शनिवार, 11 नवंबर 2023

हजारों असफलताओं की सफलता | एडिसन

थॉमस अल्वा एडिसन
थॉमस अल्वा एडिसन एक बहुत ही चर्चित नाम। वे केवल वैज्ञानिक जगत में बड़े आविष्कारों के लिए नहीं जाने जाते, बल्कि उनका जीवन एक प्रेरक कहानी के तौर पर भी पेश किया जाता है। इसका श्रेय उनकी माता को भी जाता है, कि एडिसन एक बेहद जिज्ञासु और लग्नशील व्यक्तित्व को प्राप्त करते हैं।

स्कूल के समय पर एडिसन बेहद एकांत प्रिय छात्र थे, साथ ही वह जिज्ञासु प्रकृति के थे, तो अपने गुरुजनों से बिल्कुल अटपटे सवाल करते। इन सब सवालों के जवाब तो दिए भी जा सकते थे, और शायद नहीं भी। लेकिन शिक्षकों द्वारा उनकी इस उत्सुकता को बढ़ावा न दिया जा सका। उनकी माता को विद्यालय बुलाया गया और एडिशन के शिक्षकों के साथ व्यवहार की शिकायत की गई। तब तक एडिशन छोटा बालक था।

अगले कुछ ही दिनों में एडिशन एक पत्र के साथ घर लौटा, मां को वह पत्र लाकर सौंप दिया कि स्कूल से प्राप्त हुआ है, एडिशन तब तक पूरा पढ़ना भी नहीं जानते थे, तो मां से उस पत्र में लिखा हुआ जानना चाहते थे।

  उस पत्र को पढ मां की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने एडिसन को बताया कि इस पत्र में लिखा है, कि हमारे स्कूल में एडिसन एक बेहद बुद्धिमान छात्र है। वह एक जीनियस है। किंतु हमारे विद्यालय में एडिसन को पढ़ाने के लिए उतने ही जीनियस शिक्षकों की आवश्यकता है, जिनका यहां अभाव है, इसलिए एडिसन इस विद्यालय में नहीं पढ़ सकता है।

हालांकि यह सब जो एडिसन की मां ने एडिसन को बताया, झूठ था।

लेकिन यहां एडिसन का मनोबल जरूर बढ़ता है। उसे दिशा मिलती है। वह घर में ही कई प्रयासों को आरंभ करता है। छोटे-छोटे आविष्कारों के लिए लगातार कोशिशें। एक समय के बाद एडिशन रुपए कमाने के लिए अखबार बेचने का काम करते हैं, और वहीं से केवल 14 साल की उम्र में ही अपना प्रिंटिंग प्रेस तक स्थापित करते हैं।

आगे उनकी मेहनती, जिज्ञासु और लग्नशील प्रकृति उन्हें आविष्कारों की दुनिया में ले आई। यूं तो उन्होंने अपने जीवन में सैकड़ो आविष्कार किये, लेकिन सर्वाधिक प्रसिद्ध आविष्कार बिजली का बल्ब है। जो 1879 में उनके द्वारा बनाया गया। हालांकि यह एक विवादपस्त विषय रहा, कि उनसे पहले ही यह बल्ब वह वूवकूंतक और मअंदे ने बना लिया था। हां उन्होंने पेटेंट नहीं करवाया था। लेकिन यह बल्ब कुछ ही घंटे जलता था। वहीं एडिसन का बल्ब लगभग 10 घंटे जलने में सक्षम था। वह बल्ब वास्तव में बड़ा प्रकाशमय था। उतना ही जितना की एडिसन के प्रयास थे। कहा गया कि इस बल्ब के आविष्कार में एडिसन ने हजार प्रयास किये, और तब यह प्रकाश मिला।

