शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

दुनिया एक सफर में और जीवन चक्र | विशेष लेख

जीने के लिए प्लायन एक अहम क्रिया है?



आज से हजारों साल पहले मानव ने अफ्रीका से दुनिया भर में पलायन आरंभ किया। हर कोने को जानना और अपने लिए उपयुक्त स्थान की तलाश में सफर जारी है। आज भी यह जारी है, और सच तो यह है, कि यह सफर दुनिया में चल रहे हजारों प्राणी जातियों के सफर में एक है। वह सब सफर कर रहे हैं, अपने जीवन के लिए कोई अपने भोजन के लिए और कोई बदलते समय, मौसम और जलवायु के लिए।

कुल मिलाकर दुनिया एक सफर में है। कोई धीमी चाल में और कोई तीव्र। कोई हर समय सफर में ही है, कोई मौसम के साथ सफर में है, कोई साल में एक बार तो कोई जीवन में एक बार सफर में है।

यह सफर धरती पर बसे केवल प्राणी जगत के लिए नहीं है। यह सफर तो स्वयं इस धरती के लिए भी है, वह भी सफर में है। हमारी धरती सूरज का चक्कर लगा रही है, यह मौसम परिवर्तन का कारण है। धरती अपने अक्ष पर भी घूम रही है, और यह रात दिन के लिए कारण है। सूरज के सामने जो हिस्सा होगा वहां दिन होगा और यह 12 घंटे के समय के लिए है। धरती 23.5 डिग्री झुकी हुई भी है और यह ध्रुव पर एक महत्वपूर्ण घटना को जन्म देता है। छः माह दिन और छः माह रात, और यह यहां के जीवन को बहुत विशेष बना देता है।

यह किसी प्राणी की अनुकूलन क्षमता पर निर्भर है कि वह वहां जी रहा है। अन्य प्राणी जगत वहां से पलायन करें। छः माह की धूप में पिघलती बर्फ ध्रुव पर सभी जीवो को जल में ले आती है। वह अब केवल तैरेंगे। हालांकि वहां धूप इतनी गरम नहीं, किंतु यह है, और बर्फ को पिघलती है। क्योंकि तापमान शून्य से कुछ अधिक पहुंचता है।

  तेज धूप और गर्म कालाहारी रेगिस्तान में पलायन के लिए जंगली भैंसें तैयार हैं। वह दूर कहीं जल की तलाश में सफर आरंभ कर रहे हैं। यह अफ्रीका का विशाल झुंड बनकर अपने जीवन के लिए सफर आरंभ करता है। इनका यह सफर अन्य जीवों के लिए भी भोजन का जरिया है। वहां राह में शेरों के लिए यह शिकार है। वे इस सफर का इंतजार करते हैं।

यही है, कि एक सफर से जीवन चक्र संभव है।

गुरुवार, 2 नवंबर 2023

गेंदबाजों का क्रिकेट | भारत Vs श्रीलंका

भारतीय क्रिकेट टीम का आज पूरी तरह से उत्साह पूर्ण प्रदर्शन रहा। यह निडर प्रदर्शन श्रीलंका के खिलाफ होना, भारतीय टीम के आत्मविश्वास का प्रदर्शन है। हालांकि भारत की ओर से स्कोर बोर्ड पर अच्छी चुनौती दी गई थी। लेकिन यह इतना भी दबाव पैदा नहीं करता है, कि श्रीलंका जैसी बड़ी टीम को इस स्थिति में ले आए। यहां भारतीय गेंदबाजी की बड़ी तारीफ करनी होगी। खास कर तेज गेंदबाज जो लगातार शानदार प्रदर्शन दे रहे हैं।

  इस खेल में आज सिर्फ बॉल विकेट के लिए फेंकी जा रही थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था। बल्ले ने भारत के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं कहा। यह श्रीलंका जैसी टीम के लिए बड़ी निराशा है। यह कुछ ऐसा ही था, जैसे तमाम अब तक हुए मैचों को जीत आने के बाद भारतीय टीम ने अपना वह सब अनुभव आज के मैच में उतार दिया हो। यह बड़ी जीत है। यह भारतीय टीम के मजबूत विजन को दर्शाता है। बैटिंग के शानदार प्रदर्शन के बाद गेंदबाजी में यह कर दिखाना पूरी तरह से एक तरफा मैच की स्थिति पैदा करने वाला रहा।

