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बौद्ध धर्म की शिक्षाएं विस्तृत व्याख्या | boudh dharma Mahayan & heenyaan

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म के प्रचार में भगवान बुद्ध ने अपना पूरा जीवन लगा दिया, और यही कारण रहा कि मात्र भारत में नहीं बल्कि बौद्ध धर्म ने विदेशों में भी अपनी जड़ें मजबूत कर ली। मध्य एशिया, जापान, चीन, तिब्बत, सुमात्रा, जावा, कंबोडिया, वर्मा, लंका आदि देशों में बौद्ध धर्म बेहद प्रचलित हुआ। हालांकि आज हमारे देश में यह न्यून स्थिति में है, किंतु विदेशों में इसका प्रचार अब भी सुदृढ़ है।

   जब भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई तो वे वहां से सर्वप्रथम सारनाथ में अपने उन साथियों को जो उन्हें छोड़कर चले आए थे। अपने ज्ञान से उन्हें अपने जीवन का पहला उपदेश दिया। तत्पश्चात वाराणसी और वहां से राजगृह चले गए। यहां पर उन्हें अपने धर्म के प्रचार में बेहद सफलता मिली।

इसके बाद वे अपनी मातृभूमि गए जहां पर उन्होंने शाक्यों को अपने धर्म से दीक्षित किया। तत्पश्चात सारे मगध, कौशल, लिच्छवी के अपने धर्म के प्रचार को बेहद सफलता से किया, और सारे उत्तर भारत में बौद्ध धर्म को एक जागृत धर्म के तौर पर प्रचलित किया, हालांकि आज बौद्ध धर्म दो संप्रदाय में महायान और हीनयान में वितरित है।

महायान संप्रदाय के लोग उदारवादी और सुधार में विश्वास रखते हैं। वे कट्टरपंथी नहीं होते हैं। बौद्ध धर्म के कठोर नियमों को लेकर कुछ ढीलाई करना चाहते हैं। 

किंतु हीनयान संप्रदाय वाले कठोरता से बौद्ध धर्म के नियमों को पालन करने में विश्वास करते हैं। वे भगवान बुद्ध को मात्र एक महापुरुष मानते हैं। तो वे उनकी पूजा नहीं करते हैं। वहीं महायान संप्रदाय के लोग भगवान बुद्ध को इश्वर की भांति पूजते हैं। उनकी मूर्तियों की स्थापना करते हैं।

   भगवान बुद्ध अपने धर्म के प्रचार के दौरान अपनी उदारता और सहिष्णुता का परिचय भी दे रहे थे। उनका कहना था कि यदि बात लोगों को ठीक लगती हैं तो उनका पालन करें लेकिन यदि गलत और अनुचित मालूम हो पड़ती है, तो वह इसका पालन ना करें। किंतु मोक्ष की प्राप्ति के लिए जिस राह को वे दे रहे थे। वह लोगों को सर्वाधिक सरल भी लगी और उचित भी।

   भगवान बुद्ध ने कभी आत्मा और परमात्मा पर नहीं कहा इस विषय पर मौन रहे कोई इस संबंध में प्रश्न करता तो वे मौन ही रहते, उन्होंने ना हां कहा कि यह है, और ना ही कहा कि यह नहीं है। उनका मत था कि यह बेवजह एक झमेला है। जिसमें इंसान जीवन भर फंस कर रह जाता है। मनुष्य को सत्कर्म और सदाचार की राह पर चलना चाहिए। यही निर्वाण तक लेकर जाएगा जो जीवन का अंतिम लक्ष्य है।

   भगवान बुद्ध का कहना था, कि संपूर्ण संसार में दुख  है, और जो ज्ञात है जब भगवान बुद्ध वैराग्य को अपना लक्ष्य बनाते हैं, तब भी कुछ दृश्य, दुख के दृश्य उनके सम्मुख आते हैं। वही उन्हें उनके लक्ष्य की प्राप्ति को  प्रेरित करते हैं।

उनका कहना था, कि संसार में दुख ही दुख है, और हर दुख का एक कारण है। उनका कहना था, कि दुख के तीन कारण हैं, अविद्या या अज्ञानता, तृष्णा या विषय वासना तथा कर्म।

   दुख से छुटकारा पाने के लिए भगवान बुद्ध ने जिन तीन मार्गों को बताया है, वह “अहिंसा” अर्थात जीव की हत्या ना करना। “समाधि” अर्थात मन को एकाग्र करना, तथा “प्रज्ञा” अर्थात ज्ञान। 

भगवान बुद्ध का कहना है, कि यदि मनुष्य इस राह पर चलता है, तो वह निर्वाण को जरूर प्राप्त करेगा। उनका मत है, कि निर्वाण मनुष्य अपने जीवन काल में भी प्राप्त कर सकता है, क्योंकि निर्वाण जीवन की वह स्थिति है, जब मनुष्य संसार के सभी विषय वासनाओं, सुख-दुख से मुक्त हो जाता है।

   भगवान बुद्ध ने अपने जीवन में राजसी सुख का भी उपभोग किया कठोर तपस्या का पालन किया किन्तु उन्होने इन दोनों जीवन को निरर्थक बताया। उन्होंने मध्यम मार्ग के अनुसरण का उपदेश दिया, उन्होंने कहा कि अत्यंत विलासिता का जीवन अथवा अत्यंत कठोर तपस्या का जीवन व्यर्थ है। अतः उन्होंने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया, और इस पर चलने के लिए उन्होंने आठ मार्ग बतलाए। सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्मान्त, सम्यक जीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक् स्मृति, और सम्यक समाधि।

   भगवान बुद्ध का कहना है  कि मनुष्य को जीवन में सत्कर्म करना चाहिए। सदाचार के मार्ग पर चलना चाहिए। क्योंकि उसे अपने कर्मों का फल इसी संसार में भोगना होता है, बल्कि मात्र इस जन्म का नहीं बल्कि पूर्व जन्म का फल भी उसे भोगना पड़ता है, और मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसका वैसा ही अगला जन्म बनता है। मनुष्य को सदैव सत्कर्म करना चाहिए, सत्कर्म से ही मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है, भले ही वह किसी जाति का क्यों ना हो। भगवान बुद्ध जात-पात और भेदभाव ऊंच-नीच को नहीं मानते थे. उनका कहना था कि सभी मनुष्य मोक्ष के अधिकारी हैं।

   भगवान बुद्ध ने सदाचार की शिक्षा दी, उनका कहना था, कि मनुष्य का आचरण अच्छा होना चाहिए, जिससे मनुष्य में नैतिक बल आ जाए। उनके अनुसार नैतिक आचरण दस हैं, पहला जीवो की हत्या न करना, दूसरा चोरी न करना, तीसरा सत्य भाषण, चौथा धन का संग्रह न करना, पांचवा ब्रह्मचर्य, छठवां नाच गाने का त्याग, सातवा सुगंधित पदार्थ का त्याग, आठवां असमय में भोजन का त्याग, नवां कोमल शैय्या का त्याग तथा दसवां कामिनी कंचन का त्याग।

   भगवान बुद्ध ने सदाचार और सत्कर्म का उपदेश दिया और मोक्ष की प्राप्ति के लिए ऐसी सरल राह का उपदेश दिया जो साधारण मानव अपने जीवन में अनुसरण कर सकें।

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