इन सफलताओं के बाद एडिसन पूरी दुनिया के चर्चित नामों में शामिल थे। एक दिन अलमारी में उन्हें वह पत्र मिला जो स्कूल से वे लाए थे, उन्होंने पढ़ा तो उस पर लिखा था, कि एडिशन को विद्यालय के शिक्षकों के साथ व्यवहार के चलते स्कूल से निकाल दिया गया है।

एडिसन उन लोगों में हैं जो नामी कॉलेजों से डिग्री तो हासिल न कर सके, लेकिन उनके नाम पर कई किताबें कॉलेज में पढ़ी जाती हैं।।

मंगलवार, 7 नवंबर 2023

संस्कृतियों का उदय | विशेष लेख

दुनिया एक गति के साथ है। यह केवल धरती का घूमना सूरज के चारों ओर चक्कर लगाना मात्रा नहीं है, बल्कि धरती से बाहर उस ब्रह्मांड की गति, वहां हर कारण जो अपना चक्र पूरा कर रहा है। साथ ही धरती के भीतर हर प्राणी हर वस्तु और पदार्थ अपना समय बिता रहे हैं। यह सब एक चक्र में है और एक गति से प्रेरित हैं।

यह पदार्थ प्राणियों के संबंध में है। क्या यह मानव सभ्यताओं और संस्कृतियों के लिए भी सत्य है, कि वह भी एक चक्र में है, और एक चक्र पूरा कर लेने के बाद उनका काल भी समाप्त हो जाएगा।

हजारों साल पुरानी कोई सभ्यता यदि आज भी प्रासंगिक है, तो यह वह दूरदृष्टि है जो तब हजारों साल पहले आने वाले हजारों सालों के लिए स्थापित की गई, और लोग तब से आज तक उसका निष्ठावान अनुसरण करते हैं। दुनिया की गति के साथ या इस बीते समय के साथ स्थितियां और जीवन जीने के लिए साधन और विकल्प भी बदल रहे हैं।

यह बात तो स्वीकार करनी होगी, की सभ्यताएं तभी पनपती हैं जब मानव अपने लिए मूलभूत आवश्यकता के संसाधन जुटा पा रहा हो। भूखे और प्यासे व्यक्ति के लिए अन्न जल का मिल जाना ही सबसे बड़ी बात है, हर भोजन की तलाश में भटकते संसार के किसी भी अन्य प्राणी की ही भांति।

इस प्रकार सभ्यता पनपने के लिए आवश्यक है, कि वह प्राणी मूलभूत आवश्यकता के साधनों को प्राप्त कर पा रहा हो, अन्यथा भोजन के लिए द्वारा द्वारा भटकते किसी जानवर की जाति में क्यों सभ्यता नहीं पनप जाती। 

दरअसल आरंभिक विषय किसी भी प्राणी जाति के लिए जीवन जीने के लिए साधन जुटाने का ही है। यही सवाल है जो जन्म के बाद किसी प्राणी को गति देता है।

आज जहां हम हैं, मानव जाति जो अनेक सांस्कृतिक भूमिकाओं में बंटी हुई है। लड़ाई इस प्रकार भी है कि सभी एक ही संस्कृति को सर्वोच्च मान लें, उसे स्वीकार करें। इस प्रकार तो यह बड़ी लड़ाई है, और संभव दिखती नहीं।

लेकिन कौन संस्कृति है, जो अपने आपको जीवित रख सकेगी। एक तो वह जो सबसे अधिक दूरदृष्टि को दर्शा रही है, और दूसरी जो समय के साथ स्वयं को अनुकूलित कर रही हैं।।

सोमवार, 6 नवंबर 2023

अब सचिन कहो या विराट! विशेष लेख

विराट कोहली ने क्रिकेट के मैदान पर उपलब्धियों के सबसे ऊंचे पायदान को छू लिया है। जिन्होंने उस पायदान को स्थापित किया था, वह भी भारतीय और आज फिर उसे दोहराया है वह भी भारतीय।

