Skip to main content

आज तक जीवित सामाजिक दशा का प्राचीन बीज | diwakar


जाने कितने लोग इस सामाजिक व्यवस्था में जीत थे, और जीते रहे। आज भी वे उसका अनुसरण करते हैं। डॉक्टर अंबेडकर ने समाज की व्यवस्था को चुनौती दी। 

समाज में उन्हें सर्वाधिक गिरी स्थिति में माना गया। उस समुदाय के प्रति तिरस्कार का भाव था। यह आज तक हमारे समाज की व्यवस्था का हिस्सा है। मनु ने शूद्रों को अन्य तीन वर्णों की सेवा का आदेश दिया था। उन्होंने साफ किया कि यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनके लिए कठोर दंड का विधान है। किंतु प्राचीन वैदिक काल में जब वर्ण व्यवस्था का उदय ऋग्वेद से हुआ, तो ऐसा नहीं था। कहा जाता है, कि तब कार्य के आधार पर वर्ण निर्धारण होता था।

 ब्राह्मण और क्षत्रिय तो अपने कार्यों के आधार पर दूसरे वर्ण के भी पहचाने गए। इसके कई उदाहरण दिए जाते हैं। परशुराम ब्राह्मण थे किन्तु उन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन किया। द्रोणाचार्य एक क्षत्रिय कुल के थे, किंतु उन्होंने ब्राह्मण धर्म का पालन किया। राजा जनक क्षत्रिय होकर भी वेदों के महान ज्ञाता थे। क्षत्रिय और ब्राह्मणों में विवाह संबंध होते थे।

 शूद्रों के विषय में कहते हैं कि ब्राह्मण और क्षत्रिय को शूद्र कन्या से विवाह कर सकते थे, किंतु शूद्र ऐसा नहीं कर सकते थे। यह प्रारंभिक समय में था, हालांकि बाद में नियम और कठोर हुए जिससे ऐसा करने की अनुमति किसी को नहीं थी।

ब्राह्मण और क्षत्रिय तो राज्य के दो पहिए थे। प्रतीत होता है कि एक सीधा प्रशासक था, तो दूसरा मुख्य सलाहकार। इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं, कि यदि राजा जो क्षत्रिय होते थे। समाज पर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते थे, तो उसके लिए उन्हें समाज में अपने कठोर तप और कठिन जीवन और ज्ञान के कारण सम्मानित और देव तुल्य पूजनीय ब्राह्मणों के सहयोग से सहायता मिलती थी। इससे समाज में शासन प्रबंधन की व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिलती थी। वही राज दरबार में भी ब्राह्मण ऊंचे पदों पर होते थे, और राजकाज में मुख्य भूमिका निभाते थे। ब्राह्मणों का आम जनमानस पर खास प्रभाव रहता था, लोगों में उनका सम्मान था। उनका कार्य था, जनता की शांति समृद्धि के लिए यज्ञ करना, भविष्यवाणी करना, शिक्षा का प्रसार करना आदि। वे स्वयं आजीवन धर्म का कठोर पालन करते थे। क्षत्रिय का कार्य राज्य की रक्षा था। वैश्य व्यापारी वर्ग था। उनका अपना संगठन ठीक स्थिति में था।