  वहां जब से मोहम्मद शमी को खेलने को मैदान पर लाया गया है, उन्होंने अपनी जगह को पूरी तरह से निश्चित कर लिया है। हर मैच में अपना पूर्ण देकर बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यह फटा पोस्टर निकला हीरो जैसा है।

  यह प्रदर्शन जहां केवल बल्लेबाज मैच जीतने वाले हीरो की तरह सामने नहीं है, बल्कि भारतीय गेंदबाजों ने भी कुछ ऐसा दर्शाया है, कि यदि वह लय में हैं, तो किसी टीम को बेहद कम रनों पर रोक सकते हैं, और यहां तो टीम भी श्रीलंका है।

  यह टीम आज के प्रदर्शन से कई बड़ी टीम है। हम सभी जानते हैं कि श्रीलंका क्रिकेट टीम बेहद शानदार है। उनकी गेंदबाजी ने भी अच्छा काम किया। हालांकि इस सब में भारतीय टीम ने स्कोर बोर्ड पर अच्छी चुनौती दी, लेकिन यह अजेय लक्ष्य नहीं था। लेकिन अंतिम रूप से जहां श्रीलंका की बैटिंग जो अच्छी मानी जाती है, यदि पूरी तरह से नाकाम रही, तो यह भारतीय गेंदबाजों को श्रेय जाता है। और आज भले ही तीन भारतीय बैट्समैन शतक से बिल्कुल करीब तक गए हो और बेहद शानदार प्रदर्शन किया हो लेकिन अंतिम रूप से भारतीय तेज गेंदबाजों ने इस शाम को अपने नाम कर दिया।।

श्रेयश अय्यर श्रीलंका के खिलाफ शानदार

इस वर्ल्ड कप में खिलाड़ियों का शानदार देखा गया। आज इसी लय में श्रेयश अय्यर ने भारतीय क्रिकेट टीम में अपने होने का प्रदर्शन किया। एक शानदार प्रदर्शन। यूं तो सुभमन गिल और विराट कोहली की भी एक लंबी शानदार पारी रही, लेकिन श्रेयश अय्यर आज के मैच में खास हैं। यह इसलिए भी क्योंकि इस वर्ल्ड कप में खेल प्रेमियों के साथ स्वयं श्रेयश अय्यर भी अपना सर्वश्रेष्ठ ढूंढ रहे थे।

 भारतीय टीम का हिस्सा इस वर्ल्ड कप में श्रेयश अय्यर अब तक अपना खास नहीं दे पाए थे। पूर्व में एक मैच के बाद जब उन्हें बाहर रखा गया यह कहकर की फिटनेस संबंधी समस्या है, और ईशान किशन को उनकी जगह पर लाया गया तो उनकी ओर से एक निराशा प्रतिक्रिया प्रकट की गई, कि उन्हें यह सब का पता भी नहीं चला कि उन्हें कैसे प्लेइंग इलेवन से बाहर रखा जा रहा है।

यह भारतीय क्रिकेट टीम कप्तान और मैनेजमेंट के लिए बड़ी विडंबना है, कि कैसे खिलाड़ियों में सर्वश्रेष्ठ का चयन हो। क्योंकि भारत में प्रतिवर्ष होने वाले इंडियन प्रीमियर लीग के चलते खिलाड़ियों का एक शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है। वही खिलाड़ी देश की टीम के लिए खेलने की योग्यता भी रखते हैं। हालांकि वहां खेल रहे खिलाड़ी खेल प्रेमियों के सामने एक हीरो की छवि तो हासिल कर ही लेते हैं। उनके अपने-अपने चाहने वाले भी होते हैं, जो उनके लिए केवल उनके लिए मैदान में दर्शक बन बैठे होते हैं। इसमें जब खिलाड़ियों का भारतीय टीम के लिए चयन किया जाता है, तो खेल प्रेमियों की इच्छा और खेल मैनेजमेंट के द्वारा चयन किए गए खिलाड़ियों में गतिरोध बनना तय होता है। लेकिन फिर भी जिन भी खिलाड़ियों का चयन किया जाता है, वह श्रेष्ठ ही होते हैं।