विराट कोहली ने अपने वनडे इंटरनेशनल करियर में 49वां शतक लगाया है। और यह सचिन तेंदुलकर के ही बराबर है। अब विराट कोहली इस कीर्तिमान को छू चुके हैं। तो वह सचिन तेंदुलकर के समकक्ष हो गए हैं, यह बात होनी स्वाभाविक है।

यह तो है, कि आधुनिक दौर के क्रिकेट में विराट कोहली ने एक स्तर स्थापित किया है, जिसे महान कहा जा सकता है। वह कीर्तिमान जो बीते समय में सचिन तेंदुलकर द्वारा स्थापित किए गए हैं, वे भावी भविष्य के लिए केवल महान कीर्तिमान नहीं, केवल प्रेरणा नहीं बल्कि आज यदि कोई उस कीर्तिमान को छूता है, उससे आगे बढ़ता है तो यह हमारी उन्नति का प्रतीक है। यह हमारे बढ़ते रहने का प्रतीक है। इसलिए कहते हैं कि रिकॉर्ड बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिए। क्योंकि हम भविष्य को उन्नति की ओर बढ़ता हुआ चाहते हैं, और ऐसा ही होता है।

लेकिन यह तो है, कि इस कीर्तिमान को हासिल कर लेने से विराट कोहली ग्रेट विराट कोहली कहे जाने के और योग्य हो गए हैं। तो अब उस सवाल कि सचिन के समकक्ष हैं विराट कोहली?

इस सवाल को कैसे जवाब दिया जाए जिससे महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और उनके तमाम प्रशंसको तथा विराट कोहली और उनके प्रशंसकों जो की एक समान भी हैं तथा विचारों के उन तमाम पहलुओं जो इससे संबंधित है, के साथ न्याय हो सके।

यह भारत का सौभाग्य है कि क्रिकेट के दो महान सितारे हमारे हैं, और वे हमारे साथ हैं। लगभग एक ही दौर में इन दो महान उपलब्धियां ने हमें चर्चा की ओर और करीब लाया है।

सन् 2012 में सचिन तेंदुलकर ने अपना 100वां शतक लगाकर दुनिया के लिए क्रिकेट जगत में महानता का स्तर स्थापित किया। इस समय तक विराट कोहली भी भारतीय क्रिकेट टीम में अपने लगभग चार वर्ष पूरे कर चुके थे। जब सचिन तेंदुलकर फलक पर थे, तब विराट कोहली अपना आधार बना रहे थे। यहां शुरुआत और मुकाम साथ थे। यहां एक रोल मॉडल बना और विराट कोहली ने उन्हें गहराई से जाना और बहुत लग्नशील होकर उनका अनुसरण किया। इसी का नतीजा सामने है, आज उनके लिए कोई रिकॉर्ड कठिन नहीं है। वे मैदान पर उतरते हैं, कि आज जिस मुकाम पर वे हैं वहां नए रिकॉर्ड बनते चले जाते हैं।

आप यह भी कह सकते हैं, कि विराट कोहली के लिए मुकाम सचिन तेंदुलकर ने स्थापित किया था। हालांकि यह सब उनकी काबिलियत उनके धैर्य और समर्पण का फल है, जो भारत को विराट कोहली में सचिन तेंदुलकर का रूप दिखा है। और यह सचिन तेंदुलकर का महान खेल रहा है, की हर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी की तुलना उनसे होगी, क्योंकि वह वे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सबसे पहले आने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक मुकाम स्थापित किया।

जो उस उपलब्धि को हासिल करेगा, वह स्वत: ही महान होगा। किंतु ऐसा कितनी ही बार भविष्य में होता रहे, आप इस बात को स्वीकार करेंगे, कि वह कभी सचिन तेंदुलकर के समकक्ष नहीं होगा।।

