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उपन्यास देवदास पर्दे पर | शहंशाह कुंदन लाल सहगल

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के बंगाली उपन्यास देवदास को आज के समय में उतना ही जीवंत और लोकप्रिय रखने में जितना कि वह 1920s  के दशक में रहा होगा, पर्दे पर अभिनय का योगदान रहा है। उन पृष्ठों के किरदारों देवदास, पार्वती, चंद्रमुखी, को क्रमश: शाहरुख, ऐश्वर्या और माधुरी के चेहरों ने हरकतें दी, यूं जैसे जीवित कर दिया हो।

   विमल रॉय के निर्देशन में यह उपन्यास पूर्व में भी फिल्म का रूप ले चुका था। जहां दिलीप साहब देवदास की भूमिका में थे, और सुचित्रा सेन और विजयंतीमाला मुख्य अदाकारा थी। यह फिल्म 1955 में प्रकाशित की गई थी।

  किंतु देवदास पर बनी पहली फिल्म 1936 में प्रकाशित हुई थी। जिसमें के० एल० सहगल साहब, देवदास की मुख्य भूमिका में थे। साथी मुख्य अदाकारा जमुना और राजकुमारी जी थे। यूं कहें कि देवदास का पर्दे पर होने का पथ इन्होंने ही प्रशस्त किया था।

   कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा जगत के पहले सुपरस्टार कहे जाते हैं। अभिनय के साथ में गायकी में बचपन से ही अपनी जन्मभूमि जम्मू में मशहूर थे। उनके पिता जम्मू में तहसीलदार थे वहां महाराजा प्रताप शासक थे। बचपन में सहगल ने एक बार जब राजा के दरबार में हो रहे सभा में मीरा का एक भजन गया, तो उन्हें बड़ी प्रशंसा मिली। वहां से सारे जम्मू में उनकी लोकप्रियता हो गई। रामलीला में मां सीता का अभिनय के लिए आमंत्रण मिलने लगे। जब वे मां सीता का अभिनय करते अपने गीतों और अभिनय से मां सीता का इतना जीवंत रूप सामने ले आते कि दर्शक रो ही पड़ते।
उनका गायन के प्रति लगाव और समर्पण का भाव उन्हें अभिनय के संसार में अनेक बाधाओं के बावजूद ले आया।

   "पूरणभगत" नाम की फिल्म में उनके गाए भजनों ने पूरे देश के हर घर को उनकी आवाज से वाकिफ कर दिया। बहुत से जानकार मानते हैं, कि बीसवीं सदी में मिर्जा गालिब के इतने लोकप्रिय होने का कारण सुर सम्राट सहगल थे। क्योंकि सहगल ने मिर्जा गालिब के बनाए गजलों को अपनी आवाज में अमर कर दिया।
"यहूदी की लड़की" फिल्म में सहगल साहब ने गालिब की ग़ज़ल गायी, जहां वे प्रिंस मार्कस की भूमिका में थे। यह फिल्म जर्मन तानाशाह हिटलर के यहूदियों पर अत्याचार की कहानी को दर्शाती है।

   उनके बाद के लगभग सभी गायक उनके गायन शैली और गायकी को सुनकर प्रभावित रहे हैं। लता जी, रफी साहब, किशोर कुमार जी, मुकेश जी आदि उन्हें अपना गुरु मानते हैं। जब गायक मुकेश जी ने गीत गाया “दिल जलता है तो जलने दो” लोगों ने यही सोचा कि यह सहगल गा रहे हैं। मुकेश जी ने इतनी खूबसूरती से सहगल साहब को अपनी आवाज में उतारा था।

   आज भारतीय सिनेमा जगत किस मुकाम पर है। किंतु कभी यह सड़क पर कुछ लड़कों की टोली के साथ एक ही शॉट में पूरी फिल्म रिकॉर्ड कर रहा था। वह आधार रख रहा था, आज सिनेमा के अपार सौहरत और शोर का।
लेकिन तब सब मूक था।।

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