आज श्रेयश अय्यर ने यही दर्शाया की काफी समय से इस टूर्नामेंट में शांत उनका बल्ला समय पर अपनी उपस्थिति दिखा सकता है। आज उनके बल्ले ने जिन छक्कों की झड़ी लगाई गई, वह उनके शानदार खिलाड़ी होने की पहचान है। खेल में एक रौनक बांध कर रखी थी, श्रेयस अय्यर ने।

उनके बल्ले से निकले छह छक्कों में एक इस टूर्नामेंट का सबसे लंबा छक्का है, जो 106 मी का है। श्रेयश अय्यर आज की शाम के हीरो बनकर भारत के लिए एक शानदार पारी को जमाते हैं।।

होमी जहांगीर भाभा और भारत का परमाणु परीक्षण

1966 में वियना जा रहे एक वायुयान के क्रेश हो जाने की घटना ने भारत के न्यूक्लियर रिसर्च की ओर बढ़ती आशाओं को धीमा कर दिया। इस विमान में होमी जहांगीर भाभा भी थे। वह इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी की एक कांफ्रेंस के लिए वियना जा रहे थे। भारत को पहले एटॉमिक बम बनाने का वादा करने वाले होमी जहांगीर भाभा, भारतीय एटॉमिक रिसर्च के फादर कहे जाते हैं। 

यह उनकी मेहनत का ही फल था, कि उनकी मृत्यु के 8 वर्षों पश्चात भारत ने पहले एटॉमिक प्रशिक्षण में सफलता हासिल की।

अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद वे इंजीनियरिंग के लिए कैंब्रिज गये। उनके पिता भी यही चाहते थे, कि वह इंजीनियरिंग करें और इसी में अपना भविष्य देखें। किंतु कैंब्रिज में कुछ लोगों से उनकी मुलाकात के कारण उनका झुकाव धीरे-धीरे मैथ्स और थियोरेटिकल फिजिक्स की ओर चला गया। उन्होंने कैंब्रिज में अपनी इंजीनियरिंग पूरी की। लेकिन इसी दरमियान उन्होंने अपने पिताजी को इस संदर्भ में खबर दी की वह अपने भविष्य में इंजीनियरिंग को लेकर इतने रुचिकर नहीं हैं। उन्होंने कैंब्रिज में ही न्यूक्लियर फिजिक्स में अपनी पीएचडी भी पूरी की। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जो की 1939 में शुरू हो गया था वे वापस इंग्लैंड ना जा सके। इस दरमियान वे भारत अपनी छुट्टियों के लिए आए हुए थे। इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बेंगलुरु से जुड़ने का फैसला किया। इस संस्थान का संचालन उस समय पर डॉक्टर सी० वी० रमन कर रहे थे। यहीं होमी जहांगीर भाभा की विक्रम साराभाई से भी मुलाकात होती है। 

विक्रम साराभाई जो इस समय पर कैंब्रिज में विद्यार्थी थे, और वही कारण की द्वितीय विश्व युद्ध के कारण वे भी अब भारत लौट आए थे। भाभा जो की कॉस्मिक रेज के माध्यम से परमाणु के कणों का अध्ययन करना चाहते थे। वहीं विक्रम साराभाई इन्हीं कॉस्मिक रेस की सहायता से बाह्य अंतरिक्ष के अध्ययन में रुचिकर थे। 

एक बार सी०वी० रमन ने होमी जहांगीर भाभा को लिओनार्दो दा विंची के समक्ष बताया था। लगभग पांच सालों तक इस संस्थान में कार्य करने के बाद 1943 में होमी जहांगीर भाभा ने जे०आर०डी० टाटा को फंडामेंटल फिजिक्स के लिए भारत में एक रिसर्च इंस्टीट्यूट खोलने को कहा, और 1945 में इसे स्थापित किया गया।

भारत की आजादी के बाद जब पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बने 1948 में ही होमी जहांगीर भाभा ने पं० नेहरू को एक पत्र लिखकर भारत में न्यूक्लियर एनर्जी पर शोध की जरूरत को जाहिर किया और उन्होंने नेहरू जी से इस बात को भी कहा की एक एटॉमिक एनर्जी कमिशन बनाया जाएगा, जो न्यूक्लियर एनर्जी से संबंधित शोध की रिपोर्ट को सीधे प्राइम मिनिस्टर से साझा करेगा। इसके बाद ही पंडित नेहरू ने 1948 में एटॉमिक रिसर्च कमिशन को स्थापित किया।