रविवार, 5 नवंबर 2023

अब सर्वश्रेष्ठ विराट कोहली कहो।

केवल खिलाड़ियों के साथ विराट कोहली मैदान पर नहीं खेल रहे हैं। वे वहीं से दर्शकों में मैदान की ऊर्जा भर रहे हैं। यह उनका एक अलग अंदाज दर्शाता है। और यही है जो विशाल संख्या में चाहने वालों को देता है। यही जो उन्हें सबसे अलग बनाता है।

यह वह दौर है, जहां विराट कोहली अपने सर्वश्रेष्ठ पर हैं। किसी भी स्थिति में मजबूत और विश्वस्त। विराट आज अपने जन्मदिन पर सर सचिन तेंदुलकर के एक और विराट रिकॉर्ड को अपने नाम कर चुके हैं। वन डे इंटरनेशनल क्रिकेट में 49 बार सौ रनों की पारी। यह कैसा है, पहले तो आप अपने कठिन परिश्रम से भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बनते हैं, जो अपने आप में एक महान सफलता है। लेकिन उसके बाद भी आप ठहर नहीं जाते, आप लगातार आगे बढ़ाने को उत्सुक हैं। आपमें प्यास है, और आप पूरी तरह से उसके लिए समर्पित हैं। आप लगातार नए प्रयोग करते हैं, और उनसे सीखते हैं। तब जाकर एक विराट “विराट कोहली” सामने आते हैं। जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है, कि आज मैदान पर आए हैं तो जाने क्या रिकॉर्ड बनाने को।

वह एक महान बल्लेबाज हैं, और इस बात को उन्होंने साबित किया है। क्रिकेट के इतिहास में महानता के उन आयामों पर कदम रखकर आज वे क्रिकेट जगत का ऐसा सितारा बन गए हैं। जिसकी रोशनी सतत है, और वह आने वाली कई पीढ़ियों को सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट की परिभाषा बताएगी।

हैप्पी बर्थडे विराट “विराट कोहली”।

शनिवार, 4 नवंबर 2023

बनास के धावक | अंकित कुमार राष्ट्रीय गोल्ड मेडलिस्ट


  अंकित कुमार आजकल लोगों ने खूब सुना और देखा। देखते ही देखते पैठाणी घाटी का चर्चित चेहरा बन गया। हालांकि जो उन्होंने कर दिखाया है, वह इससे कई बड़ा है। गोवा में चल रहे राष्ट्रीय खेलों में पौड़ी गढ़वाल निवासी अंकित कुमार ने स्वर्ण पदक हासिल किया है। उन्होंने 10 किलोमीटर दौड़ को 29 मिनट और 51 सेकंड में पूरा कर यह पदक अपने नाम किया।


बात यह है कि अंकित कुमार अपने निकटवर्ती गांव बनास के हैं और यह स्थानीय लोगों के लिए रेखांकित करने वाली बात है, हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।

  यदि स्थानीय बातचीत के संदर्भ में विचार पेश करें। मेरा इस लेख को लिखने का मुख्य कारण क्षेत्रीय विषयों को अहमियत देना और क्षेत्रीय उपलब्धियां को क्षेत्र के लोगों से अधिक से अधिक जोड़ने का प्रयास करने के साथ यह भी है की साथी युवाओं से मैंने कई बार सुना है “बनास के धावक”

शायद आपने भी सुना हो। जो लोग इस बात को पूर्व से जानते हैं और स्वीकार करते हैं, वे अंकित कुमार की इस उपलब्धि के बाद सीधे इसी बात का स्मरण करेंगे “बनास के धावक”

बनास गांव के युवा तेज दौड़ते हैं। यह उपलब्धि फौजी के लिए दौड़ लगाते युवाओं के बीच हुई प्रतिस्पर्धा के कारण ही सामने आई होगी। अब तक मैं सर्वाधिक जो नाम सुना हूं वह मुकेश हैं। बनास गांव के मुकेश। 