 वैदिक युग में शूद्रों को जन्म के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जाता था। कोई व्यक्ति अपने कार्य के आधार पर शूद्र कहा जाता था। किंतु समय के साथ वर्ण व्यवस्था में जटिलता आ गई, और जन्म के आधार पर उनका निर्धारण होने लगा। इस दशा में शूद्रों का समाज में जो अब एक जाति बन गई सबसे निचला स्थान हुआ। इस व्यवस्था में बुद्ध के जन्म के पश्चात क्रांति आई। महात्मा बुद्ध के धर्म ने समाज को नयी रहा मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रदान की। बुद्ध के धर्म ने वैदिक सामाजिक व्यवस्था जो अब तक जटिल हो गई थी, और एक वर्ग को जन्म के साथ ही निम्न जाति की पहचान दे रही थी, पर सीधा वार किया। बौद्ध धर्म के तीव्र उन्नति का सबसे बड़ा कारण भी यही था, कि बुद्ध ने बिना भेदभाव के हर व्यक्ति के लिए मोक्ष के द्वार खोल दिए। इस धर्म ने समाज के निम्न वर्ग या वंचित वर्ग को ईश्वर की प्राप्ति के लिए एक राह प्रकाशित की, और इसी कारण तथा भगवान बुध के प्रभावशाली व्यक्तित्व से बड़ी संख्या में जनमानस बौद्ध धर्म अपनाने लगा। बौद्ध और जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा, और इस अहिंसावादी धर्म की तमाम बातों ने प्राचीन वैदिक धर्म को अपने आप में परिवर्तन के लिए प्रेरित किया। समाज का बड़ा भाग बुद्ध के धर्म का अनुयाई बना। वैदिक व्यवस्था में शिथिलता आने लगी।

मौर्य काल में राज्य का प्रबंध काफी सशक्त था, मौर्योत्तर कहीं-कहीं ऐसा पढ़ने को आता है, कि राज्य का प्रबंध बहुत सशक्त ना होने से शूद्रों को काफी स्वतंत्रता हासिल हुई, जिससे वे स्वतंत्र उन्नति कर सके। यहां मौर्योत्तर काल में स्त्रियों की स्थिति को मौर्य काल की अपेक्षा अधिक गिरा हुआ बताया गया है। इसमें एक तथ्य कि मौर्य काल में स्त्री को तलाक की अनुमति थी, किंतु मनु इसके पक्ष में ना थे, इससे यह कहा जा सकता है कि मौर्योत्तर काल में स्त्रियों को तलाक की अनुमति नहीं थी, जबकि पुरुष हमेशा से ऐसा कर सकता था। यह विदित है कि, मनु ने अपना ग्रंथ लगभग डेढ़ सौ ईसा पूर्व लिखा, जो शुंगों के काल से अनुसरण में रहा।

 मौर्यों के अंत तक बौद्ध धर्म खूब उन्नति प्राप्त करता रहा। क्योंकि मौर्यों ने इसे संरक्षण दिया। किंतु मौर्योत्तर काल में शुंगों के साथ ही  बौद्ध धर्म की उन्नति पर अंकुश लगता है। क्योंकि वे ब्राह्मण राजा थे और उन्होंने ब्राह्मण धर्म के पुनर्जागरण का कार्य किया। समाज में अब वर्ण व्यवस्था अधिक जटिल हो चुकी थी। यह व्यवस्था भारतीय समाज में एक अहम कड़ी रही। जिसकी छाप आज तक स्पष्ट होती है। किन्तु समय के साथ शिक्षा के प्रसार ने समाज में इस व्यवस्था को कुप्रथा कहा। बाबासाहेब और उनकी तरह समाज सुधारक नेताओं ने अपने तर्कों से समाज को एक नई राह दी। और बाबासाहेब आधुनिक मनु की संज्ञा हासिल करते हैं।।

Comments

Popular posts from this blog

प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा और अब सवाल महेंद्र भट्ट से

श्री प्रेमचंद अग्रवाल को एक अदूरदृष्ट नेता के तौर पर याद किया जाएगा। जिन्होंने अपनी कही बात पर इस्तीफा दिया मंत्री पद को त्याग और इससे यह साबित होता है, कि आपने गलती की है। अन्यथा आप अपनी बात से, अपनी सत्यता से जनमानस को विश्वास में लेते, पार्टी को विश्वास में लेते और चुनाव लड़ते। आपके इस्तीफे ने आपकी गलती को साबित कर दिया। उन्होंने राज्य आंदोलन के दौरान अपनी भूमिका को स्पष्ट किया, अपना योगदान बताया और आखिरी तौर से वे भावनाओं से भरे हुए थे, उनके आंसू भी देखे गए। इसी पर उन्होंने अपने इस्तीफा की बात रख दी वह प्रेस वार्ता हम सबके सामने हैं।  यहां से बहुत कुछ बातें समझने को मिलती है, राजनीति में बैक फुट नहीं होता है, राजनीति में सिर्फ फॉरवर्ड होता है। यह बात उस समय सोचने की आवश्यकता थी, जब इस तरह का बयान दिया गया था, जिसने इतना बड़ा विवाद पैदा किया। यह नेताओं की दूर दृष्टि का सवाल है, उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि उनके द्वारा कही बात का प्रभाव कितना व्यापक हो सकता है। राजनीति में आपके द्वारा कही बात पर आप आगे माफी लेकर वापसी कर पाएंगे ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि उसका प्रभाव कभी-कभी इतना ...