इसके पहले अध्यक्ष होमी जहांगीर भाभा बने। एस०एस० भटनागर और के०एस० कृष्णन इस कमीशन के अन्य सदस्य थे। पं० नेहरू से होमी जहांगीर भाभा की गहरी मित्रता थी। कहते हैं, कि पं० नेहरू को केवल दो लोग भाई कह सकते थे, एक जयप्रकाश नारायण और दूसरे होमी जहांगीर भाभा।

अब जब 1954 में मुंबई में एटॉमिक रिसर्च सेंटर बनाने की शुरुआत हुई। इसी के साथ भारत में एटॉमिक रिसर्च प्रोग्राम को भी तीव्र गति प्राप्त हुई। इसी समय इंडियन गवर्नमेंट ने भी एटॉमिक रिसर्च को लेकर बजट में वृद्धि की। अब तक होमी जहांगीर भाभा एटॉमिक एनर्जी को लेकर दुनिया भर में पहचान प्राप्त कर रहे थे। 1950 तक भाभा इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी में भारत का नेतृत्व करने लगे थे। और इसी के चलते यूनाइटेड नेशन में 1955 में उन्हें एक कांफ्रेंस का प्रेसिडेंट बनाया गया, जो एटॉमिक एनर्जी के शांतिप्रिय प्रयोग को बढ़ावा देती थी। यह कॉन्फ्रेंस जेनेवा स्विट्जरलैंड में आयोजित की गई थी।

इसके बाद इन्हीं कुछ प्रयासों के चलते और दुनिया भर में एटॉमिक रिसर्च को लेकर प्रसिद्धि पा रहे होमी जे भाभा के कारण भारत को इससे लाभ हुआ। 1955 में शांतिप्रिय एटॉमिक एनर्जी के प्रयोग के वादे के चलते कनाडा ने भारत को एटॉमिक रिएक्टर दिए। अमेरिका ने भी भारत को भारी जल उपलब्ध कराने का वादा किया।

इसके बाद तो भारत ने भी 1956 में अपना पहला न्यूक्लियर रिएक्टर विकसित किया। जिसे अप्सरा कहा गया, और यह एशिया के सबसे पुरानी रिसर्च रिएक्टर के तौर पर जाना जाता है। इन्हीं सब उपलब्धियां के बाद अब भाभा के लिए एटॉमिक बम बनाने के द्वारा खुल गए थे। लेकिन अब तक भारतीय नेता इस स्थिति में नहीं थे। वह इस विचार के पक्ष में भी नहीं थे। दूसरी ओर भारत आजादी के बाद से अब तक गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी से जकड़ा हुआ था। इन सब के बीच केवल होमी जहांगीर भाभा ही थे, जो भारत के लिए न्यूक्लियर रिसर्च की दिशा में एक दूर दृष्टि को लिए हुए थे।

1962 में भारत और चीन के युद्ध और इस समय पर भारत को हुए नुकसान में एटॉमिक एनर्जी की दिशा में भारत को बढ़ने के लिए प्रेरित किया। क्योंकि 1964 तक चीन ने अपने एटॉमिक बम का सफल परीक्षण कर दिया था, और यह भारत के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती के रूप में सामने थी। इसी समय पर होमी जहांगीर भाभा ने यह बात कही थी, कि वह इस स्थिति में हैं, कि 18 महीने के भीतर में भारत को उसका अपना न्यूक्लियर बम दे सकते हैं।

लेकिन तमाम कारणों दुनिया भर के दबाव के चलते यह कार्यवाही आगे ना बढ़ सकी। उधर नए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अब पदासीन हो चुके थे। इसके बाद 1965 में जब एक बार फिर भारत और पाकिस्तान युद्ध हुआ तो एक बार फिर स्थिति पैदा हुई कि न्यूक्लियर एनर्जी की दिशा में प्रयास किए जाएं। लेकिन उससे पहले की भाभा इस पर काम करते 1966 में उनकी मृत्यु हो गई, और इसी के साथ अब एटॉमिक रिसर्च सेंटर को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर नाम दिया गया। नए अध्यक्ष के तौर पर विक्रम साराभाई को चुना गया। विक्रम साराभाई जो इस समय पर इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन को विकसित करने में लगे हुए थे।