उनका नाम भी तब अधिक सामने आया था, जब पहले कभी यहां हुई एक दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम आकर उन्होंने इनाम में एक स्कूटी हासिल की थी। यह प्रेरक जीत थी। इससे कई युवा अपने आप में छुपी प्रतिभा को ढूंढने के लिए आगे आते हैं। इससे बात युवाओ में एक बार फिर हुई, बनास के धावक होते हैं। तभी से यह बात मुझे स्थानीय खेलकूद के संदर्भ में याद आती है, और आज बड़े स्तर पर अपने आप को सबसे तेज साबित कर आए हैं बनास के धावक, अंकित कुमार।

मैं इस लेख को मित्रवत भाव में लिख रहा हूं स्थानीय लोगों के लिए यह अधिक महत्व का है। वे इसे अधिक गहराई से समझ सकेंगे। इन बातों को वह शायद पूर्व से ही सहमति भी देते हो।

  यह अंकित कुमार हैं, और यह उन तमाम क्षेत्र के धावकों का सर्वश्रेष्ठ चेहरा बन गए हैं। उन्होंने गांव के रास्तों और कच्ची सड़क की दौड़ को सबसे मजबूत मेहनत साबित कर दिया है। उन्होंने गांव के रास्तों को दौड़ के ट्रैक पर सफल साबित किया है।।

शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

मैं खेलूंगा | महान सचिन तेंदुलकर का उदय

हाल ही में वानखेड़े स्टेडियम मुंबई के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की एक प्रतिमा को अनावरित किया गया। सचिन तेंदुलकर स्वयं इसे उन तमाम सहयोगियों अपने साथी क्रिकेटरों के साथ होने का फल बताते हैं। वहीं भारत इस प्रतिमा को भारतीय क्रिकेट का एक समग्र स्वरूप के रूप में देख रहा है।

सचिन तेंदुलकर की क्रिकेट की वह तमाम ऐतिहासिक परियां जाने कितनी बार भारतीयों के लिए गर्व करने का एक चेहरा बने श्री सचिन तेंदुलकर। उनका वह आरंभिक समय भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलना, वह एक मैच जिसकी चर्चा करना आज भी एक महान प्रेरणा है। वह मैच बताता है, कि क्यों सचिन तेंदुलकर महान सचिन तेंदुलकर हैं।

केवल पंद्रह साल का एक बालक भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा एक मैच के दरमियान जब मैदान पर उतरता है, तो सामने विपक्षी खिलाड़ियों के तो पहले ही हौसले ऊंचाई पर थे। इसके दो कारण थे, एक तो केवल 24 रनों पर भारतीय टीम के चार बल्लेबाज वापस लौट गए थे। और दूसरा अब जो क्रीज पर खड़ा था, एक बालक केवल पंद्रह वर्ष का।

गेंदबाजी पाकिस्तान के हाथों में थी, बेहद तेज गेंदबाज लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार और बड़े-बड़े नाम वकार यूनुस, इमरान खान और वसीम अकरम जैसे गेंदबाज।

पहली गेंद जो उस बालक के सामने से यूं जाकर निकली जैसे गेंद हो ही न केवल हवा का झोंका हो। सामने दूसरे छोर पर नवजोत सिंह सिद्धू जो खड़े थे, जाकर पूछते हैं तो बालक ने कहा मैं ठीक हूं।

अगली गेंद एक बाउंसर थी, और उस बालक के हेलमेट से नाक पर जा लगी, यह बहुत तेज था। वहां खून बहने लगा एक पंद्रह वर्ष का बालक भारतीय टीम के लिए खेलता हुआ। दर्शकों कि जहां पूर्व से ही एक पंद्रह वर्षीय बालक को लेकर सहानुभूति थी, इसलिए क्योंकि पाकिस्तान के तेज गेंदबाजों के सामने वह किसी भी प्रकार से सक्षम नहीं दिख रहा था। दर्शकों का तो साफ मानना था, कि इतनी कम उम्र के बालक को इतने बड़े मैच में कैसे खेलने दिया गया है। 

