इस परिसर को देख मुझे जो ख्याल आता है। जैसे इतिहास के पृष्ठों में हम यूं तो भारत के प्राचीन सभी धर्म किंतु विशेषकर बौद्धों के संघाराम तात्पर्य बौद्ध मठों या मंदिरों से है, जहां बहुत से व्यक्तियों के ठहरने का प्रबंध होता था। जहां वे लगातार निर्बाध अध्ययन करते रहते थे। पूरे भारत में ऐसे कई संघाराम होते थे। जो बौद्ध भिक्षुओं को संरक्षण व बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के लिए होते थे। भगवान बुद्ध के बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद से और ईसा के जन्म के बाद जब तक मोटे तौर पर गुप्त वंश का साम्राज्य नहीं आया था। बौद्धों को खूब संरक्षण मिला।
कन्नौज का राजा हर्षवर्धन भी बौद्धों का ही मुख्य संरक्षक था। लेकिन पुष्यमित्र शुंग का प्रण की वह बौद्धों बिग को समाप्त कर देगा। दूसरी सदी ईस्वी में बौद्धों के एक ग्रंथ में बताया गया है, कि पुष्यमित्र ने कैसे एक संघाराम कुक्कुटाराम जो पाटलिपुत्र में था, को नष्ट कर दिया।वहां बौद्धों को कैसे मार दिया। यह भी एक प्रसंग बताया गया है।
शांतिकुंज के परिसर में वैदिक ऋषियों के नाम पर और विद्वानों के नाम पर भवन बनाए गए हैं। और ध्येय वाक्यों और विद्धानों की कही बातों को जगह जगह पर उकेरा गया है।
संस्कारशाला से आगे बढ़ते हैं। संस्कारशाला नाम से जो धर्मशाला का भी एक बड़ा हॉल है। जहां बड़ी संख्या में लोग आप पाएंगे। इसी संस्कारशाला में लोगों के शादी विवाह के कार्यक्रम भी संपन्न होते हैं। बड़ी संख्या में जोड़ें यहां विवाह को वैदिक परंपरा विधि विधान से बड़े सामान्य ढंग से संपन्न करवाते हैं। पंडित, मंत्रों का उच्चारण मंच से ही करते हैं, और सामने बैठे कई जोड़े का विवाह एक साथ संपन्न होता है। यह विवाह वैदिक विधान से संपन्न करवाते हैं। यह धूमधाम से विवाह के लिए आपको जगह नहीं देते हैं।
वहां के पुरोहितों की यह निष्ठा ही है, कि वह जिस प्रकार विवाह के अर्थ को और विवाह के लिए हर विधि विधान जो वे कर रहे हैं। उनके संदर्भ में स्पष्ट करते हुए समझाते जाते हैं। पति-पत्नी के धर्म की व्याख्या करते हैं। विवाह के अर्थ को स्पष्ट करते हैं।
संस्कारशाला के इस दीवार पर आप लिखा पढ़ सकते हैं। कि
|| वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ||
हम पुरोहित राष्ट्र को जागृत एवं जीवंत बनाए रखेंग
संस्कारशाला से आगे नचिकेता भवन जो एक बड़ी बिल्डिंग है। यहां भी बहुत से कपड़े बिल्डिंग के हर मंजिल में बाहर रेलिंग पर सूख रहे हैं। लगता है, यहां भी यात्री आदि या शांतिकुंज के विद्यार्थी, ब्राह्मण या स्वयंसेवी रहते होंगे। शायद कुछ लोग यहां के स्थाई रहने वाले भी हैं। वह भी इन भवनों में उपलब्ध कमरों में रहते होंगे।
नचिकेता भवन के मुख्य द्वार पर ही नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्र की सूचना का भी एक बोर्ड लगा है। तात्पर्य है, कि यहां दैनिक रूप से कार्यक्रम होते ही रहते हैं। शान्तिकुन्ज के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता है।
जगह जगह पर मार्ग के दोनों ओर तख्तियों पर मानव के लिये लिखे आलेखों द्वारा सीख दी जा रही हैं। ऐसा ही एक नचिकेता भवन के बाहर अखंड ज्योति द्वारा 1965 अगस्त 24 का लिखा आलेख “धैर्य की उपयोगिता” धैर्यवान होने की सीख देता है।।
आगे अगले खंड में शीघ्र….
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