1967 तक नई प्रधानमंत्री के तौर पर श्रीमती इंदिरा गांधी पदासीन हो चुकी थी। क्योंकि साराभाई पूर्व से ही एटॉमिक बम बनाने की दिशा में सहमत नहीं थे। लेकिन इंदिरा गांधी के बार-बार कहने के कारण उन्होंने इस कार्य के लिए सहमति दी।

1971 की लड़ाई के बाद जब इंदिरा गांधी की प्रसिद्ध में वृद्धि हुई, तो उन्होंने 1972 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर से न्यूक्लियर बम के परीक्षण को लेकर बात कही। इसे स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया गया। 18 मई 1974 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन राजस्थान के पोखरण में यह सफल परीक्षण किया गया। इसी के साथ होमी जहांगीर भाभा का स्वप्न भी पूरा हो गया।।

मुख्य रूप से होमी सेठना और राजा रमना दो महत्वपूर्ण नाम, इस कार्य के लिए पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई। 75 से कम लोगों ने इस प्रोजेक्ट में काम किया, बात यही थी कि दुनिया भर को इस संदर्भ में कोई खबर नहीं होनी चाहिए। विक्रम साराभाई इस पूरे प्रोजेक्ट को संचालित कर रहे थे। यह इतना गोपनीय था कि भारत के रक्षा मंत्री को भारतीय सेना को इस संदर्भ में कोई जानकारी नहीं थी।

सोमवार, 30 अक्टूबर 2023

भारतीय क्रिकेट टीम का सर्वश्रेष्ठ | विशेष लेख

 दूर इलाकों में कहीं जो युवा क्रिकेट खेल रहा है, और ऐसे हजारों मेहनती खिलाड़ी असल में इसी दिन के लिए हैं। कि जब उनमें से कोई भारतीय टीम का हिस्सा बने तो वह ऐसी क्रिकेट खेलें जो आज भारतीय टीम ने इंग्लैंड के खिलाफ खेली है।

  उनकी ईमानदार मेहनत जो दुर्गम क्षेत्र में कम संसाधनों के साथ केवल एक उम्मीद पर चल रही है, उसका परिणाम एक मजबूत भारतीय टीम भी है। यह भारतीय टीम की ताकत है, कि मोहम्मद शमी जैसे शानदार खिलाड़ी भी बेंच पर बैठे रहते हैं।

  मैं इस लेख को क्रिकेट विश्व कप 2023 के 29 अक्टूबर को हुए भारत बनाम इंग्लैंड मैच के बाद लिख रहा हूं। यह शानदार क्रिकेट प्रदर्शन भारतीय टीम को वर्ल्ड कप विजेता के रूप में दर्शाता है।

  बुमराह और मोहम्मद शमी की आरंभिक गेंदबाजी ने सामने खड़े विपक्षी बल्लेबाजों को आश्चर्यजनक ढंग से आउट कर दिया। यह गेंदबाजी का बेहद उत्कृष्ट प्रदर्शन था। सबसे महत्वपूर्ण यह भारतीय क्रिकेट को उठाता है। युवा जो इस खेल के लिए समर्पित भाव से जुटे हुए हैं। इसे अपना भविष्य चुन चुके हैं। उनके लिए यह और अधिक मेहनत का सबक है।

 और भारत में क्रिकेट इतने विशाल खेल प्रेमियों की वजह क्या है? यही बस इस खेल में जीत और हार लाखों दिलों को खुश करती है या निराश कर देती है। हर व्यक्ति इस खेल से जुड़ा है। इस खेल में अपने हीरो को देखता है। देश में हर खिलाड़ी जो एक छोटे से प्लेटफार्म पर खेल रहा है, उसकी ईमानदार कोशिश उन बड़े स्तर पर खेल रहे खिलाड़ियों का कद बनाता है।