वहां खिलाड़ी और डॉक्टर खड़े हुए और अब उस बालक को मैदान छोड़ने को कहा गया वह जाए और कुछ समय आराम करे।लेकिन उस बालक ने इन तमाम बातों को नकार दिया। अपने आत्मविश्वास और मजबूत इरादे को जाहिर किया। दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की।

वह बोला और जो बोला वह आज तक नये बल्लेबाजों के लिए महान प्रेरणा है। वह बालक कहता है “मैं खेलूंगा”

यह कोई और नहीं सचिन तेंदुलकर थे। और यहां इस मैदान में भारतीय क्रिकेट का एक सितारा पैदा हुआ। वह खेला और ऐसा खेला की भारत ही नहीं दुनिया क्रिकेट से उसे नहीं पहचानती बल्कि उसके चेहरे से क्रिकेट को पहचानती हैं।।

बिग बॉस विनर एलविश यादव के खिलाफ FIR

एलविश यादव पर कुछ आरोप लगाए गए हैं। FIR दर्ज हुई है। सांपों की तस्करी से जुड़ा मामला है, और लगभग छः के खिलाफ यह एफआईआर दर्ज की गई है। उनमें एक एलविश यादव हैं। अब यह हममें से तो कई लोगों के लिए बिल्कुल नया है कि सांपों के जहर को पार्टियों में प्रयोग किया जाता है।

बताया गया है, कि यह गैर कानूनी कार्य के लिए इस आरोप के चलते वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 9, 39, 48ए, 49, 50 और 51 के अंतर्गत केस दर्ज किया गया है। एलविश यादव इस आरोप में बड़ा चेहरा है। कई नौजवान उन्हें बेहद उत्साह से अनुसरण करते हैं। बिग बॉस के विजेता बनने के बाद तो वह खूब चर्चित रहे। देश भर में उन्हें देखा गया और लोगों ने खूब पसंद भी किया। जाहिर सी बात है कि इससे उनकी प्रसिद्धि में इजाफा हुआ है।

आप उन्हें जानते ही होंगे फोन पर आपने कभी तो उन्हें देखा ही होगा। मुझे एक बात उनकी याद आती है, बिग बॉस के शो पर उस दरमियां उन्होंने वहां आए किन्हीं पंडित जी जो हाथ की लकीरें पढ़ सकते थे, उनसे बहुत सी बातें जानने के बाद एलविश यादव ने कहा पंडित जी आप देखकर बताइए मैं नेता कब बनूंगा। मैं पॉलिटिक्स में कब आऊंगा।

हालांकि इस मामले पर एलविश यादव की प्रतिक्रिया भी देखने को मिली है, किसी न्यूज़ चैनल को उन्होंने बताया कि यह सब आरोप फेक हैं। वह एक आत्मविश्वासी व्यक्ति हैं। और इस बात का परिचय एलविश यादव ने बिग बॉस विजित कर दिया। लेकिन इस प्रकार के आरोपों में उनका नाम आश्चर्यजनक है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें युवा एक बड़ी संख्या में चाहते हैं। आपको बड़ी संख्या में अनुसरणकर्ता प्राप्त होने के बाद आपकी जिम्मेदारियां बेहद बढ़ जाती हैं। क्योंकि आपका हर कदम केवल आपका व्यक्तिगत नहीं रह जाता, बल्कि वह कई लोगों को प्रभावित कर रहा होता है।।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
नमस्कार साथियों मेरा नाम दिवाकर गोदियाल है। यहां हर आर्टिकल या तो सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, या जीवन के निजी अनुभव से, शिक्षा, साहित्य, जन जागरण, व्यंग्य इत्यादि से संबंधित लेख इस ब्लॉग पर आप प्राप्त करेंगे 🙏