राठ क्षेत्र से मुख्यमंत्री आवास तक का सफर | कलाकारों का संरक्षण राज्य का कर्तव्य

  एक होली की टीम ने पहल की वे देहरादून जाएंगे अपने लोगों के पास और इस बार एक नई शुरुआत करेंगे। कुछ नए गीत उनके गीतों में खुद का भाव वही लय और पूरे खुदेड़ गीत बन गए। खूब मेहनत भी की और इस पहल को करने का साहस भी किया। देहरादून घाटी पहुंचे और पर्वतीय अंचलों में थाली बजाकर जो हम होली मनाया करते थे, उसे विशुद्ध कलाकारी का स्वरूप दिया। हालांकि आज से पहले बहुत से शानदार टोलियों ने होली बहुत सुंदर मनाई है।। बदलते समय के साथ संस्कृति के तमाम इन अंशो का बदला स्वरूप सामने आना जरूरी है, उसे बेहतर होते जाना भी जरूरी है। और यह तभी हो सकता है, जब वह प्रतिस्पर्धी स्वरूप में आए अर्थात एक दूसरे को देखकर अच्छा करने की इच्छा। इस सब में सबसे महत्वपूर्ण है, संस्कृति के इन छोटे-छोटे कार्यक्रमों का अर्थव्यवस्था से जुड़ना अर्थात इन कार्यक्रमों से आर्थिक लाभ होना, यदि यह हो पा रहा है, तो सब कुछ उन्नत होता चला जाएगा संस्कृति भी। उदाहरण के लिए पहाड़ों में खेत इसलिए छूट गए क्योंकि शहरों में नौकरी सरल हो गई और किफायती भी। कुल मिलाकर यदि पहाड़ों में खेती की अर्थव्यवस्था मजबूत होती तो पहाड़ की खेती कभी बंजर ना हो...

केजरीवाल की हार से राहुल गांधी की जीत हुई है।

दिल्ली चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस की भविष्य को लेकर स्थिति को साफ कर दिया है। कांग्रेस ने देश भर में गठबंधन के नेताओं को और पार्टियों को एक संदेश दिया है। यदि गठबंधन के मूल्यों को और शर्तों को चुनौती दोगे, तो कांग्रेस भी इसमें केंद्र बिंदु में रहकर अपनी जमीन को सौंपती नहीं रहेगी। बल्कि दमदार अंदाज में चुनाव लड़कर दिल्ली की तरह ही अन्य जगहों पर भी चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टी की हार हो जाने से राहुल गांधी जी का गठबंधन में स्तर पुनर्स्थापित हुआ है। कारण यही है कि अब तक अरविंद केजरीवाल जी दिल्ली में सरकार बनाकर एक ऐसे नेता बने हुए थे, जो मोदी जी के सामने अपराजिता हैं। जिन्हें हराया नहीं गया है, विशेष कर मोदी जी के सामने। वह एक विजेता नेता की छवि के तौर पर गठबंधन के उन तमाम नेताओं में शीर्ष पर थे। अब विषय यह था, कि राहुल गांधी जी की एक हारमान नेता की छवि के तौर पर जो स्थिति गठबंधन में थी, वह केजरीवाल जी के होने से गठबंधन के अन्य नेताओं में शीर्ष होने की स्वीकार्यता हासिल नहीं कर पा रही थी। राहुल गांधी जी को गठबंधन के शीर्ष नेता के तौर पर जो स्वीकार्यता मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल पा रही...