दरअसल यह देश के किसी कोने में खेल रहे खिलाड़ी की मेहनत का ही फल है। क्योंकि उसकी ईमानदार मेहनत और उसका उन छोटे स्तरों पर खेलना एक बड़ी भारतीय टीम को गठित करता है। उसे छोटे स्तर पर उसके खेल से जन्मी प्रतिस्पर्धा एक भावी खिलाड़ी को अत्यधिक मेहनत के लिए प्रेरित करती है। इन छोटे स्तरों पर जन्मी इस प्रतिस्पर्धा के चलते ही महान खिलाड़ियों का उदय संभव है।।

रविवार, 29 अक्टूबर 2023

India vs England भारत की जीत | विशेष लेख

ये इंग्लिश क्या सोचते होंगे। भारत ने आज क्रिकेट के मैदान पर इंग्लैंड को काफी बड़े अंतर से हराया। यह कोई छोटा क्रिकेट मुकाबला नहीं है, यह विश्व कप है। वे लोग जो इंग्लैंड की ओर से अपनी टीम का समर्थन करने आए होंगे भले वे कम संख्या में थे, बेहद कम लेकिन अत्यधिक निराश हुए होंगे।

  दरअसल यह जैंटलमैनों का खेल था, और एक जमाने में इंग्लैंड के लोगों के अलावा और किसे जेंटलमैन कहा जा सकता था। यह उन्हीं का खेल उन्हीं को आज मैदान पर मात देता है। हालांकि यह कोई बड़ी बात नहीं, खेल है और इसके दो पहलू हार और जीत हैं। अब हार हुई या जीत उसे स्वीकार करना भी खिलाड़ी का एक गुण है।

   लेकिन यह मन है और यह सोचता जरूर होगा। बड़ी बात यह है, कि सामने भारत था, और उससे यह बड़ी हार कई पहलुओं को खुला कर देती है।

 भारत ब्रिटिशों का गुलाम रहा मुल्क। ब्रिटिश क्रिकेटरों और उन जैंटलमैनों के शौक क्रिकेट खेल में भारतीय व्यक्ति फील्डिंग करता हुआ, केवल फील्डिंग।

 वह लगान फिल्म भी याद आती है। हालांकि वहां क्रिकेट से कोई मतलब नहीं था, बस उस खेल को जीतकर ब्रिटिशों से कर की माफी स्वीकार करानी थी। हालांकि तब वह भावना अतुलनीय रही होगी। 

  लेकिन शायद ब्रिटिशों का राष्ट्र प्रेम ऐसा नहीं है। हम भारतीय यदि क्रिकेट का शौक रखते हैं, तो आपको क्रिकेट के मैदान पर पूरा भारत दिखेगा। हमारे लिए यह खेल बेहद अहमियत रखता है। इस बात का अंदाजा आप मैदान में भारतीय दर्शकों की भीड़ से लगा सकते हैं। और यह खेल बहुत से लोगों के लिए देशभक्ति को प्रस्तुत करने का एक मौका भी है। यही भावना इस खेल से देश के हर व्यक्ति को जोड़ती है।

वहीं क्रिकेट एक खेल है, एक खेल केवल। 

इंग्लैंड इस भावना में आ चुका है, यह उनके लिए देश के गौरव से जुड़ा बड़ा सवाल नहीं बन जाता है। वे इससे उभर चुके हैं, या वे इसमें नहीं फंसना चाहते हैं। बस यह की क्रिकेट एक खेल है, उनकी एक टीम है, जो देश के नाम पर खेलती हैं। जीते तो गौरव का विषय है, हारे तो खेल का एक पहलू ही है हार, और वे उसे स्वीकार करते हैं।।

मंगलवार, 4 जुलाई 2023

पुर्तगालियों का भारत आगमन और गतिविधियां

बार्थोलोम्यो डियाज 1487 में केप ऑफ गुड होप अफ्रीका के दक्षिणी छोर तक पहुंचता है। 1488 में यह वापस लिस्बन पुर्तगाल लौट जाता है। ठीक लगभग 10 वर्ष बाद पुर्तगाल का एक और जहाजी बेड़ा वास्कोडिगामा के नेतृत्व में भारत की खोज को 1497 में पुर्तगाल से प्रस्थान करता है। यह केप ऑफ गुड होप तक पहुंचता है। अब्दुल मनीक नाम के व्यापारी की सहायता पाकर यह भारत की दिशा में हिंद महासागर से बढने लगा, और भारत के मालाबार तट पर कालीकट नामक स्थान पर आ पहुंचा। यहां का शासक जमोरिन था, जिसे शामुरी भी कहा जाता है। वास्कोडिगामा अच्छे लाभ के साथ पुर्तगाल लौटा।


