्ठ थे। उस धर्म में ब्राह्मण दंड मुक्त भी था। किंतु कालांतर में आते आते उनका विरोध हुआ। समाज में उनका वर्चस्वशाली स्थान क्षत्रिय राजकुमारों ने ग्रहण किया। ब्राह्मणों का राजनीति में वर्चस्व शून्य हो चला था।
यज्ञ तथा बलिदान मार्ग के स्थान पर तपस्या तथा ज्ञान का मार्ग श्रेष्ठ होगा। किन्तु वह भी इतना आसान नहीं था। जनसाधारण जंगलों में जाकर चिंतन कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए कैसे प्रयत्न करता, यह भी उसके लिए बेहद जटिल था। एक साधारण मनुष्य अब भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए किसी एक सरल विकल्प के स्वागत में था।
चिंतकों ने मार्ग को ढूंढ निकाला एक मार्ग भक्ति तथा उपासना का और दूसरा सत्कर्म तथा सदाचार का।
भक्ति और उपासना के अनुयाई भागवत धर्म के अनुयायी हुए, वे उस धर्म को जन्म देने में सफल रहे तथा सत्कर्म सदाचार के मार्ग पर जैन और बौद्ध धर्म ने लोगों में प्रसार प्राप्त किया।
यह कुछ कारण हैं, जो धार्मिक क्रांति के युग में लोगों के मन में पैदा जरूर हो चुके होंगे, और शायद यही कारण हैं, जो नये धर्मों के आम जनमानस में प्रसारित होने के हैं। वैदिक धर्म ने जीवन का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है, इससे तो जनमानस अवगत था। किंतु वह मार्ग जो इसकी प्राप्ति में है, वो कालांतर में जनसाधारण के लिए निभा पाना कठिन हो गया था। यही धार्मिक क्रांति के युग के उदय का कारण है।
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