1500 में एक और पुर्तगाली जहाज बेड़ा पेट्रो अलवारेज के नेतृत्व में भारत आया यह तेरह जहाजों का बेड़ा था। अब पुर्तगालियों की नीति अरब का वर्चस्व हिंद महासागर के क्षेत्र में तोड़ने की थी। और भारत के साथ स्वतंत्र व्यापार स्थापना की, 1503 में वास्कोडिगामा फिर भारत आया। कोचीन में पुर्तगालियों की पहली व्यापारिक कोठी स्थापित की गई। 1505 से 1509 तक के लिए भारत ने पुर्तगाल का पहला गवर्नर फ्रांसिस्को डी अल्मीडा आता है। अल्मीडा की नीति “ब्लू वाटर पॉलिसी” नाम से जानी जाती है। इस नीति के अंतर्गत इनका पहला उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र पर वर्चस्व स्थापित करना था।
1509 में पुर्तगाल का नया गवर्नर जिसे भारत में पुर्तगाली शासन का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। अल्फांसो डी अल्बुकर्क भारत आता है। उसने “विवाह नीति” का अनुसरण किया, और अपने लोगों की संख्या में वृद्धि का प्रयास किया, अपने लोगों की भारत में मजबूती का प्रयास किया।


1510 में पुर्तगालियों ने बीजापुर के शासक युसूफ आदिलशाह से गोवा छीन लिया। यह गोवा 1961 में पुर्तगालियों से आजाद हो सका। 1511 में पुर्तगालियों ने मलक्का पर अधिकार कर लिया और 1515 में हरमूज पर अपना अधिकार कर लिया जो फारस की खाड़ी में एक अहम स्थान जहां से वे व्यापार नियंत्रित कर सकते थे। वास्कोडिगामा 1524 में भारत आया था 1527 में उसकी कोचीग में मृत्यु हो गई।
1529 में एक नया पुर्तगाली गवर्नर नीनो डी कुन्हा भारत आया। 1530 में इसने अपना मुख्यालय कोचीन से विस्थापित कर गोवा ले आया। 1535 में दीव पर और 1559 में दमन पर अधिकार किया गया। 1542 में प्रसिद्ध ईसाई धर्मगुरु सेंट जेवियर भारत आए तब भारत में पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसूजा था। पुर्तगालियों ने हिंद महासागर में कॉटेज व्यवस्था को प्रचलित किया यह एक परमिट था। जिसे पुर्तगालियों द्वारा दिया जाता था, हिंद महासागर में जिसके पास यह काॅर्टेज होता, पुर्तगाली उसे सुरक्षा देते। जिनके पास यह नहीं होता, उनके जहाज लूट लिए जाते। हिंद महासागर में पुर्तगाली नौसेना का नियंत्रण रहता।
पुर्तगालियों ने भारत में तटीय क्षेत्रों में अपनी कोठियां स्थापित की कोचीन, कन्नौर, गोवा, दमन, दीव, सालसेट। पूर्वी तट पर हुगली, मद्रास और भारत से अलग अन्य क्षेत्र जैसे मलक्का, हरमुज में पुर्तगाली नियंत्रण या कोठियां स्थापित की गई।
पुर्तगालियों का भारत में योगदान जैसे 1556 में गोवा में पहला प्रिंटिंग प्रेस उन्हीं के द्वारा स्थापित किया गया। तंबाकू, गन्ना, आलू आदि पुर्तगाली भारत लाए। गोथीक शैली के भवन निर्माण भारत में पुर्तगालियों द्वारा प्रसारित किए गए। गोवा के चर्च इसके उदाहरण हैं।
इनके पतन के कुछ कारण ऐसे हुए कि भारत में इनका उद्देश्य धर्म प्रसार भी था। ईसाई धर्म को सर्वोच्च मानते थे, इससे भारतीय सामाजिक व्यवस्था में गहराई से ढल ना सके। भारत में डचों फ्रांसीसीयों और अन्य देशों के आगमन ने पुर्तगाल को कमजोर किया तथा स्पेन का पुर्तगाल पर वर्चस्व।
 

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नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